‘न्यूटन का तीसरा नियम’

न्यूटन का तीसरा नियम कहता है कि प्रत्येक क्रिया की समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है. यही नियम इन दिनों एक मंत्री और अफसर पर लागू होता दिखता है. क्रिया हुई तो प्रतिक्रिया भी हुई. अब इस क्रिया-प्रतिक्रिया के चक्कर में दोनों में ठन सी गई है. मंत्री प्रभावशाली हैं और अफसर का प्रभाव कई मायनों में मंत्री से कम नहीं है. हाल ही में अफसर तबादले के बाद एक बोर्ड पहुंचे हैं. पिछली सरकार में भी अफसर इस बोर्ड में एक पारी खेल चुके थे. इस बार जब पिच पर दोबारा लौटे तो अधीनस्थों को अपने अनुकूल नहीं पाया, सो उनके कामकाज में खामियां निकालकर एक नोटशीट लिख दी. कहते हैं कि अफसर ने जिन लोगों को नकारा माना, वो सब मंत्री के करीबी थे. मंत्री के करीबी भले ही फूटी कौड़ी का काम ना करें, बस उनके सीने में ‘मंत्री का आदमी’ नाम की तख्ती टंगा होना काफी है. यही उनकी सबसे बड़ी काबिलियत होती है. जिंदगी की सबसे बड़ी उपलब्धि जिसके बूते उन्हें ओहदा मिल जाता है. बहरहाल अफसर के नोटशीट की स्याही उधर सूखी भी नहीं थी कि मंत्री बुरा मान गए. उन्होंने एक आला अफसर को पूरे मामले में हस्तक्षेप करने के निर्देश दिए. उम्मीद थी कि अफसर कम से कम अपने सीनियर की बात तो सुनेगा ही, मगर हुआ ठीक उल्टा. अफसर ने अपने सीनियर से दो टूक कह दिया कि सुनूंगा तो सिर्फ सीएम की ही. मंत्री अपनी शालीनता के पीछे एक तेज दिमाग छिपाकर चलते हैं. अफसरों का चेहरा देखकर पूरा मजमून पढ़ लेते हैं. सुनते हैं कि अफसर की बोर्ड में नियुक्ति के पहले उन्होंने कुछ पुराने मामलों का लेखा जोखा निकलवा रखा है. वक्त का बस इंतजार है.

हुनरमंद अफसर

एक वर्क्स डिपार्टमेंट से हाल ही में नियुक्त किए गए आईएएस को कुछ दिनों में हटा दिया गया. कहते हैं कि अफसर को जिस इरादे से बिठाया गया था, वह उसमें खरे नहीं उतर रहे थे. सप्लाई चैन मैनेजमेंट पर असर पड़ रहा था, सो बदल दिए गए. उनके बदले एक गैर आईएएस अफसर को तैनात किया गया है, जो इन दिनों आंखों का नूर बने बैठे हैं. कई बड़ी जिम्मेदारियां उनके मजबूत कंधों पर टिकी हुई थी. अब एक और का जिम्मा उनके हिस्से आ गया. खैर, अफसर हुनरमंद हैं. हर सरकार में मजबूत जगह बना ही लेते हैं. उनके एक अधीनस्थ काम करने वाले एक चीफ इंजीनियर प्रशासनिक गलियारों में घूमते फिरते टकरा गए. एक दिन पहले ही अफसर ने उनकी भूमिका बदलकर उन्हें बाबूगिरी के काम में लगा दिया था. कहते हैं कि बाबूगिरी के पहले यही चीफ इंजीनियर टेक्निकल कमेटी के चेयरमेन थे. ढाई सौ करोड़ रुपए के किसी ठेके के मामले में उन्होंने एक ठेकेदार को एलिजिबल नहीं मानते हुए उसके खिलाफ निगेटिव टीप लिख दी थी. अफसर चाहते थे कि टीप ठेकेदार के सपोर्ट में लिखी जाए. चीफ इंजीनियर ने मना कर दिया. अगले दिन कुर्सी बदल दी गई. चीफ इंजीनियर को समझना चाहिए था. एडजस्टमेंट पॉलिसी अपनाकर काम करते तो फायदे में रहते. खामखां रायता बिखेर दिया और खुद उस रायते में बह गए.

‘संविदा’

सूबे में संविदा नियुक्ति की बाढ़ सी आ गई है. प्रशासनिक गलियारों में यह चर्चा आम हो गई है कि सरकार ‘संविदा’ अफसरों के भरोसे चल रही है. ‘संविदा’ पाने वाले अफसरों के मातहत इससे नाखुश हैं. ओहदे पर रहते तक सब ठीक था. सम्मान में कहीं कोई कमी नहीं थी. सीनियर की गाली भी सुरीली लगती थी. मगर रिटायरमेंट के बाद जब उन अफसरों को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिली, तब उनकी सुरीली आवाज कर्कश लगने लगी. खुलकर कोई कुछ नहीं कहता, मगर दबी जुबां से प्रशासनिक गलियारों में इस पर जमकर चर्चा होने लगी है. आलम यह है कि संविदा अफसरों की सूची बनाकर किस्सागोई की जाने लगी है. अब पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग पर रेग्युलर अफसरों की नजरें टेढ़ी हो रही हैं. सूबे में संविदा पाने वाले अफसरों की लंबी सूची है. आईएएस बिरादरी में विवेक ढांड, अजय सिंह, एम के राउत, सुनील कुजूर, आर पी मंडल, डॉक्टर आलोक शुक्ला, डी डी सिंह, धनंजय देवांगन, निरंजन दास, टामन सोनवानी, दिलीप वासनिकर, अशोक अग्रवाल, अमृत खलको के नाम शामिल हैं. वहीं आईपीएस बिरादरी से डी एम अवस्थी को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिली और अब संजय पिल्ले को सरकार पोस्टिंग देने जा रही है. गृह विभाग ने जीएडी को फाइल भेज दी है. पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग पाने वालों में आईएफएस अफसर भी पीछे नहीं है. पीसीसीएफ रहे राकेश चतुर्वेदी और संजय शुक्ला दोनों अफसरों को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिली. आईएफएस एस एस बजाज भी रिटायरमेंट के बाद पोस्टिंग पाने वाले अफसर रहे. ये शाश्वत सत्य है कि जब तक ओहदा, तब तक मान-सम्मान. वर्ना कई नामी ब्यूरोक्रेट हुए हैं, जिनके रिटायरमेंट के बाद उन्हें कोई पूछने वाला भी नहीं हुआ. यदा कदा उनके किए कामों पर चर्चा ज़रूर हो जाती है.

नियुक्ति

अनुसूचित जाति वर्ग के युवाओं का नग्न प्रदर्शन याद है ना. फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी पाने वालों के खिलाफ राजधानी की सड़कों पर दौड़ पड़े थे. ये बात और है कि उन प्रदर्शनकारियों का आपराधिक रिकार्ड भी सामने आया, लेकिन मूल बात पर सरकार का ध्यान जरूर गया. आनन-फानन में बैठक बुलाई गई और तय हुआ कि फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी कर रहे कर्मियों को बाहर किया जाएगा. कुछ अड़चन भी थी. मसलन ज्यादातर लोगों को कोर्ट से मिला स्टे. बावजूद इसके मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में तय किया गया कि जो नौकरी पर बने हुए हैं उन्हें जल्द हटाया जायेगा. इस तस्वीर के परे एक दूसरी तस्वीर देखिए. पशुपालन विभाग की एक महिला अफसर को मंत्री के अनुमोदन की प्रत्याशा में एक वीवीआईपी जिला भेज दिया गया. साल 2014 में फर्जी जाति मामले की पड़ताल के लिए गठित कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में इस महिला अफसर की जाति को गलत पाया था. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि महिला अफसर ने फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए आरक्षण का लाभ लेकर नौकरी हासिल की थी. महिला अफसर ने 2015 में कोर्ट से स्टे ले लिया था. कहा जा रहा है कि 9 अगस्त यानी विश्व आदिवासी दिवस के दिन हाईकोर्ट उनके प्रकरण की सुनवाई करने वाला है. तबादला करने वाले अफसर ये जानते थे बावजूद इसके उन्हें वीवीआईपी जिले में पोस्टिंग दे दी गई. सरकार कुछ कहती है, अफसर कुछ और करते दिखते हैं.

मेंटरशिप

जिस दौर में घपले घोटालों में फंसकर आईएएस अफसरों के जेल जाने की खबरें बढ़ी हैं, उस दौर में छत्तीसगढ़ की आईएएस बिरादरी एक नया प्रयोग करने जा रही है. इस प्रयोग का बीड़ा उठाया है छत्तीसगढ़ आईएएस एसोसिएशन ने. एक ब्यूरोक्रेट के रूप में आईएएस की असली भूमिका बताने और समझाने के लिहाज से आईएएस एसोसिएशन ने एक प्रोग्राम डिजाइन किया है. इस प्रोग्राम का नाम है ‘मेंटरशिप’. हर नए आईएएस को एक सीनियर आईएएस मेंटर के रुप में मिलेंगे. इस प्रोग्राम का मकसद बड़ा स्पष्ट है. किसी भी तरह की जरूरत चाहे वह प्रशासनिक समझ बढ़ाने से जुड़ी हो या फिर किसी परेशानी में पड़ने की स्थिति से जुड़ी हो, एक मेंटर के रुप में नए आईएएस को सीनियर आईएएस की मदद मिलेगी. प्रशासनिक कामकाज के अलावा आम जनता हो नेता हो या पत्रकार उनसे कैसा इंट्रेक्शन किया जाए, यह सब सीनियर आईएएस मेंटर के रुप में नए आईएएस को सिखाएंगे. नए आईएएस को एक साल की मेंटरशिप मिलेगी. एसोसिएशन का मानना है कि इस प्रोग्राम से अच्छे अफसर तैयार किए जा सकेंगे. एक सीनियर आईएएस कहते हैं कि सर्विस में आने के उसूल तय थे. अब ज्यादातर नए अफसर ब्यूरोक्रेसी को सिर्फ पावर और पैसे से जोड़कर देखते हैं. ‘मेंटरशिप’ प्रोग्राम नए आईएएस को सर्विस में आने का वास्तविक उद्देश्य समझाएगा. इसके परे आईएएस एसोसिएशन एक और पहल कर रहा है. सीनियर आईएएस अधिकारी रहीं एम गीता की याद को चिरस्थाई बनाए रखने के लिए एसोसिएशन ने एक अवार्ड शुरू करने का फैसला लिया है. राज्य प्रशासन अकादमी में प्रशिक्षण के लिए आने वाले अफसरों में से बेस्ट परफॉर्मर को यह अवार्ड दिया जाएगा. एम गीता मेहनती अधिकारी थीं. लंबी बीमारी के बाद अगस्त 2022 में उनका निधन हो गया था.

डीए अटका

आल इंडिया सर्विस के अफसरों का डीए बढ़कर 46 फीसदी हो गया है, मगर राज्य के अफसरों को 46 फीसदी क्या, 42 फीसदी भी नहीं मिल रहा. 1 जनवरी से 42 फीसदी डीए मिलना था. इसकी फाइल भी निकली थी. मगर फाइल कहीं जाकर ठहर गई. वैसे लगता है कि अफसरों को डीए की जरूरत भी नहीं. होती तो सरकार पर चढ़ाई कर बैठते. आल इंडिया सर्विस के अफसरों की तनख्वाह अच्छी खासी है. कई अफसर ऐसे हैं, जिन्हें तनख्वाह की जरूरत है भी नहीं. जिन्हें है, उनकी आवाज में वह दम नहीं कि उनकी बात सुनी जा सके. फिलहाल उनके हिस्से कुछ है, तो वह है ‘इंतजार’. वैसे सरकार की दरियादिली कम नहीं है. राज्य के सरकारी कर्मचारियों का डीए हो या फिर संविदा कर्मियों की तनख्वाह में बढ़ोतरी का मसला. देर आए दुरुस्त आए वाले अंदाज में सरकार ने फैसला ले ही लिया गया.

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