कांग्रेस का ‘गणित’
आखिरकार प्रेमसाय सिंह टेकाम की मंत्रिमंडल से विदाई हो गई. ‘पाॅवर सेंटर’ के 21 मई 2023 के स्तंभ में हमने ये संकेत पहले ही दे दिया था. टेकाम गए, मरकाम आ गए. आदिवासी समाज सध गया. मगर जाते-जाते प्रेमसाय अलग थलग पड़ गए. जिस कंधे पर सवार होकर मंत्री बने थे, उस कंधे ने उन्हें पहले ही उतार रखा था. प्रेमसाय को टी एस सिंहदेव के कोटे का मंत्री माना जाता था, लेकिन जब विदाई की बेला आई, तब संबंध इतने प्रगाढ़ रह नहीं गए थे कि कंधे का सहारा दिया जा सके. इधर दीपक बैज का आना और मोहन मरकाम का अध्यक्ष पद से हटना तय था. मरकाम को मंत्री बनाकर उनका सम्मान बरकरार रखा गया. दीपक कांग्रेस का दीप जलाने आ गए. दीपक मुख्यमंत्री के सबसे भरोसेमंद सिपहसलारों में एक चेहरा माने जाते हैं, जाहिर है सत्ता-संगठन के बीच तालमेल का जो गणित हल नहीं हो रहा था, वह अब हल होगा. दीपक बैज ने आते ही एक चर्चित बयान दे दिया कि मुख्यमंत्री के चेहरे और काम के भरोसे कांग्रेस चुनाव लड़ेगी. ताम्रध्वज साहू को कृषि विभाग देकर साहू समाज को साधने की जमीन तैयार की गई. कहते हैं सियासत कब किस करवट बैठ जाए. यह कोई नहीं समझ सकता, सिवाए ‘भूपेश बघेल’ के.
पूत के पांव पालने में…
एक चर्चित कहावत है ‘पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं’. यह मामला इस कहावत को चरितार्थ करता नजर आता है, जहां दो पक्ष थे. दोनों युवा थे. ‘रौब’ दोनों तरफ था. ‘रौब’ जमाने में किसी ने कोई कसर नहीं छोड़ी. एक का ‘रौब’ इसलिए था कि सत्ताधारी दल के युवा नेता हैं, दूसरी ओर ‘रौब’ नई-नई मिली खाकी की वर्दी का था. शराब के नशे में ‘रौब’ बाहर फूट पड़ा. दोनों पक्ष एक-दूसरे पर टूट पड़े. दरअसल यह ‘रौब’ शराब के नशे का नहीं, ‘सत्ता’ और ‘खाकी’ का था. हुआ यूं कि वीआईपी रोड के एक क्लब में चार प्रशिक्षु डीएसपी और युवा कांग्रेस के नेताओं के बीच बहस हो गई. बहस मारपीट तक जा पहुंची. मारपीट ने थाने तक पहुंचा दिया. थाने पहुंचने के बाद प्रशिक्षु डीएसपी को बल मिल गया. युवा नेताओं की टोली को खूब घुड़की दी. नशे की हालत में एक प्रशिक्षु डीएसपी ने एक युवा नेता के चेहरे पर तमाचे की पर्ची चिपका दी. विवाद और बढ़ गया. टीआई ने भी प्रशिक्षु डीएसपी को जमकर चिल्लाया. ये तक कह दिया कि अभी एमएलसी करवाने पर हेकड़ी बाहर आ जाएगी. बात ऊपर के अफसरों तक पहुंची. मामला रफा-दफा कर दिया गया, किसी को कानों कान खबर तक नहीं हुई. अगले दिन चारों प्रशिक्षु डीएसपी की अफसर के दफ्तर में पेशी हुई. वर्दी का पूरा ‘रौब’ एक झटके में बाहर निकल गया. नई-नई खुमारी थी, नौकरी का पहला पायदान पार करते ही उतर गई. एक वक्त था, जब राजनीति हो या पुलिसिंग नई पीढ़ी को अदब सिखाने पर जोर दिया जाता था. अब तो बेअदबी ऐसी की अदब भी शर्मा जाए. अब सोचिए जरा कि फिलवक्त इन पूतों के पांव पालने में इस तरह दिखाई पड़ रहे हैं, जब पांव बाहर निकलेंगे, तब तस्वीर कैसी होगी?
कलेक्टर होंगे ‘यहां-वहां’!
प्रशासनिक गलियारों में हलचल बढ़ गई है. करीब आधा दर्जन कलेक्टरों को यहां-वहां किया जा सकता है. हालांकि ऐसा कोई जिला इस वक्त बचा नहीं है, जहां किसी कलेक्टर को काम करते तीन साल बीत गए हो. तीन साल से जमे अधिकारी-कर्मचारियों का तबादला करने का चुनाव आयोग का हालिया निर्देश भी यहां फिट बैठता नहीं दिखता. ज्यादातर जिलों में कलेक्टरों की पोस्टिंग ताजी-ताजी है. बावजूद इसके चर्चा है कि कई कलेक्टर बदले जा सकते हैं. कांकेर कलेक्टर प्रियंका शुक्ला सरगुजा कलेक्टर बनाई जा सकती है. सरगुजा कलेक्टर कुंदन कुमार मैदानी इलाकों में भेजे जा सकते हैं. मुंगेली कलेक्टर राहुल देव को भी बड़ा जिला दिया जा सकता है. लंबे समय से कलेक्टरी कर रहे कुछ कलेक्टर हैं, जिन्हें ठीक ठाक पोस्टिंग देकर राजधानी लाया जा सकता है और नए चेहरों को कलेक्टरी दी जा सकती है. चर्चा है कि विधानसभा के मानसून सत्र के बाद सूची जारी की जाएगी.
प्रोफार्मा प्रमोशन कब !
IAS अफसरों के प्रमोशन में आमतौर पर डिले नहीं होता. तय वक्त पर प्रमोशन मिल जाता है. डेपुटेशन पर गए अफसरों को प्रोफार्मा प्रमोशन मिलता है ताकि डेपुटेशन से लौटने के बाद उन अफसरों की नियुक्ति प्रमोट हुए पद पर की जा सके. मगर 1993 बैच के आईएएस अमित अग्रवाल के मामले में थोड़ी गफलत हो गई. जनवरी में उन्हें प्रोफार्मा प्रमोशन मिलना था. प्रिंसिपल सेक्रेटरी से प्रमोट होकर वह एसीएस बन जाते, लेकिन उनका प्रमोशन होल्ड पर हैं. अब जब इस मामले में थोड़ी पूछताछ हुई, तो सिस्टम हरकत में आया. प्रक्रिया तेज हुई है. माना जा रहा है कि जल्द ही अमित अग्रवाल एसीएस प्रमोट हो जाएंगे. अमित अग्रवाल जब राज्य में थे, तब वह वित्त जैसे बड़े विभाग संभाल चुके हैं. उनके प्रमोशन के बाद राज्य में एसीएस स्तर के तीन अफसर हो जाएंगे. फिलहाल रेणु पिल्ले और सुब्रत साहू एसीएस हैं.
दो गाली !
कई जिलों के कलेक्टर इन दिनों बेहद परेशान है. उनकी परेशानी की वजह है ‘मनरेगा’. कलेक्टरों पर पिछले भुगतान का दबाव बढ़ रहा है. सरकार जिलों में पैसे नहीं भेज रही. आलम यह है कि पिछले डेढ़ महीनों से कई जिलों में लेबरों का भुगतान नहीं हुआ है. लाजमी है कि कलेक्टरों पर भुगतान का दबाव ज्यादा होगा. मनरेगा का पैसा केंद्र से आता है. अभी अप्रैल में ही मनरेगा मजदूरों को मिलने वाली दर में 17 रुपए की बढ़ोतरी की गई थी. राज्य के ग्रामीण इलाकों में जीविका का प्रमुख जरिया मनरेगा ही है. चुनाव करीब है, जल्द भुगतान होना सरकार के लिए भी जरूरी भी है मजबूरी भी. चुनाव प्रचार पर जाने के दौरान कहीं ग्रामीणों से दो गाली ना खानी पड़ जाए.
नया दल
चुनाव आते-आते कई राजनीतिक दल सूरजमुखी की तरह उगते हैं, जो ढलते सूरज के साथ ढह जाते हैं. मगर सूबे की सियासत में एक चर्चा एक नए राजनीतिक दल को लेकर छिड़ी है, जो तीसरा विकल्प बनने के इरादे से खड़ा किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि इस नए राजनीतिक दल के गठन की कवायद दो साल से चल रही है. ऊपर-ऊपर कुछ नहीं है, लेकिन नीचे एक कैडर खड़ा कर दिया गया है. छत्तीसगढ़ी वाद के साथ-साथ प्रोग्रेसिव आइडियोलॉजी को अपना आधार बताने वाले इस दल में कुछ ब्यूरोक्रेट के साथ-साथ तृतीय और चतुर्थ वर्ग के कर्मचारी इस्तीफा देकर शामिल हो सकते हैं. चर्चा है कि यह दल राष्ट्रीय दलों को सीधी चुनौती देने की तैयारी कर रहा है. फंडिंग की अलग स्ट्रेटजी बनाई गई है. राज्य के कुछ बड़े कारोबारियों से संपर्क साधा गया है. अब दल खड़ा हो रहा है या खड़ा किया जा रहा है, मालूम नहीं, मगर तैयारी में पूरी गंभीरता बताई जाती है. सामाजिक संगठनों से लेकर कर्मचारी संगठन तक साधे जा रहे हैं. उनकी मांगों को महत्व दिया जा रहा है. कुल मिलाकर तैयारी बताती है कि राज्य में तीसरा विकल्प बनने की कवायद में यह दल जुटा है. अब सवाल यह है कि सूरजमुखी की तरह यह दल खिलखिलाएगा या ढलती शाम की तरह ढल जाएगा.
‘भूपेश इंजन’
रेलवे की बोगी अपनी तय रुट पर चलती है, मगर इंजन कभी यहां-कभी वहां. ऐसे ही एक इंजन को देखकर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ठिठक कर रह गए. दरअसल उस इंजन ने नहीं, बल्कि उस इंजन में लगी एक तस्वीर ने अश्विनी वैष्णव के दिमाग में सीधे स्ट्राइक किया. पूछ बैठे- भाई मामला क्या है? दरअसल रेल मंत्री दिल्ली के एक रेलवे स्टेशन का जायजा ले रहे थे कि अचानक एक रेल इंजन पर लगी तस्वीर ने उनका ध्यान खींचा. यह तस्वीर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की थी. कहने को तो भारी भरकम बोगियों को खींचने वाला यह इंजन ही था, लेकिन इस पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तस्वीर ज्यादा भारी दिखाई पड़ रही थी. बड़ी तस्वीर के साथ उस पर लिखा था, छत्तीसगढ़ सरकार-भरोसे की सरकार. मुख्यमंत्री मितान योजना का प्रचार करता यह रेल इंजन दिल्ली में जब इतराता खड़ा रहा होगा, तब सोचिए जरा कि मोदी सरकार के मंत्री के दिलो दिमाग में क्या चला होगा. अब आने वाले दिनों में कहीं इसकी वजह से रेलवे को अपनी विज्ञापन पाॅलिसी ना बदलनी पड़ जाए.
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