Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

झाड़ी में नहीं सरकारी फाइल में फंसा ‘भालू’

अब ये माजरा क्या है. जंगलों में बेधड़क घूमने-फिरने वाले भालू का भला सरकारी फाइलों से क्या वास्ता ! आखिर कैसे एक भालू सरकारी फाइलों के चक्कर में फंस गया? दरअसल हुआ कुछ यूं कि कांकेर जिले के कोकानपुर इलाके में एक भालू झाड़ियों में जा फंसा. झाड़ियों में भालू कुछ ऐसा उलझा कि उसे निकलना मुश्किल था. चूंकि भालू शेड्यूल वन की सूची में शुमार है, सो उसके रेस्क्यू की अनुमति के लिए चिठ्ठी पत्री चलाई गई. नियम कहता है कि शेड्यूल वन के जानवरों से जुड़े मसलों पर ऊपर से अनुमति लेने की बाध्यता है. रेस्क्यू के लिए भालू को ट्रेंकुलाइज भी तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक उसकी अनुमति चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन से ना मिल जाए. बताते हैं कि भालू के रेस्क्यू के लिए 8 मार्च को चिट्ठी प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) को भेजी गई, मगर अनुमति की फाइल टेबल पर धूल धूसरित पड़ी रही. मुहूर्त निकला तब जाकर 22 मार्च को रेस्क्यू की अनुमति देते हुए फाइल आगे बढ़ा दी गई. 31 मार्च को सीसीएफ ने अनुमति मिलने की सूचना एसडीओ को दी और एसडीओ ने चिट्ठी लिखकर यह जानकारी 8 अप्रैल को रेंजर से साझा की. भला हो उस रेंजर का जिसने लहूलुहान भालू को पहले ही बचा लिया. अनुमति की बांट जोहता तो पता नहीं क्या होता. अरण्य भवन में पूरे वाकये की जोरदार चर्चा है. महकमे के लोग इस मसले पर ये कहते हुए टिप्पणी दर्ज करा रहे हैं कि भालू झाड़ी में नहीं सरकारी फाइलों में जा उलझा था….

फैसला ऑन द स्पॉट

भेंट मुलाकात के अपनी शुरुआती दौरे में ही मुख्यमंत्री ने कड़े तेवर दिखा दिए हैं. गैर जिम्मेदारों पर लगाम कसने का काम तेजी से चल रहा है. शिकायत मिलते ही कार्रवाई झट से हो रही है. निलंबन आदेश भी द्रुतगति सेे जारी हो रहा है. मानो स्टेनो साथ चल रहा हो. उधर मुख्यमंत्री ने कहा ‘सस्पेंड करो’, इधर बने बुनाए फाॅर्मेट में नाम बदलकर सस्पेंशन आर्डर चंद मिनटों में जारी. कका का ये अंदाज देख लोगों ने अनिल कपूर अभिनीत फिल्म नायक को खूब याद किया. कुछ ने तो सोशल मीडिया पर बकायदा मीम भी बना डाला, जो खूब वायरल हो रहा है.  वैसे कका (मुख्यमंत्री) का ये अंदाज नया नहीं है. फैसला ऑन द स्पॉट करने का उनका ये हुनर पुराना है. शिकायत मिलते ही बगैर गुणा-भाग सीधे कार्रवाई… ये उनकी खूबी भी है कि फैसले लेने में लेटलतीफी नहीं करते. हालांकि कई बार ऐसे फैसले लेने के अपने खतरे हैं, मगर उन्हें इससे कोई गुरेज नहीं. अब तक के उनके दौरे में सीएमओ, पटवारी, ईई, डीएफओ, रेंजर जद में आ गए हैं. ये महज शुरुआत ही है. ना जाने अभी और कितनों की बलि चढ़ेगी. वैसे चढ़नी भी चाहिए. दौरे के पहले ही एक सरकारी फरमान जारी किया गया था. इस नसीहत के साथ कि लंबित शिकायतों का निराकरण कर लें. मगर मुख्यमंत्री के दौरे की गंभीरता भी ना समझी. खैर अब खबर आ रही है कि मुख्यमंत्री का दौरा जहां-जहां प्रस्तावित है, वहां के कलेक्टर, एसपी, जिला पंचायत सीईओ, डीएफओ से लेकर नीचे पटवारी तक सब हरकत में आ गए हैं. ढूंढ ढूंढकर मामले निपटाए जा रहे हैं. 

….जब फट पड़े मुख्यमंत्री

कलेक्टर समेत तमाम अफसरों पर मुख्यमंत्री उस वक्त फट पड़े, जब अपने दौरे के दौरान एक जिले के कामकाज की समीक्षा कर रहे थे. उन्होंने दो टूक कहा, ‘राशन कार्ड के लिए भी मुख्यमंत्री को यदि निर्देश देना पड़े, तो इससे खराब बात और क्या हो सकती है’. दरअसल यही जमीनी हकीकत भी है. फाइलों की शक्ल में अफसरों की आंकड़ेबाजी जब मुख्यमंत्री के टेबल पर जाती है, तो कागजों पर सब अच्छा-अच्छा परोसा जाता है. फिर कोई संदेह नहीं कि कुपोषण के बढ़ते आंकड़ों को सुपोषण लिख दिया जाए. मगर जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर होती है. जमीन पर उतरकर ही समझा जा सकता है. अबकी बार मुख्यमंत्री की समीक्षा जमीन पर जाकर है, तो पर्दा हट रहा है. तभी तो मुख्यमंत्री अफसरों को नसीहत दे रहे हैं कि अपनी जिम्मेदारियों का उन्हें भान होना चाहिए. वैसे अच्छा होगा कि ऐसी जमीनी समीक्षा होती रहे. वर्ना जब माली ही बाग उजाड़ने लगे, तो हरियाली की उम्मीद बेमानी है. 

झारखंड में छापे का असर छत्तीसगढ़ तक 

झारखंड की महिला आईएएस पूजा सिंघल के घर ईडी के छापे में 19 करोड़ रुपए मिले, तो लोगों की आंखें फटी रह गई. नोटों को गिनने तीन मशीनें मंगाई गई थी. गिनने में कई घंटे लग गए. बहरहाल छापा झारखंड में पड़ा, लेकिन असर छत्तीसगढ़ तक हुआ. ब्यूरोक्रेसी स्तब्ध है. कानाफूसी में ये कहते सुना गया कि ईडी अगर राज्य में दस्तक दे तो यहां भी पूजा सिंघल सरीखे लोग मिल ही जाएंगे. शायद एक-दो पायदान आगे ही मिले. राज्य के कई जिले आर्थिक मामलों के लिहाज से बेहद संपन्न हैं. डीएमएफ, सीएसआर समेत कई दूसरे मदों से हजारों करोड़ रुपए आते हैं. ऐसे में 19 करोड़ रुपए की रकम मामूली सी लगती है. वैसे महिला अधिकारी का जिक्र हो ही रहा है, तो यहां भी की प्रतिभाशाली अधिकारी हैं. काबिलियत में पूजा सिंघल से कोसो आगे. शिकायतों का अंबार भी है और सुनने में आया है कि ईडी की नजर भी. मगर झारखंड की तस्वीर के बाद शायद संभल जाए. भलाई भी इसमें ही है. ब्यूरोक्रेसी में एक महिला आईएएस को लेकर तो यहां तक चर्चा होती है वह राजनीति में आने की तैयारी में मशगूल हैं. वक्त तय नहीं किया है, मगर देर सबेर एंट्री होगी, ये तय है. 

हेलीपैड में गोबर लेप

अब मुख्यमंत्री का हेलीकॉप्टर जहां-जहां उतरेगा, वहां-वहां हेलीपैड को गोबर से लिपा जाएगा. हेलीपैड पर उतरते ही गोबर की सौंधी खुशबू गांव का एहसास कराएगी. वैसे भी ग्रामीण इलाकों में लोग अपने घरों के बाहर गोबर का लेप करते हैं. एक तो इसे शुभ माना जाता है, दूसरा इसके एंटी बैक्टीरियल गुण की वजह से इसका लेप किया जाता है. लेकिन यहां मसला अलग है. दरअसल हेलीकॉप्टर लैंडिंग के वक्त उठने वाले धूल के गुबार को कम करने के लिए आला अधिकारियों ने हेलीपैड पर गोबर लीपने के निर्देश दिए हैं. मुख्यमंत्री का दौरा इससे पहले भी होता आया है, लेकिन यह अपनी तरह का अनूठा मामला है. गांव में हेलीपैड पर पानी के छिड़काव के लिए संसाधन जुटाने होते, सो गोबर का लेप एक बेहतर विकल्प लगा होगा. 

उम्मीदवार ढूंढ रही कांग्रेस !

पता चला है कि कांग्रेस के विधायकों की मौजूदा स्थिति को लेकर अब तक तीन सर्वे कराए जा चुके हैं. इन सर्वे रिपोर्ट्स में एक दर्जन से ज्यादा विधायकों की स्थिति चिंताजनक है. रिपोर्ट में ये तक कहा गया है कि टिकट देने की स्थिति में ये चुनाव हार जाएंगे. खबर है कि विधायकों को भी उनकी हैसियत बता दी गई है और अब नए सिरे से उम्मीदवारों की खोज की जा रही है. मालूम चला है कि उम्मीदवारों को खोजने का काम एक ऐसे व्यक्ति को दिया गया है, जिसने दिल्ली से लेकर पंजाब तक चुनावों में कांग्रेस के लिए काम किया है. सर्वे रिपोर्ट में भी उस शख्स की भूमिका रही और अब उम्मीदवारों की खोजबीन का जिम्मा भी सौंपा गया है. इस बात की हकीकत पता नहीं, लेकिन बताते हैं कि प्रदेश प्रभारी के कहने पर यह खोजबीन शुरू की गई है. चुनाव में महज पंद्रह महीने ही बाकी है, सूबे की सत्ता में अपनी पकड़ कायम रखने कांग्रेस की जद्दोजहद में तेजी लाजिमी है. 

इधर बीजेपी नेताओं को नसीहत

सत्ता में रहते कांग्रेस चुनावी तैयारियों को लेकर जितनी एग्रेसिव दिखाई पड़ रही है, उतनी ही शांति बीजेपी के घर में नजर आती है. हालांकि सुनाई पड़ा है कि अपने हालिया दौरे में प्रदेश प्रभारियों ने नेताओं को सख्त लहजे में सरकार के खिलाफ आंदोलन तेज करने की नसीहत दी है. दो टूक कहा है कि चुनाव करीब है, लेकिन लगता नहीं कि नेताओं की कोई दिलचस्पी है. सुना जा रहा है कि कहा ये तक गया है कि अब घर बैठने से काम नहीं चलने वाला. बताते हैं कि आलाकमान तक ये शिकायत गई है कि राज्य संगठन कई धड़ों में बंट गया है. हर एक धड़ा दूसरे के विरोध में उठ खड़ा होता है. इससे संगठन का काम प्रभावित हो रहा है. नसीहत तो यही कहती है कि, नेता अब खर्राटे भरी नींद से बाहर आ जाए.