Column By- Ashish Tiwari

छत्तीसगढ़ का ‘जी-11’

कभी सोनिया गांधी के सामने चूं तक नहीं करने वाले कांग्रेस नेताओं के बने जी-23 ने जमकर सुर्खियां बटोरी थी. देश को कांग्रेस मुक्त करने का सपना देखने वाली बीजेपी को लगा था कि अब इस पार्टी को कोई नहीं बचा सकता, लेकिन सुनते हैं कि बीते दिन हुई सीडब्ल्यूसी की बैठक में सभी नेताओं ने सुर बदल दिए. सोनिया गांधी ने पूरी सख्ती से सबको एक लाइन पर लाकर खड़ा कर दिया है. इधर छत्तीसगढ़ में भी एक ‘जी-11’ खड़ा हो गया है, जिसकी चर्चा तेजी से फैल रही है. कांग्रेस विधायकों के इस जी-11 को लेकर तो यहां तक कहा जाता है कि इनकी फंडिंग एक बड़ा कार्पोरेट हाउस कर रहा है. ये वहीं कार्पोरेट हाउस है, जिसे कांग्रेस पार्टी पानी पी-पी कर कोसा करती थी. पिछले दिनों राज्य में उठे सियासी बवंडर में इस जी-11 की बडी़ भूमिका रही. जब बदलाव की बातें उठने लगती, यहीं जी-11 गोपनीय जगह बैठक कर सूचना मीडिया में जारी करा देता. दबाव बनाने की पूरी रणनीति लड़ाई इसी जी-11 के हिस्से रही है.  फिलहाल ये ग्रुप भूपेश समर्थक माना जाता है, खुलकर सपोर्ट कर रहा है, लेकिन इन्हें अपनी उंगलियों पर नचाने वाले शख्स को लेकर यह राय संगठन के नेताओं के भीतर सुनाई देती है कि कार्पोरेट के इशारे पर इन्हें दूसरे पाले के लिए भी नचाया जा सकता है. यूं ही नहीं कहा जाता, पैसे में बड़ी ताकत होती है.

सीएम चढ़े गेड़ी, अधिकारी खेले गोल्फ

सीएम भूपेश बघेल खाटी देहाती आदमी हैं. फर्राटे से गेड़ी पर चढ़कर दौ़ड़ लगा लेते हैं, भौंरे को रस्सी में लपेट कर सीधा अपने हाथों ले आते हैं, बांटी भी खेलते ही रहे होंगे, तभी तो गजब के निशानेबाज भी हैं. काबिलियत ही है, कि ढाई-ढाई साल के फार्मूले वाले खेल के नतीजे भी रोक रखे हैं. माने छत्तीसगढ़ के पारंपरिक खेलकूद के माहिर खिलाड़ी, मगर उनके अधिकारियों की क्या कहे, लाख कोशिश के बावजूद हुनर नहीं सीख पाए. ऐसा नहीं है कि सूबे के अधिकारियों ने पारंपरिक खेलकूद में माहिर अपने सीएम को यह सब करते देख सीखने की प्रैक्टिस नहीं की होगी, पर एलिट क्लास के लिए कुछ दूसरे खेल बने हैं, पारंपरिक खेलों में खेल कम ,भावना ज्यादा होती है. एलिट क्लास के लोगों के लिए तो ‘गोल्फ’ ही ठीक है. जब सीख नहीं पाए तो अधिकारियों ने भी वापस गोल्फ के मैदान में कूदना ही बेहतर समझा. सूबे की प्रशासनिक कमान संभालने वाले एक सीनियर आईएएस, एक प्रिंसिपल सेक्रेटरी और कभी राज्य की संस्कृति को सुशोभित पल्लवित करने की जिम्मेदारी संभाल चुके एक सीनियर आईएफएस नया रायपुर के गोल्फ कोर्स में इन दिनों गोल्फ खेलते दिख जाते हैं. सुना है कि हर सोमवार, बुधवार और शुक्रवार का दिन गोल्फ खेलने के लिए तय हुआ है. वैसे पास ही एक बड़े विभाग के दफ्तर में अधिकारी बिलियर्ड्स खेलते भी पाए जा रहे हैं. वैसे भी अभी काम-धाम कम ही था, गोल्फ खेलने में अच्छा खासा वक्त बिता होगा.

टैक्सी भी हम ही चलाएंगे….

सुनाई पड़ा है कि मंत्रालय और पीएचक्यू में अब एक ही ट्रेवल कंपनी से गाड़ियां हायर की जाएंगी. कहीं दौरे पर बाहर जाना होगा, तो एयर टिकट भी इसी ट्रेवल कंपनी से ही बुक किया जाएगा. कागजों का तो नहीं मालूम, लेकिन यह निर्देश जारी कर दिया गया है. अब तक चल रही प्रैक्टिस से बाहर जाकर नए नियम कायदों में चलने का फरमान दिया गया है. चर्चा कहती है कि इस ट्रेवल कंपनी के पीछे एक बड़े ओहदेदार अधिकारी हैं.

नवरात्रि का चंदा और सांसद-विधायक

नेतागिरी आसान नहीं होती. चमकदार कलप चढ़ा कुर्ता-पैजामा महज एक झांकी ही है, लेकिन इसकी चमक तब उतर जाती है, जब कोई चंदा मांगने आए और नेताजी की जेब ढीली ना हो. नवरात्रि में यही हाल सांसद-विधायकों का नजर आया. एक सांसद के पास चंदा मांगने पहुंचे पास के ही दुर्गा पंडाल के युवकों की भीड़ को उम्मीद थी कि कम से कम पांच हजार रूपए तो झोंक लिया जाएगा, लेकिन एक शून्य गायब मिला. सांसद की जेब से 500 रूपए ही निकले. ये कहते हुए कि सैकड़ों लोगों को चंदा देना है. बस फिर क्या था, मांगने वाले बिफर पड़े. सांसद ने अपनी राजनीतिक ईमानदारी बताने की पूरी कोशिश की, कहां की वह कमीशन और वसूली करने वाले नेता नहीं हैं, लेकिन राजनीतिक लोगों की बनी बुनाई इमेज ने गड़बड़ कर दिया. चंदा लेने आए लोगों को 500 रूपए लेना नागवार गुजरा, तो लौट पड़े. ऐसा ही एक किस्सा शहर के एक एक्टिव विधायक के साथ भी जुड़ा हुआ है. विधायक ने 1100 रूपए का चंदा फिक्स कर रखा था. चंदा वसूली के लिए आए, लोगों को लगता कि सरकार के विधायक हैं और विधायकों को इतना मिल रहा है कि जेब छलक रही है, कम से कम दस हजार तो मिलेगा ही. अब चंदा लेने वालों को कौन समझाए कि अगली बार चुनाव भी तो लड़ना है.

इससे अच्छी हालत तो रमन सरकार में थी…

संसदीय सचिव रो-रो कर अपनी वेदना जाहिर कर रहे हैं. हर जगह अपनी वेदना को लेकर गए लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं. एक संसदीय सचिव ने अपनी टिप्पणी में कहा कि,  रमन सरकार में जब विधायक भी नहीं थे, तो चिट्ठी पर एक-दो तबादले हो जाया करते थे, लेकिन अब जब सरकार में हैं ,संसदीय सचिव बन गए हैं, तो सुनवाई नहीं होती. अभी हाल ही में जब प्रदेश प्रभारी पी एल पुनिया दौरे पर आए थे, तो संसदीय सचिवों ने रो-रोक कर अपना हाल सुनाया था. सिर हिलाकर पुनिया ने सांत्वना दिया. इससे ज्यादा और कर भी क्या सकते थे.

आईएएस-आईपीएस की छोटी सूची जल्द

कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस के बाद एक छोटी प्रशासनिक सर्जरी हो सकती है. वैसे ये प्रैक्टिस में भी रहा है. लेकिन इस दफे तस्वीर थोड़ी अलग दिखाई पड़ सकती है. कांफ्रेंस के पहले ही सीएम सचिवालय ने कलेक्टरों-एसपी के कामकाज की रिपोर्ट तलब की है. कांफ्रेंस में समीक्षा के दौरान इसका असर दिख सकता है. कुछ जिलों के कलेक्टर-एसपी के तबादले तो होंगे कि आईजी स्तर के अधिकारी भी तबादले की जद में आ सकते हैं.