Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor

गिरने से ज्यादा पीड़ादायक कुछ नहीं 

गिरना कैसा भी हो. गिरने से ज़्यादा पीड़ादायक कुछ नहीं. गिरा कई तरह से जाता है. जनता टैक्स पटाने के बाद भी मूलभूत सुविधाओं की अपनी बुनियादी मांगों की दरख्वास्त लिए दफ्तरों के चक्कर काट-काट कर हर रोज गिरती हपटती है. अपनी ही जमीन पर मकान बनाने की अनुमति के लिए पटवारी से लेकर रेवेन्यू अफसर तक रिश्वत देकर गिरना नैतिक रूप से गिरने की तरह ही है, फिर भी सिस्टम है. भला लोग करे भी तो क्या करे. मजबूरी में गिरते हैं, लेकिन यहां तो गिरने का रिकॉर्ड कायम हो रहा है. वह भी खुलेआम. पूरी बेशर्मी से. पहले टेंडर जारी किए बगैर डिवाइडर के सौंदर्यीकरण के नाम पर करोड़ों रुपए का ठेका देने की खबर सुर्ख़ियां बनी थी. अब पूरी की पूरी कॉलोनी अवैध बसाने की चर्चा निकली है. इस दफे सड़क-नाली बनाने का टेंडर जारी किया गया, मगर अवैध कालोनी तक सुविधा पहुंचाने के लिए. सुना है कि बिजली खंभा लगाने का प्रस्ताव भी भेजा गया है. जहां काम होना है, वहां हो नहीं रहा, मगर अवैध कालोनी तक सुविधाएं पहुंचाने की कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही. सुनते हैं कि एक-दो नहीं, बल्कि 52 एकड़ जमीन पर अवैध कालोनी तन रही है. हालांकि इस बीच मालूम चला है कि निजाम की सल्तनत में एक वजीर है, जिसने नियम कायदे का रोड़ा अटका दिया है. 

‘सियासत’ हुई फुस्स !

प्रधानमंत्री आवास योजना को लेकर बीजेपी सियासी महफिल लूटने चली थी. मोर आवास, मोर अधिकार का नारा बुलंद किया गया. कांग्रेस विधायकों का घर घेरा गया. आंकड़ों की मीनारें खड़ी की गई. गरीबों के हिस्से का 16 लाख मकान छीनने का संगीन आरोप सरकार पर मढ़ा. मगर लगता है कि सियासी महफिल की रौनक मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यह कहते हुए लूट लिया कि केंद्र अगर जनगणना नहीं कराती. तो हम सर्वे कराकर वाजिब हितग्राहियों को पक्के मकान खुद देंगे. 2011 के बाद से जनगणना हुई नहीं, ऐसे में भूपेश की दलील है कि जनगणना के पुराने आंकड़ों को आधार मानकर आवास बनाए जाएंगे, तो कई पात्र हितग्राही वंचित हो जाएंगे. उनका क्या कसूर. बात बिल्कुल ठीक भी है और ठीक नहीं भी है, क्योंकि जिन लोगों को आवास मिल जाना चाहिए था, उनकी मायूसी, माथे पर पड़ रही सिलवटों से मालूम की जा सकती है. इधर जिन लोगों की गणना हुई ही नहीं है, उनका क्या होगा? पुराने आंकड़ों के हिसाब से वह वंचित हो जाएंगे. खैर एक अप्रैल से सर्वे शुरू होगा. मई आखिरी तक सर्वे रिपोर्ट आएगी. नवंबर-दिसंबर में चुनाव होने है. अक्टूबर में आचार संहिता लग सकती है. आवास वैसे भी बन नहीं रहा था. चुनाव के पहले बनने की कोई संभावना भी नहीं दिख रही. 

फूड अफसर के कारनामे

रायपुर से लगे एक जिले के फूड अफसर पूरे फार्म में चल रहे हैं. सीना ठोक कर कहते हैं, ”ऊपर वालों को एक करोड़ रुपए देकर आया हूं. वसूल तो करना ही होगा.” अब सिलसिलेवार ढंग से जानिए कि अपनी भरपाई वह कैसे कर रहे हैं. बताते हैं कि राइस मिलों में होने वाली कस्टम मिलिंग से 3 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से मोटी रकम फूड अफसर को जाती है (सुना है इसमें से एक रुपया प्रति क्विंटल कलेक्टर के खाते में जाता है). जिले में इस दफे करीब 75 लाख क्विंटल धान की खरीदी हुई है. हिसाब लगाकर देख लें कि एक साल में सिर्फ मिलिंग से उनकी कमाई का अंदाजा हो जाएगा. कमाई का सिलसिला यहीं खत्म नहीं हो जाता. राइस मिल के रजिस्ट्रेशन के लिए पांच हजार रुपए लिए जाते हैं. यह जिला सर्वाधिक राइस मिल वाले जिलों में से एक है. बड़ी कमाई रजिस्ट्रेशन से आती है. पेट्रोल पंप के नवीनीकरण में फूड अफसर का हिस्सा तय है. इसके लिए प्रति रजिस्ट्रेशन 50 हजार रुपए मिलते हैं. गैस एजेंसी से सालाना एक लाख रुपए अलग. यह तो सिस्टम जनित कमाई है. मगर फूड अफसर की ख्वाहिशों का आकाश बड़ा है. शायद इसलिए समितियों पर, राशन दुकानों पर फर्जी केस बनाने का दबाव डालते है. शहरी क्षेत्र के राशन दुकानों से जुड़े मामले फूड अफसर और ग्रामीण क्षेत्रों की दुकानें एसडीएम के अधीन आता है, लेकिन फूड अफसर सीमाओं से कहीं आगे हैं. आखिर एक करोड़ देकर आए हैं. लालच इतनी ज्यादा है कि अपने अधीनस्थों के हिस्से पर भी पैनी निगाह है. जब जहां से मौका मिलता है, वहां से भी खींच लेते हैं. 

इस्तीफा ले लो…

राज्य की सबसे बड़ी पंचायत से खबर आई कि दो संवैधानिक प्रमुखों के बीच तनातनी हो गई. बात बंद कमरे की थी, मगर बाहर जमकर फैलाई गई. कहा गया कि तनातनी से एक नेता ने मुंह फुला लिया. इस्तीफा दिए जाने तक की बात कह दी. पंचायत बैठी थी, मगर उनकी गैर मौजूदगी चर्चा का विषय बन रही. इस बीच उनकी जगह पंचायत की कमान संभालने वाले नेताजी का दिल गदगद हो गया. नई-नई जिम्मेदारी मिली थी. कमान संभालने का मौका भी मिल गया. बहरहाल बंद कमरे की कथित बातें जब बाहर अफवाह की शक्ल में तैरने लगी, तब जाकर एक संवैधानिक प्रमुख ने तनातनी की खबरों से इंकार किया. तब तक रायता फैल चुका था. समेटा जाना मुश्किल था. 

प्रशासनिक सर्जरी

बजट सत्र के बाद एक बड़ी प्रशासनिक सर्जरी की आहट है. मंत्रालय से लेकर ग्राउंड पर काम कर रहे कई आईएएस इधर से उधर किए जा सकते हैं. बताते हैं कि एसीएस, प्रमुख सचिव से लेकर कलेक्टर तक तबादले की जद में आ सकते हैं. इधर राजभवन में भी बदलाव की तस्वीर दिख सकती है. नए राज्यपाल के आने के बाद चर्चा है कि सचिव बदले जाएंगे. राजभवन-सरकार के बीच टकराव की खबरों के बीच राज्यपाल अपने कंफर्ट के मुताबिक अधिकारी चुन सकते हैं. चर्चा है कि बड़े पैमाने पर सचिव स्तरीय तबादले होंगे. चुनाव करीब है ऐसे में फील्ड पर तैनात कई चेहरे ऐसे बिठाए जा सकते हैं, जिससे सरकार को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष ढंग से फायदा हो सके.

ईडी पर दबाव !

ईडी की पूछताछ से फिलहाल बाहर निकले कांग्रेस नेताओं और विधायकों ने कहा है कि ईडी अफसरों पर दबाव है. दबाव की वजह से ही वह कांग्रेस सरकार के विधायक, नेताओं और अफसरों को चुन चुनकर अपना शिकार बना रहे हैं. ईडी की पूछताछ के बाद एक विधायक ने कहा कि अफसर यह कहते रहे कि, हम पर बड़ा प्रेशर है, इसलिए यह सब करना पड़ रहा है. अब बड़ा सवाल यह है कि ईडी के अफसरों के बाद इतनी फुर्सत है कि चंद घंटों में दोस्ती-यारी कर अपने आने की वजह बता दें. विधायक अपने पुराने स्टैंड पर कायम रहे, तो बेहतर होगा. स्टैंड बड़ा स्पष्ट है, गैर बीजेपी शासित राज्यों में एजेंसियों का दबाव ज्यादा है. ऐसे बयानों से राजनीतिक मर्यादा बनी रहेगी.  

शराब प्रेमियों का खास ख्याल

छत्तीसगढ़ में शराब प्रेमियों की बल्ले-बल्ले है. कहते हैं कि ईडी की मौजूदगी के बाद से शराब का काम पूरी ईमानदारी से चल रहा है. सरकारी कोटे की शराब की खपत बढ़ गई है. सरकारी मुनाफा भी बढ़ा है. बीते कुछ सालों की तुलना में इस साल शराब से मिलने वाले राजस्व में बढोतरी हुई है. इधर शराब से अर्थव्यवस्था मजबूत हुई, तो आबकारी महकमा शराबियों को ज्यादा सम्मान देने लगा. होली करीब है. ऐसे में आबकारी विभाग शराब प्रेमियों की सुविधा का विशेष ख्याल रख रहा है. शराब दुकानों में पहुंचने वाले शराब प्रेमियों को दिक्कत ना हो, इसलिए एक की जगह दो काउंटर खुलवाए जा रहे हैं. दुकान व्यवस्थित किए जा रहे हैं. एक जिले में तो आबकारी विभाग ने बकायदा शराब दुकानों के सामने लाइटिंग करवा दी है. शायद मकसद यह रहा हो कि पीने के बाद आने वाली चमक, पहले से ही महसूस होती रही. भीड़ बेकाबू ना हो, इसलिए पुलिस की सेवा भी तय की गई है. गश्ती बढ़ाई गई है.