‘हाथी-महावत’
भीड़ कैसी भी हो. गुस्से से खौलती भीड़ हिंसक होती है, फिर चाहे यह भीड़ ग्रामीणों की हो या फिर पुलिस की. कवर्धा के लोहारीडीह गांव में एक भीड़ ही थी, जिसने जिंदा आदमी को जला कर मार डाला. पहले भीड़ हिंसक हुई और फिर पुलिस. सादे लिबास में पहुंचे एसपी की मौजूदगी में एक नाबालिग लड़की को पीटने की तस्वीर बाहर आई. पुलिस की मार का शिकार एक युवा जेल में मर गया. शरीर पर चोट के गहरे निशान थे. निःसंदेह वह अपराधी हो सकता था, मगर पुलिस की गिरफ्त में था. एसपी ने बयान दिया मृतक मिर्गी का मरीज था. चोट कह रहे थे कि पुलिस की लाठी से दम निकला है. बलौदाबाजार हिंसा को कुछ अरसा ही बीता है, जब एक उन्मादी भीड़ ने कलेक्टर कार्यालय फूंक डाला. सुकमा जिले के एक गांव में जादू टोने के शक में भीड़ ने एक पूरे परिवार को खत्म कर दिया. कसडोल में टोनही के शक में एक परिवार के चार लोगों की हत्या कर दी गई. एक वक्त पर एक पूरी भीड़ के अपराधी हो जाने का यह कलंक किसके मत्थे मढ़ा जाएगा? संगठित होकर अपराध करने के इस बढ़ते आंकड़ों पर सवाल तो उठेगा ही. एक अफसर कहते हैं कि जनता और पुलिस का संबंध हाथी और महावत की तरह है. जनता हाथी है और पुलिस महावत. हाथी महावत से कई गुना अधिक ताकतवर है, मगर महावत की लाठी का डर उसके दिमाग में बैठा होता है. राज्य में जनता के बीच से निकली एक उन्मादी भीड़ बेलगाम हाथी की तरह है. इस भीड़ को नहीं मालूम कि उसके पैरों तले लोग कुचल कर मर रहे हैं. महावत धुनी रमाए बेसुध बैठा है. महावत का हाथी पर कोई नियंत्रण नहीं है.
‘कलेक्टर-एसपी’
कवर्धा कांड के बाद सरकार ने सबसे पहले एडिशनल एसपी विकास कुमार को निलंबित किया. विकास प्रशिक्षु आईपीएस अधिकारी हैं. महकमे में सुना गया कि वह काबिल अधिकारी रहे हैं. मगर वह सीनियर्स के आदेश पर लाठी लहराने वाली टीम की अगुवाई कर बैठे. सरकार को लगा था कि इस कार्यवाही से गुस्सा कुछ कम होगा. मगर मांग ज्यादा की थी. सरकार हरकत में आई. पूरे थाने को निलंबित कर दिया. सरकार की नाराजगी कलेक्टर-एसपी तक फूटी. कलेक्टर-एसपी हटा दिए गए. बलौदाबाजार हिंसा के बाद यह दूसरी घटना रही, जब कलेक्टर-एसपी पर गाज गिरी हो. बलादौबाजार हिंसा मामले में वक्त पर एक्शन नहीं लिए जाने पर सरकार का वज्र चला था. कवर्धा मामले में घटना पर रिएक्शन करने पर कलेक्टर-एसपी समेत मातहत नाप दिए गए. कलेक्टर को हटाया जाना पहले लोगों को समझ नहीं आया, फिर कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री का दिया वह बयान लोगों की जेहन में दौड़ पड़ा जिसमें उन्होंने कहा था कि लाॅ एंड आर्डर बिगड़ने पर कलेक्टर भी जिम्मेदार होंगे. बलौदाबाजार और कवर्धा की घटना के बाद कम से कम अब राज्य भर के कलेक्टर-एसपी सचेत हो जाएं.
‘गृह का ग्रह’
सूबे में इन दिनों गृह विभाग का ग्रह बिगड़ गया है. एक के बाद एक बड़ी और चर्चित घटनाएं घट रही हैं. एक आईपीएस ने कहा कि किसी अच्छे पंडित को ढूंढकर विभाग के इस ग्रह दोष को खत्म करवाना होगा. कोई दिन नहीं बीत रहा जब छोटी-बड़ी घटनाएं न घट रही हो. विपक्ष को मुद्दे प्लेट में सजकर मिल रहे हैं. वैसे विभाग के मंत्री प्रो एक्टिव हैं. जमीन पर बैठ-बैठ कर लोगों की समस्या सुनते हैं. मंत्री बेहद जमीनी किस्म के हैं. मंत्री का जमीनी होना एक अलग बात है और कानून व्यवस्था जमीन पर आ जाना अलग. बिगड़ती कानून व्यवस्था पर मंत्री को सख्ती बरतनी चाहिए. गृह विभाग दो धारी तलवार पर चलने जैसा है. संतुलन बिगड़ा नहीं कि सरकार को चोट लगने का खतरा हमेशा बना होता है. वैसे, गृह मंत्री बंटी हुई ताकत का एक हिस्सेदार होता है. विभाग का वर्क फोर्स गृह विभाग के हिस्से और वर्क फोर्स को चलाने वाली ताकत यानी आईपीएस कैडर जीएडी के अधीन है. बंटी हुई ताकत में सब कुछ समेट लेने में गड़बड़ी तो होती ही है. फिलहाल गृह का ग्रह सुधारने में जो जतन करते बने कर लेना चाहिए.
‘नाराज’
साय सरकार ने पांच प्राधिकरणों में उपाध्यक्ष की नियुक्ति कर दी है. इनमें से एक प्राधिकरण में लता उसेंडी को लिया गया है. मगर सुनते हैं कि इससे वह खुश नहीं है. लता उसेंडी भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. ओडिशा की प्रभारी हैं. पूर्व मंत्री रह चुकी हैं. एक आला दर्जे की नेता हैं. ऐसे में प्राधिकरण में उपाध्यक्ष बनाए जाने से उनका मन दुखी हो गया है. साय सरकार में दो नए मंत्रियों की ताजपोशी की चर्चा में यदा कदा लता उसेंडी के नाम की चर्चा भी होती रही है. भाजपा के एक कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे एक केंद्रीय मंत्री ने भरे मंच से इस बात का ऐलान कर दिया था कि लता उसेंडी मंत्री बनने वाली हैं. मगर अब प्राधिकरण में उनकी नियुक्ति के बाद उनके मंत्री बनाए जाने की अटकलों पर विराम लग गया.
‘मोनोपली’
एक प्लेसमेंट एजेंसी की सरकार में मोनोपली हो गई है. सरकार किसी भी रहे. काम इसी एजेंसी के हिस्से जाता है. इस एजेंसी का काम मैनपावर प्रोवाइड कराना है. इस एजेंसी को हर महीने सरकार से करोड़ों रुपए का भुगतान होता है. सरकारी नियम कायदे को किनारे रख प्लेंसमेंट एजेंसी का अनुबंध लगातार बढ़ रहा है. सुनते हैं कि इस एजेंसी का मूल काम निचले स्तर पर मैनपावर प्रोवाइड करना था. मगर धीरे-धीरे अब यह एजेंसी इंजीनियर भी हायर कर रही है. मानो सरकारी नियुक्ति का कोई पैरामीटर न हो. वैसे इस एजेंसी की आड़ में एक लाॅबी बहती गंगा में हाथ धो रही हैं. प्लेसमेंट एजेंसी के रास्ते नौकरी पाने के नाम पर दो-तीन लाख रुपए तक की वसूली हो रही है. मसलन किसी को बारह-पंद्रह हजार की नौकरी चाहिए, तो उस नौकरी पर रखने के ऐवज में कंडीडेट से रुपये वसूले जा रहे हैं. सरकारी नौकरी में लेन-देन चलना सुना था. सरकारी व्यवस्था में आउटसोर्स कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए लेन-देन हजम नहीं होना चाहिए. जिम्मेदार जो इस व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं, थोड़ा तो लिहाज कर चले.
‘घोटाला’
पाठ्य पुस्तक निगम भ्रष्टाचार का नायाब नमूना बनकर उभरा है. जो किताबें सरकारी स्कूलों के बच्चों का ज्ञान अर्जित करने का जरिया बन सकती थी, वह किताबें एक कारखाने में कटने पहुंच गई. किताबों के कटने की कलई खुली, तो एक बड़े भ्रष्टाचार का खुलासा हो गया. बरसो से घोटाले के सबूत कारखानों में जमींदोज होते रहे, सरकार को कानों-कान खबर नहीं हुई. बच्चों का भविष्य गढ़ने वाली किताबों की छपाई में घोटाला कर जिम्मेदार अफसर नदी किनारे सैकड़ों एकड़ जमीन खरीद फार्म हाउस बनाते रहे, तो नेताओं की जेब भी भारी होती चली गई. अब जब मामला फूटा, तो जांच कमेटी बनाई गई. इस पर भी दिलचस्प यह रहा कि जांच कमेटी में शामिल एक अफसर ही निलंबन का शिकार हो गया. जो डकैत थे, डकैती डाल कर चले गए. अब बाहर बैठ खी-खी कर हंस रहे हैं. सरकार को चाहिए कि सिर्फ कारखाने में कटने वाली किताबों की ही जांच न करे. जांच का दायरा बढ़ाए. पूर्व में दर्ज शिकायतों पर जमी धूल साफ करेंगे, तो मालूम चलेगा कि पाठ्य पुस्तक निगम घोटाले की एक बड़ी कब्रगाह है.
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