Column By- Ashish Tiwari

चोरी में हिस्सेदार एसपी साहब !

किस्सागोई में इस बार फिर एक बड़े माइनिंग वाले जिले के एसपी साहब छाए रहे. अबकी बार उनकी चर्चा चोरी में हिस्सेदारी की है. बताते हैं कि रकम भी ऐसी-वैसी नहीं. साहब को हर रोज एक लाख रूपए का चढ़ावा चढ़ रहा है. यानी महीने भर में 30 लाख रूपए. ये रकम जिले में जुआं, सट्टा खिलाने, अवैध शराब-गांजा बेचने वाले गिरोहों को संरक्षण देने के लिए नहीं मिल रहा, ये पारंपरिक तरीका तो चलन में है ही, ये कमाई का नया रास्ता है. दरअसल साहब की कट मनी डीजल चोरी के अवैध धंधे से है. जिले में माइनिंग का बड़ा काम है. केंद्र की एक पीएसयू यहां माइनिंग करती है. हजारों की तादात में ट्रकें चलती है. डीजल चोरों का संगठित गिरोह सक्रिय है. खास बात यह है कि जिस वक्त पूरे देशभर में कोल संकट की खबरें आ रही है, कोयले की माइनिंग प्रभावित हो रही है, ठीक उस वक्त केंद्र की इस पीएसयू ने कोयला परिवहन में ताबड़तोड़ रिकार्ड बना डालने का दावा किया है. जितनी ट्रकें चलेंगी, डीजल चोरी के उतने ज्यादा मौके भी मिलेंगे. वैसे भी मोदी सरकार ने जब से पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाए हैं, चोरी के माल का दाम भी खूब उछाल मार रहा है. बस साहब ज्यादा ना उछले, लेने के देने पड़ सकते हैं. वैसे एसपी साहब कायदे के आदमी हैं. व्यवहार कुशल भी हैं. पता नहीं किसकी संगति में हैं इन दिनों.
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मंत्री से कम नहीं ‘पीए’

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मंत्रियों के ‘पीए’ लोगों का कोई जवाब नहीं. जितनी मंत्रियों की नहीं चलती है, उससे ज्यादा प्रभाव पीए रखते हैं. माने मंत्री के नाम पर सकल-करम करने को आतुर. सूबे के एक मंत्री के चर्चित ‘पीए’ के भी तरह-तरह के किस्से सुनाई पड़ते रहते हैं. कुछ महीने पहले की बात है ‘पीए’ साहब एक जिले के दौरे पर चले गए थे. मंत्री का फरमान सुनाया, सो कलेक्टर मौका मुआयना करने ‘पीए’ साहब के साथ घूमते रहते. हाल ही में सत्तारूढ़ कांग्रेस विधायकों ने ‘पीए’ की भूमिका को लेकर मंत्री को खूब खरी-खोटी सुनाई, लेकिन मंत्री ने चूं से चाय तक नहीं की. अब लोग कहने लगे हैं कि मंत्री की किसी दुखती नब्ज पर ‘पीए’ ने हाथ तो नहीं रख रखा है. वैसे दबी जुबां से बंगले के लोग कहते हैं कि ‘पीए’ साहब मंत्री की ‘होम मिनिस्टर’ के बेहद भरोसे के आदमी हैं. मंत्री का ‘पीए’ भी उन्हीं की सिफारिश पर बनाया गया है. ‘पीए’ शिकायतों पर जब मंत्री की भौंहे तनती हैं, तो चेहरा ‘होम मिनिस्टर’ का याद आ जाता है और फिर भीगी बिल्ली बनकर मिमिया जाते हैं. बेचारे मंत्री जी….
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….जब होर्डिंग से गायब हुए मंत्री
कोई बड़ा आयोजन करना बेटी की शादी करने जैसा ही है, लेकिन शादी की शहनाई गूंजने लगी हो और कार्ड पर बाप का नाम छोड़, फूफा-फूफी, चाचा-चाची समेत नाते रिश्तेदारों का दर्ज होने लगे, तो बाप की नाक से गर्म हवा तो निकलेगी ही. कुछ ऐसा ही हुआ संस्कृति मंत्री के साथ. जिस आयोजन को सफल बनाने जी-जान से जुटे हैं, उस आयोजन के प्रचार में लगाए गए होर्डिंग्स में उनकी एक तस्वीर तक नहीं थी. दूसरे मंत्रियों के बड़े-बड़े कट आउट और होर्डिंग से पूरा शहर अटा पड़ा था, लेकिन संस्कृति मंत्री के साथ ऐसी नाइंसाफी ने उनका बहुत दिल दुखाया. आयोजन से चंद रोज पहले एयरपोर्ट से शहर के रास्ते बढ़ते मंत्री जी की नजर एक-एक होर्डिंग पर थी. जैसे-जैसे होर्डिंग पार होता गया, गुस्से का थर्मामीटर ऊपर चढ़ता गया. बस फिर क्या था सब्र का बांध फट पड़ा. उन्होंने विभाग के आला अधिकारियों को खूब खरी खोटी सुनाई. विभाग के संचालक पहले से उनके रडार में थे ही. तो गुस्सा पूरे उफान पर था. आनन-फानन में रातों-रात मंत्री की होर्डिंग शहर भर में लगाई गई. अब हर जगह मंत्री की ज्यादा खिलखिलाहट वाली तस्वीर दिखाई पड़ रही है.
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…बिना वित्त की अनुमति के बगैर करोड़ों का बिल पास !

सांठगांठ सारी अड़चनों को खत्म कर देता है. अब देखिए रमन सरकार के दौरान एक विभाग के कार्यक्रमों में खर्च हुई ढाई करोड़ की बकाया राशि का भुगतान कर दिया गया. वह भी बगैर वित्त विभाग की स्वीकृति के. इसे लेकर जबरदस्त चर्चा है. मामूली खरीदी तक की अनुमति वित्त से ली जाती हैं, यहां ढाई करोड़ का भुगतान ही हो गया. सांठगांठ की ‘संस्कृति’ यहां खूब पल्लवित हो रही है. बताते हैं कि बिल में जबरदस्त फर्जीवाड़ा हुआ है. चर्चा है कि इस मामले को अब ऊपर तक ले जाने की तैयारी की जा रही है.
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पीसीसी चीफ नजरअंदाज

राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव का मुख्य मंच बेहद मजबूत बनाया गया था. तभी तो मंच पर 50 से ज्यादा सम्मानित अतिथि काबिज थे. राज्य के बाहर से आमंत्रित अतिथि तो थे ही, भूपेश मंत्रिमंडल के लगभग सभी चेहरों के साथ ज्यादातर विधायक, निगम,मंडल, आयोग के अध्यक्ष भी सुशोभित थे. इन सब चेहरों में एक चेहरा पीसीसी चीफ का था, जो ढूंढने नहीं मिल रहा था. बाद में मंच से उद्घोषणा हुई कि मोहन मरकाम मंच पर अपना स्थान ग्रहण करें, तब लोगों की नजर उन्हें ढूंढने लगी. तब जाकर पता चला कि वह मंच के समने दर्शकों के बीच बैठे हैं. उनका नाम पुकारे जाने के बाद भी मरकाम मंचासीन नहीं हुए. संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने जब मंच से मोहन मरकाम को सम्मान बुलाया, तब जाकर वह मंचासीन हुए. बताते हैं कि मरकाम आमंत्रण पत्र में नाम नहीं छापे जाने से बेहद आहत हैं. वैसे एक परंपरा भी रही है कि सरकार के आयोजनों में प्रदेश अध्यक्ष को मंच पर जगह दी जाती है. पिछली सरकार में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक अक्सर मंच पर नजर आते थे.
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आदिवासी महोत्सव में ये भी….
वैसे तो राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव के आयोजन ने खूब वाहवाही लूटी. आदिवासियों की लोक कलाओं को बड़ा मंच भी मिला पर पर्दे के पीछे की तस्वीर कई खामियों से भरी रही. चूंकि आयोजन संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत के विभाग से जुड़ा था, सो लोगों की गाली भी उनके हिस्से आई. दरअसल मामला है बहुत छोटा, लेकिन गरियाने के लिए काफी है. हुआ यूं कि लंबा फासला तक कर मंच तक पहुंचे अतिथियों के लिए पानी तक की व्यवस्था नहीं थी. मीडिया कवरेज करने गई टीम के लोग सुबह से रात तक पानी की कमी से जूझते रहे. सबने मंत्री का फोन खूब घनघनाया. हद तो तब हो गई, जब एक मंत्री के साथ कुछ लोग खाना खाने पहुंचे. मंत्री की मौजूदगी में ही कैटरर ने दो टूक कह दिया कि वह मंत्री को छोड़ किसी और को खाना नहीं खिलाएगा. सब एक-दूसरे का चेहरा देख फिर मंत्री को कोसने लगे. मंत्री की बेचारगी चर्चा में रही.