Column By- Ashish Tiwari

….जब एसडीओ की गाड़ी में मिले करोड़ों रूपए !

इस दफे ये छिपा किस्सा बस्तर से गूंजा. बस्तर के हरे-भरे जंगलों से निकलकर एक विभाग के एसडीओ साहब अपनी निजी कार से राजधानी आ रहे थे कि भानपुरी के करीब जांच पड़ताल कर रही पुलिस ने उनकी गाड़ी रोक दी. साहब ने परिचय दिया, बावजूद इसके पुलिस, गाड़ी की जांच के लिए अड़ गई. एसडीओ साहब के माथे से पसीना रिसने लगा. आनन-फानन में उन्होंने बैरिकेटिंग तोड़कर भागने की नाकाम कोशिश भी की, लेकिन बस्तर की फुर्तीली पुलिस से एसडीओ साहब भला कहां तक भाग पाते. पुलिस ने जब गाड़ी की तलाशी ली, तो आंखें फटी की फटी रह गई. घटना की तस्दीक करने वाले बताते हैं कि एसडीओ साहब की गाड़ी से एक करोड़ चालीस लाख रूपए मिले. एक बड़े विभाग के एसडीओ की गाड़ी में इतनी रकम की बरामदगी की सूचना आला अधिकारियों तक भेजी गई. इधऱ एसडीओ साहब ने अपने महकमे के ऊपर के अधिकारियों को भी जानकारी भेजी. खबर लगते ही महकमे के बड़े अधिकारी दौड़ते भागते थाना पहुंचे. पूरे मामले की जब पड़ताल की गई, तो मालूम चला कि मामला राजधानी के एक बड़े नेता के तिमाही लेन-देन से जुड़ा है. सो जांच-वांच तो होनी नहीं थी, पर बताते हैं कि इस पूरे घटनाक्रम के बाद पुलिस की हाड़ तोड़ मेहनत से निकले पसीने को भी पोछ दिया गया है. वैसे खा म खामखा बस्तर को अधिकारी कर्मचारी पनिशमेंट पोस्टिंग कहकर बदनाम करते हैं.

ब्रेवरेज कारपोरेशन की बेचारगी

इसे बेचारगी नहीं तो और क्या कहेंगे. एक दौर था जब ब्रेवरेज कारपोरेशन का अपना रूतबा था. शराब की बिक्री का दस फीसदी कमीशन सीधे ब्रेवरेज कारपोरेशन के खाते में जाता था. अच्छी खासी मोटी कमाई थी. पता नहीं किसकी नजर लगी. 10 फीसदी कमीशन से शून्य हट गया. 1 ही बाकी रह गया. रूतबा भी घटता चला गया.  कौन सी कंपनी शराब बेचेगी और कौन सी नहीं? ये ब्रेवरेज काररोपेशन ही तय करता था. एफ एल 10 (क) लाइसेंस सिर्फ ब्रेवरेज कारपोरेशन के पास ही था. यानी किसी कंपनी को शऱाब की सप्लाई राज्य में करनी होती, तो उसमें मध्यस्थ की भूमिका कारपोरेशन निभाता. कारपोरेशन ही शराब कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा कराकर लैंडिग प्राइज काॅल करता. शराब कंपनियों को परचेज आर्डर कारपोरेशन देता. कारपोरेशन की इस प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही आबकारी विभाग परमिट जाती करता. अब ना प्रतिस्पर्धा हैं और ना ही कारपोरेशन की भूमिका. अब यह सारा काम राज्य की तीन प्राइवेट कंपनियां कर रही हैं. सत्ता के करीबी लोग इन कंपनियों से जुड़े हैं. इन्हीं कंपनियों के पास एफ एल 10 (क) लाइसेंस हैं. कौन शराब बेचेगा? शराब का रेट क्या होगा? ये सारे निर्णय इन्हीं के पास सुरक्षित हैं. ब्रेवरेज कारपोरेशन अपने डिपो में सिर्फ शराब की रखवाली करने तक सीमित हो गया है. वैसे कारपोरेशन एक काम और करता था, शराबबंदी को लेकर जागरूकता लाने का. यह काम भी छिनकर समाज कल्याण विभाग को दे दिया गया. बेचारा ब्रेवरेज कारपोरेशन पूछ रहा है, अच्छे दिन कब आएंगे….

नपेंगे कलेक्टर-एसपी ?

कवर्धा दंगा मामले में सरकार के मंत्रियों ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा है कि प्रशासन से चूक हुई है. इसे एक संकेत के तौर पर माना जा रहा है. संकेतों को यदि सच माना जाए तो आने वाले कुछ दिनों के भीतर कलेक्टर और एसपी पर गाज गिर सकती है. वैसे सूचना तो यह है कि ये कार्रवाई अब तक कर दी गई होती, लेकिन शांति बहाली कायम रखने की चुनौती के बीच यह ठीक नहीं होता. ये सोचकर कार्रवाई रोक दी गई. लेकिन अब तीन-तीन मंत्रियों की प्रेस कांफ्रेंस में यह कहा जाए कि प्रशासनिक चूक थी, तो सरकार फिर कैसे बने दे रह सकती है.

काबरा ही क्यों?

राज्य गठन के बाद से अब तक यह पहला मौका है जब किसी सीनियर आईपीएस के हाथों जनसंपर्क की कमान सौंप दी गई है. सवाल उठा कि सरकार ने इस पद के लिए दीपांशु काबरा को ही क्यों चुना? और जिम्मेदारी दी तो परिवहन के साथ-साथ. इसे लेकर चर्चा है कि काबरा कई लोगों की दुखती रग से वाकिफ हैं. पुलिस वाले हैं, सो जानते हैं, किसका कान कब और कितना मरोड़ना है. मीडिया से अच्छे ताल्लुकात और सोशल मीडिया में उनकी एक्टिविटी ने भी सरकार का ध्यान खींचा होगा. वैसे दीपांशु काबरा के लिए जनसंपर्क कोई नई बात नहीं है. जब जहां रहे, भरपूर जनसंपर्क किया. मिलने-जुलने में छलनी का इस्तेमाल नहीं किया. क्या पत्रकार और क्या नेता. राजधानी में एसपी-आईजी रहे हैं. तासीर बखूबी समझते हैं. हां यह जरूर है कि हार्डकोर पुलिसिंग और जनसंपर्क के कामकाज में जमीन-आसमान का अंतर है. यहां सरकार की छवि चमकाने के लिए थोड़ी कास्मेटिक की जरूरत पड़ती है. यहां पुलिस की सख्ती काम नहीं आती.

मंत्री की दिलचस्पी

वैसे भी सरगुजा इन दिनों खूब चर्चा में है. अब यहां से एक नई चर्चा सामने आई है. मामला बगैर निविदा तीन करोड़ रूपए का ठेका देने का है. इसमें एक मंत्री की खास रूचि सामने आई है. बताते हैं कि अधिकारियों ने स्कूलों में सूखा राशन बांटे जाने के लिए एक महिला स्व सहायता समूह को ठेका निविदा से नहीं, बल्कि मंत्री की दिलचस्पी से दे दिया. इतनी मेहरबानी समझ नहीं आई. ऐसा नहीं है कि गड़बड़ी सिर्फ इस जिले में ही सामने आई हो. कोंडागांव, बिल्हा जैसी जगहों से भी यह शिकायत आई थी कि सूखा राशन ऐसी संस्थाओं के जरिए बगैर निविदा खरीदा गया, जिनसे खरीदा ही नहीं जा सकता था. खैर मंत्री की महिमा मंत्री ही जाने.

अमित शाह की नजर छत्तीसगढ़ पर

पिछले हफ्ते नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक की अमित शाह से मुलाकात हुई थी. इस हफ्ते पूर्व मुख्यमंत्री डाॅक्टर रमन सिंह लंबी गुफ्तगू कर लौटे हैं. बीजेपी में अमित शाह इस बात को लेकर कुख्यात हैं कि बगैर काम वक्त नहीं देते और मिलते भी हैं तो चंद मिनटों में रफा-दफा कर देते हैं, लेकिन अबकी बार रमन-कौशिक से हुई मुलाकात में अच्छा खासा वक्त दिया. संकेत मिल रहे हैं कि राज्य के भीतर के सियासी समीकरणों पर बातचीत हुई है. मध्यप्रदेश जैसी स्थिति तो यहां बन नहीं सकती, लेकिन मुद्दों पर कैसे सरकार को बैकफुट पर लाकर दबाव बनाया जा सकता है, ऐसे विषयों पर विमर्श जरूर हुआ होगा. एक बड़े बीजेपी नेता की टिप्पणी भी गौर करने वाली है. अमित शाह से मिलकर लौटने के बाद विनम्र डाॅक्टर साहब भी कवर्धा की घटना पर आक्रामक नजर आए…..