ई-ऑफिस
साय सरकार में बने सुशासन एवं अभिसरण विभाग को मिलाकर कुल 58 विभाग काम कर रहे हैं. इन 58 विभागों में से केवल 7 विभाग हैं, जिनका काम पूरी तरह से ऑनलाइन कर दिया गया है. यानी ई-आफिस में बदल दिया गया है. बचे 51 विभागों का कामकाज ई-ऑफिस में शिफ्ट करना बाकी है. पिछले दिनों मुख्य सचिव ने विभागीय सचिवों को चिट्ठी लिखकर कहा है कि 1 जनवरी 2025 तक मंत्रालय के सभी विभागों का कामकाज ई-आफिस पर शिफ्ट करना है, सो विभाग एक-एक नोडल अफसर नियुक्त करें. किसी विभाग में ई-ऑफिस पर काम शुरू होने का मतलब है कि कौन सी फाइल कहां पेंडिंग है और कितने दिनों से पेंडिंग है. यह सबको मालूम होगा. कामकाज में तेजी आएगी. मंत्रालय का ऊपरी अमला ई-ऑफिस शुरू करने पर जोर लगा रहा है, निचला अमला इससे कन्नी काट रहा है. ई-ऑफिस कईयों की स्वार्थपूर्ति में रोड़े अटकाने वाला साबित होगा, जाहिर है दिलचस्पी कहां होगी? मगर सरकार तो सरकार है. सरकार ने ठान लिया है, तो होगा ही. मंत्रालय का कामकाज ई-आफिस पर शिफ्ट करना जितनी बड़ी बात नहीं है, उससे ज्यादा बड़ी बात है, एक अन स्किल्ड वर्क फोर्स को स्किल्ड बनाना. मंत्रालय में दर्जनों विभाग ऐसे हैं, जहां काम करने वाले कई अफसरों को नोटशीट लिखना तक नहीं आता. इधर-उधर से सहयोग लेकर काम करते नजर आते हैं. ई-आफिस ऐसे लोगों के लिए सिरदर्द नहीं होगा तो क्या होगा?
सिरदर्द
सरकार के एक मंत्री का सिर इन दिनों दर्द से फटा जा रहा है. दर्द की वजह उनके एक कमाऊ विभाग के डायरेक्टर हैं. डायरेक्टर मंत्री के ऊलजलूल काम को नियम कानून की आड़ लेकर रोक देते हैं. डायरेक्टर अपनी कलम फंसाना नहीं चाहते और मंत्री हैं कि डायरेक्टर का सिर कलम करने पर आमादा हो गए हैं. विभाग के डायरेक्टर ने पिछली सरकार में अफसरों का हाल बेहाल होते देख रखा है. ऊलजलूल काम में दस्तखत कर अफसर जेल में हर दिन अपना बाल नोंच रहे हैं. डायरेक्टर भविष्य में अपना बाल नोंचना नहीं चाहते. विभाग के डायरेक्टर को बरसो से चले आ रहे सिस्टम से कोई गुरेज नहीं, मगर मंत्री की भूख ज्यादा है. मंत्री को इस बात की फिक्र नहीं कि ज्यादा खाने से उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है. उनका स्वास्थ्य खराब हो सकता है. अफसर समझा रहे हैं. मंत्री खुद को समझा हुआ मान रहे हैं. लगता है कि मंत्री जन्म से ही समझदार पैदा हुए हैं.
दुर्भाग्य-सौभाग्य
किसी का दुर्भाग्य, किसी का सौभाग्य बन सकता है. एक कार्पोरेशन में तैनात एमडी जब वहां से हटे, तब उनकी जेब खाली थी. जेब भरने का वक्त आया ही था कि उन्हें हटा दिया गया. उनकी जगह आए अफसर के सौभाग्य ने करवट ली थी कि कुछ किए बगैर उनकी जेब भर गई. यह जगह ही ऐसी है कि बदनामी मोल लिए बगैर ही सब कुछ मिल जाता है. खैर, जो साहब हट गए थे, उनके लिए रामधारी दिनकर की चंद पंक्तियां याद आती है. ”सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें आगे क्या होता है..”. क्या मालूम कल जो छूट गया, आगे उन्हें बढ़कर मिल जाएगा. सरकारी व्यवस्था में कुछ छूट जाने और कुछ नया मिल जाने का यह क्रम चलता रहता है. बहरहाल सरकार को इस पर एक नीति बना देनी चाहिए. जो अफसर जिस वक्त, जिस जगह तैनात है, वहां उसकी तैनाती के वक्त किए गए काम का खर्चा-पानी उसे ही मिले, भले ही उसका तबादला क्यों ना हो जाए.
वाट एन आईडिया
क्रिएटिव अफसरों के दिमाग में सोते जागते किस्म-किस्म के आईडिया जन्म लेते रहते हैं. राष्ट्रपति के हालिया छत्तीसगढ़ दौरे में एक अफसर ने कुछ अलग करने के इरादे से अपने दिमाग को कुरेदना शुरू किया. तब जाकर एक आईडिया दिमाग में आया. सीएम हाउस में राष्ट्रपति का लंच होना था. लंच के बाद ग्रुप फोटो का अरेंजमेंट था. ग्रुप फोटो की जगह तय होते ही बैकग्राउंड में जशपुर के प्रसिद्ध मधेश्वर पहाड़ की फोटो लगा दी गई. बैकग्राउंड में पहाड़ की फोटो देख राष्ट्रपति अचरज दिखीं. उनकी उत्सुकता समझ मुख्यमंत्री ने राष्ट्रपति को पहाड़ के प्रसिद्ध होने की वजह बताई. ग्रुप फोटो की एल्बम लेकर राष्ट्रपति दिल्ली लौट गई. इधर मधेश्वर पहाड़ चर्चा में आ गया. मधेश्वर पहाड़ के बारे में पहली बार सुनने वाले लोग गूगल करते रहे. करोड़ों रुपए खर्च कर पर्यटन का प्रचार प्रसार करने के परे अफसरों के दिमाग में इस तरह के उपजे आईडिया भी काम कर जाते हैं. आने वाले दिनों में जशपुर के मधेश्वर पहाड़ में जब भीड़ बढ़ती दिखेगी, तब लोग कहते सुने जाएंगे वाट एन आईडिया सर जी.
चुनावी ड्यूटी
झारखंड की कुल 81 विधानसभा सीटों में से करीब 40 सीटों को जिताने की जिम्मेदारी छत्तीसगढ़ भाजपा के हिस्से हैं. चुनौती बड़ी है, इसलिए बड़े चेहरों को झारखंड में झोंक दिया गया है. मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की चुनावी रैलियां तो होंगी ही, लेकिन जो मैदान में पूरी तरह डंटे हैं, उनमें विजय शर्मा, केदार कश्यप, ओ पी चौधरी जैसे कई नाम हैं. अलग-अलग विधानसभा सीटों की जिम्मेदारी इन नेताओं के कंधों पर सौंपी गई है. झारखंड के चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान हेडमास्टर सरीखे बर्ताव कर रहे हैं. सुनते हैं कि पिछले दिनों दिवाली की छुट्टी मांगने में भी राज्य के नेताओं को संकोच हो रहा था. पहले तो शिवराज सिंह चौहान ने छुट्टी देने से मना कर दिया, लेकिन बाद में एक दिन की छुट्टी देने पर राजी हो गए. दिवाली मनाकर राज्य के नेता झारखंड लौट गए हैं. अब जब तक चुनाव प्रचार थम नहीं जाता. तब तक उनकी हर सांस का हिसाब शिवराज सिंह चौहान के पास होगा. हरियाणा चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा झारखंड में भी जीत के लिए आश्वस्त दिख रही है. अगर जीत मिली, तो उस पर मिलने वाली सराहना की एक हिस्सेदारी छत्तीसगढ़ के नेताओं की होगी.
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