Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor Contact no : 9425525128

तमाशा

एक महिला डीएसपी सुर्खियों में है। प्रेम प्रसंग से लेकर व्यापारिक लेन-देन तक की खबरें बरस रही है। महिला डीएसपी हैं। वह डीएसपी न होकर एक सामान्य महिला भी होती तब भी इस तरह की सुर्खियों पर रुचि रखने वाले लोगों की आंखों की पुतलियां फैल जाती। खैर, सच का तराजू फिलहाल किसी कोने में रखा है, क्योंकि इस वक्त तमाशा चल रहा है। तरह-तरह के किस्से हवा में तैर रहे हैं। जमीन ने भी कुछ किस्से उगले हैं। मालूम चला है कि महिला डीएसपी पर आरोपों की झड़ी लगाने वाला शख्स कभी ट्रांसफर-पोस्टिंग की रेट लिस्ट लेकर घूमता था। एक किस्सागोई में सुना है कि एक बार एक आईपीएस उसके झांसे में आ गए। वह ठीक-ठाक पोस्टिंग की बांट जोह रहे थे कि यह शख्स उनसे टकरा गया। उसने आईपीएस से 75 लाख रुपए इस वादे के साथ वसूल लिए कि वह उन्हें मनचाही कुर्सी पर बिठा देगा। कुछ वक्त इंतज़ार में गुज़र गया। जब आईपीएस की ख्वाहिशों की कुर्सी उन्हें नसीब नहीं हुई, तब पुलिस की लाठी दिखाकर उन्होंने अपने पूरे पैसे वसूल लिए। आईपीएस की किस्मत अच्छी थी, जो उनके पैसे वापस मिल गए। मगर एक आईएएस की किस्मत फूटी निकली। उस शख्स ने आईएएस अफसर को बड़े-बड़े सपने दिखाए। उसने सपनों में डूबे आईएएस की जेब से कुछ करोड़ रुपए झटक लिए। अगले कुछ महीनों तक आईएएस उम्मीद से सजे सपनों में गोते लगाते रहे। एक दिन उनका सपना टूट गया। उन्हें न तो पैसा मिला, न पोस्टिंग। 

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म्यूचुअल फंड

सरकार की बगिया में प्रेम तराने खूब गूंजते रहे हैं। आईएएस, आईपीएस समेत कई रसूख और ओहदेदार अफसर खुद को मोह पाश से बचा नहीं पाए। इस बगिया में किस्म-किस्म के फूल खूब खिलते रहे और किस्सों की शक्ल में इसकी सुगंध दूर-दूर तक फैलती रही। वैसे प्रेम कोई गुनाह तो नहीं। बशर्ते किसी एक के हाथ में खंजर न हो। खैर, सूबे में किस्से कम नहीं रहे। दिल फेंक मिजाज के कई साहिबान मिल जाएंगे। एक साहब थे। उनकी नजर सिवाए खूबसूरती के कुछ और नहीं ढूंढती थी। दूसरे साहबों की बीवियां भी उनकी नजरों से पूरी तरह स्कैन हो जातीं थी। जैसे की चर्चा आम है, उनके मोह पाश में कुछ जकड़ीं भी। अद्भूत प्रतिभा थी उनमें। एक मर्तबा विवाद में उलझ गए, फिर बाहर भी निकल आए। एक आईएएस हैं। वह जब कलेक्टर थे, तब गुफ्तगू से गुटर गू  तक पहुंच गए थे। अपने मोबाइल का डाटा उड़ाए बगैर उसे प्रेयसी को दे दिया। मुसीबत में पड़ गए। पुलिसिया हस्तक्षेप से बाहर निकले। सच्ची घटनाओं पर आधारित किस्से ढेरों हैं, लेकिन विवादित नहीं। इसलिए आज जिक्र उन किस्सों का बिल्कुल नहीं करेंगे। निजता की मर्यादा तब तक रखनी चाहिए जब तक की उसका असर सिस्टम पर न पड़ रहा हो। वैसे मूल बात यह भी है कि कुछ किस्से हवा में छोड़ दिए जाते हैं। पिछले दिनों एक मित्र ने एक खूबसूरत लड़की की तस्वीर दिखाते हुए कहा कि फलाने आईपीएस का इस लड़की के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर चल रहा है। तस्वीर में लड़की के चेहरे को धुंधला कर दिया गया था। मैंने गूगल लेंस का इस्तेमाल किया, तो असली तस्वीर सामने आ गई। यह तस्वीर बालीवुड में सक्रिय एक एक्ट्रेस की थी। मित्र ने अपना माथा ठोक लिया। उसने झट से कहा, सिस्टम में फुर्सतिया लोगों की कोई कमी नहीं। बहरहाल, इस किस्म के रिश्ते म्यूचुअल फंड की तरह है। यहां कंपाउंड इंट्रेस्ट मिलता तो है, लेकिन यहां निवेश का जोखिम बाजार के अधीन नहीं होकर खुद के अधीन होता है। 

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रेट लिस्ट 

सूबे की सरकार के एक मंत्री हैं, जो उम्मीद से तेज भाग रहे हैं। वह जब मंत्री नहीं थे, तब भी इन चर्चाओं में सुर्खियां बटोरते थे कि कुर्सी मिलते ही उनकी असली रफ्तार से लोग वाकिफ होंगे। हुआ भी कुछ ऐसा ही। मंत्री जी के विभाग से जुड़े काम दिलाने वाले दलाल सक्रिय हो गए हैं। विभाग में काम दिलाना हो या फिर ट्रांसफर-पोस्टिंग हर काम के लिए दलाल तय हैं। लगता है, मंत्री जी का मानना है कि दलाल कोई अपवाद नहीं है। यह सरकारी व्यवस्था का ही एक अनौपचारिक उपक्रम है। अलिखित, लेकिन प्रभावशाली। अक्सर दलाल को व्यवस्था से बाहर का समझा जाता है, जबकि वह उसी व्यवस्था की सबसे ईमानदार पैदाइश है। फिलहाल मंत्री जी के विभाग में काम की गारंटी दी जा रही है। रेट लिस्ट टंगी हुई है। 

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फ्रंट फुट

चीफ सेक्रेटरी एडमिनिस्ट्रेटिव पिच पर फ्रंट फुट खेल रहे हैं। चीफ सेक्रेटरी की आक्रामक पारी देख अच्छे-अच्छे हैरान हैं। पिछले दिनों चीफ सेक्रेटरी की एक मीटिंग के बाद मंत्रालय की लाबी में कुछ अफसर चर्चा करते हुए चल रहे थे। मालूम चला कि एक मीटिंग में दिए गए प्रेजेंटेशन पर चीफ सेक्रेटरी ने ढेरों खामियां निकाल दी। प्रेजेंटेशन के लिए 25 पेज की पीपीटी बनाई गई थी, लेकिन जब अफसर प्रेजेंटेशन देकर लौटे तब चीफ सेक्रेटरी ने उस पर 75 पेज का करेक्शन जोड़ दिया था। एक चर्चा यह भी सुनी गई कि कोर्ट से जुड़े किसी मसले पर विभागीय चूक से नाराज होकर उन्होंने एक डायरेक्टर को शो काज नोटिस थमा दिया। चीफ सेक्रेटरी के रुख को देखते हुए अफसर अब पहले से ज्यादा अलर्ट हो गए हैं। किसी रिव्यू मीटिंग में अफसरों की प्रिपरेशन से ज्यादा चीफ सेक्रेटरी की डायरी में नोट्स लिखे होते हैं। एक आईएएस ने कहा कि चीफ सेक्रेटरी की मीटिंग में जाने पर लगता है कि हम एग्ज़ाम रूम में एंट्री कर रहे हैं, जहां रिटन के साथ-साथ ओरल एग्ज़ाम भी देना है। हमे बकायदा होमवर्क मिलता है और इसकी कापी खुद चीफ सेक्रेटरी जांचते हैं। कापी पर नीली स्याही के निशान कम और लाल स्याही के ज्यादा दिखते हैं। चीफ सेक्रेटरी के काम के तौर तरीकों से कामकाज की गति बढ़ गई है। सुस्ती खत्म हुई है। बहरहाल चीफ सेक्रेटरी का फ्रंट फुट खेलना उनकी लीडरशिप की पहचान तो है, लेकिन हर पिच आक्रामक खेल की मांग नहीं करती। कभी-कभी शासन को गति से ज्यादा विश्वास की ज़रूरत पड़ती है। फिलहाल चीफ सेक्रेटरी खेल रहे हैं और टीम देख रही है। उनकी यह पारी टीम को मज़बूत बनाती है या केवल सतर्क। यह देखना बाकी है।

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हाल ए कांग्रेस

कांग्रेस संगठन की एक बड़ी बैठक में प्रदेश प्रभारी की नाराजगी फूटकर बाहर आ गई। दरअसल शिकायत बेहद मामूली थी कि पार्टी के सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एक ही नेता की तस्वीरें क्यों? सवाल सीधा सा था कि क्या पार्टी किसी एक चेहरे से चलती है या चेहरों से पार्टी बनती है? उनका आशय शायद कुछ यूं रहा होगा कि विपक्ष की राजनीति एकला चलो की साधना नहीं होती। यह भीड़ की लड़ाई होती है। मगर सूबे की कांग्रेस पार्टी में हर नेता की अपनी अलग चाल है। संगठन पीछे छूट गया है और नेता अपने-अपने रास्ते आगे चल रहे हैं। कुछ नेता सत्ता की परछाईं में सुकून तलाश रहे हैं। वहां न धूप लगती है, न पसीना बहता है। विरोध की आवाज़ धीमी हो जाती है, मगर कुर्सी सुरक्षित लगती है। कुछ नेता अपने तौर तरीको से लड़कर राजनीतिक ज़मीन की सिंचाई कर रहे हैं। संगठन की गहरी समझ रखने वाले एक वरिष्ठ नेता ने मौजूदा हाल पर अपनी टिप्पणी में कहा कि कांग्रेस जब विपक्ष में होती है, तब वह सरकार से नहीं हारती। वह पहले खुद से हारती है। लगता है कि कांग्रेस फ़िलहाल इसी हार को रणनीति समझकर बड़ी लड़ाई का अभ्यास कर रही है।

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लेटलतीफी खत्म!

जब से मंत्रालय में बायोमीट्रिक अटेंडेंस शुरू हुआ है, अफसरों से लेकर कर्मचारियों तक की लेटतलीफी लगभग खत्म हो गई है। AEBAS यानी आधार इनेबल्ड बायोमीट्रिक अटेंडेंस सिस्टम का आंकड़ा देखिए। आंकड़े बडे़ ईमानदार हैं।  सुबह 9.30 बजे तक तकरीबन 0.37 फीसदी लोग मंत्रालय पहुंच रहे हैं। सुबह 10 बजे से 10.30 तक 44.92 फीसदी, सुबह 10.30 से 11 बजे तक 5.45 फीसदी और 11 बजे के बाद 7.67 फीसदी लोग मंत्रालय पहुंच रहे हैं। 11 बजे के बाद मंत्रालय पहुंच रहे लोग उस आदर्शवादी तबके से हैं, जिन्हें लगता है कि सिस्टम अब भी उनके मानवीय पक्ष को मानेगा।  कुल मिलाकर 90 फीसदी से ज्यादा अफसर और कर्मचारी वक्त पर मंत्रालय में अपनी आमद दे रहे हैं।  मशीन पर दर्ज हो रहे समय के मुताबिक प्रति व्यक्ति कामकाज करीब 7 घंटे 36 मिनट का हो रहा है। किसी सरकारी व्यवस्था में इतना समय बहुत माना जाता है। यह एक तरह की असाधारण उपलब्धि है। बायोमीट्रिक ने मंत्रालय को यह सिखा दिया है कि अनुशासन बेतुके भाषणों से नहीं आता। यह बायोमीट्रिक के सेंसर से आता है। जहां सालों की सख्ती भी काम न आई, वहां एक मशीन ने चुपचाप सुधार ला दिया है। मगर यह चर्चा भी उठ रही है कि जब पूरा दस्तावेजी कामकाज ई-फाइल पर चढ़ रहा है, तब इस बायोमीट्रिक की उपयोगिता कितनी सार्थक है !