इश्क: एक जिले के कलेक्टर साहब इश्क में है. इश्क बुरी बात नहीं है. मगर इश्क में कहीं शहीद हो गए, तब बुरा हो सकता है. उनका यह इश्क उनकी ही मातहत कर्मचारी से है. इश्क में इस कदर डूब गए हैं कि उन्हें होशो हवाश तक नहीं रहा. दफ्तर में उनका मन नहीं लगता. फाइले भी बंगले बुलाई जाने लगी हैं. एक दफे की बात है. कलेक्टर दफ्तर का एक कर्मचारी फाइल लेकर बंगले पहुंच गया. कलेक्टर साहब इश्क फरमा रहे थे. कर्मचारी शर्म से पानी-पानी हो गया. कलेक्टर साहब सकपका गए. बात चुपके से सही दूर तलक जा पहुंची. कलेक्टर साहब अकेले रहते हैं. परिवार दूर है. उन्हें कोई तो हमदर्द चाहिए होगा. खैर, इश्क की चर्चा बंद कमरे तक होती, तो बात यूं ना होती. मातहत कर्मचारी के पति ने ढिढोरा पीट दिया. कुछ पुलिस वालों से कह बैठा, मुझे मेरी पत्नी दिला दो. पुलिस वाले भला कलेक्टर से कैसे उसकी पत्नी छीन लाते? बहरहाल कलेक्टर साहब योग्य हैं. योग्यता उनमें कूट-कूट कर भरी हुई है. शुरू-शुरू में जब कलेक्टर बने थे. तब अपने काम से खूब नाम कमाया था. बेहद जमीनी थे. उनकी योग्यता ने उन्हें ऊंचा मुकाम दिलाया, लेकिन शीर्ष पर बने रहने के लिए चरित्र की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. वरना कमाया-धमाया सब मिट्टी में मिल जाता है. कलेक्टर साहब नितांत अच्छे व्यक्ति हैं. उन्हें चाहने वालों को बस यही लग रहा है कि कहीं उनका यह एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर उनके जी का जंजाल ना बन जाए.
जूता
एक जमीनी कलेक्टर का इश्क चर्चा में है, तो एक मध्यमवर्गीय परिवार से निकलकर अपनी जी तोड़ मेहनत की बदौलत आईएएस बन कलेक्टर की कुर्सी तक पहुंचने वाले साहब के पैरों में पड़ा लुई विटाॅन का जूता देख दूसरे कई लोगों का दिमाग चर-चर चल रहा है. अब कलेक्टर हैं. मोटी तनख्वाह है. लुई विटाॅन के जूते के लिए एक महीने की तनख्वाह ना सही. कौन सी बड़ी बात हो गई? मगर जूता देखने के बाद से चर-चर दिमाग चला रहे लोगों की दलील भी जोरदार है. पिछले दिनों की बात है. कलेक्टर साहब आरएसएस के एक बड़े नेता से मिलने पहुंचे थे. नेताजी ने सफेद शर्ट, ढीली काली पैंट और हजार-बारह सौ रुपए की चप्पल पहन रखी थी. कलेक्टर साहब लुई विटाॅन पहने गए थे. चर-चर दिमाग चलाने वालों की सीधी नजर कलेक्टर के जूते पर जा टिकी. पहले तो कुछ लोगों ने चुपके से कलेक्टर के जूतों की फोटो उतारी. उसके बाद गूगल पर जाकर उसकी कीमत ढूंढनी शुरू की. गूगल ने बताया जूते की कीमत लाख पार है. जूते की कीमत देखने वालों की आंख फटी की फटी रह गई. अपने नजदीकी दोस्तों को व्हाट्स एप पर तस्वीर भेज रायता फैला दिया. हद है भाई. जूता, जूता ना हुआ चर्चा का विषय हो गया है.
पीएससी
रिश्वत देकर पाई गई सरकारी नौकरी में रिश्वत लेना अधिकार समझ लिया जाता है. ऐसी व्यवस्था पर चोट करना सरकार का धर्म होना चाहिए. सूबे की साय सरकार ने सुशासन विभाग बनाया है. अच्छी बात होगी कि सरकार, सरकारी नियुक्तियों में पारदर्शिता के जरिए सुशासन की एक नई परिभाषा गढ़ ले. पिछली सरकार, सरकारी भर्तियों में घोटाला कर ‘कु’शासन का दाग लेकर लौटी थी. बहरहाल पिछले दिनों सीबीआई ने पीएससी के पूर्व चेयरमेन टामन सोनवानी और एक उद्योग से जुड़े एस के गोयल को अरेस्ट कर लिया. कोर्ट में पेशी हुई. कोर्ट ने सीबीआई रिमांड दे दी. पीएससी घोटाले में यह बड़ी कार्रवाई थी. सरकार में आने से पहले भाजपा ने पीएससी घोटाले की जांच सीबीआई से कराने का वादा किया था. इसे मोदी की गारंटी में रखा गया था. अब कार्रवाई होती दिख रही है. पीएससी पर चल रही यह जांच किसी ठोस नतीजे पर जाकर खत्म हो तो उन हजारों बच्चों के दिलों को शांति मिलेगी, जिनके सपनों को रिश्वत की लालच तले रौंद दिया गया. कुछ बच्चों के सपने मर गए. कुछ के लड़खड़ाते हुए सपने इस उम्मीद पर जिंदा है कि न्याय उनके हिस्से आएगा.
एनजीओ
पीएससी घोटाले में पहली गिरफ्तारी के बाद यह मालूम पड़ा कि एक उद्योग समूह से जुड़े डायरेक्टर ने पीएससी के पूर्व चेयरमेन की पत्नी के एनजीओ को फंड दिया था. यह फंड सीएसआर के नाम पर दिया गया. अजीब इत्तेफाक है. पीएससी चेयरमेन रहते पत्नी के एनजीओ को फंड मिल रहा है और फंड देने वाले के बच्चे पीएससी में सलैक्ट हो रहे हैं. एनजीओ के नाम पर पैसा उगाही का यह खेल काफी पुराना है. सुशासन पसंद साय सरकार को इस बात की जांच की जानी चाहिए कि सूबे के कितने अफसरों की बीवियों के नाम पर एनजीओ चल रहे हैं. उन एनजीओ में फंडिंग कहां से आ रही है? मुमकिन है कि अगर जांच हो जाए तो कई सफेदपोश नौकरशाह बेनकाब हो जाएंगे.
डीजीपी की दौड़
पुलिस महकमे के मुखिया अशोक जुनेजा का कार्यकाल 5 फरवरी को खत्म हो रहा है. जाहिर है नए मुखिया यानी डीजीपी की खोज शुरू हो गई है. डीजीपी की दौड़ में पहले तीन नामों में पवन देव, अरुण देव गौतम और हिमांशु गुप्ता शामिल हैं. मगर चर्चा है कि पैनल में एडीजी एसआरपी कल्लूरी और प्रदीप गुप्ता के नाम भी जोड़े जा रहे हैं. पिछली बार जब डीजीपी के चेहरे को लेकर खोजबीन चल रही थी तब अचानक से दिल्ली के रास्ते अशोक जुनेजा को एक्सटेंशन देने की खबर आ गई. अलग-अलग तौर तरीकों से अपने पक्ष में समर्थन जुटा रहे दावेदारों को झटका लगा था. तब दलील दी गई थी कि नक्सल मोर्चे पर मिल रही कामयाबी को देखते हुए डीजीपी बदला जाना ठीक नहीं था, सो एक्सटेंशन दे दिया गया. नक्सल मोर्चे पर अब भी काम बाकी है. इस दलील पर क्या अशोक जुनेजा को एक बार फिर एक्सटेंशन दे दिया जाएगा? यह सवाल बना हुआ है.
स्ट्राइक रेट
झारखंड चुनाव में कमल खिलने के पहले मुरझा गया. इंडिया गठबंधन की सरकार बरकरार रही. भाजपा ने छत्तीसगढ़ के तीन मंत्रियों ओ पी चौधरी, विजय शर्मा और केदार कश्यप को बड़ी जिम्मेदारी दे रखी थी. इनमें केदार कश्यप के प्रभार वाली सीटों को छोड़ दिया जाए, तो ओ पी चौधरी और विजय शर्मा की प्रभार वाली सीटों पर जीत का स्ट्राइक रेट 80 फीसदी से ज्यादा रहा. वित्त मंत्री ओ पी चौधरी के हिस्से बरही, बड़कागांव, बड़कथा, मांडू, हजारीबाग और रामगढ़ विधानसभा सीट की जिम्मेदारी थी. इनमें से सिर्फ रामगढ़ में ही भाजपा को शिकस्त खानी पड़ी. छह में से पांच सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की. गृह मंत्री विजय शर्मा के हिस्से बगोदर, धनवार, जमुआ, गांडेय और गिरिडीह सीट जीताने की जिम्मेदारी थी. इनमें से तीन सीटों पर भाजपा को जीत मिली, जबकि दो सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा. झारखंड में सरकार बनाने का भाजपा का सपना औंधे मुंह गिर गया, मगर पार्टी आलाकमान की नजरों में ओ पी चौधरी और विजय शर्मा का ग्राफ यकीनन चढ़ गया.
रायपुर दक्षिण कौन जीता?
रायपुर दक्षिण सीट पर हुए उप चुनाव में बृजमोहन अग्रवाल एक बार फिर जीत गए. ये बृजमोहन अग्रवाल की नौवीं जीत है. ये सुनकर हैरत में पड़ने वाली बात कतई नहीं है. रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट के गठन के बाद से अब तक यहाँ खिलता कमल है और जीतते बृजमोहन हैं. ये दीगर बात है कि इस बार चेहरा सुनील सोनी रहे. रायपुर दक्षिण सीट पर होने वाले उप चुनाव के लिए जब उम्मीदवारों के नाम पर चर्चा चल रही थी तब संगठन नेताओं ने बृजमोहन अग्रवाल से तीन नाम मांगे थे. बृजमोहन अग्रवाल सुनील सोनी के नाम के बाद ठहर गए. नेता समझ गए और जब टिकट देने की बारी आई तब सुनील सोनी के नाम का लिफाफा खुला. उम्मीदवार सुनील सोनी थे लेकिन चुनाव बृजमोहन अग्रवाल लड़ रहे थे. निर्वाचन प्रमाण पत्र जरूर सुनील सोनी ने लिया मगर जीत बृजमोहन अग्रवाल के हिस्से आई. राजनीतिक पंडित कह रहे हैं कि सुनील सोनी दो बार महापौर रहे, आरडीए अध्यक्ष रहे, सांसद रहे. शहर के लिए अपरिचित चेहरा नहीं हैं. मगर जब-जब जीत की कहानी पढ़ी जाएगी तब सेहरा बृजमोहन अग्रवाल के सिर बंधेगा.