Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor

रिस्क

कंपलसरी रिटायर किए गए जी पी सिंह को कैट से जब राहत मिली, तब इस बात की चर्चा होने लगी थी कि उनके पुराने रौब दार दिन वापस लौट आएंगे? जी पी सिंह सरकार के मंत्रियों के बंगलों में नजर आने लगे. राज्य सरकार ने कैट के आदेश को आधार मानकर जी पी सिंह की सेवा बहाली की दरख्वास्त वाली चिट्ठी केंद्र सरकार को भेज दी. केंद्र की नजरें टेढ़ी हो गई. केंद्र ने पुनर्विचार का सुझाव दे दिया. इस सुझाव के बाद फिलहाल यह मामला ठंडे बस्ते में जाता दिख रहा है. आला अफसर कहते हैं कि जी पी सिंह की बहाली की दरख्वास्त की फाइल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तक गई होगी. जगजाहिर है कि अमित शाह की अगुवाई वाले विभागों में लिए गए फैसलों पर वापसी की गुंजाइश नहीं होती. फिर भी राज्य सरकार ने चिट्ठी लिखकर साहस का काम किया था. अब खबर आई है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जी पी सिंह को राहत देने वाले कैट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी है. एक ओर केंद्र, राज्य को पुनर्विचार का सुझाव दे रहा है, दूसरी तरफ कैट के आदेश को कोर्ट में चुनौती. ऐसे में केंद्र सरकार के पुनर्विचार वाली नसीहत पर राज्य सरकार रिस्क उठाने की स्थिति में है भी या नहीं? यह सवाल बना हुआ है. उधर जी पी सिंह अपने अस्तित्व की हिफाजत के लिए जोर लगाए हुए हैं. शायद उन्हें यह मालूम है कि अवसर के बिना काबिलियत किसी काम की नहीं. वैसे भी उनकी काबिलियत एक अलग किस्म की है. उनकी काबिलियत को अवसर देना राज्य सरकार के एक ‘रिस्क’ उठाने पर निर्भर करता है.

एक्सटेंशन

डीजीपी अशोक जुनेजा को केंद्र सरकार ने छह माह का एक्सटेंशन दे दिया है. किस्मत के मामले में जुनेजा दूसरे अफसरों की तुलना में ज्यादा धनी रहे. जब रिटायरमेंट की दहलीज पर थे तब पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने उन्हें पहले प्रभारी और बाद में पूर्णकालिक डीजीपी बना दिया था. अब भाजपा सरकार में उन्हें छह माह का एक्सटेंशन मिल गया है. डीजीपी बनने की कतार में कई अफसर थे. इनमें से कुछ ऐसे थे, जिन्होंने डीजीपी की कुर्सी हथियाने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. सरकार से लेकर संगठन और संगठन से लेकर संघ तक का रास्ता नाप आए थे. मगर किस्मत आड़े आ गई. अशोक जुनेजा की किस्मत की लकीर ज्यादा बड़ी रही. सूबे में जब सरकार बदली थी तब भी यह हल्ला जोर-शोर से उड़ा था कि नई सरकार डीजीपी बदल देगी. भाजपा संगठन के कई नेताओं ने दिल्ली तक शिकायतों का पुलिंदा भेजा, लेकिन बदली हुई सरकार को अशोक जुनेजा ही बेहतर लगे. जुनेजा को एक्सटेंशन देने के पीछे की सबसे बड़ी वजह बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ चल रहा अभियान बताया जा रहा है. नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में पहली बार सुरक्षाबलों को बड़ी कामयाबी मिल रही है. थोक में नक्सली मारे जा रहे हैं, तो थोक में नक्सलियों का सरेंडर हो रहा है. पैरा मिलिट्री फोर्स के साथ स्टेट पुलिस का कोआर्डिनेशन बेहतर हुआ है.

प्रभुता की पूजा

जिंदगी भर सरकारी नौकरी करने के बाद रिटायर हुआ आदमी अगले दिन बूढ़ा हो जाता है. माथे पर सिलवटें और चेहरे पर झुर्रियां जगह ले लेती हैं. मगर राजनीति एक ऐसा पेशा है, जो बूढ़ा होने नहीं देती. पद की लालसा चिरस्थाई बनाए रखती है. एक सुखद राजनीतिक पारी खेलने के बाद वरिष्ठ भाजपा नेता रमेश बैस त्रिपुरा के राज्यपाल बनाए गए थे. इसके बाद झारखंड और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में राज्यपाल रहने के बाद वह अपने शहर रायपुर लौट आए हैं. मगर 77 बरस के रमेश बैस में अब भी खूब राजनीति बाकी है. राज्य में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले एक भव्य जलसे में जब उनका अभिनंदन किया गया, तब यह चर्चा छिड़ गई थी कि भाजपा उन्हें अपना चेहरा बना सकती है. अब जब रमेश बैस भूतपूर्व राज्यपाल बनकर लौटे हैं, तब भी उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर गाहे बगाहे किस्म-किस्म की चर्चा सुनी जा रही है. राजनीति में असंभव कुछ भी नहीं और रमेश बैस के लिए हमेशा सब कुछ संभव रहा है. प्रधानमंत्री मोदी के साथ आई उनकी हालिया तस्वीर में रमेश बैस के चेहरे के भाव दुख के नहीं थे. चेहरा पढ़ने वाले कहते हैं कि उनकी संभावना अभी बनी हुई है. भाजपा की राजनीति में सिर्फ प्रभु नहीं, प्रभुता की पूजा होती है. रमेश बैस इस गूढ़ रहस्य से बखूबी वाकिफ हैं.

सुशासन

एक वक्त था जब राज्य में कलेक्टर, एसपी के तबादले मेरिट आधार पर किए जाते थे. एडमिनिस्ट्रेटिव हेड होने के नाते चीफ सेक्रेटरी का यह प्रिविलेज होता था. चीफ सेक्रेटरी मुख्यमंत्री से चर्चा कर अफसर के नाम पर मुहर लगाते थे. मुख्यमंत्री को अफसरों की खूबियां बता दी जाती थी. कुछ नामों पर सहमति नहीं बनने की स्थिति में मुख्यमंत्री के सुझाए गए नाम लिस्ट में जोड़े जाते थे. पुलिस महकमे की पोस्टिंग भी कुछ यूं ही होती थी. डीजीपी को यह पता होता था कि किस अफसर के बूटों में ज्यादा धमक होगी. अब तस्वीर बदल गई है. अब पोस्टिंग अफसर की काबिलियत से नहीं, बल्कि उसके पॉलिटिकल एप्रोच से होती है. अफसर की पॉलिटिकल आइडियोलॉजी देखी जाती है, फिर चाहे अफसर कॉम्पीटेंट हो या ना हो. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता. अफसर चापलूसी कितनी भी कर ले, डंका सामर्थ्य का ही बजेगा. सरकार यह बात भूल जाती है. पूर्ववर्ती सरकार में कलेक्टर-एसपी की पोस्टिंग के लिए बोली लगने की चर्चा खूब हुआ करती थी. पोस्टिंग पाने और उस पर बने रहने का अलग-अलग हिसाब होता था. नई व्यवस्था में बहुत कुछ बदल गया हो ऐसा नहीं है. सरकार को चाहिए कि अफसरों के हर अच्छा कहे पर शक करे. बुरा सुनने पर तुरंत यकीन कर ले. बुराई को ठीक कर ही सुशासन की शुरुआत होगी. सिर्फ नारा बुलंद करने भर से हालात बदल जाएंगे यह सोचना भी बेमानी है.

एक चिट्ठी पीएमओ को …

भाजपा के एक नेता ने प्रधानमंत्री कार्यालय एक चिट्ठी भेजकर महादेव एप मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है. पहले ईडी और फिर ईओडब्ल्यू-एसीबी की जांच कम थी, जो अब सीबीआई जांच की मांग की गई ? ईओडब्ल्यू-एसीबी जमीन खोद-खोद कर सबूत निकाल रही है. महादेव एप के चांडाल चौकड़ी सब ईओडब्ल्यू-एसीबी की नजर में है. पूछताछ चल रही है. फिर भी प्रधानमंत्री कार्यालय भेजी गई चिट्ठी में इस जांच को घुमावदार बताया गया है. चिट्ठी कहती है कि महादेव एप के संचालकों को पुलिस के आला अफसरान प्रोटेक्शन मनी लेकर संरक्षण देते रहे. भाजपा नेता की आशंका है कि राज्य की एजेंसी की जांच शक के दायरे में आ सकती है, सो चिट्ठी भेजकर सीबीआई जांच की मांग कर ली. अब ईओडब्ल्यू चीफ के कामकाज से वाकिफ होने की भी जरूरत है, जिन्हें लेकर सुना जाता है कि वह अलसुबह से लेकर आधी रात तक जांच पड़ताल के काम पर खुद जुटे हुए हैं. कहते हैं कि टीम थक जाती है, वह नहीं थकते. अब जब इतनी मेहनत चल ही रही है, तो नतीजों का थोड़ा इंतजार कर लेना चाहिए था. खैर, प्रधानमंत्री कार्यालय भेजी गई चिट्ठी का रुख क्या होता है, फिलहाल मालूम नहीं. वैसे इस तरह की चिट्ठी राज्य को यह कहकर लौटा दी जाती है कि please take appropriate action with regard to this matter. इस पर सरकार ‘जी’ लिखकर जवाब भेज देती है.

ई फाइल

सेंट्रल डेपुटेशन से लौटे अफसर मैन्युअल फाइल में उलझे हैं. इन अफसरों को ई फाइल पर काम करने की आदत हो गई थी. सेंट्रल गवर्नमेंट में सारा कामकाज ऑनलाइन है. इधर छत्तीसगढ़ में अफसरों के दस्तखत के लिए फाइल पहले नीचे से ऊपर जाती है और फिर ऊपर से नीचे आती है. कुछ सुधार होने की स्थिति में फिर यही प्रोसेस दोहराया जाता है. कई-कई बार फाइलों का जखीरा अफसरों की मेज पर पड़ा मिल जाता है. अब सुनाई पड़ रहा है कि फाइलों के मकड़जाल में उलझे मंत्रालय के कामकाज को ऑनलाइन किए जाने की प्रक्रिया शुरू की गई है. फिलहाल यह काम सामान्य प्रशासन विभाग से शुरू किया जा रहा है. प्रयोग सफल रहा, तो धीरे-धीरे दूसरे विभागों में भी इसे इम्पलीमेंट किया जाएगा. सामान्य प्रशासन विभाग ने ई फाइल पर काम तेज कर दिया है. पिछले दिनों सेंट्रल डेपुटेशन से लौटने वाले अफसरों में रिचा शर्मा, सोनमणि बोरा, मुकेश बंसल, निहारिका बारिक, अविनाश चंपावत शामिल रहे हैं. जाहिर है इन अफसरों की ई फाइल पर काम करने की आदत बन गई थी. अब पुराने ढर्रे पर काम इन्हें रास नहीं आ रहा होगा.