Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

जुगाड़ की ‘गाय’

सूबे की सरकार ने गाय की अहमियत बढ़ाई है. बकायदा योजना भी शुरू हुई, ‘गोधन न्याय योजना’. अब तो राज्य में गोबर बेचकर लोग आर्थिक उन्नति कर रहे हैं. गाय अच्छा गोबर दे, इसलिए गाय के खान-पान पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. अच्छा खिलाएंगे, तभी तो अच्छी क्वालिटी का गोबर निकलेगा और फिर अच्छा दाम मिलेगा. वैसे कुल मिलाकर अच्छी योजना है, देश के दूसरे राज्य भी बकायदा इस योजना पर शोध कर रहे हैं. गाय की अहमियत इतनी बढ़ गई है कि नौकरशाह भी गोभक्त हो गए हैं. हाल ही में एक किस्से की गूंज सुनाई दी. बताया गया कि एक पूर्व नौकरशाह ने जानवरों की सेहत का ख्याल रखने वाले विभाग के उच्चाधिकारी को फोन कर एक गाय की मांग कर दी. उच्चाधिकारी ने अपने मातहत को यह जिम्मेदारी सौंपी, लेकिन सवाल खड़ा हुआ कि गाय आएगी कैसे? और इसका भुगतान करेगा कौन? उच्चाधिकारी की ओर से भुगतान का आश्वासन मिलने के बाद मातहतों ने गाय की व्यवस्था की और नवा रायपुर में साहब के बड़े से बंगले के बाहर ले जाकर खड़ा कर दिया. साहब चौंक पड़े कि गाय और बंगले में. यहां तो गौशाला भी नहीं है. बंगले के हरे-भरे गार्डन में तो रखा नहीं जा सकता था, सो गाय को फार्म हाउस छोड़ने कह दिया गया. गाय लेकर गए लोग इस बेगारी से पहले से ही खिन्न थे. जब फार्म हाउस पहुंचे, तो गुस्सा फट पड़ा. फार्म हाउस आलीशान था, सो निकलते-निकलते सिर्फ गरियाते रहे. बोले, करोड़ों का फार्म हाउस और 35 हजार की गाय के लिए जुगाड़ हद है. वैसे रिटायर होने के बाद भी साहब के रूतबे में कमी नहीं है. पुराने जमाने के खाए-पीए हैं. तंदरुस्त हैं. तंदरूस्ती बने रहे, इसलिए गाय का दूध जरूरी है. वैसा सुनाई ये भी पड़ा है कि बकरी के दूध के शौकीन एक मंत्री जी ने अपनी बुजुर्ग हो चुकी बकरी की जगह एक नई तंदरूस्त बकरी की डिमांड की थी, बकायदा छह हजार रूपए खर्च कर बकरी पहुंचाई गई. 
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दिल्ली दौड़ लगाएंगे सीएस ?

बीते एक पखवाड़े से सूबे की ब्यूरोक्रेसी में इस बात को लेकर जबरदस्त चर्चा चल रही है कि चीफ सेक्रेटरी अमिताभ जैन दिल्ली दौड़ की तैयारी में है. सेंट्रल डेपुटेशन पर उनके जाने की चर्चाओं की मीनारें तन रही हैं. मंत्रालय का कोई गलियारा ऐसा ना होगा, जहां इस चर्चा पर कोई खंडन करता मिल जाए. हालांकि उनके करीबी इसे महज शिगूफा बता रहे हैं, पर यूं ही बेवजह किसी बात की इतनी चर्चा नहीं होती. अमिताभ जैन फरवरी 2021 में सेंट्रल में बतौर सेक्रेटरी इम्पैनल्ड हो चुके हैं. यानी डेपुटेशन में उनके जाने पर उन्हें सेक्रेटरी की पोस्टिंग मिलेगी. बताते हैं कि उनकी बेटी इंडियन रेवेन्यू सर्विस की अधिकारी हैं और उनकी पोस्टिंग दिल्ली के नजदीक है, ऐसे में चर्चा को बल मिलता है कि सेटल होने के इरादे से वह दिल्ली का रुख कर सकते हैं. अमिताभ जैन के नजदीकी कहते हैं कि सेंट्रल में यदि किसी बड़े मंत्रालय में बतौर सेक्रेटरी काम करने का मौका किसी आईएएस को मिले, तो इसे प्रतिष्ठित पोस्टिंग मानी जाती है. ऐसे में अमिताभ जैन किसी बेहतर पोर्टफोलियो का इंतजार कर रहे हो, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता. वैसे राज्य सरकार के साथ उनका तालमेल बेहतर है. ऐसे में ये सवाल भी उठता है कि यदि सेंट्रल में अमिताभ जैन को बेहतर मौका मिल भी जाए, तब क्या राज्य सरकार उन्हें आसानी से जाने दे देगी?
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बस्तर कमिश्नर का तबादला
नए साल की शुरूआत के ठीक पहले बस्तर कमिश्नर जी आर चुरेंद्र का सरगुजा तबादला कर दिया गया. चुरेंद्र के नाम का सिंगल आर्डर जारी हुआ. बताते हैं कि एक विधायक ने उनके नाम की शिकायत ऊपर कर दी थी. शिकायत में ये बताया गया था कि कांकेर जिले के अंतागढ़ तहसील में आने वाले दो दर्जन से ज्यादा गांवों को नारायणपुर जिले में शामिल करने की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन को जी आर चुरेंद्र हवा दे रहे हैं. चुरेंद्र ही आंदोलन के सूत्रधार हैं. अब मामला थोड़ा राजनीतिक था, तो फैसला विधायक के पक्ष में गया और चुरेंद्र तबादले की जद में आ गए. बहरहाल जिन गांवों को नारायणपुर जिले में शामिल करने की मांग उठ रही है, ये गांव जिले से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर है, जबकि मूलभूत कामकाज के सिलसिले में गांव के लोगों को डेढ़ सौ किलोमीटर की दूरी तय कर कांकेर जाना पड़ता है. वैसे एक मामला और है. जिन गांवों को नारायणपुर जिले में शामिल करने की मांग उठ रही है, ये माइनिंग वाला इलाका है. माइनिंग है, तो मुनाफा है, ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि विधायक की शिकायत के पीछे की असल वजह ये तो नहीं.
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कलेक्टर-एसपी का परफॉर्मेंस आडिट

कलेक्टरों के कामकाज पर सरकार की पैनी नजर है. सुनाई पड़ा है कि सरकार कलेक्टरों का परफार्मेंस आडिट कर रही है. जाहिर है जब आडिट खत्म होगा, नान परफार्मर नपेंगे. धान खरीदी समेत कई पैरामीटर पर सरकार परफार्मेंस का आंकलन कर रही है. संकेत भी मिल रहे हैं कि कई जिलों के कलेक्टरों को सरकार बदलने जा रही है. इधर कलेक्टरों के परफार्मेंस पर ही सरकार की नजर नहीं है, जिलों के पुलिस कप्तानों पर भी बकायदा तिरछी नजर है. लाॅ एंड आर्डर हो या फिर सांप्रदायिक मामले, हर मामलों पर बारिक नजर रखी गई है. बताते हैं कि निकाय चुनाव में पिछले दरवाजे से बीजेपी को मदद पहुंचाने वाले कलेक्टर-एसपी भी तबादले की जद में आ सकते हैं. पिछले दरवाजे से मदद का मतलब सिर्फ चुनाव नतीजों को प्रभावित करने से नहीं है, मसलन दारू की खेप पकड़ाई गई, तो नजरअंदाज कर देने, पैसा बांटते पकड़े जाने पर आंखें मूंद लेने जैसे कई दूसरे मामलों से है. वैसे सुनाई पड़ा है कि कुछेक जिलों से ऐसी शिकायतें ऊपर भेज दी गई हैं. अब राजनीतिक दलों के बीच ऐसी सद्भावना तो बची नहीं, सो माना जा रहा है कि इन शिकायतों को गंभीरता से लिया जा सकता है. 
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आईएएस-आईपीएस लिस्ट

जल्द ही 1997 बैच के तीन आईएएस सुबोध सिंह, निहारिका बारिक और एम गीता प्रमुख सचिव और 2006 बैच के सात आईएएस अंकित आनंद, पी दयानद, श्रुति सिंह, अलेक्स पाॅल मेनन, भुवनेश यादव, सी आर प्रसन्ना और एस भारतीदासन सचिव प्रमोट हो जाएंगे. खबर है कि सरकार जल्द आदेश जारी करेगी. प्रमोशन के बाद नए सिरे से प्रभार सरकार सौंप सकती है. ऐसे में मंत्रालय में जिम्मेदारियां बदलेंगी. इधर आर के विज के रिटायर होने के बाद आईपीएस की भी एक छोटी सूची आनी है. केंद्रीय प्रतिनिय़ुक्ति से लौटे राजेश मिश्रा ने पखवाड़े भर पहले ही अपनी ज्वाइनिंग दे दी थी. ऐसे में जल्द ही पीएचक्यू में भी प्रभार बदले जा सकते हैं.
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जब नेताजी बोले, ‘बदलवा दूं’
हुआ कुछ यूं कि एक दर्जेदार नेताजी के कारोबार में थोड़ी उलझ सी आ गई. मसला ट्रांसपोर्टेशन से जुड़ा था. खान से माल निकालने से लेकर ढोने तक सब के सब उनके अपने ही थे, लेकिन बरसो से इलाके में काम करते आ रहे यूनियन को यह रास ना आया, तो विवाद खड़ा हो गया. विवाद के निपटारे के लिए नेताजी की मौजूदगी में बैठक हुई, जिसमें ट्रांसपोर्टर्स से लेकर प्रशासन के अधिकारी तक शामिल थे. जिले के प्रशासनिक मुखिया को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि मध्यस्थता कर विवाद खत्म किया जाए. बातचीत आगे बढ़ी. मगर यूनियन अपनी बात पर अड़ा रहा, बस इत्ते में नेताजी ने जिला प्रशासन के मुखिया की ओर आंखें तरेरी. ऊंगलियों में फंसी सिगरेट के उड़ते धुएं के बीच बोले, तुमसे काम होगा, या बदलवा दूं. बस फिर क्या. काम होना ही था. टेबल पर रजामंदी हो गई. अब सब मिल जुलकर काम कर रहे हैं. नेताजी की ख्वाहिशों का मोहल्ला बड़ा था, सो जिला प्रशासन के मुखिया ने अपनी जरूरत की गली पकड़ने में ही भलाई समझी. 
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आईजी-एसपी सड़क पर

नए साल के जश्न की खुमारी में लोग जमकर डूबे. देर रात तक लोगों ने खूब पार्टी की. सड़के गुलजार रही. आमतौर पर नए साल के जश्न में छिटपुट घटनाओं की खबरें सुर्खियों में आ जाती है, लेकिन इस साल पुलिस की चाक चौबंद व्यवस्था ने हालात संभाले रखा. रायपुर आईजी आनंद छाबड़ा और एसएसपी प्रशांत अग्रवाल आधी रात तक सड़कों पर मोर्चा संभाले दिखते रहे. जायजे के दौरान तेलीबांंधा तालाब पर बैठी आईजी-एसपी की तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा की गई. अपने आला अधिकारियों को गश्ती करते देख मातहत भी शिद्दत से जश्न मनाने में मशगूल शहरवासियों को यह महसूस कराते रहे कि उनकी सुरक्षा के लिए पुलिस है. पुलिस वालों के लिए ना तो नया साल है, ना ही दिवाली-होली. साल के 365 दिन की ड्यूटी. जश्न के लिए तो दूर की बात, महकमा चाहकर भी उन्हें एक अदद साप्ताहिक अवकाश नहीं दे सकता. बल का रोना है. वैसे नए साल के पहले दिन मुख्यमंत्री जब पुलिस परेड ग्राउंड पहुंचे, तो उन्होंने कहा कि जनता अब अपने आप को पुलिस के करीब सुरक्षित महसूस करती है. डरती नहीं है. यह भाव बने रहना चाहिए.
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कालीचरण कथा

कथित बाबा कालीकरण की काली जुबान से जब महात्मा गांधी को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी फूटी, तब से माहौल गर्मा गया. एक बयान से छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में रहा. कालीचरण के खिलाफ अपराध दर्ज होने से लेकर गिरफ्तारी तक की कहानी सुर्खियों में रही. मध्यप्रदेश के खजुराहो से कालीचरण को रायपुर पुलिस ने हिरासत में लिया तो दोनों राज्य की सरकारों के बीच टकराव के हालात भी बने, लेकिन सीएम भूपेश बघेल के उस बयान के बाद टकराव में ठहराव आ गया, जब उन्होंने पूछा कि मध्यप्रदेश के गृहमंत्री पहले ये बताएं कि गिरफ्तारी से खुश हैं या दुखी? भूपेश बघेल ने ये भी कहा कि, दूसरे राज्य में घुसकर पुलिस ने पहली बार कोई कार्रवाई नहीं की है. छत्तीसगढ़ सीमा पर महाराष्ट्र पुलिस के नक्सल ऑपरेशन का भी बकायदा जिक्र किया. बयानों का पलड़ा भारी था, सो मसला ठंडा हुआ. इधर कालीचरण की गिरफ्तारी से पहले तक रायपुर पुलिस की नींद गायब रही. आईजी से लेकर एसएसपी तक. मामला हाईप्रोफाइल था, लिहाजा साख दांव पर थी. टीम रवाना होने से लेकर गिरफ्तारी होने तक एसएसपी अलर्ट मोड पर ही थे. खजुराहो से कालीचरण के लोकेशन की पुख्ता सूचना मिलने से लेकर हिरासत में लेने और रायपुर लाने तक एसएसपी फोन पर बने रहे. मध्यप्रदेश में बगैर सूचना गिरफ्तारी करने पर मचे हल्ले ने भी चिंता बढ़ा दी थी. कोर्ट ने दो दिन की रिमांड दी थी, लेकिन कथित बाबा की माया ने चंद घंटों बाद ही कोर्ट में पेश करने के हालात बना दिए. रायपुर पुलिस के फुर्तीले अंदाज ने सीएम की भी वाहवाही बटोरी.