….जब मंत्री कवासी की उड़ी नींद, तीन रात सो नहीं पाए…

बीते दिनों की बात है. दिल्ली में एक प्रदर्शन हुआ. इसमें शामिल होने मंत्री कवासी लखमा के विधानसभा क्षेत्र से एक युवक को दिल्ली भेजा गया. बकायदा फ्लाइट की टिकट कटवाई गई. मामला दिल्ली पहुंचने तक तो ठीक था, लेकिन जब वापसी का दिन आया, युवक गायब हो गया. युवक के गायब होने की खबर सुकमा तक फैल गई. तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई. आरोप की जद में मंत्री तक घेरे गए, बस फिर क्या था. मंत्री का सुख-चैन सब छिन गया. खोजबीन शुरू हुई, तो पता चला युवक आगरा में है, जैसे-तैसे उस तक पहुंचा गया. इधर मंत्री को सूचना दी गई, कलेजे को थोड़ी ठंडक मिली, लेकिन बात यहां खत्म नहीं हुई. छत्तीसगढ़ लौटने के दौरान बीच रास्ते से एक बार फिर युवक गायब हो गया. इस बार पेशाब करने के बहाने रूका फिर लौटा ही नहीं. मंत्री का कलेजा फट पड़ा. उधर इलाके में चर्चा आग की तरह फैल रही थी. जैसे-तैसे फिर खोजबीन शुरू हुई. तब मालूम चला कि युवक उत्तर प्रदेश के किसी दूसरे शहर जा पहुंचा है. मोबाइल लोकेशन के आधार पर उसका पता लगाया गया और सड़क के रास्ते उसे सुकमा तक लाया गया. इस पूरी जद्दोजहद में मंत्री  की नींद उड़ी रही……

…..फिर चल गई नोटशीट

सूबे के एक पावरफुल नेता के पास एक सज्जन छोटा सा काम लेकर गए. करीबी मित्र थे, सो मातहतों को फरमान सुनाया गया कि तत्काल ये काम करा दिया जाए. बात आई गई. महीना भर बीत जाने के बाद भी जब काम नहीं हुआ, तो करीबी मित्र ने बंगले की दौड़ लगाई. पावरफुल नेताजी देखते ही पूछ बैठे-तुम्हारे काम का क्या हुआ? मित्र ने टांट भरे अंदाज में एहसास कराते हुए कह दिया कि सरकार आपकी और आपकी ही नहीं सुनी जा रही. नेताजी का गुस्सा फट पड़ा. उनके निर्देश पर तत्काल एक नोटशीट चलाई गई कि बंगले में तैनात सभी सहायकों को हटा दिया जाए. नोटशीट मंत्रालय भी पहुंच गई और उस पर कार्यवाही के लिए उसे आगे बढ़ा दिया गया. रात होते-होते पावरफुल नेताजी का गुस्सा ठंडा पड़ा. काफी सोचने के बाद उन्होंने नोटशीट वापस बुलाने का फैसला लिया. मंत्रालय में नस्तीबद्ध हो चुके नोटशीट को दूसरे दिन वापस बुलाया गया. साहब ने अपने हाथों से उसे फाड़कर कूड़ेदान में फेंक दिया. वैसे यह पता नहीं चल पाया कि करीबी मित्र का काम हुआ या नहीं?

लिफाफे का किस्सा क्या है….

कानाफूसी में एक ऐसी बात उजागर हो गई, जिसे होना नहीं चाहिए था. खैर हो गई, तो किस्सा सुनिए. तीजा पोरा कार्यक्रम में शामिल होने पिछले दिनों दिल्ली से राष्ट्रीय स्तर की चार प्रवक्ता राजधानी आई थी. सीएम हाउस में उत्सव में शामिल हुई. राज्य की संस्कृति, परंपराओं को नजदीक से देखा. जी-भर के झूमती नजर आईं. जैसे की परंपरा है कि बेटी घर आती है, नेग दिया जाता है, सो उन्हें भी नेग दिया गया. लिफाफे में कुछ राशि भेंट की गई. बाद में पता चला कि एक के लिफाफे का वजन बाकियों की तुलना में थोड़ा ज्यादा था. खबर आयोजन कर्ताओं तक जा पहुंची. आनन-फानन में वजन कम करने एक महिला दूत को एयरपोर्ट भेजा गया. जैसे ही महिला दूत को एयरपोर्ट भेजने की जानकारी ऊपर तक लगी, वापसी का फरमान दिया गया. बड़े-बड़े आयोजन में ऐसी छोटी-छोटी गलतियां हो ही जाती है.

तबादलों का हफ्ता

पिछला हफ्ता तबादलों का रहा. बीते रविवार की रात 21 आईएएस अधिकारियों के प्रभार में फेरबदल करने से इस सिलसिले की शुरुआत हुई. दो आईपीएस अधिकारियों के प्रभार भी इसी दिन बदले गए, तो करीब आधा दर्जन एडिशनल एसपी के तबादले भी किए गए. राज्य गठन के इतिहास में पहली दफे राज्य प्रशासनिक सेवा के 96 अधिकारियों के तबादले एक साथ किए जाने की घटना भी खूब सुर्खियों में रही.  इधर तबादले के आदेश आते रहे, उधर सवालों की फेहरिस्त भी ऊंची होती चली गई. सवाल उठा कि धड़ाधड़ हो रहे इन तबादलों के पीछे कोई तो वजह होगी? एक सीनियर ब्यूरोक्रेट ने कहा कि, हर तबादले के पीछे वजह होती है. जाहिर है, बगैर वजह तबादला होगा नहीं. जब यह सवाल पूछा गया कि राज्य में चल रही सियासी खींचतान की इसमें कोई भूमिका है? तपाक से जवाब मिला, संभव है. उधर एक दूसरी चर्चा में एक आला अधिकारी ने कहा कि तबादला उद्योग का आडिट कर खाता बंद करना था, सो जिन लोगों ने निवेश कर रखा था, उन्हें रिटर्न भी तो देना था.

हवा में उड़ने वाले आईएएस

सूबे के एक चर्चित आईएएस हैं. खूब पावरफुल कहे जाते हैं. वैसे हैं भी. अच्छे-अच्छो को ठिकाना लगा चुके हैं. सुना है हफ्ते के दो दिन उनके फ्लाइट में गुजरते हैं. कभी दिल्ली, तो कभी मुंबई. उनके हवा में उड़ने के पीछे की चर्चाएं तरह-तरह की है. व्यक्तिगत काम से लेकर सरकार के बेहद जरूरी काम तक. तमाम तरह की जिम्मेदारियों उन पर हैं. भरोसे के हैं, सो कोई उनकी बराबरी कर भी नहीं सकता.  खैर, इसमें कोई दो राय नहीं कि अपनी काबिलियत का लोहा उन्होंने खूब मनवाया है.

यहाँ किसी की बपौती नहीं

बीजेपी संगठन की राज्य इकाई की असली कमान तो राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री के हाथों होती है. डेढ़ दशक से ज़्यादा इस पद पर सौदान सिंह क़ाबिज़ रहे. तब की सरकार में प्रभाव इतना था कि ब्यूरोक्रेट भी भाईसाहब कहने लगे थे. अब इस पद पर शिव प्रकाश क़ाबिज़ है. पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्य में बीजेपी की नींव मज़बूत करने वालों में प्रमुख चेहरे रहे हैं. छत्तीसगढ़ की ज़िम्मेदारी मिली तो इन्होंने थोड़ा वक़्त समझने में गुज़ार दिया. अब फ़ॉर्म में दिखाई पड़ रहे हैं. अभी युवा सम्मेलन में आए तो भाषण में कह दिया कि ‘ जब गुजरात में मुख्यमंत्री समेत पूरा मंत्रिमंडल बदल सकते हैं, तो इसका मतलब है कि नम्बर कभी भी किसी का भी लग सकता है, यहाँ किसी की बपौती नहीं है’. अब तक छत्तीसगढ़ को अपनी बपौती समझने वाले नेताओं के माथे चिंता की लकीरें उभर आई हैं. केंद्रीय नेताओं के तेवर उन्हें ठीक नहीं लग रहे.