रिचार्ज
क्या कुछ नहीं कर सकता सत्तारूढ़ दल का एक विधायक? चाहे तो आसमान को जमीन पर लाकर उस पर चलना शुरू कर दे और जमीन से कह दे, अपनी हैसियत में रहे. सत्तारूढ़ दल का विधायक अगर दिन को रात कहे, तो रात है. रात को दिन कहे, तो दिन है. विधायक चुने जाने के पहले तक वह गरीब हो सकता है, मगर विधायकी रहते मिल्कियत खड़ी करने की हैसियत सिर्फ सत्तारूढ़ दल के विधायक की होती है. राजनीति में विधायकों की हैसियत का मूल्यांकन करने का अपना अलग मापदंड भी है. सत्तारूढ़ दल का विधायक आत्मविश्वास से लबरेज मालूम पड़ता है, वहीं विपक्ष का विधायक उपेक्षा के भाव से भरा दिखता है. यहां तस्वीर थोड़ी उलट है. सत्तारूढ़ दल के एक विधायक ने मामूली अंतर से चुनाव जीता था. जीत बड़ी होती तो आत्मविश्वास बड़ा होता, जीत का अंतर कम था. इसलिए आत्मविश्वास कम हो गया. कम आत्मविश्वासी विधायक ने हाल ही में अपने इलाके के डीआईजी को फोन कर कहा, टाटा स्काई रिचार्ज करा दें. रिचार्ज पैकेज खत्म हो गया है. डीआईजी भी चौंक पड़ा. विधायक ने मांगा भी तो टाटा स्काई का रिचार्ज पैकेज ! इसी तरह विधायक ने ट्रैफिक डीएसपी को फोन कर कहा, घर के बाहर की नाली जाम हो गई है, साफ करा दें. ट्रैफिक डीएसपी ने सिर पीट लिया. चुनाव जीतने के साल भर बाद भी विधायक की समझ विकसित नहीं हो पाई. इलाके के सभी छोटे-बड़े ठेके, ट्रांसपोर्ट, शराब, ट्रांसफर-पोस्टिंग इत्यादि में विधायक की हिस्सेदारी पुरातन काल से चली आ रही परंपरा है. विधायक जी कम से कम अपने साथी विधायकों से रायशुमारी कर लेते, तो बेहतर होता. एक रिचार्ज में ही सीना फुलाए घूम रहे हैं.
महादेव
एक तरफ सत्तारूढ़ दल के एक विधायक टाटा स्काई के मामूली रिचार्ज से खुश हैं, दूसरी तरफ एक विधायक ‘महादेव’ की शरण में हैं. अब जिस ‘महादेव’ के पीछे ईडी और ईओडब्ल्यू हाथ धोकर पड़ी हो, वहां विधायक महोदय प्रसाद पाकर धन्य हो रहे हैं. ‘महादेव’ की कृपा इतनी बरस रही है कि उन्होंने अपना डर कूड़ेदान में फेंक रखा है. चुनाव में जब टिकट मिली थी, तब उन्होंने अपने चुनावी नारों से ‘महादेव’ के खिलाफ खूब जहर उगला था. अब खुद अपने कंठ से जहर भरा प्रसाद हर दिन लील रहे हैं. ‘महादेव’ की शरण से मिली ताकत का असर देखिए कि विधायक अब सार्वजनिक बैठकों में भी ‘पैनल’ का जिक्र करने लगे हैं. मानो खुद ‘महादेव’ के एक अहम किरदार बन बैठे हो. सरकार सब देख रही है. किसी दिन विधायक पर सुशासन का चाबूक पड़ जाए, तो कोई बड़ी बात नहीं. वैसे भी सरकार को वक्त रहते कालकूट विष धारण कर चुके अपने इस विधायक का इलाज ढूंढ लेना चाहिए.
ईओडब्ल्यू जांच !
जनता के ‘स्वास्थ्य’ की कीमत पर भ्रष्टाचार कर जेब भरने के मामले की ईओडब्ल्यू जांच शुरू हो सकती है. बीते पांच सालों में सीजीएमएससी में हुई दवा, मेडिकल उपकरण समेत अन्य चीजों की बेलगाम खरीदी के मामले की जांच ईओडब्ल्यू से कराए जाने की फाइल तेजी से आगे बढ़ रही है. स्वास्थ्य विभाग ने एक आंतरिक जांच कमेटी बनाई थी. जांच आगे बढ़ी और जब घोटाले के दस्तावेज सामने आए, तब कमेटी में शामिल अफसरों की आंख चौड़ी हो गई. कमेटी ने कह दिया कि जांच का दायरा इतना बड़ा है कि विभाग के बूते की बात नहीं है. जांच एजेंसी ही बाल की खाल उधेड़ सकती है. सो अब मामला ईओडब्ल्यू को सौंपा जा रहा है. अगर इस मामले की ठीक ठाक जांच हो गई, तो यकीन मानिए कि एक महाघोटाला फूटकर बाहर आएगा. यह पता चलेगा कि कैसे ठेकेदार और अफसरों के सिंडिकेट ने राज्य सरकार के खजाने को जमकर लूटा है. पूर्ववर्ती सरकार के आखिरी वक्त में बजट नहीं होने के बावजूद आनन-फानन में पांच सौ करोड़ रुपए से ज्यादा की खरीदी कर ली गई थी. वन विभाग में लकड़ी ढोने वाली कंपनी देखते ही देखते फर्श से अर्श पर पहुंच गई. ईओडब्ल्यू की जांच आगे बढ़ेगी, तब इस मामले की कलई खुलकर बाहर आएगी. फिलहाल ईओडब्ल्यू जिसके हाथ में हैं, उन्हें लेकर कहा जाता है कि किसी जांच में एक बार वह आगे बढ़ जाए तो फिर खुद की भी नहीं सुनते. दवा के नाम पर घोटाला हो जाए, तब सरकार को खामोश बैठना भी नहीं चाहिए. खामोशी सरकार की साख में बट्टा लगा देती है. अच्छी बात है कि इस महाघोटाले की जांच ईओडब्ल्यू से कराए जाने की तैयारी की जा रही है.
एरर ऑफ जजमेंट
शराब घोटाले में घुत्त एक सरकार लौट गई. नशे में डूबी सरकार के बेसुध होकर गिरने का यह पहला मामला होगा. नकली होलोग्राम लगाकर सरकारी शराब दुकानों से धड़ल्ले से अवैध शराब बेची गई. सरकारी खजाने में आने वाला पैसा शराब सिंडिकेट के लोगों की जेब में जा पहुंचा. पहले ईडी और बाद में ईओडब्ल्यू ने केस दर्ज किया. घोटालेबाज जेल पहुंच गए. जमीन ने नकली होलोग्राम उगले. बदली हुई सरकार को होलोग्राम में ही झोल समझ आया. सरकार के हालिया फैसले में यह कहा गया कि अब होलोग्राम की खरीदी केंद्र सरकार के उपक्रम से होगी. होलोग्राम एक्स्ट्रा सिक्युरिटी फीचर वाला होगा. जानकार इस फैसले को एरर आफ जजमेंट यानी समझ में चूक करार दे रहे हैं. अब तक इस्तेमाल होता आया होलोग्राम प्लास्टिक का बना हुआ था. होलोग्राम के सिक्युरिटी फीचर में चूक नहीं थी. चूक एक ही बैच के असली और नकली होलोग्राम के इस्तेमाल करने में थी. केंद्र सरकार के उपक्रम से खरीदा जाने वाला होलोग्राम पेपर का होगा. पेपर होलोग्राम इस्तेमाल करने वाले राज्य प्लास्टिक होलोग्राम पर लौट रहे हैं. इधर छत्तीसगढ़ पेपर होलोग्राम पर लौट रहा है. जानकार कहते हैं कि पेपर होलोग्राम ज्यादा खर्चीला है. इसमें वेस्टेज ज्यादा होता है. छपाई का खर्च भी ज्यादा है. सिक्युरिटी फीचर भी प्लास्टिक होलोग्राम की तुलना में कम है. सबसे जरूरी बात यह है कि अब तक होलोग्राम की खरीदी टेक्निकल कमेटी की अनुशंसा पर होती रही है. शराब घोटाले की जांच में ईडी का दायरा टेक्निकल कमेटी तक जा पहुंचा था, सो अब नई कमेटी में कोई शामिल होना नहीं चाहता. बगैर कमेटी की अनुशंसा खरीदी का प्रस्ताव बना दिया गया है. सीवीसी का नार्म्स है कि कांपीटिटिव बीड से ही खरीदी होगी. मगर नई खरीदी में नामिटेडेट सरकारी कंपनी से खरीदी की तैयारी है. सरकार की मंशा है कि शराब की बिक्री में पारदर्शिता बनी रहे. अवैध शराब बिक्री पर रोक लगाई जा सके. मगर यहां नियत नहीं, नीति अस्पष्ट दिख रही है.
डीजी फारेस्ट
सरकार बदल गई थी, मगर सूबे के तीन प्रशासनिक प्रमुख अपने पदों पर बरकरार रहे. मुख्य सचिव, डीजीपी और हेड आफ फारेस्ट. जाहिर है, तीनों की कुर्सी अपनी-अपनी काबिलियत के बूते बची रही. तीनों की कुर्सी पर कुछ ने आंखें तरेर रखी थी. खूब दमखम लगाया कि जैसे-तैसे हटा दिया जाए. मगर अफसर कुर्सी पर बने रहे. अब भी जमे हुए हैं. रिटायरमेंट की दहलीज पर जा पहुंचे डीजीपी को सर्विस एक्सटेंशन दे दिया गया. उनकी कुर्सी पर टकटकी निगाह जमाए बैठे अफसरों को मायूसी हाथ लगी. कुछ यही हाल हेड आफ फारेस्ट को लेकर था. अब तब आदेश निकलने की खबरें कई बार कानों में गूंजा करती, मगर आदेश था कि निकलने का नाम ही नहीं लेता था. अफसर की काबिलियत, जोर आजमाइश करने वालों पर हमेशा भारी पड़ती रही. मगर इस बीच एक नई खबर हवा में तैर रही है. सुनाई पड़ रहा है कि हेड आफ फारेस्ट लंबी छलांग लगाने की तैयारी में हैं. रायपुर से सीधे दिल्ली. चर्चा है कि उन्हें डीजी फारेस्ट बनाया जा सकता है. डीजी फारेस्ट केंद्र सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन के अधीन काम करता है. यह मुमकिन हुआ, तो मौजूदा हेड आफ फारेस्ट छत्तीसगढ़ कैडर के पहले आईएफएस बन जाएंगे, जिन्हें यह ओहदा मिलेगा.
सुनील पर मुहर
रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए भाजपा हाईकमान ने सुनील सोनी को उम्मीदवार बनाया है. वह पूर्व सांसद रहे हैं. सांसद रहते पार्टी ने उनकी टिकट काटकर बृजमोहन अग्रवाल को लोकसभा का चुनाव लड़ाया था. रायपुर दक्षिण सीट से बृजमोहन अग्रवाल विधायक थे. इस सीट से आठ बार लगातार चुनाव जीतने का रिकार्ड उनके नाम पर है. जाहिर है, उनकी सीट पर होने जा रहे उपचुनाव में उनकी मर्जी को धता बताकर पार्टी कोई रिस्क लेना नहीं चाहती थी. बृजमोहन अग्रवाल आखिरी वक्त तक सुनील सोनी के नाम पर अड़े रहे और उन्हें टिकट दिलाकर ही दम लिया. सुनील सोनी को टिकट मिलने से कई नेताओं की भौंह तन गई है, जाहिर है, टिकट की कतार में वह भी खड़े थे. कुछ थे, जो बराबरी की काबिलियत रखते थे. मगर टिकट की दौड़ में वह छूट गए. सुनील सोनी नगर निगम के महापौर और सभापति रहे हैं. रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे हैं. उन्होंने बतौर सांसद एक पारी खेल ली है. अब विधायक बनने को आतुर हैं. उप चुनाव में यदि वह जीत गए, तो मानकर चलिए कि मंत्री बनने की दौड़ में उनका नाम शामिल हो जाएगा. कम से कम चर्चाओं में यह नाम सुना जा सकता है. अगर बन गए, तो उनकी किस्मत.
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