‘डॉक्टर साहब’ बीमार हैं…
अफसर-नेताओं के कुत्ते-बिल्लियों की देखभाल करने वाले डॉक्टर साहब बीमार हो गए हैं. डॉक्टर साहब ने घाट-घाट का पानी पिया था. उनकी अपनी इम्यूनिटी तो ठीक ठाक ही थी. कहीं कुछ गड़बड़ हुआ होगा, वर्ना मजाल है कि जानवरों की सेहत दुरुस्त करने वाले डॉक्टर साहब यूं बीमार पड़ जाते. खैर मसले से ताल्लुक बनाते चलिए. डॉक्टर साहब पशुपालन विभाग में अफसर थे. पशुपालन से पंचायत विभाग में प्रतिनियुक्ति पर चले गए. सहायक परियोजना अधिकारी रहते हुए 8 करोड़ 44 लाख रुपए का घोटाला कर बैठे. ईओडब्ल्यू ने एफआईआर दर्ज कर ली. डॉक्टर साहब निलंबित हो गए. गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी, तो आनन-फानन में निचली अदालत में जमानत याचिका लगा दी. अदालत ने मामले की गंभीरता देख जमानत याचिका खारिज कर दी. डॉक्टर साहब हाईकोर्ट पहुंच गए, जहां से उन्हें सशर्त जमानत मिली. कहानी यहां खत्म नहीं हुई. बल्कि यहां से शुरू हुई है. करीब एक दशक पुराने इस मामले के आरोपी डॉक्टर साहब ने पशुपालन विभाग से वन विभाग में अपना संविलियन करा लिया. बताते हैं कि राज्य शासन ने संविलियन के लिए जिन अधिकारियों का नाम वन विभाग को भेजा था, उन नामों में डॉक्टर साहब थे ही नहीं, बावजूद इसके उनका संविलियन हो गया. किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी. वन विभाग का अफसर बन डॉक्टर साहब अपना मुकदमा खेलते रहे. इधर उनकी आईएफएस प्रमोशन की फाइल दौड़ने लगी ही थी कि उनका सौभाग्य दुर्भाग्य में बदल गया. बिलासपुर की एक नेता को हाईकोर्ट के दस्तावेज मिल गए. नेता ने आव देखा ना ताव. वन विभाग के शीर्ष अधिकारियों को चिट्ठी लिख कर डॉक्टर साहब का कच्चा चिट्ठा खोल दिया. वन विभाग के अफसर भी डॉक्टर साहब की कारगुजारियों से वाकिफ ना थे, सो मालूमात हासिल होते ही सन्न रह गए. पता चला है कि वन विभाग ने डॉक्टर साहब से इस मामले में पूछताछ शुरू कर दी है. उनसे मुकदमों का विवरण मांगा गया है, साथ ही यह भी पूछा है कि उनके खिलाफ चल रहे मुकदमे की जानकारी संविलियन के वक्त क्यों छिपाई गई? डॉक्टर साहब सफारी की सैर पर थे, जब यह आफत बरसी. कहते हैं कि अब कोई अफसर-नेता अपने कुत्ते-बिल्लियों के इलाज के लिए उन्हें फोन करता है, तो जवाब मिलता है कि ‘डॉक्टर साहब बीमार हैं’. सुनते हैं कि बीमारी की इस दलील के बूते ही उन्होंने विभाग के पूछे गए सवालों का जवाब देने के लिए कुछ दिनों की मोहलत मांगी है.
‘करोड़पति बाबू’
सरकारी महकमे के अदने से बाबू के करोड़पति होने की खबरें अब हैरान नहीं करती. बाबू क्या? मामूली अर्दली भी यदि खुदा ना खास्ता करोड़पति निकल जाए, तो ताज्जुब मत होइएगा. माहौल ही कुछ ऐसा है. बहरहाल इस करोड़पति बाबू की कहानी दिलचस्प है. इस करोड़पति बाबू की तैनाती सरगुजा वन महकमे में है. ये चाय-पानी के खर्चों पर चलने वाला ‘बाबू’ कतई नहीं है. बाबूगिरी करते-करते इस सज्जन ने रिश्तेदार के नाम पर एक फर्म बनाया है. सुनते हैं कि बाबू के इस फर्म को करोड़ों रुपए की सप्लाई का ठेका मिला है. सरगुजा संभाग के एक अन्य जिले में भी एक और करोड़पति बाबू है, जो पहले वाले से दो कदम आगे है. इस बाबू की दो कंपनी है. एक कंपनी पत्नी के नाम और दूसरी कंपनी बेटे के नाम. बीस साल से एक ही दफ्तर में जमा यह बाबू अच्छे-अच्छे अफसरों को अपने अगल बगल फटकने नहीं देता. बाबू की धौंस के आगे अफसरों की हैसियत दो कौड़ी की है. करोड़पति बाबूओं के इन कारनामों पर सरगुजा के एक आला अफसर की टिप्पणी गौर करने वाली है, जिसमें अफसर यह कहते हुए सुने गए कि ‘इसमें गड़बड़ी हो तो बताइए’. माने ऐसा कहकर बाबूओं को इस अफसर ने क्लीनचीट दे दी. एक खबरनवीस ने वन महकमे के आला अफसर को जब ‘करोड़पति बाबू’ का किस्सा साझा किया, तब अफसर ने कहा ‘ अंधेरे में तीर मत मारो’…अब समझा जा सकता है कि बाबू ने सिर्फ पैसा नहीं कमाया, अपने विभाग में ऊपर तक इज्जत भी कमाई है. वैसे आजकल सरकारी महकमे में इज्जत बहुत कम लोग ही कमा पाते हैं. अधिकांश को तो यह खरीदनी पड़ती है. यकीनन यहां दोनों ही बाबूओं ने इज्जत खरीदी होगी. अच्छी कीमत चुकाकर.
नो मोबाइल
पुलिसिंग के मामले में राजधानी के अपने सलीके है. ख्यालों में बेतरतीबी की यहां कोई जगह नहीं. आड़े तिरछे कामों के अपने नियम कायदे तय हैं. यहां हर कोई, हर किसी की नजर में है. कोई यह सोच रहा है कि उसका किया किसी की नजर में आने से बच सकेगा, तो इसे भ्रम ही कहा जा सकता है. बहरहाल एक नए नवेले डीएसपी तबादले में जब राजधानी पहुंचे, तो आते ही बड़ी जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई. राजधानी में कंधों पर जिम्मेदारी बस सवार नहीं होती, फितूर भी सवार हो जाता हैं. यह फितूर गैर जरूरी कामों में दिलचस्पी की वजह से सवार होता है. अब डीएसपी जिस कुर्सी पर बैठ रहे हैं, वहां फितूर क्या ही हो सकता है. समझ सकते हैं. खैर, कई मर्तबा ऐसे फितूर दिलो दिमाग में डर बिठा देते हैं. लगता है इसी डर ने नए नवेले डीएसपी ने कुछ ऐसा करवा दिया, जो आईजी-एसपी ना कर सके. पब्लिक सर्वेंट हैं. सामान्य समझ भी, ऐसा करने की इजाजत नहीं देती होगी. डीएसपी महोदय ने अपने दफ्तर के बाहर एक नोटिस चस्पा कर दिया है, जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है. ‘कृपया मोबाइल फोन यहां रखें’. मतलब साफ है कि डीएसपी के दफ्तर में कोई मोबाइल लेकर नहीं जा सकता. अब मोबाइल ना लेने जाने के पीछे की दलील क्या होगी? अपराध पर अंकुश लगाने वाले डीएसपी को भला किसका डर? पुलिस का काम समाज में भरोसा जगाना भी है, यहां डीएसपी का खुद पर भरोसा कमजोर दिखता है. डीएसपी के संगी साथियों से जब इस प्रतिबंध का कारण पूछा गया, तब जवाब मिला ‘डीएसपी ही जाने अपने मन की बात’….
गणित का हल
चुनाव करीब है. नेता हार-जीत का गणित हल करने में जुट गए हैं. कांग्रेस के तीन मौजूदा विधायक जब अपनी स्थितियों की समीक्षा करने में जुटे, तो गणित के कठिन सवाल में उलझकर रह गए. सही जोड़-घटाना लगाने के बावजूद गणित का सवाल हल नहीं हुआ. दिमागी वर्जिश के बाद पता चला कि यह गणित ‘मोदी’ जी वाला है. अरे वहीं ए स्क्वेयर प्लस बी स्क्वेयर वाला, जिसके सही जवाब के लिए बड़े-बड़े गणितज्ञ आज तक जुटे हैं कि यह कौन सा नया फार्मूला इजाद कर लिया गया था. खैर, वापस लौटते हैं. तो तीन विधायक गणित के कठिन सवाल का हल ढूंढते रहे. मालूम चला कि गलती दरअसल सामान्य जोड़-घटाने तक सीमित नहीं है. स्थानीय सलतनत के सुल्तान ने जिस फार्मूले पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकी है, उस फार्मूले ने बाकी तीन विधायकों का गणित खराब कर दिया है. सुनते हैं कि तीनों विधायकों ने संबंधित विभाग के मंत्री की मौजूदगी में प्रदेश प्रभारी और मुख्यमंत्री से अपनी पीड़ा जाहिर की है. यह कहते हुए कि सुल्तान की वजह से कहीं प्रजा क्रोधित ना हो जाए. इसलिए समय रहते फैसला ले लिया जाए. अब जब सुल्तान ही अपनी सलतनत का विस्तार करने में जुटे हो, वहां ऐसी लामबंदी भला कैसे बर्दाश्त की जाएगी….विधायक अब भी गणित का सामान्य सवाल हल कर रहे है. इस उम्मीद के साथ की ऊपर वाले कठिन सवाल का हल ढूंढ लेंगे…..
फजीहत
एक आदेश से श्रम विभाग की खूब फजीहत हुई. विभाग ने आदेश जारी कर छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मंडल के अध्यक्ष सन्नी अग्रवाल और मंडल के सदस्यों की नियुक्ति समाप्त कर दी. विभागीय मंत्री के अनुमोदन के बाद यह आदेश जारी किया गया. कहते हैं कि मंत्री ने सचिव और फिर सचिव ने अवर सचिव को कहकर आदेश जारी करवा दिया. इस आदेश के बाद खूब बवाल मचा. वजह बताई गई कि बतौर अध्यक्ष एवं सदस्य जिस मंडल में नियुक्ति मुख्यमंत्री की प्रशासकीय स्वीकृति से की गई थी, उस नियुक्ति को मंत्री के अनुमोदन से आखिर कैसे समाप्त कर दिया गया. बात ऊपर तक जा पहुंची. अफसरों को जमकर फटकार लगी. आनन-फानन में विभाग ने नया आदेश निकालकर पुराना आदेश निरस्त कर दिया. सन्नी अग्रवाल और सदस्यों का पद बरकरार रहा. जाहिर है इससे सन्नी की बांछे खिल गई होगी. कैबिनेट मंत्री का दर्जा बना हुआ है. चर्चा है कि सन्नी अग्रवाल रायपुर दक्षिण से दावा ठोक रहे हैं. जगह-जगह वाल राइटिंग चल रही है. चुनाव लड़ना है, तो तामझाम जुटाना होगा और तामझाम जुटाने के लिए ‘दर्जा’ बना रहना जरूरी है.
हक्का-बक्का
राज्य के आईपीएस अफसरों की आंखें उस वक्त फटी की फटी रह गई, जब आईजी स्तर के अफसरों के तबादले की सूची आई. कुछ अफसरों ने आंखों पर लगे चश्मे को निकालकर पोछा फिर लगाया. तब जाकर एहसास हुआ कि जो पढ़ा था, वही सही है. पहले पहल तो यह समझने में वक्त लगा कि आखिर यह तबादला है कैसा? बाद में खबर आई कि रेंजों का पुनर्गठन कर दिया गया है. यानी कि पहले तबादला सूची आई और बाद में रेंजों का पुनर्गठन किए जाने की खबर. तब मसला समझ में आया. रेंजों के पुनर्गठन से आईपीएस बिरादरी हक्का बक्का है. रायपुर रेंज को दो भागों में बांट दिया गया है. रायपुर रेंज और रायपुर ग्रामीण रेंज. रायपुर रेंज में सिर्फ रायपुर जिला रहेगा. जबकि रायपुर ग्रामीण रेंज में धमतरी, महासमुंद, गरियाबंद तथा बलौदाबाजार-भाटापारा को शामिल किया गया है. पहले एक आईजी बैठता था. अब दो बैठेंगे. हालांकि पुनर्गठन के पहले अभी भी यही व्यवस्था बनी हुई थी. रायुपर छोड़कर बाकी जिले आरिफ शेख देखते थे. इंट के साथ-साथ अजय यादव रायपुर देखते थे. अजय यादव की जगह अब रतनलाल डांगी को बिठाया गया है. एक प्रैक्टिस रही है कि आईजी इंटेलिजेंस को ही रायपुर का जिम्मा दिया जाता था. इसकी अपनी तय वजह भी थी. अब थोड़ी हायरार्की भी बिगड़ती दिख सकती है. डांगी 2003 बैच के अफसर हैं और अजय यादव 2004 बैच के अफसर. कई मौकों पर आईजी इंटेलिजेंस सीधे रेंज आईजी या एसपी से कोआर्डिनेट करता है, जाहिर है ये दुविधा होगी कि कम्युनिकेट आईजी से किया जाए या एसपी से… पुनर्गठन में दुर्ग रेंज का बंटवारा कर दिया गया है. दुर्ग से अलग कर राजनांदगांव को नया रेंज बनाया गया है. दुर्ग रेंज में तीन जिले दुर्ग, बेमेतरा और बालोद रह गए हैं, जबकि राजनांदगांव में चार जिले राजनांदगांव, कबीरधाम, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई तथा मानपुर मोहला शामिल किए गए हैं. बिलासपुर से बद्रीनारायण मीणा को दोबारा दुर्ग लाया गया है. मीणा पहले भी यहां आईजी रह चुके हैं. जाहिर है मीणा समझ नहीं पा रहे होंगे कि यह प्रमोशन है या डिमोशन. बतौर प्रभारी सरगुजा रेंज संभाल रहे रामगोपाल गर्ग को रायगढ़ में डीआईजी बनाया गया है. जिनके अधीन रायगढ़, सक्ती तथा जशपुर जिला होगा, लेकिन डीआईजी बिलासपुर रेंज के अधीन काम करेंगे. भले ही प्रभारी के तौर पर रामगोपाल गर्ग सरगुजा संभाल रहे थे, लेकिन नए आदेश से उनका मन मसोसकर रह गया होगा. दुर्ग से आनंद छाबड़ा बिलासपुर भेजे गए हैं. आनंद छाबड़ा इस मामले में सबसे ज्यादा लकी रहे. बिलासपुर रेंज सूबे का सबका बड़ा रेंज बन गया है, जिसमें नौ जिले शामिल हैं. बस्तर रेंज के अधीन दो डीआईजी काम करेंगे. दंतेवाड़ा और कांकेर. बस्तर आईजी पी सुंदरराज को बनाए रखने के लिए सरकार ने चुनाव आयोग को चिट्ठी भेजी गई है. फिलहाल जवाब का इंतजार किया जा रहा है. आयोग अनुमति दे दो तो ठीक, नहीं मिलने की स्थिति में तबादला सूची में संशोधन देखने को मिल सकता है.
आईएएस तबादला
राज्य शासन ने 14 आईएएस अफसरों के तबादले कर दिए. बिलासपुर और कोरबा कलेक्टर की अदला बदली की गई. कोरबा से संजीव झा बिलासपुर लाए गए और बिलासपुर से सौरभ कुमार कोरबा भेज दिए गए. फिलवक्त कोई कोरबा जाना नहीं चाहता. सौरभ कुमार साहसी कलेक्टर हैं. चले गए. यकीनन संजीव झा को थोड़ी राहत मिली होगी. बहरहाल तबादला सूची में अमृत खलखो को दी गई जिम्मेदारी बताती है कि 31 जुलाई के बाद भी उनकी पारी चलती रहेगी. सरकार उन्हें पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग दे रही है. हाल के दिनों में खलखो खूब चर्चित हुए. पहले अपने दोनों बच्चों के पीएससी में चुने जाने और उसके बाद श्रमिकों के लिए की जाने वाली दवा खरीदी के मुद्दे पर खलखो चर्चाओं में खूब रहे. जरूर सरकार को उनके भीतर छिपी प्रतिभा दिखी होगी, तभी पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग दिए जाने की अटकले तेज हो गई हैं. राजभवन और सरकार के बीच की अहम कड़ी खलखो ही है. जे पी पाठक इस वक्त भरोसे के पायदान पर लगाकार जंप लगाते दिख रहे हैं. पहले आवास एवं पर्यावरण का स्वतंत्र प्रभार मिला. फिर आबकारी और अब नगर तथा ग्राम निवेश का जिम्मा उनके हिस्सा आया. भीम सिंह की बिलासपुर से वापसी हो गई. श्रमायुक्त बना दिए गए. पहले खलखो ही श्रम विभाग में सब थे. सचिव भी वहीं, कमिश्नर भी वही. अलरमेलमंगई डी सचिव बनाई गई हैं. अपनी पिछली पोस्टिंग में 2009 बैच के आईएएस के डी कुंजाम को इस बात की शिकायत थी कि वह अपने एक बैच जूनियर अफसर मौर्य को रिपोर्ट नहीं करेंगे. इसके लिए उन्होंने चिट्ठी लिख दी थी. मगर अब वह बिलासपुर कमिश्नर बनाए गए हैं. कोरबा कलेक्टर सौरभ कुमार 2009 बैच के अफसर हैं, मगर है तो आरआर? ऐसे में अब सौरभ कुमार को दिक्कत हुई कि प्रमोटी को रिपोर्ट नहीं करेंगे, तब कुंजाम की स्थिति क्या होगी? यह सवाल बना हुआ है. जितेंद्र कुमार शुक्ला खाद्य संचालक के साथ-साथ एमडी पर्यटन बनाए गए हैं, जाहिर है अनिल साहू बैक टू पैवेलियन होंगे. यानी अरण्य भवन लौटेंगे. आईएफएस अफसरों की प्रस्ताविक तबादला सूची में उनकी भूमिका तय होगी.