Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor Contact no : 9425525128

जब कलेक्टर ने मांगा ‘फेवर’

एक जिले में कलेक्टर साहब ने एक महिला कर्मचारी से ‘फेवर’ मांगा है। महिला कर्मचारी अपनी एक दरख्वास्त लेकर कलेक्टर साहब के पास पहुंची थी। मगर कलेक्टर साहब ने उस दरख्वास्त में ही मौका ढूंढ लिया। उन्होंने महिला कर्मचारी से कहा, तुम मुझे ‘फेवर’ दो, मैं तुम्हें ‘फेवर’ दूंगा। महिला ने कलेक्टर साहब से जब ‘फेवर’ मांगा था, तब उम्मीद थी कि थोड़ी सहानुभूति मिलेगी, मगर उसे शोषण की गंध आने लगी। न जाने उस महिला की दरख्वास्त का क्या हुआ?  मगर अब कलेक्टर साहब ‘फेवर’ मांगने के चक्कर में खूब चर्चित हो गए हैं। पूरा कलेक्टर कार्यालय दबी जुबान से नहीं, बल्कि खुलकर इस पर बात कर रहा है। कलेक्टर साहब भी इससे वाकिफ होंगे। खैर, कलेक्टर जैसे ओहदे पर बैठा कोई अफसर जब किसी की मजबूरी को अपनी सुविधा में बदलने की कोशिश करे, तब वह सिर्फ एक बुरा अफसर नहीं कहलाता। वह राज्य की गरिमा पर लगा कलंक भी होता है। कलेक्टर जिले में सरकार का चेहरा है। जाहिर है, यह ख्याल कलेक्टरों को होना चाहिए। कलेक्टर साहब के चरित्र पर यह टिप्पणी ओछी हरकत होती, अगर वह अपनी नजर दोष की वजह से पहले से ही चर्चित न होते। इधर ब्यूरोक्रेसी में कलेक्टर साहब के ‘फेवर’ मांगने के किस्से ने जोर पकड़ लिया है। अब कहीं ऐसा न हो कि अगली तबादला सूची में सरकार का जोर उन्हें हटाने में दिख जाए। वैसे भी इन दिनों कुछ जिलों के कलेक्टरों के तबादले की चर्चा तेज है। 

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थिरकती पुलिस

एक जिले की पुलिस ने भक्ति भाव में डूबकर भागवत कथा का आयोजन किया। कथा में भजन गूंजते रहे। गूंजते भजनों पर जिले की पुलिस जमकर थिरकी। पुलिस का जोश और उत्साह देखते बन रहा था। सरकार ने भी पुलिस का थिरकना देखा। बार-बार देखा। सरकार के लिए यह आश्चर्यजनक दृश्य था। सरकार के नेतृत्वकर्ता यह सोचते-सोचते इस ख्याल में उलझ गए कि अब तक पुलिस की लाठी से पीटते अपराधियों को ही थिरकते देखा था, मगर यहां तो भजनों की गीत माला पर वर्दी पहने पुलिस थिरक रही है। पहले पहल नेतृत्व कर्ताओं ने सोचा कि चलो धर्म का प्रचार हो रहा है, मगर यह सवाल उठा कि पुलिस का असली धर्म तो कानून का प्रचार करना है। अगर मान भी लिया जाए कि पुलिस धार्मिक रास्ते से अपराध पर नियंत्रण का तरीका ढूंढ रही है, तो क्या पुलिस ईद में सेवईयां, गुरु पर्व में खिचड़ी और क्रिसमस में केक भी बांटेगी? यह सोचते ही इस मसले पर उधेड़बुन के हालात बन गए। एक सीनियर अफसर ने इस पर तंज कसा और कहा कि लगता है कि अब कानून का असली हथियार डंडा नहीं, बल्कि ढोलक होगा, और इसकी थाप पर कानून व्यवस्था की गारंटी देने वाली संस्था भक्ति के मंच पर थिरकती दिखेगी। बहरहाल, जिस वक्त राज्य की कानून व्यवसाय के बेपटरी होने का आरोप सरकार पर लग रहा हो, ठीक उस वक्त इस जिले की पुलिस ने अपराध अनुसंधान पर चल रहे शोध से इस नए तरीके का अविष्कार किया है। फिलहाल खबर तो यही है कि सरकार ने इस आयोजन पर अपनी नजरें टेढ़ी कर दी है। 

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न्यूडिटी

सोशल मीडिया पर राजधानी में न्यूड पार्टी के आयोजन का पोस्टर वायरल हुआ तो खूब हंगामा मच गया। पुलिस हरकत में आई। आयोजकों की खोजबीन शुरू हुई। शहर के वीआईपी रोड पर स्थित हायपर क्लब के दो कर्ताधर्ताओं को पुलिस ने हिरासत में ले लिया, तब मालूम चला कि जिस क्लब में न्यूड पार्टी की योजना बन रही थी, वह क्लब स्वास्थ्य महकमे के एक निलंबित बाबू के घोटाले के पैसे से खड़ा हुआ है। जेम्स बेक हायपर क्लब का पार्टनर है, जिसे पुलिस ने न्यूड पार्टी के मामले में पकड़ा है। जेम्स बेक स्वास्थ्य विभाग में हुए एक घोटाले का आरोपी है। उस पर एफआईआर दर्ज है। सरकारी बाबूओं की हैसियत दो जून की रोटी कमाने भर की होती है, मगर छत्तीसगढ़ में जेम्स बेक जैसे बाबू इस धारणा को धता बता रहे हैं। कुछ वक्त पहले यह खबर आई थी कि स्वास्थ्य महकमे के ही एक सरकारी बाबू ने गोवा में लग्जरी होटल बनाया है। यह सब देखकर लगता है कि न्यूड पार्टी वो ही नहीं है, जिसकी चर्चा पोस्टर पर है, असली न्यूडिटी तो सिस्टम के भीतर है, जहां सरकारी ओहदेदार हर दिन सिस्टम को नंगा कर रहे हैं। सरकारी सिस्टम में बैठे नौकर ही दरअसल असली मालिक है। सरकार के भीतर जेम्स बेक जैसे लोगों की एक बड़ी भीड़ मिलेगी, जो सरकारी नौकरी की आड़ में व्यापारी बन कर सरकार को लूट रही है। जिस राज्य में सरकारी बाबूओं के भ्रष्टाचार से क्लब और होटल बनने लग जाएं, तो समझ लीजिए कि उस राज्य की नींव हिल चुकी है। सरकार से इसकी मरम्मत की दरकार है।

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सरकारी नौकर

समय बे समय सरकारी नौकरों की कहानियां बाहर आती जाती हैं। सरकारी कुर्सी पर बैठते-बैठते कई सरकारी नौकर कारोबारी बन गए। किसी ने होटलों और बार में निवेश कर रखा है, तो किसी ने ट्रैवल कंपनी बनाकर बाकायदा सरकारी विभागों में ढेरों गाड़ियां लगा रखी है। तनख़्वाह से ज्यादा मोटी आमदनी उनके जमाए कारोबार से हो रही है। सूबे में जब धान खरीदी का आंकड़ा बढ़ रहा था, तब कई सरकारी नौकरों में राइस मिल खोलने की होड़ मच गई थी। राइस मिल से मोटी कमाई आती दिखाई दे रही थी। कुछ ने रिश्तेदारों के नाम पर राइस मिल खोला, कुछ साइलेंट पार्टनर बन गए, तो कुछ ऐसे भी रहे, जिन्होंने छद्म नाम से कारोबार खड़ा कर लिया। अब रायपुर, राजनांदगांव, जांजगीर-चाम्पा जैसे जिलों में अफसरों के कई राइस मिल उनके बैंक अकाउंट का डिजिट बढ़ा रहे हैं। वैसे सरकारी नौकरों का कारोबारी साम्राज्य बहुत व्यापक है। सरकारी तनख्वाह के बीज से होटल, बार, रियल स्टेट, पेट्रोल पंप, राइस मिल, सैलून, फार्म हाउस, स्टील कंपनियों समेत न जाने क्या-क्या उगाई गई है। सरकारी नौकर अब फसल काट रहे हैं। 

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अर्जियां

हाल ही में मंत्री बने एक नेता के दरबार में पीए बनने के लिए खूब अर्जियां आई। मंत्री चौंक उठे। उन्होंने कुछ लोगों से पूछ लिया कि भला पीए बनने के लिए लोगों में इतनी व्याकुलता क्यों है? मंत्री इस बात से हैरान थे कि पीए बनने के लिए लोग आला नेताओं की पैरवी लेकर उन तक पहुंच रहे थे। एक शख्स आला नेताओं की पैरवी के साथ-साथ विभाग के उन सप्लायरों की भेंट तक ले आया, जिनसे मंत्री महोदय का भविष्य का मकसद पूरा हो सकता था। सप्लायरों ने मिलकर एक मोटी रकम इकठ्ठी की थी। मुखबिर बताते हैं कि इधर फिलहाल फाइल रुक गई है और उधर पीए बनने की टकटकी लगाए बैठे लोगों की सांस।

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चीफ सेक्रेटरी कौन? 

राज्य के नए चीफ सेक्रेटरी के नाम पर अब पुर्णविराम लगने का वक्त करीब आ गया है। मौजूदा चीफ सेक्रेटरी अमिताभ जैन को दिया गया तीन महीने का सर्विस एक्सटेंशन खत्म होने जा रहा है। इसका काउंट डाउन शुरू हो गया है। एक्सटेंशन बढ़ाए जाने की गुंजाइश अब नहीं है। केंद्र ने हाल ही में मध्यप्रदेश के चीफ सेक्रेटरी को एक साल का एक्सटेंशन दिया है। मगर अमिताभ जैन के साथ ऐसा नहीं हुआ था। रिटायरमेंट सेरेमनी के बीच ही उन्हें आनन-फानन में तीन महीने का एक्सटेंशन दिया गया था। नए चीफ सेक्रेटरी की दौड़ में वहीं पुराने नाम फिर से तैरने लगे गए हैं। मगर इस बीच का डेवलपमेंट ये है कि एशियन डेवलपमेंट बैंक मनीला में पोस्टेड विकासशील को वापस बुलाए जाने की चिट्ठी का बड़ा जिक्र हो रहा है। अगर विकासशील को बुलाया जा रहा है, तो यह मान लिया जाना चाहिए कि चीफ सेक्रेटरी की रेस में ट्रैक पर दौड़ रहे नामों में यह नाम सबसे आगे आ सकता है। अमित अग्रवाल भी एक चेहरा है, लेकिन उन्हें लेकर ब्यूरोक्रेसी का यह मत है कि वह छत्तीसगढ़ नहीं आना चाहते।  इधर सुब्रत साहू, मनोज पिंगुआ, ऋचा शर्मा के नाम पर अटकलें पहले भी तेज रही हैं। अब भी है। मगर विकासशील एक नया नाम इस सूची में ज़रूर जुड़ गया है। फ़िलहाल यह तय नहीं है कि राज्य का अगला एडमिनिस्ट्रेटिव हेड कौन होगा? लेकिन यह तय है कि इस महीने की आखिरी तारीख पर नया चीफ सेक्रेटरी राज्य को मिलने जा रहा है। 

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