सीएम के तेवर
कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस के पहले दिन की बैठक में सीएम भूपेश के तेवर सख्त और हिदायत बिल्कुल साफ था. आरामतलब अफसरों को समझ आ गया होगा कि फील्ड चाहिए, तो मेहनत दोगुनी करनी होगी. मातहत अफसरों के भरोसे जिला चलाने वाले एसपी लोगों को भी सीएम ने रात्रि गश्त के निर्देश दिए, तो कईयों को सांप सूंघ गया होगा. चिटफंड, नशीली दवाओं की तस्करी, महिलाओं के विरुद्ध अपराध, चाकूबाजी, आनलाइन जुआं, अवैध शराब जैसे कानून व्यवस्था पर सवाल उठाने वाले ऐसे हर पहलू पर सीएम ने खुलकर बात की. यहां तक कह दिया कि संगीन अपराधों में चाहे नेता हो या अफसर किसी को ना छोड़ा जाए. सीएम ने मीडिया में सुर्खियां बटोरने के चक्कर में पड़े रहने वाले अफसरों को ये बता दिया है कि सब उनकी नजर में हैं, सो ये सब छोड़ विजिबल पुलिसिंग पर जोर दें. कुल मिलाकर सीएम भूपेश ने अपराध पर जीरो टालरेंस की नीति पर चलने के दो टूक निर्देश दिए हैं. कांफ्रेंस में सीएम अपराध के आंकड़ों से अपडेट होकर पहुंचे थे, सो उन अफसरों पर नजरें टेढ़ी होती रही, जो अपने काम को आंकड़ों के जरिए जस्टिफाई करने की कोशिश करते रहे. बहरहाल चुनावी सरगर्मियां तेज हो रही हैं. अपराध पर सियासत बढ़ रही है, ऐसे में सरकार भी संजीदा हो गई है, जाहिर है अपराध पर जीरो टालरेंस नहीं अपनाने वाले अफसरों को अब सरकार टालरेट करने के मूड में नजर नहीं आ रही.
कुछ यूं विदा हुए कलेक्टर…
पिछला जिला सूखा-सूखा था. चंद महीने पहले ही जब नए जिले की कलेक्टरी मिली, तब थोड़ी हरियाली नसीब हुई. डीएमएफ का यहां बड़ा बजट था. सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि अचानक तबादले की जद में आ गए. सरकार ने कलेक्टरी छीन ली. कलेक्टरी जाने को लेकर अब तरह-तरह के किस्से सुनाए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि जिले के प्रभारी मंत्री और स्थानीय मंत्री की नाराजगी पर सरकार ने ये कार्रवाई की. बताते हैं कि जिला स्तर के तबादले में प्रभारी मंत्री ने दो टूक निर्देश दिया था कि स्थानीय विधायकों की अनुशंसाओं को तरजीह दिया जाए, मगर जब जिले की सूची निकली, तब मालूम चला कि अनुशंसाओं की जगह निर्धारित कर दी गई थी, वह थी रद्दी की टोकरी. कलेक्टर को लेकर प्रभारी मंत्री और स्थानीय विधायकों की नाराजगी थी ही, ऊपर से मुख्यमंत्री के भेंट मुलाकात कार्यक्रम ने कमान पर तीर तान दिया. कहते हैं कि भेंट मुलाकात के दौरान प्रभारी मंत्री के रात रुकने के इंतजाम नहीं किए गए थे. देर रात प्रभारी मंत्री को रायपुर लौटना पड़ा, जबकि सुबह मुख्यमंत्री की समीक्षा बैठक होनी थी. करेला ऊपर से नीम चढ़ा जैसा हाल हो गया. तबादला सूची में नाम आ ही गया.
अंडर सेक्रेटरी की गर्मी…
कभी मंत्रालय में सरकारी कर्मचारियों पर एकबारगी नजर फेर आइएगा, तो मालूम चलेगा कि कई पुराने चेहरे ऐसे हैं, जो सरकारी दामाद बनकर सरकार का खून चूस रहे हैं. चूसे भी क्यों ना. बंटवारे के पहले मध्य प्रदेश में जो चपरासी थे, दो प्रमोशन पाकर छत्तीसगढ़ में बड़का साहब बन गए. मध्य प्रदेश के मंत्रालय में घंटी बजने पर अफसरों को चाय-पानी पिलाने और फाइलों का बस्ता इधर से उधर करने वाले कई चेहरों के हाव भाव छत्तीसगढ़ आते ही बदल गए. अब ये यहां घंटी बजाते और फरमान सुनाते. दो दशक बीतने के बाद यही चपरासी मंत्रालय के बड़े साहब बन गए हैं. बड़ा केबिन है, आने-जाने के लिए एसी गाड़ी. आज तक इन्हें नोटशीट लिखना भले ही ना आया हो, मगर हुज्जत करने में इनकी बराबरी कोई नहीं कर सकता. सचिव स्तर के कई अधिकारी भी इनके कामकाज पर अपना माथा ठोकते देखे जाते हैं. खैर मंत्रालय की बरसो पुरानी इस कहानी के बीच एक किस्सा ये भी सुनते चलिए. एक विभाग में एक अंडर सेक्रेटरी ने एक उच्च अधिकारी को खरी-खरी सुना दी. उच्च अधिकारी का हाल आ बैल मुझे मार वाली कहावत जैसा हो गया. बताते हैं कि अंडर सेक्रेटरी ने मंत्री की एक प्रस्तावित बैठक के एजेंडे से जुड़ी नोटशीट लेकर उच्च अधिकारी के दफ्तर में आमद दी. नोटशीट पढ़कर उच्च अधिकारी ने एक बिन्दु और जोड़ने का सुझाव दिया. बताते हैं कि उच्च अधिकारी ने डिस्ट्रिक्ट लेवल से लेकर मंत्रालय तक के अधिकारियों से जुड़ी शिकायतों को भी एजेंडा सूची में शामिल करने कहा. इस पर अंडर सेक्रेटरी के हाव-भाव बदल गए. उच्च अधिकारी को तैश में कहा कि एजेंडा जोड़ना मेरा काम नहीं. बताते हैं कि बात यही नहीं थमी. गुस्से से लाल हुए अंडर सेक्रेटरी ने नोटशीट की फाइल उच्च अधिकारी की टेबल पर दे मारी. हतप्रभ उच्च अधिकारी ने अंडर सेक्रेटरी को चलता किया. जब यह वाक्या हुआ, तब बाहरी लोग केबिन में बैठे थे. सुनाई पड़ा है कि अंडर सेक्रेटरी की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि डिस्ट्रिक्ट स्तर के अधिकारी-कर्मचारियों की मंत्रालय ये जुड़ी शिकायतों में सबसे महत्वपूर्ण चेहरा वह खुद ही था, सो एजेंडा में शामिल ये बिंदु उसे गंवारा ना था. सुनते हैं कि उच्च अधिकारी ने ऊपर के अधिकारियों को चिट्ठी भेज कहा है कि या तो अंडर सेक्रेटरी को बदला जाए या उन्हें बदल दिया जाए.
आदेश में गफलत…
राकेश चतुर्वेदी के रिटायरमेंट के साथ ही नए पीसीसीएफ की तैनाती कर दी गई. लघु वनोपज देख रहे 1987 बैच के सीनियर आईएफएस संजय शुक्ला को वन महकमे की कमान सौंप दी गई. ये पहले से तय था, मगर फिर भी आदेश निकलते-निकलते देरी हो गई. राकेश चतुर्वेदी की फेयरवेल पार्टी के चंद घंटों पहले आदेश जारी किया गया. आखिरी वक्त तक शायद कोई रायशुमारी चल रही होगी. खैर, नियम कायदों के जानकार बताते हैं कि पीसीसीएफ के आदेश में एक बड़ी गलती हो गई. कहा जा रहा है कि प्रतिनियुक्ति पर लघु वनोपज में काम कर रहे संजय शुक्ला के आदेश में यह लिखा गया है कि उनके वर्तमान दायित्वों के साथ-साथ पीसीसीएफ और हेड आफ फारेस्ट की अतिरिक्त कार्यभार सौंपा जाता है. जानकार कहते हैं कि होना कुछ और था, हो कुछ और गया. आदेश उल्टा निकाल गया. अब आदेश के उलट-पलट पर फिलहाल किसी का ध्यान नहीं है, या कोई नया नियम तो नहीं आ गया तो मालूम नहीं. जानकार बताते हैं कि मूल आदेश पीसीसीएफ और हेड ऑफ फॉरेस्ट का निकलता था और बाद में भले ही लघु वनोपज को अतिरिक्त प्रभार के तौर पर दे देना था. पीसीसीएफ कैडर पोस्ट है, जबकि लघु वनोपज संघ सहकारी सोसाइटी के नियमों के तहत बनाई गई संस्था. पीसीसीएफ को कई तरह के विशेष अधिकार हैं.
कहलाएंगे नेता जी…
मुख्यमंत्री के सलाहकार प्रदीप शर्मा कहीं चुनावी राजनीति का हिस्सा बनने तो नहीं जा रहे. दरअसल हाल ही में उन्हें छत्तीसगढ़ ब्राह्मण विकास परिषद का संरक्षण बनाया, तो इसकी अटकलें तेज हो गई. कांग्रेस में इसे लेकर जबरदस्त चर्चा छिड़ गई है. दावा यहां तक किया जा रहा है कि बिलासपुर से आने वाले प्रदीप शर्मा बेलतरा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. अब सवाल उठ रहा है कि बेलतरा ही क्यों? दरअसल बेलतरा में ब्राह्मण समाज का एक प्रभावी वोट बैंक है. कांग्रेस की राजनीतिक जमीन उतनी मजबूत है नहीं. कहा जा रहा है कि इस दफे चुनाव में कांग्रेस आधी सीटों पर नए उम्मीदवार लांच करेगी. प्रदीप शर्मा की काबिलियत से पूरा क्षेत्र परिचित है, सो बेलतरा से चुनाव लड़ने की अटकलों को बल मिलता है. लेकिन ऐसा नहीं है कि उनकी सामाजिक सक्रियता नई-नई है. इससे पहले भी समाज के कई मंचों में उन्हें बतौर अतिथि बुलाया जाता रहा है. पिछले साल रतनपुर में एक सामाजिक बैठक में उन्होंने ब्राह्मण समाज का खुद का बैंक बनाए जाने का सुझाव दिया था. टिकट टू पॉलिटिक्स की संभावित जर्नी की बधाई. वैसे भी सूबे की राजनीति में ऐसे प्रतिभाशाली लोगों की दरकार है.
निजी हाथों में…
स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने सी मार्ट के रुप में एक बढ़िया कान्सेप्ट ढूंढ निकाला था. मगर अब चर्चा चल रही है कि घाटे में जाने की दलील देकर सी मार्ट को निजी हाथों में सौंपा जा सकता है. सी मार्ट में बिकने वाले उत्पादों के रेट को लेकर पिछले दिनों प्रमुख सचिव स्तर के एक अधिकारी ने व्हाट्स ग्रुप में सवाल उठाया था. उन्होंने ये तक कह दिया था कि बाजार की तुलना में सी मार्ट में बिकने वाले उत्पादों के रेट यदि कम नहीं किए जाते, तो सी मार्ट चला पाना मुश्किल हो जाएगा. उनकी चिंता जायज थी, पर उसका हल नहीं ढूंढा जा सका. सी मार्ट में कई उत्पाद ऐसे हैं, जिनकी कीमत बाजार मूल्य से भी ज्यादा है. अब लोगों को डर है कि कहीं सी मार्ट का हाल संजीवनी की तरह ना हो जाए. छत्तीसगढ़ी हर्बल उत्पादों को बेचने के लिए लघु वनोपज संघ ने संजीवनी बनाया था. सरकारी भवनों में संजीवनी खोले गए. मगर बताते हैं कि बाद में बगैर किसी सरकारी प्रक्रिया के संजीवनी का संचालन निजी हाथों में सौंप दिया गया. अब संजीवनी का संचालन अवनि आयुर्वेदा प्राइवेट लिमिटेड कर रहा है. यानी सेटअप सरकार का, भवन सरकार का और संचालन निजी हाथों में….बिजनेस ग्रोथ का अच्छा फार्मूला सिस्टम ने ढूंढ निकाला है. अब इस फार्मूले से सरकारी संस्थान फायदे में आते होंगे या कोई और…
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