Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

….और कट गई रसीद 

नौकरशाही ही असली सरकार है. यह बहुत ताकतवर होती है. सत्ता में कोई भी बैठे, चलाने वाले यही होते हैं. नौकरशाह की पत्नी भी इस ताकत में बराबर की हिस्सेदार होती हैं. सात फेरे लेते वक्त लिए गए वचन पर पति की मजबूरी, पत्नी को अपनी हिस्सेदारी बांटने के दौरान ही दिखाई पड़ती है. एक आईएएस की पत्नी निजी दौरे पर दुर्ग गयी थीं. वहां उनका मन शॉपिंग करने का हुआ. आईएएस साहब भला वचन कैसे भूल सकते थे. अपनी ताकत में हिस्सेदारी देने से नहीं चूके. वह सरकार की एक कमाई वाले विभाग से थे, सो मातहतों को सूचना भेजी, कहा- ” पत्नी को जरा सी शॉपिंग करनी है, देख लें ”. शॉपिंग जरा सी थी, मगर रसीद ज्यादा की कट गई. बताते हैं कि करीब 7 लाख 80 हजार रुपए की रसीद मातहतों के हिस्से कटी. अब कोई इसकी भरपाई अपनी जेब से तो करने से रहा. मसला यहां खत्म नहीं हुआ. कुछ ऐसी ही तस्वीर जांजगीर चाम्पा के उनके दौरे में भी नजर आई. विश्व प्रसिद्ध कोसे के लिए पहचाने जाने वाले इस जिले में जब साहिबा पहुंची, तब साहब ने अपने अधीनस्थों को फरमान सुनाया. कहा- ”देख लें”. इस दफे करीब साढ़े तीन लाख रुपए की रसीद मातहतों के नाम कट गई. सुनाई पड़ता है कि इन दिनों जिले-जिले घूम घूम कर खूब शॉपिंग की जा रही है. अब विभाग में इसकी चर्चा ना हो, ये हो नहीं सकता.
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बैक डोर एंट्री

कई बार नौकरशाही फैसले ले लेती है. सरकार को मालूम तक नहीं चलता. सरकार की आंखों के सामने जब कोहरा छाता है, तब फैसलों पर मुहर लगा दी जाती हैं. एक विभाग से जुड़ी परियोजना में तीन आईएएस की पत्नियों के बैक डोर एंट्री की खबर है. बताते हैं कि सरकार की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए स्टेट प्रोजेक्ट मैनेजर, असिस्टेंट प्रोजेक्ट मैनेजर और प्रोजेक्ट एग्जीक्यूटिव के पद पर तीन आईएएस की पत्नियों की नियुक्ति कर दी गई. दशकों बाद भी अंधेरे में डूबे आदिवासी बहुल इलाकों में विकास की चिराग जलाने यह परियोजना लाई गई, लेकिन जिन इलाकों में चिराग रोशन होना है, वहां हुआ नहीं, मगर अपनों को रोशन करने का कारोबार जरूर शुरू हो गया. कहा जा रहा है कि एक लाख, 80 हजार और 50 रुपए की मासिक सैलरी पर नियुक्ति दी गई है. दिलचस्प पहलू ये है कि इनमें से एक नियुक्ति ऐसी है, जहां पति-पत्नी साथ काम करेंगे. यानी कि पत्नी अपने पति को रिपोर्ट करेंगी. बहरहाल पहली मर्तबा ऐसी नियुक्तियां हुई हो, ऐसा नहीं है, पिछली सरकार में भी ऐसी दर्जनों नियुक्तियां हुई थी, तब इन मुद्दों पर सूबे की सियासत जमकर गरमाती थी. खैर तब और अब के बीच एक लंबा फासला तय हो चुका है. नवाचार की जो संस्कृति पिछली सरकार ने सृजित की थी, उसकी जड़ों का फैलाव आज भी कायम है.
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IFS कैडर में सुलगती नाराजगी

IFS कैडर की पोस्ट में नाॅन कैडर की पोस्टिंग पर वन महकमे में चिंगारी सुलग रही है. नाराजगी कब फूट पड़े नहीं का जा सकता. 2017-18 बैच के कई IFS फील्ड पोस्टिंग की बांट जोह रहे हैं, लेकिन पोस्टिंग मिली नहीं. IFS अवार्ड होने वाले कई अधिकारी भी फील्ड पोस्टिंग की दौड़ में शामिल हैं, लेकिन ग्रह-नक्षत्रों ने खेल बिगाड़ रखा है. उधर कई डिवीजनों में नाॅन कैडर अधिकारी डिवीजन का चार्ज संभाल रहे हैं. मरवाही, सूरजपुर, भानुप्रतापपुर, इंद्रावती टाइगर रिजर्व में एसडीओ, कैडर पोस्ट संभाल रहे हैं. मरवाही डिवीजन का आलम तो यह है कि यहां के प्रभारी डीएफओ कई एसडीओ के जूनियर हैं, लेकिन अपनी प्रतिभा के दम पर डंके की चोट पर डटे हुए हैं. हालांकि महकमे के उच्चाधिकारी नियमों के हवाले से बताते हैं कि किसी एसडीओ को डिवीजन का चार्ज तीन महीने से ज्यादा समय तक नहीं दिया जा सकता. यदि तीन महीने की अवधि पूरी हो चुकी हो और चार्ज आगे बढ़ाने की नौबत आ जाए, ऐसी स्थिति में सेंट्रल से मंजूरी जरूरी है. यहां का हाल यह है कि कई एसडीओ साल बीतने के बाद भी काबिज हैं. सरपरस्ती ऐसी है कि वन मुख्यालय के आला अधिकारी भी चाहकर कुछ नहीं कर पा रहे.
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इत्तेफाक तो नहीं 

राजनीति और नौकरशाही. माना जाता है कि एक दफे इसकी ऊंचाई जो छू लेे, उसकी सात पुश्तें तर जाती हैं. सूबे के एक नौकरशाह हैं, जिनकी किस्मत ऐसी रही की दोनों विधा से ताल्लुक रहा. खुद बड़े अधिकारी हैं, पिता बड़े नेता थे. रसूख इतना था कि पिछली सरकार के सत्ताधीश उनकी सिफारिश को नजरअंदाज नहीं कर पाते थे. बिलासपुर और इसके आसपास राजनीति में उनकी तूती बोलती थी. बेटे नौकरशाही में चले आए, राजनीतिक विरासत बेटी के हिस्से आई. हुनरमंद थे, सो सरकार ने औद्योगिक विकास की जिम्मेदारी दे दी. अब सुना है कि जिस इलाके से आते हैं, वहां एक बडा़ उद्योग लाया जा रहा है. ये महज इत्तेफाक तो नहीं हो सकता कि जिस इलाके में उद्योग लाने की तैयारी चल रही है, वहां साहब की सैकड़ों एकड़ जमीन पहले से ही है. बताया जा रहा है कि साहब ने जमीन के औद्योगिक प्रायोजन के इस्तेमाल की अनुमति के लिए अपील भी कर रखी है. कल तक लाखों की जमीन आज करोड़ों की बन गई.
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सीनियर अफसरों का क्राइसेस

पुलिस हेडक्वार्टर सीनियर अफसरों की क्राइसेस से जूझ रहा है. एडीजी रैंक के ज्यादातर अफसर हेडक्वार्टर से बाहर हैं. पवन देव लंबे समय से पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन संभाल रहे हैं, अरूणदेव गौतम मंत्रालय में पोस्टेड हैं, एसआरपी कल्लूरी प्रशिक्षण और संजय पिल्ले जेल देख रहे हैं. माना जा रहा था कि सेंट्रल डेपुटेशन से लौटने के बाद राजेश मिश्रा को अहम जिम्मेदारी मिलेगी, लेकिन उन्हें एफएसएल का डायरेक्टर बना दिया गया. विवेकानंद एसआईबी संभाल रहे हैं. एडीजी रैंक के दो अफसर प्रदीप गुप्ता और हिमांशु गुप्ता मुख्यालय में हैं. हालांकि सरकार की ओर से मिल रहे संकेत बताते हैं कि जल्द ही हेडक्वार्टर स्तर पर अहम फेरबदल किया जाएगा.
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चेकपोस्ट 

आरटीओ का चेकपोस्ट सुना था, लेकिन छत्तीसगढ़ के फूड महकमे की दिलेरी देखिए कि अपना एक अलग चेक पोस्ट बना लिया. राजनांदगांव जिले की सीमा पर पाटेकोहरा में आरटीओ के चेकपोस्ट के करीब एक ढाबे में फूड अफसर चेकपोस्ट बनाकर बैठ गए. कवर्धा, धमतरी जैसे जिलों से बुलाकर बकायदा फूड अफसरों की ड्यूटी लगाई गई. दूसरे राज्यों से आने वाले बायो डीजल टैंकर इनके निशाने पर रहे. बताते हैं कि फूड अफसरों ने करीब के गांव से लठैतों की तैनाती भी की. केवल उन्हीं डीजल टैंकरों को छोड़ा गया, जो मोटी रकम की अदायगी करते, बाकी को रोककर रखा जाने लगा. यह सारा खेल जिला प्रशासन की जानकारी के बगैर खुलेआम चलता रहा, लेकिन जब इसकी मौखिक शिकायत मिली, तब जाकर पूछताछ शुरू हुई. डंके की चोट पर फूड अफसर यह बताते रहे कि शासन के निर्देश पर पेट्रोलियम प्रोडक्ट की जांच की जा रही है, लेकिन निर्देश कहां से जारी हुआ इसकी कोई खबर नहीं. सूत्र बताते हैं कि इस खेल के तार सीधे मंत्री बंगले से जुड़े थे. वसूली की शिकायत जब सीएम हाउस तक पहुंची, गहरी नाराजगी जताई गई. सुना है सख्ती के बाद चेकपोस्ट अब बंद है.
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जी पी सिंह की गिरफ्तारी

जमानत के लिए खूब जद्दोजहद करनी पड़ी, पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. देर सबेर गिरफ्तारी तय थी. ईओडब्ल्यू चीफ आरिफ शेख की दिलेरी ही थी, कि उनकी टीम गिरफ्तारी के लिए दिल्ली पहुंच गई. टीम जब दिल्ली पहुंची, तब जी पी सिंह वाॅक कर रहे थे. बताते हैं कि जैसे ही टीम ने अरेस्ट किया. उन्होंने हल्ला मचाना शुरू कर दिया. छत्तीसगढ़ पुलिस अरेस्टिंग मी….ये कहते हुए जी पी सिंह चिल्लाने लगे. जैसे तैसे गिरफ्तारी हुई. जब ईओडब्ल्यू मुख्यालय पहुंचे, तब वहां बाहर कई पुलिस अधिकारी ऐसे थे, जो शायद नहीं चाहते थे कि जीपी सिंह उन्हें देख ले. आखिर 7 साल की सर्विस बाकी है. कोर्ट से राहत मिल गई, तो दिक्कत हो सकती है. इधर जी पी सिंह की अरेस्टिंग से ब्यूरोक्रेसी का बड़ा तबका खुश भी नजर आया. खासतौर पर कई आईपीएस. इन सबके बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का वह बयान दिलचस्प रहा, जिसमें उन्होंने कहा कि ‘ कोई भी अधिकारी कानून से बड़ा नहीं’. मुख्यमंत्री के इस बयान को ब्यूरोक्रेसी गंभीरता से लेती नजर आ रही है. सरकार एक सीनियर आईपीएस को सलाखों के पीछे डाल सकती है, तो कुछ भी कर सकती है, ये डर अब ब्यूरोक्रेसी में हावी हो रहा है.
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आलोक शुक्ला का बढ़ा कद

पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिलने के बाद से ही डाॅ.आलोक शुक्ला पूरे फार्म में है. सूबे में लोगों के स्वास्थ्य की चिंता से लेकर शिक्षा का अलख जगाने का बड़ा जिम्मा था ही, अब सरकार ने एक बड़ी जिम्मेदारी और दे दी है. राज्य के युवाओं के लिए शुक्ला अब रोजगार भी ढूंढेंगे. सरकार ने उन्हें रोजगार मिशन का सीईओ बनाया गया है. मुख्यमंत्री इस मिशन के अध्यक्ष और मुख्य सचिव उपाध्यक्ष हैं. सरकार ने बड़े पैमाने पर रोजगार मुहैया कराने का लक्ष्य रखा है. सरकार का कार्यकाल भले ही दो साल का बाकी रह गया हो, लेकिन आगामी पांच वर्षों की कार्ययोजना पर सरकार काम करेगी. गोधन न्याय मिशन, टी काफी बोर्ड, मछली पालन, लाख उत्पादन, रूरल इंडस्ट्रियल पार्क, मिलेट मिशन, वृक्षारोपण जैसे क्षेत्रों में काम के अवसर तलाशा जाएगा. यानी नाॅन कोर एरिया में सरकार रोजगार ढूंढ रही है. चुनाव करीब आते-आते विपक्ष घोषणा पत्र के वादों पर मुखर है, बेरोजगारी भत्ता जैसे मुद्दों पर शुरू हुई राजनीति के बीच जाहिर है रोजगार मिशन, एक बड़ा सियासी जवाब बनेगा.