
मेरे मित्र
छत्तीसगढ़ विधानसभा के नए भवन के उद्घाटन समारोह के मंच पर सब कुछ वैसा ही था जैसा किसी औपचारिक समारोह में होता है, मगर एक बात अलग थी। प्रधानमंत्री मोदी की ज़ुबान पर बार-बार लौटता एक नाम, जिसमें वह कहते रहे “मेरे मित्र डॉक्टर रमन सिंह”। प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में तीन बार उच्चारित यह नाम स्वाभाविक नहीं था, बल्कि इसमें किसी इशारे की गूंज थी। वैसे भी राजनीति में शब्द केवल बोले नहीं जाते, तौले भी जाते हैं और जब प्रधानमंत्री मोदी किसी मंच से पूर्व मुख्यमंत्री की इस तरह तारीफ करें, तो इसे महज सिर्फ प्रशंसा के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ऊंचाई पर बैठे हैं। ऊंचाई पर बैठे नेता के मुंह से निकली तारीफ दरअसल एक तरह का हथियार है। जो लोग समझते हैं कि मोदी की ज़ुबान से “मित्र” शब्द सहज निकला होगा, वे राजनीति के व्याकरण से अनभिज्ञ हैं। राजनीति में हर शब्द संदेश है। अब लोग प्रधानमंत्री मोदी के कहे गए शब्द ‘मेरे मित्र’ का अपने-अपने हिसाब से आंकलन कर रहे हैं। राजनीतिक समीक्षक कहते हैं कि संकेतों की भाषा बड़ी खतरनाक होती है। प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों पर डॉ. रमन सिंह की मुस्कुराहट संतुलित थी। यह न गर्व की थी और न संकोच की थी। बहरहाल महज दो शब्द ‘मेरे मित्र’ ने सूबे की सियासत का पारा दो डिग्री तक ऊपर चढ़ा दिया है।
कुछ नुकीले पत्थर
सरकार बहती हुई नदी की तरह दिखती है। बाहरी नजर में स्थिर, तेज और शक्तिशाली। मगर नदी के भीतर पत्थरों का अपना संसार होता है। कुछ पत्थर छोटे होते हैं, कुछ नुकीले। कुछ पानी को मोड़ते हैं, कुछ भीतर से चोट पहुंचाते हैं। बाहरी दुनिया को लगता है कि बहाव सीधा और शांत है, लेकिन नदी के भीतर हर टकराहट निशान छोड़ती है। सूबे की सरकार में भी कुछ नुकीले पत्थर अब धीरे-धीरे अपना निशान छोड़ रहे हैं। चर्चा बड़ी ज़ोर की है कि एक मंत्री और कुछ अधिकारियों का गुट बन गया है। इस गुट की कुछ बैठकें हुई हैं। मंत्री की राजनीतिक यात्रा बहुत लंबी और सधी हुई रही है। दूर की कौड़ी खेलने के हुनरमंद खिलाड़ी है। मगर जिन कंधों पर चढ़कर वह बड़ी सियासी पारी खेलने का इरादा रखते हैं, उन कंधों ने हमेशा अपना बोझ ज़मीन पर पटका है। उन कंधों के भरोसे की नींव हिली हुई है। खैर, इस गुट की कला इतनी निपुण है कि वह सत्ता के केंद्र में बैठकर खुद को स्थिर दिखा रहे हैं, लेकिन भीतर ही भीतर अपनी ताक़त को पुख्ता करने में जुटे हैं। हुकूमत समय रहते अपना आफ़्ताब-ए-इक़बाल बुलंद कर दे, तो ही अच्छा है।
हंसों का जोड़ा
पिछले दिनों सूबे के एक आईपीएस के खिलाफ एक सब इंस्पेक्टर की पत्नी ने यौन प्रताड़ना की शिकायत दर्ज कराई। इस शिकायत की चर्चा उठी, तब मालूम चला कि आईपीएस ने भी डीजीपी से शिकायत कर महिला पर ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया है। पहले इस शिकायत की चर्चा पुलिस बिरादरी के भीतर थी, लेकिन बाद में बाहर आ गई। इस तरह की शिकायतें जब कहीं दर्ज होती हैं, तो छिपाए नहीं छिपती। फ़िलहाल जांच कमेटी बन गई है। अब तक का अनुभव तो यही कहता है कि इस तरह की द्विपक्षीय शिकायत पर कुछ होना जाना नहीं है। मुमकिन है कि यह मामला भी रफ़ा-दफा हो जाएगा। खैर, जब-जब ऐसे प्रकरण सामने आते हैं, तो इसकी आड़ लेकर एक-दो किस्से और सुनाई दे जाते हैं। अब दो आईपीएस के किस्से भी हवा में तैरने लग गए हैं। एक सीमावर्ती जिले के एसपी साहब हैं और दूसरे लंबे समय तक एसपी रह चुके और फिलहाल लूपलाइन में पड़े एक अफसर हैं। चूंकि इन दोनों अफसरों के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं हुई है, इसलिए ये नाम सुर्खियों में नहीं है। दरअसल बात यह है कि ब्यूरोक्रेसी में पद, पैसा और प्रतिष्ठा के बाद अफसरों की जिंदगी इससे ज्यादा मांगती है। और ज्यादा की यही मांग इस तरह की कहानियों के साथ सामने आती है। सूबे के एक सीनियर ब्यूरोक्रेट के पास इस तरह के अनगिनत किस्से है। वह कहते हैं कि आंकड़ों में इसे गिना जाए, तो यह मानकर चलिए कि ब्यूरोक्रेसी में 50 फीसदी अफसरों के नाम सामने आ जाएंगे। अब सरकार को इस तरह की शिकायतों पर ध्यान देना बंद कर देना चाहिए, बशर्तें यह प्रताड़ना की स्थिति तक ना पहुंचा हो। सूबे में कलेक्टर-डिप्टी कलेक्टर। एसपी-डीएसपी। एसपी-सिपाही। डीएफ़ओ-एएसपी। एसपी-जज की बेटी। सचिव-कारोबारी जैसे न जाने कितने हंसों का जोड़ा घूम रहा है। दुआ है कि इन जोड़ों की सलामती बनी रहे। प्रेम करना गुनाह नहीं है। प्रेम की कोई उम्र भी नहीं। बस प्रेम में कोई हिंडन एजेंडा न हो।
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डायरी
कोल घोटाले का किंगपिन कहे जाने वाले सूर्यकांत तिवारी से जुड़ी डायरी में कुछ अफसरों का नाम पैसा लेने नहीं, बल्कि देने वालों के रूप में दर्ज है, लेकिन यह स्पष्ट भी है कि इन अफसरों का नाम कोल घोटाले से नहीं जुड़ा है। न जाने सरकार इस पर संज्ञान लेगी भी या नहीं। खैर, सरकारों में इस तरह की कई डायरियां मेंटेन करनी होती है, क्योंकि एक सच यह भी है कि कच्चे-पक्के के हिसाब से सिर्फ कारोबारी नहीं चलते हैं, सरकार भी चलती है। फिर सारा दोष सिर्फ अफसरों पर लाद देना कहां का इंसाफ है? परिवहन, आबकारी, पुलिस, फारेस्ट, फूड, रजिस्ट्री जैसे ढेरों विभाग सिर्फ पक्के के हिसाब पर चलने लगे, तो सरकार के ग़ैर जरूरी खर्च कहां से पूरे होंगे? इसलिए कच्चे का सौदा जरूरी है। और हर कच्चे के सौदों पर जाँच एजेंसियां कुंडली मारकर बैठ जाएंगी, तो यकीन मानिए सरकारी सिस्टम ढह जाएगा। नेता खून के आंसू रोने लगेंगे और अफसर कटोरा लिए खड़े मिलेंगे। सबकी जेब में सुराख़ हो जाएगा।
मोदी है, तो मुमकिन है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छत्तीसगढ़ आमद ने सरकार का सीना चौड़ा कर दिया है। सरकार ने भी प्रधानमंत्री के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ी। बगैर लंच ब्रेक के पांच बड़े कार्यक्रम हो गए, फिर भी मोदी थके नहीं दिखे। अलबत्ता राज्य के कई नेताओं के चेहरे पर थकान ज़रूर उमड़ पड़ी, मगर मोदी थे, तो जोश बरकरार रखना ही था। सो नेता मंत्री भागते-दौड़ते दिखे। प्रधानमंत्री के दौरे को लेकर सरकार ने खूब मेहनत कर रखी थी। इस महीने के अंत में प्रधानमंत्री मोदी दूसरी बार डीजीपी कांफ्रेंस में शामिल होने छत्तीसगढ़ आएंगे। एक महीने के भीतर दो बार प्रधानमंत्री का दौरा होना राज्य के लिए बड़ी बात है। अपने अगले दौरे में मोदी भाजपा कार्यालय भी जाएंगे। मोदी जब किसी राज्य के भाजपा कार्यालय जाते हैं, तो सत्ता-संगठन की पूरी कुंडली उनके हाथ में होती है। कौन सा नेता, कौन सा मंत्री कितने गहरे उतर चुका है? इसकी पूरी मालूमात हासिल कर वह आते हैं। सो उनके अगले दौरे पर नेताओं-मंत्रियों का रक्तचाप बढ़ा मिल सकता है। भाजपा में प्रयोगवाद की शुरूआत करने वाले नेता मोदी ही हैं। छत्तीसगढ़ के अपने अगले दौरे के बाद न जाने मोदी छत्तीसगढ़ में कौन सा प्रयोग कर बैंठे? क्योंकि मोदी है, तो मुमकिन है।
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फिर आएगी लिस्ट ?
राज्योत्सव के शुभारंभ के ठीक पहले सरकार ने आनन-फ़ानन में आईपीएस अफसरों की एक छोटी सूची जारी की थी। क़रीब आधा दर्जन जिलों के अफ़सर उस सूची में छूट गए थे। अब जब राज्योत्सव का शुभारंभ हो चुका है, तो माना जा रहा है कि आईपीएस अफसरों के तबादले की एक और सूची जारी होगी। कई जिलों के एसपी साय सरकार बनने के बाद से अब तक क़ाबिज़ हैं। तबादले की आहट उनके दरवाजों तक होगी। यही हाल कलेक्टरों का भी होगा। सरकार बनने के बाद से अब तक जमे कलेक्टरों में से कुछ चुनिंदा लोगों को इधर से उधर किया जाएगा और कुछ लोगों को बाबूगिरी में लगाया जाएगा। प्रशासनिक महकमे की तैयारी पूरी है। बस इंतज़ार मुहर लगने का है।

