Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor
सुर्खियों में पार्टी
ब्यूरोक्रेट्स की हाई प्रोफाइल पार्टी की जबरदस्त चर्चा है. ये चर्चा सुर्खियों में तब आ गई, जब पार्टी का एक वीडियो वायरल हो गया. एक माॅल के चर्चित क्लब में चल रही इस पार्टी में कुछ आईएएस अधिकारी जमकर ठुमके लगाते नजर आए. कुछ मदमस्त भी दिखे, तो कुछ पार्टी की खुमारी में आनंद उठाते तस्वीरों में कैद हुए. एक-दो जिलों के कलेक्टर के अलावा अहम ओहदे पर बैठे अधिकारी भी पार्टी एंजॉय करते नजर आए. तनाव भरे माहौल के बीच एक अदद पार्टी ही आनंद में डूब जाने का जरिया बनी होगी. मगर बाहर जो रूमर उड़ा, वह हैरान करने वाला रहा. वैसे तो खबर है कि पार्टी के लिए पूरे क्लब की बुकिंग की गई थी, मगर क्लब के उस हिस्से में किसी भी बाहरी व्यक्ति के आने-जाने की मनाही थी. कहा तो यह भी जा रहा है कि पार्टी देर रात तक चली. अब इस बात में सच्चाई कितनी है मालूम नहीं, पर सुनते हैं कि एक कलेक्टर ने अपने उम्दा नृत्य कौशल का प्रदर्शन करते हुए हरी पत्तियां भी लहराई. इस संदर्भ में एक सीनियर आईएएस अधिकारी ने चर्चा में कहा कि, पार्टी करने में कोई बुराई है क्या? हां ये जरूर है कि नियम कायदों का पाठ पढ़ाने वाले ही जब इसे ठेंगे पर रखकर चलेंगे, तो सवाल तो उठेंगे ही.
कलेक्टर पर सरकार की टेढ़ी नजर !
खबर है कि एक कलेक्टर को लेकर सरकार की भौहें तनी हुई है. ये आलम तब से है, जब से उत्तरप्रदेश चुनाव के नतीजे सामने आए. अब सवाल उठ रहा है कि चुनाव जब उत्तरप्रदेश में था, तो सरकार भला कलेक्टर से नाराज क्यों होगी? दरअसल कलेक्टर के भाई उत्तर प्रदेश से बीजेपी के विधायक चुने गए हैं. चुनाव में कलेक्टर साहब की कोई भूमिका थी या नहीं, ये मालूम नहीं. मगर बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के स्थानीय संगठन ने इस बाबत एक शिकायत राष्ट्रीय संगठन से की थी. बकायदा शिकायतों का पुलिंदा भेजा गया था. अब बात संगठन की आएगी तो सरकार की भौहें तनना लाजिमी है. उच्च पदस्थ सूत्र कहते हैं कि कलेक्टरों के प्रस्तावित तबादले में कहीं जिम्मेदारी ना बदल दी जाए.
एक अधिकारी, चार जिम्मेदारी
”लोकतंत्र के मुंह पर ताला, बैठ गया है अफसर आला, पगलों से पड़ता था पाला, कहीं दाल में पानी पानी, कहीं दाल में काला काला’’.प्रसिद्ध कवि बाबा नागार्जुन बरसो पहले ये लिख गए थे, लेकिन इस कविता की इन पंक्तियों का एक-एक शब्द आज भी जिंदा है. अब इस विभाग को ही देखिए. एक अधिकारी और जिम्मेदारी चार. वह भी बड़ी-बड़ी. माने कोई दूसरा है ही नहीं, जो उनकी क्षमता का मुकाबला कर सके. इस अधिकारी की जिम्मेदारियों पर नजरें इनायत की जाए, तो मालूम चलता है कि ये महोदय विभाग के जिला इकाई के मालिक हैं. यही इनका मूल ओहदा है. मगर इसके परे वह मंत्री के ओएसडी भी हैं. विभाग में सहायक संचालक की जिम्मेदारी भी संभालते हैं. इसके अलावा खरीदी से जुड़ा एक अहम प्रभार भी इनके हिस्से डाला गया है. अब तो लोग यह कहकर चुटकी लेने लगे हैं कि 15 सालों तक विभाग में एक ”सिंह” जमे थे. सरकार बदलने के बाद वह गए, तो उनकी जगह इस अधिकारी ने ले ली है. 15 साल बनाम 3 साल का मुकाबला हो चला है. महकमे में ये कहते भी सुना जाता है कि पिछले वाले भी इतने ताकतवर नहीं थे, जितने ये अधिकारी हो चले हैं. फाइलों पर पूरा नियंत्रण इनके हाथ में है. गुणा-भाग में ‘शिक्षित’ हैं, सो जिम्मेदारी इनके हिस्से आई है. वैसे भी यूं ही कोई इतना भरोसे का नहीं हो जाता. कोई तो वजह होगी ही.
प्रमुख सचिव की फटकार
छह-छह मंत्रियों की पैरवी से एक जिले में डीईओ की जिम्मेदारी हासिल की थी, मगर काम में वहीं ढाक के तीन पात. नील बटे सन्नाटा. पैरवी थी, सो जिम्मेदारी मिल गई थी, मगर वक्त ने पासा फेंका और जो हुआ, उसकी कल्पना भी डीईओ ने नहीं की होगी. पिछले दिनों विभाग की समीक्षा बैठक में एक प्रसंग आया, जिस पर प्रमुख सचिव फट पड़े. सुनते हैं कि नाराजगी के स्वर इतने बुलंद थे कि डीईओ को ‘पैरवी’ याद दिला दी. दो टूक कह पड़े कि एप्रोच वाले आएंगे, तो ऐसे ही काम होगा. छह-छह मंत्रियों से फोन कराकर पोस्टिंग कराई थी ना. बताते हैं कि जिस वक्त ये फटकार चल रही थी बगल में बैठे विभाग के मंत्री चुप्पी साधे हुए थे. वह प्रमुख सचिव के तेवर से वाकिफ थे, सो कुछ टिप्पणी करने की जहमत नहीं उठाई. बैठक में मौजूद एक शख्स ने बाद में यह कहते हुए तंज कसा कि ‘ पैरवी करने वालों में कहीं मंत्री भी तो नहीं थे’.
महंत की अंतिम इच्छा
विधानसभा अध्यक्ष डाॅक्टर चरणदास महंत कई मर्तबा राज्यसभा जाने की अपनी इच्छा जाहिर कर चुके हैं. इस दफे तो भावुक होकर कहा कि ये उनकी ‘अंतिम’ इच्छा है. हालांकि ये शाश्वत सत्य है कि राजनीति में कभी कोई अंतिम इच्छा नहीं होती. हर अंतिम इच्छा पूरी होने के साथ ख्वाहिशों का समंदर बड़ा होता जाता है. राजनीतिक इतिहास की पूरी क्रोनोलॉजी उठाकर देख लें. खैर, दिल की भावना जाहिर की गई है, देखना होगा कि पार्टी इस पर क्या फैसला लेगी. राज्यसभा में जाने की उनकी इस प्रबल चाहत के बीच ये सुनने में आया है कि पिछले दिनों संसद भवन में उनकी मुलाकात सोनिया गांधी से हुई. जाहिर है मनोभाव साझा किया ही गया होगा. वैसे एक चर्चा ये भी होती है कि भूपेश कैबिनेट के कथित फेरबदल में महंत की नई भूमिका देखी जा सकती है. फिलहाल ये सभी चर्चाएं हाइपोथेटिकल है. मगर ये तय है कि आने वाले दिनों में राज्य की सियासत में कई अहम चेहरों की जिम्मेदारियां बदली जाएंगी. इन जिम्मेदारियों में महंत कहां होंगे, ये देखना बाकी है.
‘आप’ कहां हैं?
छत्तीसगढ़ के चुनाव में सीधा मुकाबला कांग्रेस-बीजेपी के बीच ही रहा है. ऐसे में ये सवाल उठ रहा है कि इन दो राजनीतिक दलों के बीच ‘आप’ कहां हैं? पंजाब चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी में लोरमी के संदीप पाठक एक बड़े चेहरे के रूप में उभरे हैं. आईआईटी के प्रोफेसर रहे हैं. उनकी राजनीतिक सूझबूझ पंजाब ने दिखा भी दी है. संदीप पाठक गुजरात की जिम्मेदारी भी देख रहे हैं और उनके छत्तीसगढ़ दौरे ने लगभग ये बता ही दिया है कि संगठन को सींचने का दारोमदार उनके कंधों पर है. लेकिन हर राज्य की मिट्टी की तरह सियासत की जमीन का रंग भी अलग है. छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी कहां जाकर ठहरेगी ? ये सवाल बना हुआ है. छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली सरकार अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की तरह दौड़ रही है. उप चुनाव की जीत बताती है कि कांग्रेस पार्टी और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल उस नब्ज को टटोल चुके हैं, जो जीत की बुनियाद रखती है. राज्य में इस वक्त एक के बाद एक हर मुकाबले में जीत का सेहरा कांग्रेस के माथे पर सज रहा है. इन सबके बावजूद आम आदमी पार्टी जिन राज्यों में चुनावी दहलीज पर खड़ी होती है, हार-जीत के अनुमान से परे सियासत का एक बवंडर अपने साथ ले आती है और इस बवंडर में अब तक सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस को ही होता आया है. बहरहाल यकीनन कांग्रेस ने इसकी रणनीति भी तैयार कर ही ली होगी.
बन गया जिला
खैरागढ़ उप चुनाव में मिली बड़ी जीत के बाद महज तीन घंटों में ही जिले की घोषणा कर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सबसे बड़ा चुनावी वादा पूरा कर दिया. राज्य में अब 33 जिले हो गए हैं. भूपेश सरकार के सत्ता में काबिज होने के बाद से अब तक छह नए जिले बनाए गए. सबसे पहले गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही को जिला बनाया. इसके बाद 15 अगस्त 2021 को राज्य में 4 नए जिलों मोहला-मानपुर-चौकी, सारंगढ़-बिलाईगढ़, महेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर, सक्ती को जिला बनाए जाने की घोषणा की गई थी. चारों नए जिलों के गठन की अधिसूचना भी जारी हो चुकी है और अब खैरागढ़ एक नए जिला इस फेहरिस्त में जुड़ जाएगा. इधर जिलों के गठन के साथ ही सूबे के आईएएस अधिकारियों की बल्ले-बल्ले है. कलेक्टरी के लिए जिलों की संख्या बढ़ेगी. नए चेहरों को मौका मिलेगा. हालांकि सुनने में आया है कि जल्द ही सरकार नए जिलों में ओएसडी नियुक्त करने जा रही है. इसकी प्रक्रिया तेजी से दौड़ रही है.
विधायक के बेटे का कारनामा
सत्ता का गुरूर इसे ही कहते हैं. कांग्रेस के एक विधायक के बेटे ने ट्रक ड्राइवर को पीटा तो पीटा, थाने में घुसकर आरक्षक की भी पिटाई कर दी. पिता को जब से विधायकी मिली थी, तब से दिलेरी छा गई थी. कहते हैं कि जिले के पुलिस वाले भी आए दिन के उत्पात से परेशान थे. कई दौर की समझाइश के बाद भी हालात नहीं सुधर रहे थे. पिता की विधायकी का पावर था ही आरक्षक की पिटाई करने से कोई गुरेज नहीं रहा. पुलिस वाले भी ताक में थे. मौका मिला, तो देरी नहीं की. सीधे एफआईआर. विधायक की बेटे को समझाइश में कोई कसर रह गई होगी या विधायक शायद ये भूल बैठे होंगे कि जिस राज्य के मुख्यमंत्री कानून व्यवस्था की बहाली के लिए अपने पिता को जेल भेज सकते हैं, उस राज्य की पुलिस विधायक के बेटे पर हाथ तो डाल ही सकती है. एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने किस्सा सुनाते हुए बताया कि विधायक के बेटे ने एक दफे देर रात उत्पात मचाया, तो पुलिस ने विधायक को सूचना भेजी. तब आनन-फानन में विधायक बरमुडा पहने ही पहुंच गए थे. पहले ही संभल जाना था. वैसे भी चुनाव में अब पंद्रह महीने ही बाकी है. संभलने का वक्त आ गया है.
…जब ड्रेस कोड में दिखे सीएम भूपेश
अक्सर सफेद कुर्ता-पैजामा पहने नजर आने वाले सीएम भूपेश बघेल आईएएस कॉन्क्लेव में सूट बूट में नजर आए. ये दस लखिया सूट नहीं था, प्रोटोकाल ड्रेस था. आईएएस कॉन्क्लेव में टाउन हॉल डिस्कशन के लिए ये पूर्व निर्धारित था. सीएम भी आईएएस अधिकारियों की तरह ही ड्रेस पहने खूब दिखे. इस कॉलम के स्तंभकार ने चलते-चलते जब सीएम भूपेश बघेल से उनके ड्रेस के संदर्भ में टिप्पणी की, तो उन्होंने हंसते हुए तपाक से कहा, ‘अधिकारियों ने आज मुझे पहना दिया’. आयोजन के बाद सीएम भूपेश ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि, ये उनके लिए पहला अनुभव था. चीफ गेस्ट बैठेंगे तो सब बैठेंगे, खाना शुरू करेंगे, तो बाकी शुरू करेंगे. खाना खाकर उठ जाए, तो बाकी खाएं हो या ना खाए वह भी उठ जाएंगे. सीएम ठहरे सौ टका देसी. ब्रिटिश संस्कृति को ढोती आ रही नौकरशाही का ये रंग उनके लिए अपरिचित सा था. बावजूद इसके सीएम ने अधिकारियों के बीच और अधिकारियों ने सीएम के बीच एक अच्छा क्वालिटी टाइम बिताया.
आईएएस कॉन्क्लेव
एक बड़े अंतरात के बाद आईएएस एसोसिएशन ने आईएएस कॉन्क्लेव का आयोजन किया. पूर्व नौकरशाहों के तर्जुबों से नए आईएएस को नई सीख भी मिली होगी. पी जॉय उम्मेन, एस के मिश्रा, एन बैजेंद्र कुमार सरीखे कैडर के रिटायर्ड आईएएस अधिकारियों ने जिंदगी भर के अनुभवों को बांटा है, जाहिर है जिन्हें कुछ करना होगा, सीख लेकर लौट होंगे. चीफ सेक्रेटरी अमिताभ जैन की ये टिप्पणी काबिलेगौर रही कि अधिकारी जनप्रतिनिधियों को सही सलाह दें. अमिताभ जैन को लेकर ब्यूरोक्रेसी में ये सुना जाता रहा है कि जब उन्हें रूल्स के बाहर जाकर कोई काम कहा जाता, तो वह रूल बुक लेकर खड़े हो जाते ये कहते हुए कि रूल्स में ये नहीं लिखा है. एसोसिएशन के अध्यक्ष मनोज पिंगुआ ने कहा कि सिविल सेवा का काम जटिल हो रहा है. निर्णय लेने में अंतर्द्ंद की स्थिति निर्मित हो रही है. मैदानी अधिकारी और मंत्रालय के अधिकारी के बीच संवादहीनता ना हो, एक टीम के रूप में काम किया जाए, ये जरूरी है. मतभेद और मतभिन्नता की वजह से योजनाओं की गति प्रभावित होती है. आईएएस कॉन्क्लेव में सरगुजा कमिश्नर जी चुरेंद्र और कलेक्टर संजीव झा की टीम का लोक नृत्य भी सुर्खियों में रहा. पारंपरिक परिधान में अधिकारियों ने अपना नृत्य कौशल भी खूब दिखाया.