मुहर
बदलती सियासत के साथ ब्यूरोक्रेसी भी बदल गई है. ज्यादातर अफसर के माथे पर मुहर है. फलाना अफसर फूल छाप-ढेकाना अफसर हाथ छाप. मुहर की स्याही इतनी गहरी है कि अफसर मिटाना भी चाहे, तो मिटा नहीं पा रहे. इसमें गलती अफसरों की ही है. हर नई सरकार में अफसर अपनी रिश्तेदारी ढूंढ लेते हैं. अब एक परिवार में कई-कई विचारधारा के लोग हैं, तो कहीं न कहीं, कोई न कोई रिश्तेदारी तो निकल ही जाती है. कमल फूल की सरकार है तो कोई चाचा टकरा जाता है, कांग्रेस की सरकार है तो कोई मामा. ऐसा नहीं है कि अफसर काबिल नहीं है, जो किसी पार्टी का झंडाबरदार बनकर कुर्सी पा जाएं. अफसरों में काबिलियत कूट-कूट कर भरी है. जरूरत सिर्फ भरोसे के संकट की है. कुछ सालों में सरकार को लेकर अफसरों के बीच और अफसरों को लेकर सरकार के बीच भरोसे का यह संकट बढ़ता चला गया. पूर्ववर्ती सरकार में एक के बाद एक कई काबिल अफसरों ने दिल्ली का रुख कर लिया था. राज्य में सरकार बदली. उधर अफसरों की प्रतिनियुक्ति खत्म हुई. अफसर लौट आए. अब सवाल उठता है कि एक सरकारी व्यवस्था में क्या होना चाहिए? एक वक्त था, जब सरकार अफसरों की काबिलियत देख कर उन्हें काम दिया करती थी. अफसरों की पॉलिटिकल आइडियोलॉजी नहीं देखी जाती थी. अफसर कुर्सी पर बैठकर अपने काम को जस्टिफाई करते थे. सरकार का एजेंडा अफसरों को पता होता है. बदलते वक्त के साथ सरकारों में अफसरों की काबिलियत की बजाए उनकी आइडियोलॉजी मेंडेटरी होती चली गई. सरकार को इस जाल से बाहर आना चाहिए. कई अफसर अब दबे कुचले बैठे रह जाते हैं, जो अच्छा कर सकते हैं. मगर उनकी नियति ऐसी बन गई है कि सिवाय बाबूगिरी के उनके पास कोई दूसरा काम नहीं है.
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फटकार
पिछले दिनों राष्ट्रपति का दौरा हुआ. राष्ट्रपति कई कार्यक्रम का हिस्सा बनीं. एक कार्यक्रम नया रायपुर में था. कार्यक्रम की पूरी तैयारी चाक चौबंद थी कि अचानक राष्ट्रपति सचिवालय के एक अफसर ने राज्य के एक अफसर को जमकर लताड़ दिया. सार्वजनिक फटकार से अफसर भी सकते में आ गए. सफाई देने की पुरजोर कोशिश की, मगर राष्ट्रपति के कार्यक्रम में हीलाहवाली की कोई जगह नहीं थी. कार्यक्रम में मौजूद कुछ लोगों ने बताया कि राष्ट्रपति को जिस जगह से गुजरना था, वहां एक छोटी नाली थी. उस नाली के ऊपर लोहे की एक पतली चादर डाल दी गई थी. उस पर चलने से यह हिल रहा था. यह देख राष्ट्रपति सचिवालय के अफसर भड़क उठे. चिल्ला कर पूछा, यहां का इंचार्ज कौन है? बस फिर क्या था. अफसर को सार्वजनिक सलामी दे दी गई. राष्ट्रपति के दौरे का अपना एक तय प्रोटोकाल हैं. अब यह थी तो एक छोटी चूक, मगर राष्ट्रपति सचिवालय के अफसरों ने इसे अपने रिकार्ड में दर्ज कर ही लिया होगा.
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रसीद
चुनाव ऑब्जर्वर का काम वैसे तो चुनावी व्यय पर नजर रखना है, मगर जब चुनाव ऑब्जर्वर पर ही व्यय होने लगे, तो इस पर चर्चा तो होगी ही. ऐसी ही एक चर्चा इन दिनों खूब सुनी जा रही है. एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है. इस उपचुनाव में प्रत्याशियों के खर्चों के हिसाब-किताब के परे आब्जर्वर के खुद पर हो रहे खर्च पर कुछ लोग टकटकी निगाह जमाए बैठे हैं. अब यह तो मालूम नहीं कि खर्च ऑब्जर्वर की खुद की जेब से है या यह दूसरों की मेहरबानी पर है, लेकिन चर्चा है कि लाखों रुपए के कपड़े लत्तों की रसीद कट गई है. चुनाव के दौरान कई तरह की रसीद कटती है. इस तरह की एक-दो रसीद कट भी गई, तो क्या इस पर बात होनी चाहिए? खैर छोड़िए. जाने दीजिए..
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एनकाउंटर
कुख्यात अपराधी अमित जोश एनकाउंटर में मारा गया. दुर्ग क्राइम ब्रांच की टीम जोश को ढूंढ रही थी. इनपुट मिलने पर क्राइम ब्रांच की टीम उसे पकड़ने गई थी. भागने की फिराक में अमित जोश ने पुलिस पर गोली चलाई. पुलिस की जवाबी फायरिंग में वह मौके पर ढेर हो गया. अमित जोश के खिलाफ 36 से ज्यादा आपराधिक मामलों में एफआईआर दर्ज थी. अमित जोश अपराध करता. जेल जाता और जमानत पर छूट जाता. जेल से निकल कर फिर अपराध करता. फिर जेल जाता और फिर जमानत पर छूट कर बाहर आ जाता. महज 15 साल की उम्र में उसने पहला अपराध किया था और बाद में अपराध करना शगल बन गया. पुलिस उसके लिए एक खिलौना थी और राजनीतिक संरक्षण उसका मुखौटा. वह हर बार बचता रहा. पुलिस पर वह गोली न चलाना तो शायद फिर बच जाता. इस बार पुलिस ने उसे दूसरा मौका नहीं दिया. राज्य में 12 साल बाद एनकाउंटर हुआ है. अपराध के बढ़ते आंकड़ों के बीच एनकाउंटर की इस घटना ने पुलिस बिरादरी का ‘जोश’ बढ़ा दिया है. राजनीतिक इस्तेमाल, जुएं-सट्टे को संरक्षण, भू माफियाओं से सौदे जैसे कारण पुलिस की साख पर सवाल उठाते रहे हैं. अब इस एक एनकाउंटर से क्या कुछ बदल जाएगा? यह देखा जाना बाकी है. मुख्यमंत्री ने किसी भी सूरत में अपराध और अपराधियों पर शिकंजा कसने का फरमान सुनाया था. दुर्ग पुलिस ने फरमान पर अमल कर दिया. सीधा एनकाउंटर.
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शेक
हर्बल लाइफ का शेक मोटे लोगों को दुबला और दुबले लोगों को मोटा कर रहा है. एक जिले में सरकारी स्कूल के शिक्षकों का समूह है, जो इस चेन मार्केटिंग का हिस्सा बन गया है. शिक्षकों को यह मालूम पड़ा कि पढ़ाने-लिखाने में उतनी कमाई नहीं, जितनी लोगों को मोटा करने और दुबला करने में हो रही है. पहले एक-दो शिक्षकों ने हर्बल लाइफ प्रोडक्ट बेचना शुरू किया था. बाद में इनकी संख्या बढ़ती चली गई. स्कूल में लगने वाली कक्षाओं में शिक्षक अपने साथियों को हर्बल लाइफ का फायदा बताते दिखते. जो कोई वजनदार दिख जाता तो शिक्षक फौरन हर्बल लाइफ शेक के गुण बताने में जुट जाते. कोई वजनदार महिला शिक्षक दिख जाए, तो फिर मत पूछिए. स्कूल के पहले पीरियड से बात शुरू होती, जो छुट्टी की घंटी बजने तक चलती. उधर बच्चे भी शिक्षकों की बातचीत सुनकर नए किस्म का ज्ञान हासिल करते. जब तक एक-दो शिक्षक हर्बललाइफ से जुड़े थे, तब तक तो हालात सामान्य थे, लेकिन धीरे-धीरे जिले के अधिकांश शिक्षक, लोगों को शेक पिलाने लगे, तब आला अधिकारियों ने उन्हें पानी पिलाने की ठान ली. पता चला है कि अब जिले भर का रिकार्ड मांगा गया है. आडियो-वीडियो, सोशल मीडिया चैट जो मिल जाए. फिलहाल जानकारी जुटाई जा रही है. शेक पिलाने वाले शिक्षकों को अफसर पानी पिलाने के लिए तैयार बैठे हैं. जो काम शेक ना कर पाए, वह काम सरकार पानी पिलाकर कर देती है.
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ब्राह्मण किसके?
रायपुर दक्षिण उप चुनाव में ब्राह्मण उम्मीदवार घोषित करने पहली बार सर्व ब्राह्मण समाज ने भाजपा और कांग्रेस के आला नेताओं से मुलाकात की थी. कांग्रेस ने आकाश शर्मा को टिकट दे दिया. भाजपा ने सुनील सोनी पर दांव लगा दिया. अब सवाल उठ रहा है कि अब ब्राह्मण किसके? ब्राह्मण समाज भाजपा का ट्रेडिशनल वोटर रहा है, लेकिन पिछले दिनों जिस तरह से समाज लामबंद हुआ, उससे भाजपा थोड़ा खतरा महसूस कर रही है. रायपुर दक्षिण सीट पर ब्राह्मण ठीक ठाक संख्या में है, सो ब्राह्मण वोट अपने पाले में लाने के लिए भाजपा खूब जोर लगा रही है. डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने समाज प्रमुखों के साथ बैठक की है. भाजपा ब्राह्मण नेताओं को अहम जिम्मेदारी सौंप रही है. और तो और ब्राह्मण समाज का वोट अपने पक्ष में करने के इरादे से काम कर रही भाजपा ने सर्व ब्राह्मण समाज के बैनर तले दीपावली मिलन समारोह का आयोजन किया है. इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, प्रदेश अध्यक्ष किरण देव समेत पार्टी के ओर और छोर के सभी ब्राह्मण नेताओं को बुलाया गया है, जिसमें मंत्री, विधायक, सांसद, निगम-मंडल-आयोग में रह चुके नेता सब शामिल हैं.
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