Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor

गाड़ी का गणित

राज्य के एक एलिफेंट रिजर्व के लिए वन महकमे ने एक गाड़ी खरीदी थी. जिस इलाके के लिए यह गाड़ी खरीदी गई, वहां हाथियों का आतंक है. आए दिन लोग मर रहे हैं. एलिफेंट रिजर्व में गाड़ी की जरूरत रही होगी, सो खरीद ली गई. एलिफेंट रिजर्व के अफसर बांट जोहते बैठे रहे कि गाड़ी उन तक पहुंचेगी. गाड़ी ने चलना भी शुरू कर दिया था, मगर रास्ता भूल गई. निकली थी एलिफेंट रिजर्व के लिए पर पहुंच गई जंगल सफारी. इस पर एलिफेंट रिजर्व के अफसरों ने सवाल किया, तो उन्हें जवाब दिया गया- ”जानवर तो यहां जंगल सफारी में हैं, वहां एलिफेंट रिजर्व में इसकी क्या जरूरत”. सुनते हैं कि जंगल सफारी के एक अफसर हाथियों को भगाने के नाम पर खरीदी गई गाड़ी का इस्तेमाल कर रहे हैं. उधर एलिफेंट रिजर्व के अधिकारी गाड़ी के गणित में उलझ गए हैं. सोच रहे हैं एलिफेंट रिजर्व के फंड से खरीदी गई गाड़ी भला जंगल सफारी में कौन से हाथी को खदेड़ रही है.

नेताजी का लोभ

रेत का धंधा कहीं नेताजी की सियासत का फंदा न बन जाए. नेताजी ने सियासत की उच्च तालीम हासिल की हुई है. खूब शोहरत पाई. इकबाल बुलंद किया. अब सब मिट्टी में मिलता दिख रहा है. उनके इलाके में रेत के अवैध धंधे का कारोबार पिछली सरकार में खूब फला फूला. जब ट्रक भर-भर कर निकलती रेत से दूसरों की तिजोरियां भरती रही, नेताजी की नंगी आंखे यह सब देखकर रोती रहीं. उनका दिल पसीज कर रह जाता. लोग यही समझते कि नदियों का सीना छिल कर खोदी जा रही रेत से उनका मन भर जाता होगा. समय बदल गया. नेताजी की पार्टी की सरकार आ गई. नेताजी सरकार हो गए. कल जो बुरा था, आज वो अंदाज बन गया. नेताजी अब खुद हर दिन के लाखों गिन रहे हैं और महीने के करोड़. नेताजी के पहचानने वाले ने कहा, कोई इंसान पूरी तरह इमानदार नहीं हो सकता. लाभ के लोभ से वह ऊपर नहीं उठ सकता. जब बात नेताजी की हो, तो लोभ की उनकी कोई सीमा नहीं. नेताजी की लाइफस्टाइल ही उनकी पहचान है. बारिश के मौसम में रेत घाटों पर खनन की मनाही के बीच भी नेताजी के वरदहस्त से माफिया बेधड़क नदी खोद रहे हैं.

विभागीय जांच

सूबे की सियासत में कुर्सी पर वहीं है, जिसने किसान नाम का जाप कर लिया. किसान जपते-जपते सत्ता की कुर्सी मिल ही जाती है. जिस दल ने इस नामजप की ज्यादा माला फेरी, उसकी कुर्सी तय है. सवाल बस इतना है कि चुनावी वादा पूरा करने के इतर किसान कहां है? बहरहाल किसानों के नाम पर एक सुनियोजित गड़बड़ी देखनी है, तो अरपा भैंसाझार नहर निर्माण प्रोजेक्ट एक बेहतर उदाहरण है. 606 करोड़ रुपए का यह प्रोजेक्ट 1141 करोड़ का हो गया. जिन खेतों से नहर नहीं गुजरी, वहां भी मुआवजा बंट गया. इस प्रोजेक्ट से 102 गांवों की करीब 25 हजार हेक्टेयर में सिंचाई होनी थी. मगर 12 साल बीतने के बाद भी प्रोजेक्ट अधूरा पड़ा है. विधानसभा के बजट सत्र के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के विधायकों ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था. कई सवाल खड़े किए थे. अब जब विधानसभा का मानसून सत्र शुरू हो रहा है, तो अरपा भैंसाझार नहर प्रोजेक्ट की फिर से याद आ गई. मंत्री सक्रिय हुए. विधायकों और अफसरों के साथ मौका मुआयना किया और लौटते ही जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ जांच बिठा दी. रिटायर्ड एक्जीक्यूटिव इंजीनियर आर एस नायडू, एक्जीक्यूटिव इंजीनियर ए के तिवारी, एसडीओ राजेंद्र मिश्रा, एसडीओ एस एल द्विवेदी और सब इंजीनियर आर के राजपूत के खिलाफ विभागीय जांच की जा रही है. प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद सामने आई गड़बड़ी के करीब एक दशक बीत जाने के बाद अब जांच हो रही है. जिस राज्य में किसानों के हित से जुड़ा एक प्रोजेक्ट 12 साल में पूरा नहीं हुआ, उस राज्य के विकसित होने की कल्पना भी बेमानी है.

पीएससी

पीएससी में हुई गड़बड़ी के मामले की सीबीआई जांच शुरू हो गई है. तत्कालीन अध्यक्ष, सचिव, नियंत्रक के ठिकानों पर दबिश देने के साथ ही सीबीआई सभी पहलूओं पर जांच कर रही है. सीबीआई की जांच एक बात है. दूसरी बात यह है कि फिलहाल पीएससी कांग्रेस सरकार में नियुक्त सदस्यों के हाथों है. अध्यक्ष नहीं होने की स्थिति में एक सदस्य को प्रभारी अध्यक्ष बनाकर रख दिया गया है. प्रशासनिक बिरादरी में इसे लेकर कानाफूसी तेज हो गई है. अफसर कह रहे हैं कि कम से कम संदेश देने के लिहाज से ही सही, अध्यक्ष की ताजपोशी कर दी जानी चाहिए. छत्तीसगढ़ सरकार ने पीएससी की भर्तियों में पारदर्शिता लाने के इरादे से पीएससी सुधार आयोग बनाया है. यूपीएससी के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप जोशी इसके अध्यक्ष बनाए गए हैं. जोशी छत्तीसगढ़ पीएससी के अध्यक्ष रह चुके हैं. नीट की विवादित परीक्षा कराने वाली संस्था एनटीए के मुखिया भी प्रदीप जोशी हैं. एनटीए सुधर जाए फिर छत्तीसगढ़ पीएससी सुधारने आए तो बेहतर है. बहरहाल फिलहाल पीएससी को अध्यक्ष की जरूरत है. अध्यक्ष के बैठने से भी सीबीआई की जांच को एक दिशा तो कम से कम मिलेगी.

तबादले

मानसून सत्र के बाद प्रशासनिक बिरादरी में बड़ा बदलाव होगा. चर्चा है कि अगस्त के पहले सप्ताह मंत्रालय से लेकर मैदानी इलाकों में पदस्थ आईएएस अफसरों का तबादला हो जाएगा. बड़े पैमाने पर आईपीएस अफसरों के तबादले होने हैंं. कई जिलों के एसपी बदले जा सकते हैं. लूपलाइन में पड़े अफसरों को ठीक ठाक पोस्टिंग दी जा सकती है. पीएचक्यू में शंट किए गए कई अफसरों के पास काम नहीं है. दफ्तर आते हैं. हाजिरी लगाते हैं और लौट जाते हैं. ऐसे अफसरों को भी सरकार काम पर लगाएगी. इनमें से कुछ को ठीक ठाक जगह बिठाया जा सकता है. दिलचस्प पहलू यह है कि कई जिलों के कलेक्टर-एसपी, विधायक-सांसद के निशाने पर हैं. कुछ अपने कामकाज की वजह से और कुछ जनप्रतिनिधियों के निर्देशों को ताक पर रखने की वजह से. ऐसे अफसरों को हटाने विधायकों और सांसदों ने अपनी कमर कस ली है. ये बात और है कि कांग्रेस सरकार की तरह भाजपा सरकार के विधायक-सांसद अफसरों को आंख नहीं दिखा पा रहे.