Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor Contact no : 9425525128

ठेके पर विभाग

ललचाए मन की कोई सीमा नहीं होती। इस किस्से से इसे समझिए। सूबे के एक मंत्री के विभाग को ठेके पर दिए जाने की चर्चा सरकार बनते ही शुरू हो गई थी, लेकिन अब कहानी उससे आगे की है। पहले कमीशन का दर कम था, लेकिन जैसे-जैसे सरकार में मंत्री के दिन आगे खिसक रहे हैं, उनकी लालच उलांग बाटी लगा रही है और कमीशन का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। कुछ ठेकेदार मिल गए थे। वह यह कहकर रो रहे थे कि अब यह विभाग काम करने लायक नहीं रह गया है। विभाग में कमीशन 40 फीसदी तक जा पहुंचा है। ऐसे में नंगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या जैसा हाल है। विभाग में काम कर रहे कुछ सलीके के अफसर कहते हैं कि हालात बहुत बुरे हो गए हैं। वक्त रहते ठीक नहीं किया गया, तो विकास की कहानी सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह जाएगी। विभाग में विकास नाम की बाल्टी में ढेर सारे छेद हो गए हैं। समय रहते इन छेदों को नहीं भरा गया, तो सब बह निकलेगा। बहरहाल जो चिंता मंत्री और विभाग के आला अफसरों को करनी थी, वह ठेकेदारों और सलीकेदार अफसरों के माथे पर दिख रही है। खैर, सरकार के पीछे खड़ी शक्तियों को यह सब मालूम है। हर मंत्री का हर किया-धरा दर्ज हो रहा है। फिलहाल मालूम नहीं कि आगे क्या होगा, लेकिन इस किस्म के मंत्रियों की दुखती नब्ज पकड़ ली गई है। मौके पर चोट होगा। यह तय है। 

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ये चमक-ये दमक

ये चमक ये दमक, फूल वन में महक, सब कुछ सरकार तुमई से है, इठला के पवन, चूमे सैया के चरण, बगियन मा बहार तुमई से है। इस लोकप्रिय भजन की इन पंक्तियों को सुनने पर सूबे के कुछ मंत्रियों के कर्मकांड याद आने लगते हैं। मंत्रियों की बगिया में बहार सरकार से ही है। सरकार में न तो होते तो चेहरे की चमक न होती। जब ये मंत्री सरकार में नहीं थे, तब उनके चेहरे अलसाए और मुरझाए से थे, मगर जब से सरकार का हिस्सा हैं, तब से उनके चेहरे की रौनक बढ़ गई है। दरअसल यह चमक उस कमीशन की मोटी रकम से है, जिसे पाने की कल्पना जेहन में कभी कौंधी भी नहीं थी। सरकार की बगिया में राज्य के हर कोने से मंत्री लिए गए हैं। मानकर चलिए कि इनमें से पांच मंत्रियों के खिलाफ किस्म-किस्म की शिकायतें दर्ज हुई है। संघ से लेकर संगठन तक और संगठन से लेकर सरकार तक बंद दरवाजे इसकी चर्चा तेज है। सरकार की अगुवाई करने वाले चेहरों के बीच विमर्श इस बात पर भी है कि इस पर लगाम आखिर कैसे लगाया जाए? सरकार पर नियंत्रण रखने वाला बाहरी तत्व कहता है कि बदलाव की आंधी उठने भर की देरी है। एक झटके में कई मजबूत किले ढह जाएंगे, फिर न चमक रह जाएगी और न ही दमक। 

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फुसफुसाहट

कुछ आहटों को अनसुना करना ही बेहतर है। अब देखिए पिछले एक पखवाड़े भर से सूबे की सल्तनत में बड़े बदलाव की आहट को कुछ लोग लाउड स्पीकर लगाकर सुना रहे हैं। क्या संगठन और क्या संघ। हर जगह बेचैनी की खबरें परोसी जा रही हैं। अफसरशाही में खलबली मच गई है। चर्चा जबरदस्त है कि सत्ता के इर्द-गिर्द दिखने वाला हर शांत मन भीतर से भारी अशांत है। इस स्तंभकार से एक शीर्षस्थ नेता ने सिर्फ इतना कहा कि जैसी तस्वीर दिख रही है, दरअसल यह वैसी है नहीं। 

सुनने सुनाने को बहुत कुछ है, लेकिन फ़िलहाल चुप्पी ही बेहतर है। अब इस कहे का आशय लोग अपने हिसाब से निकाल लें। खैर, जो भी हो सत्ता के भीतर ही भीतर चल रही इस फुसफुसाहट ने कईयों के दिल की धड़कनें बढ़ा रखी है। 

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साढ़े नौ बजे 

छत्तीसगढ़ के सचिवालय में इन दिनों एक नई व्यवस्था पर काम चल रहा है। इस नई व्यवस्था के तहत अफसरों और कर्मचारियों को सुबह साढ़े नौ बजे तक दफ़्तर पहुंचना होगा। सुना है कि इसकी नोटशीट चल गई है। लग रहा है कि प्रशासनिक क्रांति का असली पहिया अब जाकर घूमेगा। वह भी ठीक 9 बजकर 30 मिनट पर। यह ख़बर सुनते ही अफसरों और कर्मचारियों को दफ़्तर की दूरी अचानक से बढ़ी हुई दिखाई दे रही है। खैर, सूबे के प्रशासनिक मुखिया को लगता है कि केंद्र सरकार की तर्ज पर ही राज्य का प्रशासनिक कामकाज किया जाना चाहिए। पुराने दौर के अफसरों को यह सब अटपटा लग रहा है। वे उस समय को याद कर रहे हैं जब दफ्तर आने और जाने के समय को लेकर एक शालीन धुंध सी फैली रहती थी। दफ़्तर पहुंचने से ज़्यादा महत्वपूर्ण वहां उनकी मौजूदगी का एहसास होता था, लेकिन जब प्रशासनिक मुखिया ख़ुद 9 बजे दफ़्तर पहुंच रहे हो तब नीचे वालों के पास बहाने की गुंजाइश नहीं रह जाती। उधर एक दिसंबर से अफसरों और कर्मचारियों का स्वागत करने के लिए बायोमेट्रिक मशीनें भी तैयार खड़ी हैं। एकदम शांत, निर्दयी और वैज्ञानिक। यह न तो चेहरा देखती है, न वरिष्ठता, न अनुभव, न योगदान। ये मशीनें सिर्फ उंगली देखती हैं कि उस पर यह लगी है या नहीं?  खैर, बदलाव की बात हो रही है। कहा जा रहा है कि इससे प्रशासन चुस्त होगा, व्यवस्था सधेगी और काम में तेजी आएगी। जो भी हो, नया नियम लागू होने वाला है। लेकिन असल बात यह है कि समय पर दफ्तर पहुँचना आसान है, पर समय पर बदलाव लाना अब भी कठिन।

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बिहार में छत्तीसगढ़

बिहार में एनडीए के हिस्से बड़ी जीत आई। इस जीत के श्रेय की हिस्सेदारी छत्तीसगढ़ ने भी लूटी। छोटी-छोटी हिस्सेदारी का कुल जमा निकाला जाए, तो यह हिस्सेदारी बड़ी हो जाएगी। बिहार चुनाव में भाजपा का प्रबंधन देखने वालों में नितिन नवीन बड़ी भूमिका में रहे। वह छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी हैं, जाहिर है उनकी कोर टीम में छत्तीसगढ़ के धुरंधर भी शामिल थे। नितिन नवीन बिहार में जीत का आधार बनी योजना ‘जीविका महिला’ का पूरा प्रबंधन देख रहे थे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नितिन नवीन के घर ढाई घंटे रहकर चुनावी प्रबंधन की समीक्षा भी की थी। समूचे बिहार में भाजपा के चुनाव प्रबंधन की अगुवाई कर रहे नितिन नवीन की टीम में भूपेंद्र सवन्नी समेत राज्य के नेताओं की एक बड़ी टीम थी। पार्टी ने छत्तीसगढ़ के दो मंत्रियों लखनलाल देवांगन और गजेंद्र यादव की अधिकृत तैनाती कर रखी थी। क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल तीन महीने बिहार में रहे। उनके हिस्से दो लोकसभा क्षेत्र की जिम्मेदारी थी। नितिन नवीन की बांकीपुर विधानसभा सीट पर चुनाव प्रबंधन का इंचार्ज सौरभ सिंह को बनाया गया था। उनके साथ सुशांत शुक्ला, राजा पांडेय, राजीव अग्रवाल, नितिन अग्रवाल, नीलू शर्मा जैसे कई नेता जमे रहे। प्रदेश अध्यक्ष किरण देव, उप मुख्यमंत्री अरुण साह, विजय शर्मा, ओपी चौधरी, केदार कश्यप समेत कई नेता चुनावी प्रचार के दौरान सड़कों पर उतरकर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाते रहे। बांकीपुर वैश्य समाज का गढ़ है, इसलिए छत्तीसगढ़ से वैश्य समाज के नेताओं को अहम जिम्मेदारी दी गई थी। बांकीपुर में छत्तीसगढ़ समा रहा था। नेताओं की भीड़ बढ़ रही थी। इसलिए केवल उन्हीं लोगों को बुलाया गया, जिनकी ड्यूटी लगाई गई थी। केवल 19 नेता ही थे, जिनकी फुल टाइम ड्यूटी थी। बाकी नेता आते थे और जाते थे। 

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राजनीतिक ग्राफ

नितिन नवीन साल 2006 में रांची में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, जब पिता नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा के निधन के बाद उन्हें उप चुनाव लड़ना पड़ा। जीत मिली। विधायक बन गए। तब से लेकर अब तक पाँच बार विधायक रह चुके हैं। नितिन नवीन का पूरा नाम नितिन किशोर सिन्हा है, लेकिन उन्होंने अपने नाम के साथ पिता का नाम जोड़ लिया और नितिन नवीन के नाम से पहचान बनाई। युवा मोर्चा में पाँच साल तक राष्ट्रीय महामंत्री रह चुके नितिन नवीन के साथी रहे प्रमोद सावंत गोवा के मुख्यमंत्री हैं। हर्ष संघवी गुजरात के उप मुख्यमंत्री बनाए गए हैं। अब चर्चा है कि नितिन नवीन बिहार में भाजपा के कोटे से उप मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे। छत्तीसगढ़ में भाजपा का जो-जो नेता प्रभारी बनकर आया। उसका राजनीतिक ग्राफ़ ऊंचा ही उठा है। नरेंद्र मोदी, जे पी नड्डा, राजनाथ सिंह, धर्मेंद्र प्रधान जैसे कई नाम इस सूची में मिल जाएंगे। 

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कस्टोडियल डेथ

बलरामपुर जिले के एक थाने ने रिकॉर्ड दर्ज किया है। यह रिकार्ड एक साल के भीतर दो कस्टोडियल डेथ का है। 9 तारीख को चोरी के एक आरोपी की पुलिस कस्टडी में मौत हो गई। जिले के एसपी साहब तीन महीने की ट्रेनिंग पर गए हैं, ज़ाहिर है उनकी जवाबदारी नहीं बनती, लेकिन विडंबना यह रही कि एसपी के ट्रेनिंग पर जाने के बाद किसी दूसरे अफसर को प्रभार पर नहीं भेजा गया। कस्टोडियल डेथ की घटना घट गई तब अफसरों के कान खड़े हुए। आनन-फानन में 14 तारीख को एक बटालियन में तैनात कमांडेंट को प्रभारी एसपी बनाकर भेज दिया गया। आईजी ने चार पुलिस कर्मियों को लाइन अटैच कर दिया। इससे पहले अक्टूबर 2024 में इसी थाने के बाथरूम में एनआरएचएम के प्यून की लाश मिली थी। तब आठ पुलिस कर्मियों को लाइन अटैच किया गया था। लगता है कि इस थाने में कस्टोडियल डेथ सामान्य घटना बन गई है। घटना घटती है और पुलिस महकमा चंद लोगों को लाइन अटैच कर खानापूर्ति कर देता है। असल सवाल यह है कि एक ही थाने से कस्टोडियल डेथ की घटना बार-बार क्यों घट रही है?