Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor Contact no : 9425525128

किराया 335 करोड़

छत्तीसगढ़ सरकार ने किराए के हेलीकॉप्टर पर 335 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च कर दिए. यह आंकड़ा जनवरी 2019 से लेकर अब तक का है. भूपेश सरकार ने किराए के हेलीकॉप्टर पर करीब 190 करोड़ रुपए और मौजूदा सरकार ने करीब 145 करोड़ रुपए खर्च किया है. कुछ अरसा पहले हरियाणा की नायब सैनी सरकार ने 80 करोड़ रुपए में एयरबस कंपनी का हेलीकॉप्टर खरीदा था. इस लिहाज से छत्तीसगढ़ सरकार ने जितनी रकम किराए पर खर्च की है, उतनी रकम से चार हेलीकॉप्टरों की खरीदी की जा सकती थी. फिजूलखर्ची रोकने सरकार तरह-तरह के जतन कर रही है, मगर मालूम नहीं उड़ते हेलीकाॅप्टर पर खर्च के चढ़ते मीटर की ओर ध्यान क्यों नहीं जा रहा है? जनता से जुटाए गए पैसों से इतनी खर्चीली उड़ान ठीक नहीं है. हेलीकॉप्टर खरीदी पर सियासत गर्माती रही है. खरीदी की प्रक्रिया में यदि दो-चार सियासी बयान दर्ज हो गए, तो भी कोई बात नहीं. कम से कम सरकार के खजाने की गर्माहट तो ठंडी हो जाएगी. सरकार को दूर की कौड़ी चलनी चाहिए और फौरन एक नया हेलीकॉप्टर खरीद लिया जाना चाहिए. सरकार की जेब पर पड़ रहा बोझ कम हो जाएगा.

अफसरों को टांग दो

सीजीएमएससी घोटाला मामले में विधानसभा में भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ने अपने सवालों का खूब बल्ला चलाया. चौतरफा चौके-छक्के लगाए. मगर लोगों को यह समझने में वक्त लग गया कि आखिर वह किस टीम से बैटिंग कर रहे हैं. खैर, उन्होंने यह पूछकर लाख टके का सवाल उठाया है कि जब दवा खरीदी का आदेश अफसरों ने दिया है, तब उसमें सप्लायर की क्या गलती थी? चंद्राकर जी ज्ञान के सागर में खूब गोते लगाते हैं. अव्वल दर्जे के ज्ञानी हैं. उन्होंने सवाल उठाया है, तो ठीक ही उठाया होगा. इधर स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने उस सवाल पर कहा है कि 15 अफसरों के खिलाफ जांच चल रही है. स्वास्थ्य मंत्री को अजय चंद्राकर जैसे विद्वान विधायक की तसल्ली के लिए ही जांच-वांच छोड़कर पहली फुर्सत में कम से कम दो-चार अफसरों को टांग देना चाहिए. लोकतंत्र में संतुलन का भाव जरूरी है. सप्लायर जेल में है, तो मंत्री की जिम्मेदारी कुछ अफसरों को भी जेल में भेजने की होनी चाहिए. ताली एक हाथ से तो जो बजी नहीं होगी. दोनों हाथ से बजी होगी. हाथ मिले भी होंगे. हाथ रंगे भी होंगे. वैसे अजय चंद्राकर शायद यह भूल गए हैं कि स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल कैमिस्ट्री विषय से एमएससी हैं. शायद वह हर तरह की कैमिस्ट्री बखूबी समझ रहे हैं.

कब्रगाह

अफसरों को टांग दो कहना जितना आसान है. कर पाना उतना ही कठिन. सरकार के विभागों में घोटालों की कई कब्रें हैं. सरकार उन पर हाथ भर रख दे, भरभराकर टूट पडे़ंगी. उन कब्रों से घोटालों का जिन्न बाहर आ जाएगा. मगर पुराने मामलों पर हर सरकार मिट्टी डालना चाहती है. सरकारों की यह मान्यता है कि घोटालों की ये कब्रे भूली बिसरी गीतों की माला नहीं है, जो बार-बार पिरोई जा सके. घोटालों की कब्र से अगर आप ताल्लुक जोड़ना चाहें, तो उदाहरण स्वरुप एक बार वन विभाग की ओर झांक आइएगा. मालूम चल जाएगा कि यह विभाग घोटालों का सबसे बड़ा कब्रगाह है. आरा मिल घोटाला, हाईटैक बांस प्लांटेशन घोटाला, साल बीज घोटाला, स्मोकलेस चूल्हा घोटाला…और न जाने कौन-कौन से घोटालों की कब्र इस विभाग ने बना रखी है. एक भी घोटाला ऐसा नहीं रहा, जो अंजाम तक पहुंचा हो. ज्यादातर दोषी बरी कर दिए गए. कुछ के खिलाफ वसूली की कार्रवाई की गई. घोटाला आज तक फाइलों में कैद है. फाइलें धूल खा रही है. कोई भी फाइलों में जमी धूल साफ कर अपने हाथ गंदा करना नहीं चाहता. हर कोई अपना हाथ साफ रखना चाहता है. कोई मामला विधानसभा की लोख लेखा समिति के पास लंबित है, तो कोई मसला मंत्रालय में पड़ा है. कुछ मामले ऐसे भी हैं, जो अरण्य भवन से बाहर नहीं निकले हैं. एक दफे वन महकमे के एक आला अफसर ने कहा था कि वन विभाग सरकार का इकलौता विभाग होगा, जो नियम कायदे कानून के परे चलता है. इस विभाग की हर शाख पर उल्लू बैठा है, जो सिर्फ रात में नहीं जागता, दिन में भी चौकस रहता है. वैसे, सरकार ने एक दफे तीन आईएफएस के नाम अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिए भेजा था. दो अफसर चतुर थे. बच निकले. एक गरीब लटक गया.

जेट्रोफा

एक दफे जेट्रोफा प्लांटेशन की योजना लाई गई थी. जमीन ढूंढ ढूंढकर जेट्रोफा लगाया गया. औने-पौने दाम पर बिकने वाले जेट्रोफा के पौधों को महंगी दर पर खरीदा गया. अफसरों ने खूब वारे-न्यारे किए. कौन जानता था कि योजना ही जमींदोज हो जाएगी. जब घोटाला फूटा, तब के वन मंत्री ननकीराम कंवर ने विधानसभा में इसकी जांच की घोषणा कर दी. अफसर सतर्क हो गए और मंत्री बदल दिए गए. जेट्रोफा घोटाले की कब्र बन गई. अब यदा-कदा सियासी बयान के फूल उस कब्र पर डाल दिए जाते हैं. बहरहाल इन घोटालों का जिक्र कर फिक्र करने के सिवाए कुछ नहीं किया जा सकता.

नियुक्तियां जल्द

चुनाव खत्म हो चुका है. विधानसभा का बजट सत्र चालू है. सत्र बाद निगम, मंडल और आयोग की सूची निकलनी तय है. सत्ता-संगठन इसकी तैयारी में जुट गया है. विपक्ष में रहते हुए आंदोलन-प्रदर्शन में हड्डी टुड़वाने वाले, एफआईआर झेलने वाले और पानी पी-पी कर सरकार को गरियाने वाले नेता उम्मीद में है कि उन्हें सम्मानजनक पद मिलेगा. वादा भी कुछ इस तरह का ही रहा है. मगर पद बांटने का अपना फार्मूला है. पद भौगोलिक, सामाजिक और राजनीतिक समीकरण से बंटता है. ऐसे में संघर्ष के रास्ते सरकार लाने में अहम भूमिका निभाने वाले कुछ प्रमुख किरदार किनारे लगा दिए जाएं, तो कोई बड़ी बात नहीं. यह कोई नई बात भी नहीं है. पुरातन परंपरा रही है. संघर्ष के किरदार रहे नेताओं के लिए एक नसीहत है. नमस्कार करना शुरू कर दें. शायद कोई चमत्कार हो जाए.