हांफते अफसर (1)
अफसर तभी हांफते हैं, जब कुर्सी सांसत में पड़ जाए. वर्ना दूसरे हांफते रह जाते हैं, मजाल है वक्त पर काम हो सके. जिलों में तो और बुरा हाल. एक छोटे से काम के लिए दर्जनों चक्कर लगाने पड़ जाते हैं. अच्छा हुआ कि मुख्यमंत्री का दौरा बन गया. मुख्यमंत्री खुद घूम-घूम कर जायजा लेने निकल रहे हैं. 4 मई से शुरू हो रहे इस दौरे के पहले राज्य शासन ने प्रदेशभर के कमिश्नर, कलेक्टर, आईजी और एसपी को एक तरह का फतवा जारी कर दो टूक कहा है कि मुख्यमंत्री के दौरे के पहले सभी लंबित शिकायतों का निराकरण कर लें, जिससे कि दौरे के वक्त कोई अप्रिय स्थिति ना बन जाए. अफसरों की चिंता में यहां भी लोगों के निराकरण के पीछे की असल वजह मुख्यमंत्री के सामने संभावित अप्रिय स्थिति को रोकने की है. चिंता में आम तबका दूर-दूर तक नहीं दिख रहा. खैर जैसा भी हो काम हो रहा है, आवेदनों पर काम शुरू हो गया है, ये बड़ी बात है. मुख्यमंत्री के दौरे भर की खबर ने ही मैदानी स्तर पर बड़ा असर दिखाया है. अमला ढूंढ-ढूंढ कर लंबित प्रकरणों का निराकरण करवाने में जुटा है. कलेक्टर तो मोटरसाइकिल में गांव-गांव जाकर खुद पूछ रहे हैं कि कोई दिक्कत तो नहीं है. है तो अभी बता दो. यकीनन इस एक्सरसाइज से हालात कुछ वक्त के लिए सुधर सकते हैं. नहीं तो कई जिलों में हालात यहां तक पहुंच गए थे कि अफसरों ने अपनी आंखों में हार्स ब्लाइंडर लगा रखा था. नजर सिर्फ 30 डिग्री तक सीमित हो गई थी. सिर्फ वहां जाती थी, जहां से कुछ कमाई-धमाई हो सके. आम लोगों के समस्या तो अफसरों के ‘माय फूट’ पर जा टिका था. कितना अच्छा हो अगर मुख्यमंत्री हर तीन महीने में कम से कम दौरे पर जाने का महज जिक्र ही छेड़ दें. उन इलाकों की तस्वीर बदल जाएगी. कई जरूरतमंदों की छोटी-मोटी समस्याओं का हल निकल सकेगा.
विधायकों का हलक सुखेगा ! (2)
वैसे तो मुख्यमंत्री का दौरा सरकारी योजनाओं के क्रियान्वय की जमीनी हकीकत और आम तबके की प्रशासन में सुनवाई को लेकर हो रही है. कार्यक्रम कुछ ऐसा ही दिखाई पड़ता है. लेकिन सुनते हैं कि इसके जरिए मुख्यमंत्री खुद एक तरह का राजनीतिक सर्वे भी कर ही लेंगे. सरकारी कामकाज में विधानसभा कोई इकाई नहीं है. संभाग, जिला, विकासखंड, तहसील ये सब इकाईयां हैं, लेकिन मुख्यमंत्री के दौरे की सबसे खास बात जो है, वो ये है कि हर जिले की कम से कम तीन विधानसभा में जाएंगे. जाहिर है कि विधायकों के कर्मों का भी बहीखाता चेक किया जाएगा. कौन कितने पानी में है, ये पता चल सकेगा. विधायकों के कामकाज को लेकर वैसे तो कई तरह के सर्वे चलते रहते हैं लेकिन मुख्यमंत्री यदि ज़मीनी रिपोर्ट खुद से लेंगे तो इसकी बात ही अलग है. टिकट कटने की स्थिति में जब विधायक ये दलील देंगे कि हमने अच्छा काम किया तब मुख्यमंत्री की अपनी खुद की रिपोर्ट सामने होगी जो आईने की तरह होगी. ये दौरा ये तय करने में अहम भूमिका निभा सकता है कि किस विधायक के भाग्य का सितारा बुलंद होगा. सो दौरे से विधायकों का हलक सूखना लाज़िमी है.
जुगाड़ ढूँढ रहे आईएफएस अफ़सर
एक जुगाड़बाज आईएफएस अधिकारी हैं. सुनने में आया है कि मनचाही पोस्टिंग के लिए जुगाड़ ढूँढ रहे हैं. एक विधायक ने हाथ में पोटली लिये खूब मशक्कत कर ली लेकिन कुछ हुआ नहीं. लंबे समय तक विधायक ही बचाते आए थे. अबकी बार काम नहीं आ पा रहे. कहते हैं कि शंकरनगर के एक बड़े बंगले में संवैधानिक पद पर बैठे एक बड़े नेता के दरबार में भी हाजिरी लगा चुके हैं. नेताजी खुद के जुगाड़ में हैं. दिमाग और शरीर अस्तर- व्यस्त है, सो सुनवाई फिलहाल संभव नहीं है. कहते है कि अफ़सर ने एक दो प्रतिभा संपन्न पत्रकार साथियों की भी मदद लेने की कोशिश की है. जुगाड़ की नई-नई तरकीब ढूंढी जा रही है. बहरहाल पिछली पोस्टिंग में रहते हुए जब इस अफसर का तबादला हुआ था तब प्रभार छोड़ने के पहले ही करोड़ों रुपये के चेक काट दिए थे. कहते हैं कि तब वन मंत्री को हस्तक्षेप करने की नौबत आ गई थी. बैंकों को चिट्ठी लिखकर चेक के भुगतान रुकवाए गए थे. वैसे सुनाई ये भी पड़ा है कि अफ़सर पर एफआईआर की तलवार लटक रही है.
फुल फर्निश्ड अफसर
लोगों के शौक तरह-तरह के होते हैं. किसी को घूमना-फिरना पसंद है, किसी को खाने-पीने का शौक है. वन महकमे के इस आईएफएस अफसर को घर खरीदने का शौक है. बेेहिसाब घर खरीदते चले जा रहे है. सुना है कि नवा रायपुर में ही इनके चार बंगले और चार फ्लैट हैं. ये जनाब घर खरीदकर छोड़ नहीं देते. महंगी लकड़ियों से नक्काशीदार फर्नीचर बनवाते हैं. माने फुल फर्निश्ड घर. इसलिए इन्हें फुल फर्निश्ड अफसर कहा जाए, तो कोई गुरेज नहीं. जंगल विभाग में हैं, सो हरा-हरा देखने की पुरानी आदत है, इसलिए हरी लकड़ियों का फर्नीचर जरूरी है. पिछली सरकार में बिलासपुर के नजदीक एक डिवीजन में जब बतौर डीएफओ तैनात थे. दस करोड़ रूपए के भ्रष्टाचार के मामले में घिर गए थे. हालांकि ये बात अलग है कि भ्रष्टाचार के उस मामले में इनके खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं हुई. ऊपर वालों की कृपा तब भी थी, अब भी है. हेडक्वार्टर से निकलकर इन दिनों एक टाइगर रिजर्व में जंगली जानवरों की देखभाल में व्यस्त है.
जांच में खुलेगी कलई
मरवाही वन मंडल में कैम्पा फंड में हुए भ्रष्टाचार की शिकायत पर जांच बिठाई गई. वन मंत्री ने खुद कमेटी बना दी. जांच हो रही है. अच्छी बात है कि कैम्पा की गड़बड़ियों में कम से कम जांच की शुरुआत हुई है. मगर सुनने में ये तथ्य भी आया है कि जिस अधिकारी के विरूद्ध जांच कराया जा रहा है, उनके खिलाफ शिकायतों की एक लंबी फेहरिस्त है. करीब 16 शिकायतें महकमे में लंबित है, जिस पर जांच होनी है. इस जांच को क्या शुरुआत माना जाए? वैसे मान लेने में कोई बुराई नहीं है. पहले नतीजा इस जांच का देख लें. मंत्री ने हफ्तेभर की मियाद दी है. तीन दिन बीत गए हैं. चार दिन बाकी है. रिपोर्ट तय करेगी बाकी लंबित मामलों का क्या होगा. बहरहाल कैम्पा में गड़बड़ी का खेल बड़ा है. पूरे प्रदेश में इसकी ठीक ठाक जांच हो जाए, तो सैकड़ों करोड़ रूपए का बड़ा घोटाला फूट सकता है. विभाग के अधिकारी बताते हैं कि कैम्पा फंड स्टियरिंग कमेटी की अनुशंसा से खर्च की जाती है, मगर यहां बगैर कमेटी की अनुशंसा के बेहिसाब खर्च की गई. सवाल ये है कि क्या उन मामलों की भी जांच होगी?
अजीबोगरीब आदेश
नवा रायपुर विकास प्राधिकरण के परिसर में जनवरी से लेकर अब तक अपनी मांगों को लेकर धरना दे रहे किसानों का आंदोलन खत्म करवा दिया गया. जिला प्रशासन-पुलिस की टीम ने टेंट वगैरह जब्त कर लिया. प्रशासन जो करा ले कम है, मगर इस पूरे वाकये के बीच आंदोलन स्थल से किसानों को हटाने संबंधी जारी किए गए आदेश का मजमून बड़ा दिलचस्प है. इस पर आपदा प्रबंधन के नियमों की दलील दी गई है. लिखा गया है कि जन समुदाय को ‘लू’ से बचाने ये निर्णय लिया गया. आंदोलन में किसानों की मांगों के जायज होने और ना होने के तमाम सवाल उठाए जा सकते हैं, मगर चिलचिलाती गर्मी में फसल बोने और काटने वाला किसानों को ‘लू’ से बचाने की जिला प्रशासन की चिंता की वाहवाही होनी चाहिए? है ना….
जी पी सिंह की आवभगत !
तेजतर्रार रहे होंगे, मगर इन दिनों सलाखों के पीछे जी पी सिंह की जिंदगी कट रही है. पिछले दिनों एक घटना घटी. जेल में बंद जी पी सिंह को पंजाब चुनाव के नतीजों को टीवी पर दिखाने से जुड़े एक मामले में तीन जेल प्रहरियों को निलंबित कर दिया गया. जांच भी चल रही है, लेकिन असल वजह अब जाकर मालूम चली है. मामला सिर्फ टीवी पर पंजाब चुनाव के नतीजे दिखाए जाने तक सीमित नहीं था. बताते हैं कि जेल के भीतर जी पी सिंह की हर जरूरतें पूरी हो रही थी. अच्छा खाना मिल रहा था. अच्छी खातिरदारी हो रही थी. कहा तो यह भी जाता है कि मोबाइल फोन भी मुहैया करवाया जा रहा था. था तो जेल मगर बाहर खेल बिगाड़ने के तमाम जतन आसानी से मुहैया हो रहे थे. जाहिर है प्रहरियों का नपना तय था. जी पी की सुरक्षा बढ़ाई गई सो अलग.