Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor Contact no : 9425525128

रिश्वत की चुस्कियां

बहुचर्चित शराब घोटाला मामले में राज्य का आबकारी महकमा बेसुध हो गया था. आबकारी अधिकारियों ने सिंडिकेट के साथ मिलकर नियम-कायदा, ईमानदारी, जवाबदेही सब गटक लिया. ईडी की जांच में नशा फूटा. ईओडब्ल्यू ने नींद उड़ाई और अब सरकार ने नशे की गिरफ्त में आने वाले अधिकारियों को निलंबित कर उनकी आंखें चौंधिया दी है. यहां तक पहुंचने में कई रुकावटें आई. मसलन कुछ आला अधिकारियों ने दलील दी कि इतने लोगों को एक साथ निलंबित करने से विभाग का कामकाज ठप पड़ जाएगा. मगर सरकार को कुछ समझदार लोगों ने बताया कि आबकारी अधिकारियों ने अब तक जो किया वह काम नहीं, अवैध कारोबार था. इधर ईओडब्ल्यू ने कोर्ट में चार्जशीट पेश किया, उधर आबकारी सचिव ने निलंबन की नोटशीट चला दी. मैनपाट की ठंडी वादियों से लौटते ही मुख्यमंत्री ने गर्म फाइल पर दस्तखत कर दिए. एक झटके में 22 अधिकारियों पर निलंबन की तलवार चल गई. ये वहीं अधिकारी हैं, जो शराब घोटाले में ‘रिश्वत की चुस्कियां’ ले रहे थे. घोटाले की पूरी बोतल थी और बोतलों में शासन की सील थी. सरकारी बोतलों में निजी मुनाफा तैर रहा था. शराब की बोतलों पर लिखा होता है, ‘यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’. जाहिर है, यह संदेश पीने वाले और पिलाने वाले दोनों ही देखते हैं, फिर भी नजरअंदाज कर नशे से हमजोली कर लेते हैं. यह भूलकर कि इस शराब ने किसी को भी नहीं छोड़ा है. इसके नशे में डूबकर पूर्ववर्ती सरकार लड़खड़ा गई. नशे में ईमान बह गया. सत्ता का किला ढह गया.

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Ease of Doing Corruption

शराब घोटाला मामले में शराब मंत्री रहे नेता जेल में हैं. घोटाले की स्क्रिप्ट लिखने वाले अफसर को बेल नहीं मिल रही. शराब विभाग के अधिकारी भी अब निलंबित हो गए हैं. मगर बड़ी बात यह है कि शराब बनाने वालों का क्या होगा? कोर्ट में पेश की गई चार्जशीट ने पूरा-पूरा बहीखाता बता दिया है कि किसकी जेब कितनी भारी हुई. बावजूद इसके शराब कारोबारी तक जांच की आंच के ठहर जाने पर सवाल उठ रहे हैं ! नेता निपटे, मंत्री निपटे, अधिकारी निपटे और शराब कारोबारी साफ-सुथरे निकल गए? बड़ी नाइंसाफी है. बोतले न होती, तो घोटाला न होता. मगर यहां बोतलें भेजने वाले ‘डिस्टिल्ड’ रह गए, बिल्कुल साफ-पारदर्शी और गंधरहित. घोटाले की बू तक नहीं. शराब घोटाले में सबके हिस्से की सजा बट रही है, सिवाय कारोबारियों को छोड़कर. एक सीनियर अफसर ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि, कारोबारियों को सरकार सोच समझकर छूती है. छूना थोड़ा रिस्की होता है. कारोबारियों को पकड़ा तो Ease of Doing Corruption की रैंकिंग गिर जाएगी.

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साधारण

भाजपा संगठन से जुड़े एक राष्ट्रीय नेता जब भी छत्तीसगढ़ की धरती पर उतरते हैं, कुशाभाऊ ठाकरे परिसर की इमारत को देखकर उनकी आंखों में एक अजीब सी बेचैनी तैर जाती है. उनकी इस बेचैनी पर राज्य के स्थानीय नेता कहते हैं कि उन्हें जमीन पर बिछी पुरानी दरी याद आती होगी. वही फटी-पुरानी दरी जिस पर बैठकर नेता चना-मुर्रा खाते थे और राष्ट्रीय नीति बनाते थे. एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि संगठन मंत्री का दर्द यह है कि पार्टी का दफ्तर पैलेस जैसा क्यों दिख रहा है? नेता कालीन पर क्यों चल रहे हैं? उनका मानना है कि कालीन पर अगर कीचड़ लगे जूते नहीं चलेंगे, तो सरकार नहीं बनेगी. कालीन पर कोई कीचड़ वाला जूता नहीं चला, तो उस कालीन का संघर्ष नहीं दिखेगा? पार्टी ‘साधारण’ नहीं दिखेगी? यह और मसला है कि भाजपा वह राजनीतिक दल है, जिसके पास दिगर दलों की तुलना में सबसे बड़ा खजाना है. राजनीतिक चंदा जुटाने में पार्टी का ग्राफ दूसरे दलों को काफी पीछे छोड़ चुका है. कई बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां भी पार्टी की बैलेंस शीट देखकर पानी भरने लग जाती हैं, फिर भी पार्टी की विचारधारा कहती है कि ‘साधारण’ दिखना है. देश की राजनीति का यह नया दौर है, जहां ग्लैमर के साथ-साथ ‘साधारण’ दिखने की होड़ है, फिर भले ही नेताओं के शरीर पर दस लखियां सूट चढ़ा हो, आंखों पर महंगे चश्मे लगे हो, पैरों पर लाखों के जूते टंगे हों, कलाई में महंगी घड़ियां सज रही हो. भाजपा के लिए निष्ठावान और पूरी तरह से समर्पित एक कार्यकर्ता ने कहा कि अगली बार राष्ट्रीय नेता जब छत्तीसगढ़ आए, तो उनसे विनम्र निवेदन है कि पार्टी दफ्तर की कालीन पर थोड़ा बहुत कीचड़ खुद भी ले आएं, ताकि कार्यकर्ता यह समझ सके कि साधारण दिखने वाली कथित शैली केवल विचार नहीं है. 

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पाठशाला

मैनपाट में सांसदों-विधायकों की पाठशाला में निम्नलिखित विषयों की कक्षाएं लगाई गईं. 

(1) ठेकेदारों से कैसे बचे? 

(2) भ्रष्टाचार पर लगाम 

(3) पिछली सरकार ने जो किया, वह न करें 

(4) सत्ता-संगठन के बीच समन्वय 

(5) भाजपा एक पार्टी नहीं, एक परिवार है।

 यह वह विषय हैं, जो नेताओं के बयानों में ही सामने आए या लाए गए. पाठशाला में शामिल हुए सांसदों-विधायकों के आसपास की भीड़ ही यह बताने के लिए काफी है कि पाठशाला में मिली सीख का कितना जमीनी असर हुआ है. सांसदों-विधायकों के रोजमर्रा का खर्च किसी न किसी ठेकेदार के बूते चलता है. भ्रष्टाचार एक शिष्टाचार बन गया है, जिसे लगभग-लगभग सामाजिक मान्यता मिल चुकी है. पिछली सरकार की करतूत मौजूदा सरकार के कई मंत्रियों-विधायकों के लिए एक मापदंड बन गया है और रही बात परिवार की, तो चुनाव में घर-परिवार छोड़ पार्टी का झंडा उठाकर जीत के मुहाने तक लाने वाले कार्यकर्ता अपनी किस्मत को कोसते बैठते हैं. यही कार्यकर्ता कथित तौर पर भाजपा का पहला परिवार हैं. अमूमन भाजपा की ऐसी पाठशालाएं अनुशासन से भरी होती हैं, मगर मैनपाट की ठंडी वादियों में घने कोहरे के बीच जिस तरह से रील्स बन रहे थे, उसे देखकर कार्यकर्ता सोच में पड़ गए कि बंद कमरे की पाठशाला क्या इतनी सहज थी कि किसी के माथे पर कोई बल नहीं पड़ा. खैर, सांसदों-विधायकों की पाठशाला के बाद अब हर किसी की नजर उनके बर्ताव पर है. आला नेताओं के बयानों की कड़ियां अब नेताओं के बर्ताव से जोड़कर देखी जा रही है. सांसदों और विधायकों को पाठशाला में मिली नसीहत पर थोड़ी सजगता तो जरूरी है, नहीं तो आने वाले चुनाव में उन्हें लेने के देने पड़ सकते हैं. 

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धार्मिक यात्रा

‘महादेव’ का प्रसाद चख रहे एक भाजपा विधायक को लेकर उनकी ही बिरादरी से आने वाले एक नेता ने खुलासा किया है. एक बातचीत में नेता ने यह बताया कि विधायक हर महीने धार्मिक यात्रा पर निकल पड़ते हैं. धार्मिक यात्रा महज एक बहाना है. दरअसल इसकी आड़ में वह कभी दिल्ली, कभी मुंबई, कभी गुड़गांव जैसे शहरों की ओर झांक आते हैं कि कारोबार ठीक चल रहा है या नहीं? जिस दौर में जांच एजेंसियां ‘महादेव’ के पीछे अपनी घूरती आंखों से डटी हो, उस दौर में विधायक महोदय का महादेव के आशीर्वाद से शुरू किया गया कारोबार एक बड़ा रिस्क उठाने जैसा है. बावजूद इसके विधायक महोदय की दिलेरी चर्चाओं में रहती है. नेताजी बताते हैं कि विधायक महोदय ने बाकायदा अलग-अलग शहरों में अपनी टीम बिठा रखी है. टीम के लोग उनकी अपनी ही विधायकी वाले इलाके से हैं. किसी शहर में होटल के कमरे से काम चल रहा है, तो किसी शहर में फ्लैट लिए जाने की सूचना है. ऐसा नहीं है कि विधायक महोदय के कारोबार की चर्चा पहले नहीं थी. चर्चा पहले भी थी, लेकिन यह सीमित दायरे में थी. अब चर्चा का पूरा बाजार खड़ा हो गया है. अपने हर धार्मिक दौरे से लौटकर विधायक महोदय ‘महादेव का प्रसाद’ कई नेताओं को खिलाने पहुंच जाते हैं.