Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

आईपीएस तबादला…
हर तबादले कुछ कहते हैं या यूं कहे कि हर तबादले के पीछे एक ठोस वजह होती है. इस दफे आईपीएस बिरादरी में आईजी स्तर के अधिकारियों को इधर से उधर किया गया, तो लोग जुट गए कैल्कुलेशन में..जुटना भी था, आमूलचूल परिवर्तन जो हुआ था. कुछ हाशिये से मुख्यधारा लाए गए, तो कुछ हाशिये पर भेज दिए गए. वैसे इस तबादले को सरकार की चुनावी तैयारियों से जोड़कर भी देखा जा रहा है. चुनाव में महज साल भर बाकी है, जाहिर है प्रशासनिक कसावट लाना सरकार की अहम प्राथमिकताओं में शामिल है. सीनियर आईपीएस डी एम अवस्थी की सम्मानजनक वापसी हुई है. इससे पहले भी वह इस पद को बतौर एडीजी संभाल चुके हैं. कई राज्यों में ईओडब्ल्यू-एसीबी पद पर डीजीपी स्तर के अधिकारी काबिज हैं. शेख आरिफ को रायपुर रेंज (रायपुर जिला छोड़कर) भेजने के बाद सरकार ने ईओडब्ल्यू-एसीबी के पद को डीजीपी के समकक्ष घोषित किया है. शेख आरिफ का नाम लंबे समय से रायपुर रेंज को लेकर चल ही रहा था. बद्रीनारायण मीणा बिलासपुर भेज दिए गए हैं. दुर्ग के साथ-साथ रायपुर का प्रभार भी मीणा ने संभाला और अब बिलासपुर संभालेंगे यानी तीन रेंज के आईजी का अनुभव मीणा के पास होगा. सत्ता में भूपेश सरकार आने के बाद आनंद छाबड़ा ही ऐसे अफसर रहे, जिन्होंने ढाई साल से ज्यादा वक्त तक इंटेलिजेंस चीफ की जिम्मेदारी संभाली. मौजूदा सरकार ने सबसे पहले संजय पिल्ले को इंटेलिजेंस चीफ बनाया था. उनके बाद हिमांशु गुप्ता ने यह जिम्मेदारी निभाई थी. अब अजय यादव नए इंटेलिजेंस चीफ बनाए गए हैं. चुनाव के पहले एक चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी उनके हिस्से आई है. रतनलाल डांगी को फिलहाल थोड़ा आराम दिया गया है. फील्ड से हटकर वे अब पुलिस अकादमी संभालेंगे. इधर राजनांदगांव डीआईजी रामगोपाल गर्ग को सरगुजा रेंज का प्रभारी आईजी बनाया गया है. आने वाले चुनाव में सरगुजा महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. गर्ग के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी डाली गई है.

तांत्रिक की शरण
एक राजनीतिक दल के प्रदेश प्रभारी को लेकर सुनाई पड़ा है कि पद बरकरार रहे, इसलिए इन दिनों वह तांत्रिक की शरण में हैं. बताते हैं कि पिछले दिनों वह अपने बेटे के साथ यूपी के गोरखपुर गए थे. राजनीतिक में पद-प्रतिष्ठा बनी रहे, इसलिए उन्होंने एक तांत्रिक से अनुष्ठान कराया. पिछले कुछेक महीनों में उन्हें लेकर अटकलों का बाजार गर्म रहा है कि वह बदल दिए जाएंगे. इस वक्त वह जो कुछ भी हैं, वह अपने पद की वजह से ही हैं, वह भी नहीं रहेगा, तो राजनीति में करने के लिए कुछ बच नहीं जाएगा. सो तांत्रिक की शरण ले ली है. अनुष्ठान कारगर रहा, तो राज्य के कई दूसरे नेताओं की भीड़ गोरखपुर जाने लगेगी. इसमें कोई दो राय नहीं है. नई-नई सरकार बनी थी, तब एक बाबा बड़े चर्चित हुए थे. कांग्रेस की सरकार बनाने का उनका दावा था, सो बीजेपी के नेता भी उलांग बांटी खा खाकर दंडवत होने पहुंच रहे थे. अब कहीं उनकी चर्चा तक नहीं होती. राजनीति जो करा दे कम है. खैर प्रभारी महोदय को शुभकामनाएं.

…और इस तरह अडानी के हुए अमन!
अडानी ग्रुप ने पूर्व नौकरशाह अमन सिंह को कॉर्पोरेट ब्रांड कस्टोडियन बनाया. अमन सीधे गौतम अडानी को रिपोर्ट करेंगे. उनका मुख्यालय अहमदाबाद होगा. इस नियुक्ति के पीछे का दिलचस्प किस्सा मालूम चला है. बताते हैं कि अडानी ग्रुप ने कॉर्पोरेट ब्रांड कस्टोडियन की नियुक्ति के लिए एक ग्लोबल कंसलटेंसी फर्म को हायर किया था. इस फर्म ने अडानी ग्रुप के तय किए गए मानदंडों के आधार पर सर्चिंग शुरू की थी. फर्म ने तीन नामों का पैनल ग्रुप को भेजा था. बताते हैं कि गौतम अडानी ने सभी से व्यक्तिगत मुलाकात की थी. अंत में अमन सिंह के नाम पर मुहर लगाई गई. कहा जा रहा है कि अमन सिंह ने 7 नवंबर को ही अहमदाबाद में जॉइनिंग दे दी है. दुनियाभर के चेहरे चुनने का मौका जब अडानी ग्रुप के पास था, वहां पूर्व नौकरशाह को चुने जाने के पीछे कोई ठोस वजह रही होगी. अमन सिंह दिल्ली की रतन इंडिया पावर नाम की कंपनी का हिस्सा बने थे. पचास लाख रुपए की मासिक तनख्वाह मिलती थी. अब अडानी के कार्पोरेट ब्रांड कस्टोडियन बने हैं, .जाहिर है तनख्वाह यहां ज्यादा ही होगी. रुतबा भी ज्यादा होगा. यहां रहकर उन्हें कई बड़े काम करने होंगे. सरकार चलाने का पुराना अनुभव काम आएगा.

काॅक्रोच भवन
दिल्ली दूर है ! इस कहावत के गंभीर मायने ऐसी घटनाओं से ही समझ आते हैं. अब दिल्ली के छत्तीसगढ़ भवन का ही मसला देख लें. रायपुर से हजार मिल की दूरी पर है. शिकायतें रायपुर आते-आते थक जाती होगी. अबकी बार शिकायत छत्तीसगढ़ भवन को लेकर है. बताते हैं कि दिल्ली के छत्तीसगढ़ भवन का हाल दिनों दिन खस्ता होता जा रहा है. लोग अब इसे काॅक्रोच भवन कहने लगे हैं. अब यहां वीवीआईपी लगातार ठहरते, तो यहां का हाल भी छत्तीसगढ़ सदन की तरह होता. छत्तीसगढ़ सदन में मुख्यमंत्री, मंत्री और बड़े अफसर रुकते हैं. मगर बात जब छत्तीसगढ़ भवन की आती है, तो यहां ठहरने वाले प्रबंधन की नजर में दोयम दर्जे के होते होंगे, तभी तो डंके की चोट पर अव्यवस्था का आलम पसरा रखा है. दरअसल दिल्ली के छत्तीसगढ़ भवन में ठहरकर जो भी लौटता है, व्यवस्थाओं को कोसते दिखता है. एक सज्जन ने कहा कि छत्तीसगढ़ सदन की तुलना में भवन की क्वालिटी कांप्रोमाइज्ड है. सुनते हैं कि यहां की देखरेख करने वाले अधिकारी जब यह कहते सुने जाएं कि रेसिडेंट कमिश्नर मेरा जूनियर है, सीएम के साथ उठता-बैठता हूं. आईएएस मेरे सामने कल के…..हैं. मेरा कोई कुछ उखाड़ नहीं सकता, तो फिर सारी उम्मीद बेमानी साबित हो जाती है. वैसे सुना यह भी है कि इन सबके लिए जिसकी प्राथमिक जिम्मेदारी बनती है, सरकार ने उन्हें हटा दिया था. दिल्ली से सीधे बस्तर भेज दिया था. मगर चंद दिनों में ही अपनी काबिलियत के बूते फिर से लौट आए. भई मानना पड़ेगा. हर सरकार में ऊंची पैठ है इनकी.

पहरेदार बना राजदार !
यकीन मानिए अपने हर आड़े तिरछे काम में पहरेदार को ही अपना राजदार बना लिजिए, दिक्कतें लगभग खत्म हो जाएंगी. एक जिले में आयकर विभाग का छापा पड़ा. सटोरियों ने खूब बटोर रखा था. छापे की सूचना जैसे ही आई, एक सटोरिए ने अपने करीबी रिश्तेदार के ठिकाने पर बटोरी गई करोड़ों रुपए की नगदी रखवा दी. रिश्तेदार भी शातिर निकला. उसने सोचा कि आयकर की टीम उस तक ना पहुंच जाए, लिहाजा नगदी नौकरानी के घर छिपा दिया. मगर सिर मुड़ाते ही ओले पड़े वाला हाल हो गया. नौकरानी के घर से नगदी किसी ने पार कर दिया. सटोरिए के होश फाख्ता हो गए. बिल्कुल किसी फिल्मी घटना की तर्ज पर सटोरिए ने वर्दीधारी अफसर को नगदी ढूंढने का ठेका दे दिया. बताते हैं कि अफसर ने पर्सनल कैपेसिटी से हाड़ तोड़ मेहनत की. मालूम चला कि नौकरानी के दामाद ने ही घर साफ कर दिया था. जैसे-तैसे करोड़ों की नगदी की रिकवरी हुई. परहेदार राजदार बन चुका था, सो हिस्सेदारी की अदायगी की भी खबर आई. बात यहां खत्म नहीं हुई. मामला फूटा तो गूंज ऊपर तक जा पहुंची. वर्दीधारी अफसर की मातहत टीआई से ठनी तो ठनी, आला अफसरों से भी रार पैदा हो गया.

बीजेपी नेताओं की क्लास

प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी मिलने के बाद ओम माथुर पहली मर्तबा 22 तारीख को छत्तीसगढ़ दौरे पर आ रहे हैं. मैराथन बैठक लेंगे. कोरग्रुप, प्रदेश पदाधिकारी, मोर्चा-प्रकोष्ठ के अध्यक्षों से लेकर संगठन के निचले स्तर तक की बैठक होगी. कामकाज की समीक्षा की जाएगी. सांसद-विधायकों के साथ अलग से बातचीत होगी. इतना कुछ होने के बाद भी माथुर ने व्यक्तिगत चर्चा के लिए भी वक्त निकाला है, जाहिर है जमकर शिकवा शिकायतें होंगी. अब बीजेपी में माथुर के कद को सभी जानते हैं. केंद्रीय गृह मंत्री भी उनके घर जाकर मुलाकात करते हैं, ऐसे में कोई चूं से चांय भी सोच समझकर ही करेगा. वैसे जब से ओम माथुर को छत्तीसगढ़ का प्रभार मिला है. तरह-तरह के नेता दिल्ली दौरे के बहाने उनसे मिल आए हैं. संबंधों को मजबूती देने की कवायद शुरू हो चुकी है. बहरहाल उम्र और तजुर्बे में माथुर के बराबर छत्तीसगढ़ में कोई भी नेता नहीं है. ओम माथुर की जब क्लास लगेगी को अच्चे-अच्छो की सिट्टी पिट्टी गुम होना स्वाभिवक होगा.

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