Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor

एसपी साहब मुड़ गए…

मोड़ आए तो मुड़ना पड़ता है, उसे रास्ता बदलना नहीं कहते. एसपी साहब के पास गूढ़ रहस्यों को समझने का हुनर है. शायद तभी उन्होंने मोड़ आते ही उसे पकड़ना जरुरी समझा और नए रास्ते पर चल पड़े. दरअसल, पिछले हफ्ते ‘पॉवर सेंटर’ के इसी साप्ताहिक स्तंभ में हमने लिखा था कि गैर खनन जिला होने के बावजूद एसपी साहब कोयले की कालिख से चमक रहे हैं. मालूम पड़ा था कि जिले से गुजरने वाली एक बाइपास सड़क पर बने अस्थायी चेकपोस्ट से कोल परिवहन करने वाली गाड़ियों की पैनी निगरानी करवाई जा रही है. उन्होंने एक भरोसेमंद टीआई को यह काम दे रखा था. दस्तावेजों में थोड़ी भी गड़बड़ी मिलती, सीधे संबंधित कंपनी के मालिकान को फोन जाता और बड़ी डील हो जाती. खैर ‘पावर सेंटर’ में एसपी साहब की कलई जैसे खुली, उन्होंने झट से नए रास्ते की खोज शुरू कर दी. उन्हें एक नया मोड़ आया और वह मुड़ गए. पता चला है कि अब चेकपोस्ट से निगरानी के जरिए होने वाली वसूली का सिस्टम बदल दिया है. चेकपोस्ट था, तब मेहनत भी ज्यादा करनी पड़ रही थी. नए सिस्टम में सीधे कंपनियों से डील की जा रही है. कहते हैं कि अवैध ढंग से कोल परिवहन पर डेढ़ सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर तय की गई है. रोजाना सैकड़ों ट्रक इस बाइपास सड़क से गुजरती है. लाखों टन कोयले का अवैध परिवहन किया जाता है. अब हिसाब आप खुद लगा लीजिए…

माया मरी, न मन मरा…

‘माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर, आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर’…

सूबे के एक ब्यूरोक्रेट पर कबीर का यह दोहा खूब फबता दिखता है. चुनौतियों के पहाड़ों को लांघकर थोड़ी राहत पाई थी. अब एक नई चर्चा में नाम आया है. ये एक अलग किस्म की चर्चा है. सुनते हैं कि रुपया-पैसा ठिकाने लगाने का ऐसा उपक्रम चुना है, जहां अमूमन किसी का ध्यान नहीं जाता. एक छोटी सी ट्रैवल कंपनी के पास महज बीस गाड़ियां ही थी. मगर देखते ही देखते बीते एक साल में एक सौ बीस हो गई. ट्रैवल कंपनी का यूं तेजी से बढ़ना कईयों को चुभता था. कुछ साहसिक और खोजी लोगों ने तफ्तीश की, तब जाकर मालूम पड़ा कि ब्यूरोक्रेट के भाई गाड़ियां खरीद-खरीद कर ट्रैवल एजेंसी में पार्क कर रहे हैं. तफ्तीश में जुटे लोगों ने बताया कि ट्रैवल एजेंसी में गाड़ियों की शक्ल में की जा रही ये पार्किंग दरअसल उन रुपयों-पैसों की पार्किंग थी, जो काफी मेहनत कर कमाई गई थी. सेंट्रल एजेंसी ब्यूरोक्रेट्स की छाती में बैठकर मूंग दल रही है, तो एक रास्ता कुछ इस तरह ढूंढा गया. सुनाई पड़ा है कि ट्रैवल एजेंसी की गाड़ियां कई सरकारी दफ्तरों में किराए पर चढ़ी है. 

…और निकल गई फाइल!

सुनते हैं कि लेमरू से जुड़ी एक स्टडी को लेकर वन विभाग में दो अधिकारियों के बीच टशन कुछ यूं बढ़ गया कि एक ने अपने मातहत अधिकारी के पुराने किसी मामले पर चल रही जांच की फाइल निकलवा ली. मातहत के हिस्से कई किस्म की शिकायत विभाग में दर्ज है. कुछ मामलों की जांच फाइलों में रेंग रही है. टशन बढ़ा, तो उन्हीं रेंगती फाइलों की गति बढ़ाने की कवायद शुरू की गई. खैर, इस मामले में एक रोचक तथ्य यह भी बताया जा रहा है कि जिस सीसीएफ को स्टडी का काम सेंशन करना था, उनके मना करने के बाद दूसरे सीसीएफ से इसे सेंशन करा दिया गया. यह वहीं बात हो गई कि करना था बिलासपुर को, कर दिया सरगुजा ने…

जख्म बाघिन के हैं, दर्द साहब को कैसे होता…

पिछले दिनों सूरजपुर के जंगल में बाघिन के हमले से दो ग्रामीणों की मौत हो गई. ग्रामीण लकड़ी लेने जंगल गए थे, जब बाघिन ने हमला किया. बाघिन पर भी कुल्हाड़ी के दर्जनों वार हुए थे. वन अमले ने बाघिन का रेस्क्यू कर रायपुर स्थित जंगल सफारी भेज दिया. इलाज शुरू हुआ. बाघिन की हालत अब भी ठीक नहीं, बावजूद इसके एक आला अफसर चाहते हैं कि उसे जल्द से जल्द जंगल छोड़ दिया जाए. अफसर ने मातहतों को कह दिया कि ‘बाघिन को जंगल छोड़ने मैं खुद जाऊंगा’. बताते हैं कि निचले अधिकारियों ने बाघिन को जंगल छोड़े जाने की प्रक्रिया से जुड़ा आदेश जब मांगा गया, तब वन अफसरान ने कहा, मैं खुद जाऊंगा, फिर आदेश की क्या जरुरत? जंगलों में छोड़े जाने की उनकी एक तस्वीर के मुकाबले भला बाघिन के शरीर पर पड़े गहरे जख्म कहां टिकते. जख्म बाघिन के है और उसके दर्द को महसूस करने की उम्मीद अफसर से करना बेमानी है. खैर, सुना यह भी गया है कि इलाज करने वाली टीम ने जब कहा कि बाघिन उठ नहीं पा रही, शायद टाइल्स की वजह से ऐसा हो रहा हो, आला अफसर ने कह दिया कि टाइल्स उखाड़ दिया जाए. कहा जा रहा है कि वन अफसर कहीं बाहर जाने वाले हैं, सो वह चाहते हैं कि उनकी रवानगी के पहले बाघिन को जंगल छोड़ दिया जाए. वन्यप्राणी विशेषज्ञ इस बात से अचंभित है कि तीन साल की बाघिन ने ग्रामीणों के एक समूह पर हमला कैसे बोल दिया? यह अनकामन है. बाघिन की जांच में यह बात साफ हो सकेगी. मगर हड़बड़ी उसे जंगल वापस छोड़ने की है. 

आईजी की घुड़की

अपराध के बढ़ते आंकड़ों के बीच रायपुर आईजी अजय यादव ने पिछले दिनों एसपी से लेकर थानेदार तक की बैठक ली. बेलगाम हुई पुलिसिंग को अपने शब्दों के हंटर से खूब मारा. कई थानेदार तब अपने बगले झांकने लगे, जब आईजी ने यह कहा कि मारपीट, दहेज प्रताड़ना, छेड़खानी जैसे मामलों पर एफआईआर लिखने के लिए भी पैसे मांगे जा रहे. आईजी सबका कच्चा चिठ्ठा लेकर बैठे थे. मंदिर हसौद से लेकर कबीर नगर तक सबका हिसाब नोट कर रखा था. चेहरे पर तल्खी देख कईयों ने चुप रहना ही बेहतर समझा. सुनाई पड़ा है कि आईजी की घुड़की ऊपर से नीचे तक के लिए थी. चुनाव करीब है, इधर रायपुर पुलिस का परफारमेंस थोड़ा भी बिगड़ा, उधर आईजी का मिजाज बदलते देर नहीं लगेगी. 

छत्तीसगढ़ आएंगे मोदी ?

बीजेपी विधायकों और सांसदों की दिल्ली टिकट कट गई थी कि पीएमओ से फोन आ गया कि प्रधानमंत्री दिए गए वक्त पर मिल नहीं पाएंगे. बीजेपी के कई विधायकों ने टिकट कैंसल करा ली. कुछ दिल्ली घूम आए. सूबे के अच्छे-अच्छे तीस मार खां बीजेपी नेताओं की नजरें उस वक्त ठिठक कर रह गई, जब रायपुर सांसद सुनील सोनी अकेले ही प्रधानमंत्री से मिल आए. प्रधानमंत्री मोदी के साथ जिस अंदाज में सुनील सोनी की फोटो जारी हुई, बीजेपी नेता उसका विश्लेषण करते रहे. बहरहाल अब कहा जा रहा है कि पीएम मोदी राज्य के बीजेपी विधायकों और सांसदों से छत्तीसगढ़ आकर ही मिलेंगे. संभवतः मई के पहले हफ्ते पीएम मोदी का दौरा हो सकता है.