Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

कलेक्टरी चंद दिनों की…

”कुछ तो खामियां होंगी मुझमे, यूं ही नहीं कोई रुखसत होता…”मुमकिन है कुछ ऐसे ही अल्फाज इन दिनों आईएएस डी राहुल वेंकट के ख्यालों में रह-रह कर मंडराते होंगे. 2015 बैच के इस आईएएस अफसर को सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले की कलेक्टरी मिली थी. मगर दो महीने भी नहीं बीते कि उनकी जगह डाॅ.फरिहा आलम भेज दी गई. संभवतः छत्तीसगढ़ में किसी कलेक्टर का यह सबसे कम दिनों का कार्यकाल रहा होगा. डी राहुल वेंकट को हटाए जाने के पीछे की असल वजह मालूम नहीं, मगर सुनते हैं कि उनके कलेक्टर बनने से नए जिले में अच्छे-अच्छे परेशान होने लगे थे. ठेकेदारों को बुलाकर हिदायत दे दी गई थी कि कोई भी पैसा मांगे, तो ना दिया जाए. अब लोग कह रहे हैं कि सिस्टम में ढलने का हुनर सीख नहीं पा रहे थे, इसलिए विदाई हो गई. बहरहाल एक सीनियर ब्यूरोक्रेट डी राहुल वेंकट के बारे में बताते हैं कि बीजापुर में जिला पंचायत सीईओ रहते हुए वेंकट कभी किसी मीटिंग में शिरकत करने रायपुर भी आते, तो सरकारी वाहन की बजाए पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन का इस्तेमाल करते. वह बस में बैठकर रायपुर आ जाया करते थे. एक अफसर बोले, यह तो अव्वल दर्जे की अव्यावहारिक ईमानदारी है. उन्हें समझना चाहिए कि ये सिस्टम तो चार्ल्स डार्विन के सिद्धांत ”सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट” पर चलता है. 

मुस्कुराइए आप रायपुर में है…

तेलीबांधा के रास्ते वीआईपी रोड जाएंगे, तो सड़क को बांटने वाले डिवाइडर सजते-संवरते दिखेंगे. यहां बड़े-बड़े गमले सजाए जा रहे हैं, कारीगरी उकेरी जा रही है. अच्छी बात है, रायपुर स्मार्ट सिटी है, थोड़ी स्मार्ट दिखनी भी चाहिए, लेकिन यहां जिस तरह से काम चल रहा है, उसे देखकर तो दान-दक्षिणा, भेंट, बख्शीस, आदान-प्रदान का समीकरण ही दिखाई पड़ता है. बताते हैं कि कुछ सौ मीटर के डिवाइडर को कॉस्मेटिक खूबसूरती देने करीब-करीब दो करोड़ रुपए खर्चे जा रहे हैं. अब जिस शहर के चौक-चौराहों के रंग रोगन में 70-70 लाख रुपए खर्च किए गए हो, वहां डिवाइडर की खूबसूरती के लिए दो करोड़ रुपए खर्च करना कोई बड़ी बात नहीं. बड़ी बात इसकी प्रक्रिया है. दरअसल डिवाइडर को सजाने-संवारने का यह काम महीने भर पहले शुरू हो गया, काम खत्म होने की कगार पर है और अब निगम प्रशासन ने इसका टेंडर जारी किया है. टेंडर का यह विज्ञापन कहता है कि आवेदन 9 नवंबर से दिए जाएंगे. 16 नवंबर टेंडर फार्म जमा करने का आखिरी दिन होगा और इस दिन ही टेंडर जारी कर दिया जाएगा. अब सवाल उठ रहा है कि जब काम खत्म होने को है, तो यह टेंडर जारी किसे होगा? है ना मजेदार बात. खैर यह अंडरस्टूड है कि किसी खास को उपकृत करने यह काम ढूंढा गया होगा, अच्छा होता कि टेंडर जारी होने के बाद काम शुरू होता. सवाल तो नहीं उठता….बहरहाल एयरपोर्ट से निकलकर वीआईपी रोड होते हुए जब शहर में कोई बाहरी मेहमान दाखिल होगा, तब यही काॅस्मेटिक खूबसूरती लिए डिवाइडर स्वागत करेंगे और कहेंगे, मुस्कुराइए आप रायपुर में है….

रुजवेल्ट इन छत्तीसगढ़

अमेरिका के राष्ट्रपति रह चुके फ्रैंकलीन रुजवेल्ट के परपोते की छत्तीसगढ़ दौरे की खबर है. खबर है कि रुजवेल्ट के परपोते अगले हफ्ते छत्तीसगढ़ पहुंच रहे हैं. परपोते को समझने से पहले रुजवेल्ट को समझ ले. अमेरिकी राष्ट्रपतियों में से रुजवेल्ट पहले ऐसे राष्ट्रपति थे, जिन्होंने दो से ज्यादा बार राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी. द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल के समर्थन में अमेरिका रुजवेल्ट की अगुवाई में ही विश्वयुद्ध में कूद पड़ा था. 1930 की वैश्विक मंदी के दौरान रुजवेल्ट ने आर्थिक सुधारो के लिए काम किया था. अब बात रुजवेल्ट के परपोते की. तो सुनाई पड़ा है कि अगले हफ्ते होने वाला उनका यह दौरा क्लाइमेट चेंज से जुड़े किसी कार्यक्रम के तहत हो रहा है. मुमकिन है इस दौरे के दौरान रुजवेल्ट के परपोते की मुलाकात मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से हो. मुलाकात होगी, तो जाहिर है अमेरिकी-छत्तीसगढ़ी के बीच एक नए संबंध गढ़ते दिखेंगे. रुजवेल्ट के परपोते के जरिए नरवा, गरवा, घुरबा, बारी और गोबर खरीदी जैसी योजनाओं से आर्थिक सुधारों का नया फार्मूला अमेरिका तक पहुंचेगा. 

ईडी का नोटिस !

ब्यूरोक्रेसी हिली हुई है. चर्चा है कि छत्तीसगढ़ में खूंटा डाल कर बैठी हुई ईडी ने करीब 50 अफसरों-नेताओं को नोटिस भेजा है. चर्चाओं में कई बड़े और प्रभावशाली नामों की भी गूंज है. बताते हैं कि कई बड़े अफसर और नेता दहशत में है. रात की नींद और दिन का चैन सब उड़ा हुआ है. चर्चा है कि ईडी को जमीनों में बड़े पैमाने पर निवेश के दस्तावेज भी मिले हैं. फिलहाल नोटिस देकर पूछताछ किए जाने की चर्चा है. जमीनों में निवेश की आड़ में मनी लांड्रिंग का मामला अगर स्टैबलिश हुआ फिर अच्छे-अच्छे खिले चेहरे बुझते दिख सकते हैं. एक चर्चा ये भी सुनने में आई कि मनी लांड्रिंग मामले में जेल भेजे गए लोगों ने तिहाड़ में शिफ्ट किए जाने के लिए आवेदन लगाया है. मगर इसे लेकर ईडी की तरफ से किसी तरह की जानकारी साझा नहीं की गई है. 

पुनिया की विदाई कब

कांग्रेस प्रदेश प्रभारी पी एल पुनिया की विदाई को लेकर बातें तेज हो गई है. एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता की माने तो सत्ता और संगठन में भले लकीरें खिंची हो, मगर दोनों की मंशा है कि प्रदेश प्रभारी बदला जाए. ऐसे में पुनिया की विदाई तय मानी जा रही है. एक चर्चा पीसीसी अध्यक्ष से पुनिया की अनबन चलने की भी है. पिछले दिनों पॉलिटिकल अफेयर कमेटी की बैठक हुई थी. प्रदेश अध्यक्ष मरकाम चाहते थे कि यह बैठक 31 तारीख को रखी जाए, मगर सीएम की चुनावी रैली की वजह से बैठक 30 को रखी गई. इस बैठक में मरकाम मौजूद नहीं थे. बहरहाल पुनिया को लेकर संगठन में यह कहा जाने लगा है कि राज्यभर में उनका अपना सीधे नेटवर्क तैयार हो गया है. चुनाव करीब है, ऐसे में टिकट वितरण में कहीं ना कहीं प्रदेश प्रभारी की हैसियत से पुनिया की मनमानी चलेगी. निगम,मंडल और आयोगों की नियुक्ति में उन्होंने अपने कई चहेतों को पदों पर बिठाया है. बताते हैं संगठन नया चेहरा चाहता है, जिससे वह सबकी सुने किसी एक की नहीं. पुनिया की विदाई हुई, तो नया प्रभारी कौन होगा, इसे लेकर भी कयास लगाए जा रहे हैं. बीजेपी ने रणनीतिकार माने जाने वाले ओम माथुर को छत्तीसगढ़ भेजा है, लिहाजा कांग्रेस संगठन भी दमखम और तिकड़मी चेहरा ढूंढेगी, तो ही फायदा होगा. 

जूरी का क्या औचित्य ?

राज्य अलंकरण समारोह में इस बार पंडित रविशंकर शुक्ल सम्मान को लेकर बड़ी गफलत हो गई. होनी भी थी. जब जूरी ने सर्व सम्मति से किसी एक नाम पर मुहर लगा दी है, ऐसे में अलंकरण की घोषणा के वक्त किसी और नाम का सामने आना जूरी का अपमान करने जैसा है. जूरी ने बलौदाबाजार के डाॅक्टर शैलेंद्र साहू को अलंकृत किए जाने की पैरवी की थी. डाॅ.शैलेंद्र वहीं है, जिन्होंने कोविड में अपनी जान की परवाह किए बगैर संक्रमित मरीजों के बीच रहकर काम किया. काम करते-करते वह खुद संक्रमित हो गए, अंतिम सांस तक उन्होंने मरीजों की देखभाल की. कईयों की जान बचाई, मगर खुद बच ना सके. मरणोपरांत उन्हें यह सम्मान दिए जाने का फैसला जूरी ने किया था. मगर घोषणा किसी और नाम की हुई. जूरी के एक सदस्य रहे वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध ने सोशल मीडिया पर अपनी इस नाराजगी से वाकिफ भी कराया. उन्होंने लिखा-यह क्यों हुआ? कैसे हुआ? अनुमान लगाना भी मुश्किल है. सवाल उठ रहा है कि जब नाम तय ही कर लिया गया था तो ऐसे में जूरी बनाने की फार्मेलिटी पूरी क्यों की गई?