बंद कमरे की चर्चा…
एक बंद कमरे की चर्चा बाहर फूट पड़ी है. कहते हैं कि इस चर्चा में एक बड़े नेता ने अपनी पार्टी को आश्वस्त किया है कि 35 सीट जीतकर मुझे दे दो. सरकार बनाने के लिए बची 15 सीटें मैं दूंगा. नेताजी इस जोड़ तोड़ की गणित के माहिर खिलाड़ी है. उनका अपना दल भी राज्य के चुनाव में उनके भरोसे ही बैठा है. राज्य के नेता यह मान रहे हैं कि नेताजी के पास कोई तिलिस्म है. जैसे चिराग, जिसे वह हाथों में रखकर रगड़ते हुए जिन्न को आदेश देंगे कि उनके दल के 15 विधायक बढ़ा दिया जाए और एक झटके में इतने विधायक पैदा हो जाएंगे कि सरकार बना देंगे. इस दल के एक बड़े नेता ने अपने नेताओं का हाल देख तंज कसते हुए कहा, ‘लगता है सीएम भूपेश की कर्जमाफी की घोषणा के बाद यदि 35 सीटें आ भी गई, तब भी जिन्न चिराग से बाहर आने में झिझकता दिखेगा, चिराग के भीतर किसी कोने में ठिठक कर बैठा नजर आएगा, फिर नेताजी रगड़ रगड़ कर अपने हाथों को भले ही लाल क्यों ना कर दें’. खैर सियासत में गुंजाइश हमेशा बची होती है. गुंजाइश है, तो पासा पलटने में देर नहीं लगती. 15 गुणा 100 कर दें, तो 1500 सौ होता है. 20 गुणा 100 कर दें, तो 2000 होता है. 15 विधायक चाहिए तो 1500 और 20 विधायक चाहिए तो सिर्फ दो हजार करोड़…अब दो हजार करोड़ रुपए वाली एक योजना ना सही. एक लाख करोड़ के बजट वाले राज्य में यह तो बेहद मामूली रकम है.
डिस्क्लेमर : चुनाव कयासों का होता है. इसे भी एक कयास ही मानें….
गुरु-चेला
पॉलिटिक्स अनप्रिडिक्टेबल है. यहां कब,क्या हो जाए. कोई समझ नहीं सकता. अब इस मामले को ही देख लीजिए. अंबिकापुर विधानसभा सीट से डिप्टी चीफ मिनिस्टर टी एस सिंहदेव से मुकाबले के लिए बीजेपी ने राजेश अग्रवाल को मैदान में उतारा है. कांग्रेस की लंबी पारी खेल बीजेपी से हमजोली करने वाले राजेश अग्रवाल किसी जमाने में सिंहदेव के बेहद करीबी माने जाते थे. मगर अनप्रिडिक्टेबल पॉलिटिक्स की यही खूबसूरती है कि गुरु, गुरु नहीं रह जाता. चेला गुरु बन जाता है. अंबिकापुर विधानसभा में टी एस सिंहदेव की लीड वाला इलाका लखनपुर और उदयपुर है. राजेश अग्रवाल लखनपुर नगर पंचायत के अध्यक्ष रह चुके हैं. ग्रामीण इलाकों में ठीक ठाक प्रभाव है. पैसा कौड़ी में कमजोर हो ऐसा भी नहीं है. ऐसे में कांग्रेस-बीजेपी में यह कहकर खूब माहौल बनाया जा रहा है कि चेला, गुरु तो नहीं बन जाएगा. सियासी पंडित कहते हैं कि राजेश अग्रवाल को टिकट देकर बीजेपी ने बाबा को फंसा दिया है. नामांकन दाखिले के लिए पहुंचे राजेश अग्रवाल से बाबा टकरा गए, राजेश ने फौरन लपक कर पैर छू लिया. अब बाबा है तो महाराजा. आशीर्वाद दे दिया है. देखते हैं 3 दिसंबर को बाबा के आशीर्वाद का क्या नतीजा निकलता है.
जेसीसी का गणित कौन हल कर रहा?
चुनाव की चाशनी में डूबी कुरकुरी जलेबी खाने का सपना देख रहे कई विधायक प्रत्याशियों का गणित जेसीसी बिगाड़ सकती है. पार्टी अध्यक्ष अमित जोगी को कहीं से जड़ी-बूटी मिल गई है. पूरी पार्टी को तरोताजा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे. नहीं तो एक वक्त था, जब जेसीसी से एक के बाद एक कई नेता दूसरी डगर पकड़ रहे थे. ऐन चुनाव के पहले मिली जड़ी-बूटी ने असर दिखाना शुरू कर दिया है. पार्टी हरकत में आई और दे दना दन प्रत्याशियों के नाम का ऐलान कर दिया. कांग्रेस के बगावती नेताओं को जेसीसी में उम्मीद नजर आ रही है. सराईपाली के विधायक किस्मतलाल नंद टिकट कटने के बाद जेसीसी की नाव पर सवार हो गए. टिकट भी मिल गई. मुंगेली में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रहे सागर सिंह टिकट नहीं मिलने से इस कदर खफा हुए कि पार्टी का हाथ छोड़, जेसीसी का दामन थाम लिया. लोरमी से टिकट भी ले आए. रायगढ़ की पूर्व महापौर मधु किन्नर को टिकट देकर जेसीसी ने माहौल बना दिया. बीजेपी की सांसद रह चुकी कमला पाटले की भतीजी चांदनी भारद्वाज को मस्तुरी से पार्टी ने टिकट दिया, वहीं पामगढ़ से पिछले चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी रहे गोरेलाल बर्मन को मैदान में उतार दिया. कोटा की परंपरागत सीट से रेणु जोगी इस दफे फिर चुनावी मैदान पर उतर रही है, तो ऋचा जोगी अकलतरा से चुनावी रण में कूद रही है. पिछली बार बहुजन समाज पार्टी की प्रत्याशी रहते हुए ऋचा ने अपना खूब दमखम दिखाया था. मामूली अंतर से चुनाव हार गई थी. कांग्रेस को तीसरे नंबर पर धकेल कर खुद नंबर दो पर रहीं. इसके अलावा कई दूसरी सीटों पर भी जेसीसी के प्रत्याशी जीत हार का फासला तय करती कांग्रेस-बीजेपी के रास्ते बड़ा रोड़ा बनते दिख रहे हैं. ऐन चुनाव के पहले पार्टी सुप्रीमो अमित जोगी को केंद्र सरकार ने जेड श्रेणी की सुरक्षा दी है. इसके मायने आप ही ढूंढिए और समझिए. मालूम चलेगा कि जेसीसी का गणित कौन हल कर रहा है?
बीजेपी की ‘वेब सीरीज’
सियासत में अब झंडे, बैनर, पोस्टरों से ही प्रचार प्रसार नहीं होता. गली-गली घूम घूम कर वाल राइटिंग करने में भी अब नेताओं की दिलचस्पी ज्यादा नहीं रही. सोशल मीडिया का जमाना है. वाल राइटिंग से ज्यादा लोग इंस्टाग्राम के रिल्स पर नजर फेर आते है. खैर मुद्दे की बात यह है कि सोशल मीडिया की इस लड़ाई में खबर है कि बीजेपी ने एक वेब सीरीज ही बना ली है. चर्चा है कि प्रधानमंत्री मोदी के हाथों इसकी लांचिंग कराई जाएगी. चुनावी राजनीति में यह एक तरह का नया प्रयोग है. कहा जा रहा है कि इस वेब सीरीज में भूपेश सरकार के कामकाज के उन पहलुओं का छिद्रान्वेषण किया गया है, जो बीजेपी के लिहाज से सियासी हथियार साबित हो सकता है. इस वेब सीरिज की दिलचस्प कड़ी यह है कि जब इसकी स्क्रिप्ट यहां के कलाकारों को पढ़ाई गई, तब कलाकारों ने किनारा ढूंढना ही मुनासिब समझा. सुनते हैं कि फिल्म की शूटिंग बाहर भी की गई है. इस फिल्म को बनाने बड़ी रकम खर्च किए जाने की भी खबर है. एक पुरानी घिसी पिटी कहावत है कि फिल्में समाज का आईना है. बीजेपी को उम्मीद है कि वेब सीरीज जन भावना का रुख बदल सकती है. सूबे की सत्ता के केंद्र के अहम किरदार फिल्म में गढ़े गए हैं. वैसे चुनाव के पहले फिल्में बनने का सिलसिला पुराना है. पिछले लोकसभा चुनाव के पहले एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर और ताशकंद जैसी फिल्म लाई गई थी. राजनीति का पुराना हथियार अब नए कलेवर में छत्तीसगढ़ में इंट्रोड्यूस हो रहा है.
‘कैट’ में चुनौती
हेड ऑफ फॉरेस्ट की नियुक्ति पर वन महकमे में मचे बवाल के बीच पता चला है कि पीसीसीएफ सुधीर अग्रवाल ने कैट ( सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल) में इस मामले को चुनौती दी है. कैट ने इस मामले की पहली सुनवाई भी कर दी है. कहा जा रहा है कि कैट ने हेड ऑफ फारेस्ट की नियुक्ति को लेकर चीफ सेक्रेटरी और फॉरेस्ट सेक्रेटरी से जवाब तलब किया है. बताते हैं कि सुधीर ने जब शासन के समक्ष आवाज उठाई थी, तब हाॅफ की नियुक्ति को जायज ठहरा दिया गया था. तब जाकर उन्होंने कैट का रुख किया. महाराष्ट्र में ठीक इस तरह के एक मामले में कैट ने शासन के आदेश को पलट दिया था. कैट ने इधर भी ऐसा-वैसा आदेश दे दिया, तो मौजूदा हेड आफ फॉरेस्ट को कहीं अपना बोरिया बिस्तर ना समेटना पड़ जाए.
…जब सचिन को लौटना पड़ा
क्रिकेट के धुरंधर खिलाड़ी रहे भारत रत्न सचिन तेंदुलकर पिछले दिनों रायपुर में थे. कान्हा घूमकर रायपुर लौटे थे. होटल मेफेयर में रहते उन्होंने जंगल सफारी घूमने की इच्छा जाहिर की. मगर इच्छा अधूरी रह गई. सचिन जब जंगल सफारी पहुंचे, तब विजिटर टाइम खत्म हो चुका था. जानवरों को खाना खिलाकर भीतर बंद कर दिया गया था. वहां मौजूद अफसरों ने कहा- पहले पता होता, तो अरेंजमेंट हो सकता था. सचिन मायूस हुए ही थे कि सफारी में मौजूद अफसरों ने उन्हें दो साल पहले लगाए गए उनके पौधे को दिखाया. सचिन ने अपने हाथों लगाया पौधा देखा और लौट गए…
चुनावी चुटकुला
नेता का बेटा- पापा मुझे भी राजनीति में उतरना है, कुछ टिप्स दीजिए.
नेता बेटे से- बेटा, राजनीति के तीन कठोर नियम होते हैं, चलो आज पहला नियम समझाता हूं.
नेताजी ने बेटे को छत पर भेज दिया और खुद नीचे आकर खड़े हो गए.
नेताजी बेटे से- बेटा, छत से कूद जाओ.
बेटा नेताजी से- पापा, इतनी ऊंचाई से कुदूंगा, तो हाथ-पैर टूट जाएंगे.
नेताजी बेटे से- बेझिझक कूद जा. मैं हूं ना. पकड़ लूंगा.
बेटे ने हिम्मत की और कूद गया. नेताजी नीचे से हट गए. बेटा धड़ाम से औंधे मुंह गिरा.
बेटा (कराहते हुए)- आपने तो कहा था, मुझे पकड़ लेंगे, फिर हट क्यों गए?
नेताजी बेटे से- ये पहला सबक है, राजनीति में अपने पिता पर भी भरोसा मत करना….
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