Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

एक नौकरशाह का पुनर्वास !

एक महकमे के सबसे बड़े अधिकारी समय से पहले ही रिटायरमेंट ले रहे हैं. सुनते हैं कि 31 मार्च को वह अपना पद छोड़ देंगे. वैसे उनका रिटायरमेंट सितंबर में होना है, लेकिन साढ़े छह महीने पहले रिटायरमेंट लेने की खबर पर चर्चा छिड़ गई है. अहम पद पर काबिज होने के बावजूद रिटायर हो जाना यूं ही लिया जाने वाला फैसला तो होगा नहीं. दरअसल साहब ने पहले ही अपना पुनर्वास ढूंढ लिया है. सुना है कि उन्हें पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग दी जा रही है. जाहिर है जिम्मेदारी बड़ी और पहले से ज्यादा प्रभावशाली होगी, तभी यह फैसला लिया गया है. प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारें में ऊंची पैठ वाले साहब कई मामलों में प्रतिभाशाली हैं. स्थानीय होने का फायदा भी उन्हें खूब मिलता है. हालांकि यह पहला मौका नहीं है, जब समय से पहले रिटायरमेंट के बाद पुनर्वास की बांट किसी अधिकारी ने जोही हो. इस परंपरा की शुरुआत पिछली सरकार में शुरू हुई थी.

मंत्रियों के ‘पीए’ पर नजर

मंत्रियों के पावर की असली बाजीगरी तो उनके पीए ही दिखाते हैं. कई बार लगता है कि पीए के सामने भला मंत्री की क्या बखत. कोई आम आदमी मंत्री से मिलने बंगले पहुंच जाए, तो ये मानने में क्षण भर भी देरी नहीं होगी कि उसने पिछले जन्म में कोई पाप किया रहा होगा, जो घनघोर बेइज्जती कराने बंगले पहुंचने की नौबत आ गई. कोई निरीह आदमी ही इतनी बेइज्जती झेल मंत्री से मिलने की बांट जोहेगा. वैसे पीए लोगों की मनमानी से जुड़े एक-दो उदाहरण हाल फिलहाल देखे गए थे. शिकायतें बढ़ी तो थक हार कर मंत्री की इच्छा को नजरअंदाज करते हुए सरकार को ही पीए हटाने का फैसला लेना पड़ा था.  खैर, ये मामला थोड़ा अलग हैं, यहां चर्चा मंत्रियों की निजी स्थापना में काबिज पीए से जुड़ी है.  पिछले महीने सामान्य प्रशासन विभाग ने एक चिट्ठी भेजकर कहा था कि मंत्रियों की निजी स्थापना में बिठाए गए पीए विभागों की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. ऐसे लोगों से दायित्व ले लिया जाए. मगर चिट्ठी का एक सुत रंग भी मंत्रियों के चेहरे पर न पड़ा. बताते हैं कि ज्यादातर मंत्रियों के पीए सीना ठोककर न केवल काम कर रहे हैं, बल्कि अपने संबंधित विभागों में पूरी मनमानी भी चला रहे हैं.

जलवा तो इनका है

इतनी मनमानी के पीछे कोई तो वजह होगी ही. रायपुर के नजदीक एक जिले में पदस्थ सहायक खाद्य अधिकारी का तबादला अगस्त 2019 में किया गया. मगर वह जिले का मोह छोड़ नहीं पा रहे हैं. डटे हुए है. नई पदस्थापना पर गए नहीं, तो विभाग ने सितंबर 2020 में एक आदेश जारी कर एकतरफा रिलीव कर दिया, ये कहते हुए कि वेतन आहरण अब नवीन पदस्थापना वाले जिले से होगा, बावजूद इसके फेविकोल का मजबूत जोड़ है, छूटेगा नहीं पर यकीन रखने वाले अधिकारी बरकरार है और वह भी डंके की चोट पर. एकतरफा रिलीव करने के बाद आखिर उनका वेतन आहरण हो रहा है या नहीं, मालूम नहीं, मगर अधीनस्थ फूड इंस्पेक्टरों की शामत आ गई है. सहायक खाद्य अधिकारी ने अपने मातहतों के हिस्से हर महीने की चढ़ावे की राशि तय कर रखी है. 2019 से 2022 हो चला है, लेकिन अधिकारी हैं कि टस से मस नहीं हुए. ऐसे में लोग चटकारे लेकर कह रहे हैं, विभाग में जलवा मंत्री का नहीं, इनका है.

तीसरा विकल्प 

पंजाब में ताबड़तोड़ सीटें जीतकर आम आदमी पार्टी ने अच्छे-अच्छे दलों का दम निचोड़ दिया है. सुना है ‘आप’ छोटे राज्यों में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने की जद्दोजहद में है और अगला निशाना छत्तीसगढ़ जैसा छोटा राज्य है, जहां 90 सीटें हैं. इस सुगबुगाहट के बीच आलम ये है कि कई राष्ट्रीय दलों के नेता ‘आप’ में भविष्य की संभावना टटोल रहे हैं. इसमें सत्ताधारी दल के नेताओं के नामों का भी जिक्र जोर शोर से उछल रहा है. पार्टी जमीनी स्तर पर न केवल सर्वे कर रही है, बल्कि कैडर की मजबूती के लिए कई बड़े चेहरों पर डोरे भी डाल रही है. हालांकि पार्टी की अपनी अलग स्ट्रेटजी रही है. दूसरे दल के नेताओं को लाने की बजाए नए नेता तैयार करने पर भरोसा रखती है., तभी तो पंजाब में मोबाइल रिपेयर करने वाले व्यक्ति ने मुख्यमंत्री चन्नी को नाको तले चने चबवा दिए. मगर छत्तीसगढ़ में स्ट्रेटजी बदले जाने की अटकलें हैं. ‘आप’ ने राजधानी में अपना नया कार्यालय भी खोल दिया है. वह भी सिविल लाइन इलाके में.  इसके भी अपने मायने हैं. नए कार्यालय के साथ-साथ एक्टिविटी तेज की जा रही है. सरकार के खिलाफ आंदोलन की रणनीति पर मंथन चल रहा है. दिल्ली के नेताओं के दौरे भी तैयार किए जा रहे हैं. कई बड़े और नामचीन लोगों की लिस्ट बनाई गई हैं, जिन्हें ‘आप’ से जोड़ा जा रहा है. मुमकिन है कि अरविंद केजरीवाल की मौजूदगी में पार्टी प्रवेश कराया जाए.

थर्ड फ्रंट कहां ?

कांग्रेस रोको-बीजेपी ठोको वाले इरादे से ‘आप’ छत्तीसगढ़ में कूदेगी तो जरूर, लेकिन राजनीतिक बहाव में किनारे लगा दी जाएगी या फिर दिल्ली-पंजाब जैसा भंवर तैयार कर दूसरों के लिए मुसीबत बनने का काम करेगी, यह सौ टके का सवाल है ! इस सियासी फिजा पर एक ब्यूरोक्रेट ने ज्ञान बांटा. कहने लगे कि जब स्व. अजीत जोगी ने कांग्रेस से अलग राह पकड़ कर नई पार्टी बनाई, तब चंद महीनों की तैयारी में पांच सीटों पर जीत दर्ज की, तब पार्टी न तो संसाधन से मजबूत थी, न ही पार्टी का कैडर बन सका था. फिर भी पांच सीटों की जीत ने ये संदेश दिया कि कांग्रेस-बीजेपी के परे लोग तीसरे विकल्प की खोज में जुटे हैं. कुछ सीटों पर जेसीसी का अच्छा खासा वोट शेयर भी था, जेसीसी अब कमजोर है, ऐसे में ‘आप’ अपनी दखल थर्ड फ्रंट के रूप में मजबूत कर सकती है. वैसे भी कहा जा रहा है कि देश में ‘आप’ बीजेपी से कम और कांग्रेस से ज्यादा लड़ रही है, सो अटकलों पर संशय नहीं.

नगर निगम में राज्यपाल !

राज्य गठन के बाद से यह पहला मौका होगा जब किसी नगर निगम में पेश होने वाले बजट में राज्यपाल की मौजूदगी होगी. रायपुर नगर निगम के महापौर एजाज ढेबर और सभापति प्रमोद दुबे ने राज्यपाल को आमंत्रित किया है. सहमति भी मिल ही गई है. विधानसभा में परंपरा है कि बजट सत्र की शुरुआत राज्यपाल के अभिभाषण से होती है, लेकिन नगर निगम के बजट में राज्यपाल के जाने के मसले पर कई हैं, जो नियम प्रक्रियाओं को खंगाल रहे हैं. वैसे मौजूदा राज्यपाल अपनी सहजता के साथ-साथ सख्त भी हैं, सरकार के साथ अक्सर टकराव के हालात बनते रहते हैं, ऐसे में कांग्रेस की अगुवाई वाले नगर निगम में राज्यपाल के जाने से बीजेपी की भौंहे सिकुड़ी हुई हैं.

सीएम इन एक्शन soon

विधानसभा का बजट सत्र खत्म होते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पूरे एक्शन में दिखेंगे. अलग-अलग विभागों की सेवाओं के क्रियान्वयन की नब्ज खुद टटोलेंगे. एक-एक जिले के दौरे का कार्यक्रम तैयार हो रहा है. रात भी जिले में ही बिताने की योजना है. ऐसे में कलेक्टर, एसपी, जिला पंचायत सीईओ, समेत जिलों के तमाम अधिकारियों की धड़कने इस प्रस्तावित दौरे की खबर से ही बढ़ गई है. दौरे होंगे, तो जाहिर है कहीं शाबासी मिलेगी और कहीं फटकार. कहते हैं कि शिकायत पर आन द स्पाॅट फैसला होगा. यानी कि जिम्मेदार नप जाएंगे. ऐसे में कागज पत्री अभी से दुरूस्त करने का काम शुरू हो गया है. लेकिन कका थोड़े अलग मिजाज के हैं. कागज पत्री पर कम, आम तबके से बातचीत पर ज्यादा भरोसा करते हैं. सो कईयों की टिकट कटना तय है. मुख्यमंत्री के दौरे में अलग-अलग विभागों से जुड़े 26 विषयों की सूची बनाई गई है, जिसके आधार पर कामकाज की समीक्षा होगी.

दौरे के बाद तबादले 

जमीन में उतरकर सरकारी कामकाज की समीक्षा जब खुद मुख्यमंत्री करें, तो ये समझा जाना चाहिए कि इसके बहाने अधिकारियों का परफारमेंस आडिट भी होगा ही. कहा जा रहा है कि बहु प्रतीक्षित कलेक्टर-एसपी के तबादले अब इस दौरे के बाद ही होंगे. पहले तबादले करने का कोई फायदा भी नहीं है. नए अधिकारी जिलों का हाल सिर्फ कागजी आंकड़ों के बूते ही बता पाएंगे, लेकिन मुख्यमंत्री को जमीनी स्थिति से वाकिफ होना है. सो अब ये तय माना जा रहा है कि तबादला दौरे के बाद ही होगा. वैसे जानकारी ये भी कहती है कि कलेक्टरों की प्रारंभिक सूची लगभग तैयार की जा चुकी है.
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