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कलेक्टरों का ‘बीएमआई’
राज्य के करीब आधा दर्जन कलेक्टरों का बॉडी मास इंडेक्स यानी बीएमआई तय मानक से ज्यादा है. सरकार ने जब कलेक्टरों का परफार्मेंस आडिट किया, तब इस बात का खुलासा हुआ. बीएमआई जांच में यह मालूम चलता है कि बॉडी में फैट मास ज्यादा है या मसल मास. करीब आधा दर्जन कलेक्टरों का फैट मास बढ़ा पाया गया है. इनमें से कुछ कलेक्टर हैं, जो आरामपरस्त हैं और कुछ कलेक्टरों की भूख ज्यादा है. कहीं न कहीं इसका फर्क तो दिखेगा ही. सरकार चाहती है कि जिलों में ऐसे कलेक्टर बिठाए जाएं, जिनका मसल मास ज्यादा हो. जो ज्यादा चुस्त-दुरुस्त हो. रिजल्ट ओरिएंटेड हो और जिसका एडमिनिस्ट्रेटिव एप्रोच अच्छा हो. अब खाए पिये और अघाए कलेक्टरों से चुस्त-दुरुस्त रहने और रिजल्ट देने की उम्मीद करना तो बेमानी है ना. उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि करीब चार से पांच जिलों के कलेक्टरों को सरकार फिलहाल आराम देने के मूड में है. इनमे से दो कलेक्टर ऐसे हैं, जो राज्य के सीमावर्ती जिलों की कलेक्टरी कर रहे हैं. नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव खत्म होते ही कलेक्टरों को आराम देने के मसौदे पर सरकार दस्तखत कर देगी. बहरहाल सरकार का इरादा बताता है कि राज्य में अब सिर्फ सांय-सांय काम करने वाले कलेक्टर ही चलेंगे.
पॉवर सेंटर : कलेक्टरों का ‘बीएमआई’… ”एसपी शिप”… शाही सवारी… भुलक्कड़पन…उतरता नशा…- आशीष तिवारी
”एसपी शिप”
तबादले की जद में सिर्फ कलेक्टर ही नहीं, एसपी भी होंगे. चुनाव आचार संहिता की घंटी बजने के पहले भी एसपी की लिस्ट आने की चर्चा जोर शोर से उठती रही थी. सूबे में अब नए डीजीपी आ गए हैं. सरकार सुशासन नाम के जिस ट्रैक पर दौड़ रही है, उससे लगता है कि जिलों में एसपी कौन होगा? और कौन नहीं? इसकी प्रक्रिया अब पीएचक्यू से होती दिखेगी. लाॅ एंड आर्डर दुरुस्त करना है, तो डीजीपी को फ्री हैंड देना ही होगा. वैसे भी गिव एंड टेक पाॅलिसी पर एसपी की पोस्टिंग के लिए राज्य कुख्यात हो गया था. इस पॉलिसी के रास्ते ‘एसपी शिप’ पाने वाले अफसरों की प्राथमिकता में लाॅ एंड आर्डर भला कहां होता? अवैध शराब, जुआ-सट्टा, जमीन दलाली न जाने किस-किस अपराध में एसपी खुद भागीदार बनकर काम करने लगे थे. एक ‘एसपी शीप’ नाम की संक्रामक बीमारी भी होती हैं, जो भेड़ों में पाई जाती है. यह बीमारी तेजी से फैलती है. इस संक्रामक बीमारी से भेड़ों में दूध उत्पादन में कमी, खाल और ऊन की गुणवत्ता में गिरावट और अन्य उत्पादन घाटे जैसी समस्याएं होती है. हालांकि इंसान और जानवरों में कोई मेल नहीं है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में कुछ समानताएं आ ही जाती हैं.
जैसे जुगाड़ के रास्ते ‘एसपी शिप’ पाने वालों के लक्षण हैं : लाॅ एंड आर्डर बिगड़ जाना, काम की गुणवत्ता में गिरावट आना और गिरावट आने से प्रोडक्टिविटी का घट जाना. एक जिले के एसपी से होते हुए दूसरे जिले के एसपी तक यह संक्रामक बीमारी तेजी से फैलती गई. मालूम चला है कि अब सरकार ने इस विशेष संक्रामक बीमारी से बचाव के ‘टीके’ बना लिए गए हैं. चुनाव बाद इस ‘टीके’ का उपयोग किया जाएगा. मुख्यमंत्री ने पिछली दफे जब कानून व्यवस्था की समीक्षा की थी, तब दो टूक कह दिया था, पुलिस ऐसी हो, जिसका अपराधियों में भय हो. पुलिस के हाथ लोहे की तरह सख्त और दिल मोम की तरह नर्म हो. जाहिर है अब अपनी साख को मजबूत करने में जुटी सरकार आड़े-तिरछे एसपी को बर्दाश्त नहीं करेगी. बर्दाश्त करने का मतलब सरकार की साख की मिट्टी पलीद करना होगा. मौजूदा सरकार में भी कुछ एसपी हैं, जो जुगाड़ के रास्ते कुर्सी तक पहुंचे हैं. सरकार ने उनकी कुंडली बना ली है. सरकार ने ‘एसपी शिप’ करने वाले ऐसे अफसरों को जल्द ही ‘टीका’ लगाने की तैयारी कर रखी है.
पॉवर सेंटर : मोक्ष… राज काज… शराब वैध है!.. एक्सटेंशन नहीं !.. झुंड… – आशीष तिवारी
शाही सवारी
सरकारी गाड़ियों का बेजा इस्तेमाल कोई अफसरों से सीखे. सब्जी-भाजी, दूध-अंडे, ब्यूटी पार्लर, बुटीक, बाई, ट्यूशन, बैडमिंटन क्लास, क्रिकेट एकेडमी, किटी पार्टी न जाने कहां-कहां सरकारी ईंधन फिजूल में फूंक दिया जाता है. खैर, अब अफसर जब दिन भर सरकार की जमीन जोत रहे हो, तब इतना फायदा उठा भी लें, तो इसे इग्नोर किया जा सकता है. मगर कोई अफसर सरकारी गाड़ी की खरीदी में नियम कानून को धता बता दें, तब सरकार क्या करे? पिछले दिनों जब एक विभागीय पुल की गाड़ियों का बहीखाता निकाला गया, तब गाड़ियों की कीमत देखकर अफसरों की आंखें फटी की फटी रह गई. राज्य के प्रशासनिक मुखिया से लेकर गाड़ी खरीदी की अनुमति देने वाले वित्त महकमे के सबसे बड़े अधिकारी जब सुजुकी सियाज कार की सवारी कर रहे हो, तब वहां हाउसिंग बोर्ड का एक अफसर 29 लाख रुपए की इनोवा क्रिस्टा में घूमे तो इसे ज्यादती न कहे तो क्या कहे? इस पर आला अफसरों का दिमाग फिरना लाजमी है. सरकारी गाड़ियों की खरीदी का अपना नियम है. कौन सा अधिकारी, किस दर की गाड़ी के लिए पात्र है. इसका नियम तय है. मगर नियमों की अनदेखी कर लग्जरी और मनपसंद स्पेसिफिकेशन वाली गाड़ियों की बेधड़क खरीदी की गई. अब फाइलें पलटी जा रही हैं. उम्मीद तो यही की जानी चाहिए कि वित्त महकमा इन सब पर सख्ती से अपनी कैंची चलाए. आर्थिक चुनौतियों से जूझ रही सरकार में ऐसी ‘शाही सवारी’ भला कौन टाॅलरेट कर सकता है?
पॉवर सेंटर : दूर की कौड़ी… अनुष्ठान… डीजीपी… बुलेट स्पीड… मंत्रिमंडल… – आशीष तिवारी
भुलक्कड़पन
नेताओं का दिमाग चुनाव के समय ऐसा हो जाता है जैसे कोई पुराना ट्रांजिस्टर—बस एक ही चैनल पर अटका रहता है. सोते-जागते, खाते-पीते, यहां तक कि नहाते-धोते भी, बस एक ही बात चलती रहती है, ‘चुनाव’ और इसी चुनावी भटकाव का ताज़ा शिकार बन गए रायपुर के पूर्व महापौर प्रमोद दुबे. उनकी पत्नी दीप्ति दुबे कांग्रेस की महापौर प्रत्याशी हैं. प्रमोद दुबे एक रोज सुबह-सुबह उठे. ब्रश उठाया, लेकिन उस पर टूथपेस्ट की बजाय शेविंग क्रीम लगा बैठे. ब्रश को मुंह में डालते ही उन्हें स्वाद कुछ अजीब लगा. चुनावी माहौल में उन्हें सब कुछ अजीब ही लग रहा था, शायद यह सोचकर उन्होंने इसे नजर अंदाज कर दिया. उन्होंने यह भी सोचा होगा कि देश में इतनी चीजें बदल रही हैं. हो सकता है टूथपेस्ट ने भी अपना स्वाद बदल लिया हो. खैर, जब पूरा राजनीतिक परिदृश्य कसैला लग रहा हो, तब टूथब्रश पर शेविंग क्रीम लगने का स्वाद कसैला लगे तब भी क्या फर्क पड़ता है. चुनाव में कसैले स्वाद की आदत नेताओं को होती ही है. खैर, प्रमोद दुबे पूरे दिन जहां गए, वहां बोलते सुने गए- मुंह में आज कुछ अजीब सा लग रहा है ! कुछ लोगों ने यह कहकर चुटकी भी ली कि शायद कोई चुनावी गठबंधन का स्वाद चख लिया होगा. मगर असलियत कुछ और ही थी, सियासी बुखार में दुबे जी को यह वाकई याद नहीं था कि टूथब्रश में टूथपेस्ट है या शेविंग क्रीम. बहरहाल नेताओं के लिए इस तरह की घटना कोई नई नहीं है. चुनावी मौसम आते ही नेता तरह-तरह की घटनाओं के शिकार होते हैं.
उतरना नशा
राजनीति और शराब में एक अजब समानता है, जब तक नशा चढ़ा रहता है, आदमी खुद को टॉप ब्रांड समझता है, लेकिन जैसे ही हैंगओवर उतरता है, हकीकत सामने आ जाती है. नशे में किया धरा सब बिखरा-बिखरा सा दिखता है. सत्ता के नशे में झूम रहे नेता जी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. जब तक सरकार में थे, चेहरे की चमक इतनी थी कि देखने वाले की आंखें चौंधिया जाती थी. जब सत्ता से बेदखल हुए, तो चेहरे की रौनक उड़ गई. गली, नाली, सड़क की सफाई करते-करते सियासत के सफर में ऊंची छलांग लगाने वाले नेता के मुंह का स्वाद शराब घोटाला मामले की जांच कर रही राज्य की एजेंसी ने बिगाड़ दिया है. यह स्वाद तब बिगड़ा है, जब निकाय चुनाव में नेताजी अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रहे हैं. शराब घोटाले के किंगपिन समेत पूर्व मंत्री जेल में है. अब कई जेल जाने की तैयारी में दिख रहे हैं. ईओडब्ल्यू-एसीबी ने जांच के लिए यूं ही नहीं बुलाया होगा.