Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor Contact no : 9425525128

लांछन

मंत्री बंगलों पर लांछन लग रहे हैं. अब लांछन तो मंत्रियों पर भी है, लेकिन माननीय है. सीधे मंत्री लिखना ठीक नहीं. मंत्री बंगला लिखना सम्मानजनक होगा. तहसीलदारों के तबादले का मामला ताजा-ताजा है. तहसीलदार संघ के अध्यक्ष ना जाने कहां से साहस बटोर लाए. सीधे मंत्री बंगले पर ही हमला बोल दिया. 15 लाख रुपए लेकर तबादला करने का आरोप जड़ दिया. कोई ऐरा गैरा कुछ कह कर निकल जाए, तो इग्नोर किया जा सकता है. तहसीलदारों के संगठन का नेता आरोप लगा रहा है, तो इस पर भौंहे उठाकर एक बार सोचना चाहिए. हां यह बात और है कि कहीं वह विपक्ष से ना मिला हो? इसकी मालूमात हासिल कर ली जानी चाहिए. बहरहाल जो सामने है, उस पर चर्चा तो की ही जा सकती है. तहसीलदार संघ के अध्यक्ष कह रहे हैं कि एक महिला तहसीलदार का 9 महीने में 3 बार तबादला कर दिया गया. जिस अधिकारी के रिटायरमेंट में छह माह बाकी है, उसका नाम तबादला सूची में आ गया. आईसीयू में भर्ती मरीज का नाम भी तबादला सूची की शोभा बढ़ा रहा है. खुद अध्यक्ष के हिस्से दो साल में छठवां तबादला आया है ( हो सकता है इस सरकार में पहला हो). अब हर मामलों को टेढ़ा होकर डील नहीं किया जा सकता. सरकारी कामकाज चलता रहे, लिहाजा जरूरी है कि थोड़ा लचीला होकर विवाद खत्म कर लेना चाहिए. वैसे भी ये ‘तबादले’ मंत्री बंगले की साख में गिरावट लाने की पहली कड़ी होते हैं.

जंग

प्रदेश भर में तहसीलदारों के हालिया तबादला आदेश में एक निलंबित तहसीलदार का तबादला कर दिया गया. जबकि तहसीलदार को निलंबित हुए 48 घंटे भी नहीं गुजरे थे. बहाली हुई नहीं, इधर तबादले में पोस्टिंग मिल गई. गजब हो गया. नियम कायदा कूड़ेदान में चला गया. हैरानी की एक और बात है. निलंबन अवधि में तहसीलदार बेधड़क सरकारी कामकाज करता रहा. डिजिटल सिग्नेचर का इस्तेमाल कर सौ से ज्यादा जाति प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया. ऊपर से हींग लगे ना फिटकरी रंग चोखा होए वाली कहावत चरितार्थ होती दिखी. निलंबित तहसीलदार हुआ, कटघरे में कलेक्टर को ला दिया गया. तहसीलदारों का संगठन कलेक्टर के खिलाफ जमीन पर उतर आया. कलेक्टर साहिबा जब गरियाबंद जिले की कमान संभाल रही थीं, तब भी एक घेराबंदी की शिकार हो गई थीं. सरकारी दफ्तर में अपने कमरे का दरवाजा खोलकर बैठने वाली कलेक्टर साहिबा का मकसद साफ है. कमरे के भीतर चल रहे काम की जानकारी बाहर बैठे आदमी को हो जाए. इससे पारदर्शिता बनी रहती है. नियत नेक है. मगर उनकी नेकी की इस दीवार को उनके ही मातहत बार-बार ढहाने आ खड़े होते है. फिलहाल ऊपर बैठे अफसरों की जिम्मेदारी बनती है कि प्रशासन का इकबाल बना रहे, इसलिए जरूरी है कि बीच-बीच में नियम कायदों की म्यान से तलवार निकाल उस पर लगे जंग को साफ करते रहें. ऐसे मातहत जंग सरीखे हैं, जो सरकारी सिस्टम को ही खोखला कर देंगे. फिलहाल निलंबित तहसीलदार बहाली के बगैर नई पोस्टिंग कैसे पा गया? यह सवाल है.

बेअदबी

बेअदबी देखिए. वित्त विभाग के एक आदेश की ढीठ अफसरों ने बलि चढ़ा दी. वह भी छाती ठोककर. राज्य की वित्तीय स्थिति देखते हुए वित्त विभाग ने 7 जून 2024 को एक आदेश जारी कर किराए की गाड़ियां लेने पर प्रतिबंध लगा दिया था. अपवाद स्वरूप बहुत ज्यादा जरूरी होने पर वित्त की सहमति से गाड़ियां किराए पर लिए जाने की छूट दी गई थी. किराए की गाड़ियों के नाम पर बड़ा खेल चल रहा था. राज्य भर में किराए की गाड़ियों का बोझ सरकारी खजाने पर था. सरकारी खजाने की सेहत गिर रही थी. इसलिए आदेश निकाला गया. वित्त विभाग ने अपने आदेश में पद के अनुरूप गाड़ी लेने की पात्रता निर्धारित कर दी थी. मसलन इनोवा जैसी गाड़ियां कलेक्टर, एसपी, एचओडी या इससे ऊपर के अफसरों के लिए और इससे नीचे सेगमेंट की गाड़ियां अन्य अफसरों के लिए तय की गई. पिछले दिनों सर्किट हाउस में कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में राज्यभर के अफसरों का जमावड़ा हुआ. सुजुकी सियाज कार से उतरने वाले कई सीनियर अफसरों की आंखें, जिला पंचायत सीईओ और सीएमओ जैसे अफसरों को इनोवा क्रिस्टा से उतरते देख चौंधिया गई. इनोवा की पात्रता सीनियर अफसरों को हैं और सियाज की पात्रता जूनियरों को. मगर यहां तस्वीर बिल्कुल उलट थी. अपने सीनियरों के सामने इनोवा क्रिस्टा से उतरते जूनियर अफसर मानो कह रहे हो, ‘टेंशन नहीं, जिद पालो’. आदेश आते-जाते रहेंगे. सुख भोग लेना ही फायदे का सौदा है. अब देखते हैं कि अफसरों के इस सुख पर वित्त विभाग की कैंची कब चलती है.

बेपटरी विभाग

किसी विभाग की बिगड़ती सेहत को दुरुस्त करना हो तो वहां एक काबिल अफसर बिठा दो. पिछली सरकार में वन महकमा ठेके पर चला गया था. साय सरकार ने एसीएस ऋचा शर्मा को इसकी जिम्मेदारी दे दी. एक हद तक विभाग पटरी पर लौट आया है. अब उन्हें फूड की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई है. रमन सरकार में वह फूड संभाल चुकी हैं. तब राइस मिलर्स हड़ताल पर चले गए थे. सरकार मिलिंग को लेकर परेशान थी. सरकार ने जब ऋचा शर्मा को टास्क दिया. राइस मिलर्स को झुकना पड़ा था. बहरहाल सूबे के एक विभाग की खराब सेहत से सरकार परेशान है. सरकार इस विभाग में कुछ बदलाव करना चाहती है. सरकार को डर है कि पिछली सरकार में जो हाल माइनिंग और आबकारी विभाग का हुआ, वह हाल इस विभाग का ना हो जाए. इसलिए समय रहते मर्ज ढूंढना जरूरी है. पिछले दिनों की बात है एक महिला अफसर को विभाग की बागडोर सौंपने की पहल की गई. सरकार ने महिला अफसर को बुलाकर यह बता दिया कि उन्हें फलाने विभाग की जिम्मेदारी दी जा रही है. महिला अफसर ने विनम्रता पूर्वक हाथ जोड़ लिया. निजी कारणों का हवाला देते हुए कोई दूसरा विभाग दिए जाने का अनुरोध कर लिया. महिला अफसर विभाग में चल रही कारस्तानियों से वाकिफ थी. खैर, यह विभाग अब भी काबिल अफसर के हाथ ही है, मगर उन पर जिम्मेदारियों का बोझ ज्यादा है. अधीनस्थ अफसरों के कंधों पर विभाग चल रहा है. बेपटरी विभाग को पटरी पर लाने कायदे का अफसर सरकार को नहीं मिल रहा. सरकार चिंतित है.

सुर्खियां

जेल। सलाखें। कोयला। कोयले की कालिख से चमचमाता चेहरा। टेढ़े मिजाज का एक रौबदार अफसर। ईडी। ईओडब्ल्यू-एसीबी…’कोल-कथा’ के एक नए अध्याय के लिए बस इतना ही कुछ चाहिए था. कोयले की कालिख से सने हाथों से रुपए गिनने के सबूत के बाद सींखचों में भेजे गए आरोपी से रौबदार अफसर की हालिया मुलाकात ने खूब सुर्खियां बटोरी. जाहिर है यह मुलाकात एक आरोपी और एक अफसर के बीच की थी. राम-भरत मिलाप तो था नहीं. तल्ख मिजाज की पर्याप्त गुंजाइश थी. किसी चीज की गुंजाइश नहीं थी, तो मिलने के तौर तरीके की. जिस पर सवाल भी उठाए जा रहे हैं. इस मामले के कई पक्ष हैं. एक पक्ष अफसर के मिलने के तरीके पर विरोध दर्ज कर रहा है. मंत्री से लेकर संगठन के सिपहसलारों तक शिकायती लहजे में चर्चाएं पहुंच रही हैं. दूसरा पक्ष है, जो यह मानता है कि जांच की कोई सीमा नहीं. किसी जांच की पड़ताल इसलिए नहीं रोक दी जाती कि आज ‘छुट्टी का दिन’ है. एक हाईप्रोफाइल मामले की जांच का कोई दिन तय नहीं होता. एक उच्च पदस्थ अफसर कहते हैं कि एक टेढ़ा आदमी ही सबको सीधा रख सकता है. एक मुलाकात सुर्खियां बन गई. हर सुर्खियों की एक उम्र होती है. हर नई सुर्खियों के साथ पुरानी सुर्खियां बासी होती चली जाती हैं. मगर दस्तावेजों में इसका जिक्र बाकी रह जाता है.

कांफ्रेंस

मुख्यमंत्री ने कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस लिया. नरम मिजाज के मुख्यमंत्री के शब्दों में गर्माहट भी रही. रेवेन्यू के मामलों में ढिलाई पर कलेक्टरों को घुट्टी पिलाई, तो लाॅ एंड आर्डर, अवैध शराब की बिक्री, भू माफियाओं को संरक्षण देने जैसे मुद्दों पर एसपी की खिंचाई भी की. कलेक्टर कांफ्रेंस खत्म होने के बाद दो कलेक्टरों और एक एसपी का तबादला कर मैसेज दे दिया कि काम ठीक कर लो, नहीं तो सरकार ठीक कर देगी. हालांकि बदलाव की चर्चा में आधा दर्जन से ज्यादा कलेक्टर-एसपी थे. कुछ इधर-उधर किए जाने वाले थे. मगर सूची एक-दो नाम की ही आई. कईयों को कुछ वक्त के लिए जीवनदान मिल गया. वैसे भी इस तरह के कांफ्रेंस के बाद कलेक्टर-एसपी को हटाया जाना उनका सीआर खराब करने जैसा है. सरकार को शायद लगा हो कि फिलहाल संदेश देने भर से काम चल जाएगा. तबादले के मामले में सूबे की सरकार के हाथ जरा तंग हैं. विधानसभा के मानसून सत्र से चली आ रही तबादले की चर्चा खत्म नहीं हो रही. कई जिलों के कलेक्टर-एसपी संशय में है. संशय की स्थिति में काम प्रभावित होता है.