
live and let loot
राज्य में कई जिलों की पुलिस अपराध रोकने नहीं, बल्कि उसका मैनेजमेंट करने में जुटी है. कभी पुलिस की वर्दी अपराधियों में डर का पर्याय थी. अब सिफारिश का साइन बोर्ड बन गई है. मालूम चला है कि एक जिले के एसपी साहब की नजर में जुआ-सट्टा ‘अपराध’ नहीं है. यह एक किस्म की आर्थिक गतिविधि है. शायद इसे सरकार की GDP में शामिल करना बाकी रह गया है. एसपी साहब इतने ‘शांतिप्रिय’ हैं कि अपराधियों को disturb करना उन्हें ठीक नहीं लगता. उन्होंने अपना सिद्धांत बना रखा है live and let loot. एसपी साहब ने लुढ़कते शेयर बाजार को छोड़, जुए के बाजार पर भरोसा बरकरार रखा है. जंगलों के किनारे बसे इस जिले को आप जुए का जंगल कह सकते हैं. एक दूसरे जिले के एसपी साहब अवैध शराब की गाड़ियों की पूरे ईमान से ट्रैकिंग करवा रहे हैं. हर खेप पर नजर है, ताकि कहीं कोई मुनाफा मिस न हो जाए. सीमावर्ती इस जिले में अवैध शराब की खेप पहुंचने की शिकायत यूं ही नहीं बढ़ गई. एक अन्य जिले के एसपी साहब तो ट्रांसपोर्टर निकले. वे ट्रक खुद नहीं चलाते, मगर सुना है कि रिश्तेदारों के नाम पर उनकी 30-40 ट्रक कोयला ढो रही हैं. अफसरशाही और उद्यमिता का ऐसा संगम तो प्रबंधन की पढ़ाई में भी नहीं मिलेगा. उनके इस उपक्रम को लेकर कह सकते हैं कि ये ट्रांसपोर्ट नहीं, ये अनूठे किस्म का ट्रांसफॉर्मेशन है. बहरहाल, सच कहें तो एसपी साहबों की इन करतूतों से कानून गिरा नहीं है, उसे आराम से लेटने दिया गया है. मखमली गद्दे पर, जहां जुर्म उसके सिरहाने बैठा लोरी गा रहा है. कभी-कभी थोड़े समझदार लोग पूछ बैठते हैं, आखिर यह सब कब सुधरेगा? इस पर जवाब आता है, पहले वो सुधरे जो पकड़े जाने से डरते हैं और इसके बाद वो जो पकड़े जाने वालों को बचाते हैं.
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मरम्मत
एक खूबसूरत शेर की पहली पंक्ति है, ‘हमीं थे ऐसे सर-फिरे हमीं थे ऐसे मनचले, कि तेरे ग़म की रात में चराग़ की तरह जले’…सूबे के दो एसपी साहबों के दिल, इन दिनों रात के चिराग की तरह खूब जल रहे हैं. उनके दिलों की मरम्मत जरूरी है और मरम्मत का औजार ‘इश्क’ है. इश्क की गहराई में उतरने की खुमारी रह-रह कर खूब हिलोरे मार रही है. उनका इश्क छिपाए नहीं छिप रहा. ऊपर से दिक्कत ये है कि दोनों एसपी साहब शादी शुदा हैं. इस इश्क पर पर्दा जरूरी है. एक शायर ने लिखा है, ‘एक झीना-सा परदा था, परदा उठा, सामने थी दरख्तों की लहराती हरियालियां, झील में चांद, कश्ती चलाता हुआ, खुशबू की बांहों में लिपटे हुए फूल ही फूल थे, सितारों की साड़ी पहन गोरी परियां कहीं से उतरने लगीं, उनकी पाजेब झन-झन झनकने लगी, हम बहकने लगे’…शायर की इस शायरी की पंक्तियों की तरह ही एसपी साहबों का इश्क परवान चढ़ ही रहा था कि अचानक अड़चन आ खड़ी हुई. पहली बात एक एसपी साहब की, जो एक सुदूर जिले में बिगड़ती कानून व्यवस्था की मरम्मत करने की जवाबदारी लेकर गए थे, मगर दिल की मरम्मत के काम में जुट गए. उनका इश्क महकने ही वाला था कि चोट खा बैठा. वैसे वर्दी वाला आदमी जब चलता है, तो उसके पैरों से भी जमीन पर चोट होती है. इश्क में डूबा आदमी जब चलता है, तो पैरों से राग सुनाई पड़ता है. यहां वर्दी भी थी और इश्क भी. चोट, राग से मिल गया. एसपी साहब की खिदमत में लगे एक नौकर ने उनकी पत्नी को खत लिख दिया. खत में लिखा, जिंदगी भर के फासले से बेहतर हैं, फिलहाल की इस दूरी को मिटा दी जाए. खत मिलते ही पत्नी साजो-सामान लेकर एसपी साहब के साथ रहने पहुंच गईं. इश्क नाम के औजार से चल रही मरम्मत ने दिल को और गहरा जख्म दे दिया. एक दूसरे जिले के एसपी साहब नवाबों के शहर से शहनाई बजा आए थे. खूब दान-दो-दहेज मिला था. बावजूद इसके उन्होंने अपने दिल की मरम्मत का कारोबार शुरू कर दिया. यहां भी पर्दा झीना ही निकला. खबर बाहर आ गई. अब शहजादी से तल्खी बढ़ने की खबर है. खैर, एसपी साहबों के इश्क के इन मसलों पर चंद पंक्ति बाकी रह गई हैं. ‘एक परदा था झीना-सा, परदा गिरा और आँखें खुली, खुद के सूखे हलक में कसक-सी उठी, प्यास जोरों से महसूस होने लगी’…
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पीए दरबार
सुशासन की चमचमाती सड़क पर एक विभाग ने ट्रैफिक सिग्नल लगा दिया है. ये सिग्नल जिस चौक पर लगा है, उसका नाम है पीए दरबार. यहां लाल सिग्नल दरअसल पीए की आंखें हैं. एक बार पीए की नजर हरी हो गई फिर देखिए कैसे ट्रांसफर-पोस्टिंग की गाड़ी सीधे चौथे-पांचवे गियर में रफ्तार से निकल जाती है. सरकार नए-नए निवेश जुटाने के जतन कर रही है. इस पीए ने भी ट्रांसफर टेक प्राइवेट लिमिटेड नाम का स्टार्ट अप खोल लिया है, वह भी बिना रजिस्ट्रेशन के. इस पीए का आत्मविश्वास इतना मजबूत है कि दिनदहाड़े खुलेआम सामान्य काल पर एमडी के नाम पर वसूली अभियान चला रहा है. अब एमडी को इसकी जानकारी है या नहीं? ये तो वहीं जाने, मगर उनकी चुप्पी बताती है कि ये स्टार्टअप उनका ही ब्रेन चाइल्ड है. खैर, पीए किसी अफसर के आंख, कान, नाक, बाल सब होते हैं. आइए इसे समझते हैं. ‘आंख’- पीए को यह बखूबी पता होता है कि कौन आया है? क्यों आया है? किसे बिठाना है और किसे भगाना है? ‘कान’- किसी अफसर के पीए के कान हर वक्त चौकन्ने होते हैं. अफसर फाइलों में व्यस्त होते हैं, तो अपना एक कान पीए के पास रखवा आते हैं. पीए हर वह बात सुनता है, जिसे जानना जरूरी हो. ‘नाक’- पीए की नाक इतनी तेज़ है कि हर तरह की गंध वह सूंघ लेता है और अगर लिफ़ाफे में सही मात्रा में सुगंध हो, तो हवा को इतना शुद्ध बता देता है कि साहब को एलर्जी तक नहीं होती. ‘बाल’- अफसर के बालों की इतनी चिंता तो पत्नी भी नहीं करती होगी, जितनी पीए करता है. अगर किसी फाइल में अफसर का एक बाल भी टूटकर गिर जाए, तो फौरन कह देता है, साहब आप चिंता न करिए. आने वाले दिनों में एकाउंट सेटल हो जाएगा. एक अच्छा ‘पीए’ किसी अफसर की जिंदगी बदल सकता है. क्या मालूम कि भविष्य में अफसरशाही अफसरों की ट्रेनिंग में एक नया माड्यूल जोड़ दे, How to impress a PA in 30 seconds!
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घिसा जूता
निगम,मंडल, आयोग और बोर्ड में नियुक्तियों का दौर शुरू हुआ. नियुक्तियां हुई, तो दो तरह की नाराजगी उफान पर आ गई. एक नाराजगी उन नेताओं की थी, जो चाहते थे शीश महल, लेकिन मिली झोपड़ी. और दूसरी नाराजगी उन नेताओं की थी, जो संघर्षों के दिनों में न जाने अपने कितने ही जूते घिसवा चुके थे. कम से कम घिसे हुए और टूटे फूटे जूतों को ही एक बार देखकर उन्हें कोई पद दे दिया जाता. सरकार और संगठन को कम से कम इतनी व्यवस्था तो कर ही देनी चाहिए थी कि उनके संघर्ष के साथी सरकारी पैसों से दो जोड़ी अच्छे जूते ही खरीद लेते. खैर, कार्यकर्ताओं को समझ जाना चाहिए कि उनके हिस्से कुछ है, तो केवल ‘संघर्ष’ है. वैसे संघर्ष के दौर के कुछ चेहरों की सरकार ने खूब चिंता की है और ठीक-ठाक जगह पर बिठा दिया है. सबसे अजीब उन नेताओं के साथ हुआ, जिनके नाम का ऐलान तो कर दिया गया है, लेकिन उनकी ताजपोशी होने पर ठहराव आ गया है. अल्पसंख्यक आयोग का मसला हाईकोर्ट में चल रहा है, खाद्य आयोग के मौजूदा अध्यक्ष का कार्यकाल जुलाई में खत्म हो रहा है, समाज कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष की नियुक्ति का नोटिफिकेशन केंद्र जारी करता है. सो उनके पास इंतजार करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं. निगम,मंडल, बोर्ड और आयोग में नियुक्ति की दुनिया बड़ी अजीब है. अब देखिए न नियुक्ति में कई मंत्रियों से पूछपरख नहीं होने पर वह भी मुंह फुलाए बैठे हैं. क्या ही किया जा सकता है?
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सीएस की दौड़
चीफ सेक्रेटरी अमिताभ जैन का रिटायरमेंट जून में है. इससे पहले अगर वह चीफ इंफोरमेशन कमिश्नर बना दिए गए, तो जाहिर है नए चीफ सेक्रेटरी का प्रोसेस सरकार को जल्द पूरा करना होगा. मगर सरकार के सामने बड़ा सवाल है कि चेहरा किसे बनाया जाए? पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश की स्थिति भी सरकार ने देख ली है. मध्यप्रदेश में एसीएस राजेश राजौरा को चीफ सेक्रेटरी बनाए जाने का हल्ला जमकर मच गया. उनका दफ्तर बधाईयों के गुलदस्तों से भर गया. फोन पर बजने वाली हर घंटी congratulation कहने वालों की होती. मध्यप्रदेश के अफसर बताते हैं कि मुख्यमंत्री मोहन यादव की भी पहली पसंद राजेश राजौरा ही थे, मगर मध्यप्रदेश की प्रशासनिक बिरादरी की नियति कुछ और ही थी. दिल्ली ने अनुराग जैन को चीफ सेक्रेटरी बनाकर भेज दिया. मुख्यमंत्री मोहन यादव हाथ मलते रह गए. अब बारी छत्तीसगढ़ की है. सरकार अपनी तरफ से किसी तरह की हलचल नहीं चाह रही. सीनियरिटी में 91 बैच की रेणु पिल्ले सबसे आगे हैं. इसके बाद 92 बैच के सुब्रत साहू का नंबर आता है. 93 बैच के आईएएस अमित अग्रवाल सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं. फिर 94 बैच का नंबर खुलता है, जिसमें ऋचा शर्मा, निधि छिब्बर, विकास शील और मनोज पिंगुआ के नाम हैं. निधि छिब्बर और विकास शील भी डेपुटेशन पर हैं. खैर, सरकार अपने कंफर्ट के हिसाब से चेहरा चुनती रही है. सेंट्रल डेपुटेशन पर गए कुछ नाम लौटना नहीं चाहते और राज्य में काम कर रहे कुछ नामों पर सरकार सहमत नहीं दिखती. सरकार के पास अब ज्यादा वक्त नहीं है. देखिए किसके नाम की लाटरी खुलती है.
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गेंद किसके पाले में?
सूबे में मंत्रिमंडल विस्तार एक रुका हुआ फैसला बनकर रह गया है. पहले चर्चा उठी थी कि दिसंबर में शपथ ग्रहण समारोह हो जाएगा. मंत्रियों के नाम उछल-उछल कर सुर्खियां बनते रहे. फिर निकाय चुनाव का ब्रेकर आया. इसके बाद लगा था कि बजट सत्र खत्म होते ही विस्तार को हरी झंडी मिल जाएगी, लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार की ट्रेन पटरी पर आने के पहले ही बेपटरी हो गई. इस दफे पक्की खबर आई थी कि 10 अप्रैल को शपथग्रहण समारोह तय है. प्रशासनिक महकमे में भी इसकी तैयारियां मोटे तौर पर शुरू हो गई थी. छुट्टी पर जाने वाले कुछ अफसरों की छुट्टी रद्द कर दी गई थी, लेकिन ऐन वक्त पर ‘वीटो’ लग गया. एक आला नेता एक नाम पर सहमत नहीं हुए. गेंद अब दिल्ली के पाले में है.