Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor Contact no : 9425525128

रंगमंच

विधानसभा के बजट सत्र में पक्ष-विपक्ष के कुछ विधायकों के बीच एक गर्मागर्म चर्चा हुई. एक ने पूछा कि ‘सरकार’ क्या है? दूसरे ने जवाब दिया. ‘सरकार’ एक रंगमंच है. रंगमंच में तरह-तरह के नाटक खेले जाते हैं. हर नाटक के किरदार अलग होते हैं. कभी एक पार्टी रंगमंच पर उतरती है, तो कभी दूसरी पार्टी. नाटक का हर किरदार पहले से ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करना चाहता है. हर किरदार पहले खेले गए नाटक के किरदारों की वेशभूषा, भाव भंगिमा ओढ़कर उससे ज्यादा बेहतर दिखना चाहता है. रंगमंच पर होने वाले हर नाटक की अपनी प्रॉप्स होती है. रंगमंच वाले बेहतर जानते हैं कि प्रॉप्स किसे कहते हैं? इस प्रॉप्स में कोयला तब भी था, अब भी है. शराब तब भी था, अब भी है. महादेव सट्टा तब भी था, अब भी है. रेत खनन तब भी था, अब भी है. तीसरे ने पूछा, फिर बदला क्या? पहले ने जवाब दिया, नाटक बदल गया. नाटक का किरदार बदल गया. सबने खूब ठहाका लगाया और फिर सदन में अपनी-अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गए. जनता से जु़ड़े मुद्दों पर हंगामा चल रहा था. विपक्ष ने जमकर नारेबाजी की. सदन से बहिर्गमन कर दिया. अखबारों में खबर आई. जनहित के मुद्दे पर सदन में भारी हंगामा हुआ है.

Also Read :पॉवर सेंटर : बालूशाही… हर तस्वीर कुछ कहती है… ईओडब्ल्यू जांच… विस्तार… शुभ-अशुभ फल… – आशीष तिवारी

भ्रष्टाचार की माला

भारतमाला प्रोजेक्ट में हुई गड़बड़ी के दो पहलू हैं. पहली गड़बड़ी यह कि प्रोजेक्ट की अधिसचूना जारी होने के पहले ही औने-पौने दाम पर खूब जमीन खरीदी गई. जमीन खरीदने वालों में नेता-मंत्री, अफसर, कारोबारी सब शामिल रहे. चवन्नी लगाकर रुपया बटोरा गया. खूब खेल हुआ. जमीन बेचने वाला किसान इस बात पर खुश था कि दस की उसकी जमीन बीस में बिक गई, भला उसे क्या मालूम था कि उसके हिस्से मूंगफली आएगी और बादाम कोई दूसरा खाएगा. दूसरी गड़बड़ी मुआवजा बांटने में हुई, जब एक खसरे को कई-कई हिस्सों में बांट दिया गया, ट्रस्ट की जमीन के अधिग्रहण का मुआवजा ट्रस्ट के बदले व्यक्ति को दे दिया गया. अंग्रेजी में एक कहावत है, Tip of the iceberg. भारतमाला प्रोजेक्ट में हुई गड़बड़ी कुछ ऐसी ही है. सरकार ने तेजतर्रार आईपीएस अमरेश मिश्रा की अगुवाई वाली ईओडब्ल्यू को जांच का जिम्मा सौंपा है. जांच की यह आंच किस-किस तक पहुंचेगी, यह आगे दिखेगा ही. इन सबके बीच प्रशासनिक महकमे में एक नई चर्चा उठी है. सुना गया है कि पिछली सरकार के वक्त मुआवजा वितरण की गड़बड़ी सामने आने के बाद जब जांच बिठाई गई, तब जिम्मेदारों ने जांच प्रभावित कर रिपोर्ट अपने पक्ष में बनवाने के लिए उच्च पदस्थ अफसरों को करोड़ों रुपयों का चढ़ावा चढ़ाया. जब तक रिपोर्ट आती, तक तक सूबे की सरकार बदल गई. न पैसा काम आया, न बचने की उम्मीद बची. जब रिपोर्ट आई, तब अफसरों के खिलाफ टीप लिख दी गई. करोड़ों रुपया डकार लिया गया. अब मालूम पड़ा है कि एसडीएम समेत निलंबित हुए लोग उछल-उछल कर पैसा खाने वाले अफसरों का नाम उगल रहे हैं. खैर, जो अफसर शराब घोटाला मामले में जमीन खोदकर नकली होलोग्राम निकाल ले, वह करोड़ों रुपए बटोरने वाले अफसर का नाम न निकाल ले, यह सोचना भी बेमानी है. बहरहाल, केंद्र सरकार को छत्तीसगढ़ से गुजरने वाली इस सड़क पर तख्तियां लगानी चाहिए, जिस पर यह लिखा हो कि यह ‘भारतमाला नहीं भ्रष्टाचार की माला है’. 

Also Read: पॉवर सेंटर : किराया 335 करोड़…अफसरों को टांग दो…कब्रगाह…जेट्रोफा…नियुक्तियां जल्द…- आशीष तिवारी

शिकायती चिट्ठी

सरकार को चाहिए कि भाजपा के पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर को किसी काम में लगा दे. निगम,मंडल, आयोग की सूची आनी ही है, उन्हें कोई ऐसा काम दे दें, जिससे वह व्यस्त रहे. नहीं तो उनकी शिकायती चिट्ठी केंद्र सरकार को जाती रहेगी. विवादों से बचने का यही एकमात्र तरीका होगा. कंवर साहब कई बार राज्य सरकार के चहेते अफसरों के खिलाफ शिकायत कर बैठते हैं. ताजा मामला वन महकमे से जुड़ा है. ननकीराम कंवर ने कैम्पा फंड में बड़ी गड़बड़ी की ओर ध्यान दिलाने वाली एक शिकायती चिट्ठी केंद्र सरकार को भेजी थी. वह पूर्व मंत्री हैं. केंद्र सरकार उनकी भेजी चिट्ठी को धूल जमने तक छोड़ नहीं सकती, सो राज्य सरकार को उसे फारवर्ड कर दिया है. यह कहते हुए कि देखिए इस मामले को, इस पर क्या हो सकता है. एसीएस फारेस्ट को यह चिट्ठी आई है. हालांकि यह तय है कि इस चिठ्ठी पर कुछ होना जाना नहीं है. मगर इस पर चर्चा करना भी इस तरह की चिठ्ठियों का मकसद पूरा करने जैसा है. कंवर साहब सीनियर नेता हैं. उनकी सीनियरिटी का सम्मान करते हुए उन्हें कुछ ठीक ठाक पद दे देना चाहिए. नहीं तो वह चिट्ठी लिखते रहेंगे. इस उम्र में उनका कोई क्या ही बिगाड़ सकता है. 

हिचकियां

सरकार शराब बेचेगी. रमन सरकार के दिनों में हुई एक कैबिनेट की बैठक में जब यह तय हुआ, तब एक मंत्री गुस्से से बाहर आए. मंत्रालय की लाॅबी में उनका चेहरा गुस्से से लाल था. सरकार के फैसले पर उनकी नाराजगी थी. वह विरोध के अलावा और कुछ नहीं कर पाए. ठेका बंद हुआ और सरकार शराब बेचने लगी. पूर्ववर्ती सरकार ने एफएल 10 लाइसेंस बांट कर बाहरी हस्तक्षेप को बढ़ावा दे दिया. डिस्टलरी से दो तरह की शराब निकलने लगी. एक वैध और दूसरी अवैध. सरकार को नुकसान हुआ, नेताओं-कारोबारियों की जेब भर गई. घोटाला फूटा. जांच हुई. कई जेल चले गए. पूर्व की सरकारें जो नहीं कर पाई, वह मौजूदा सरकार ने कर दिखाया है. सरकार ने शराब की कमाई का रिकार्ड ब्रेक किया है. शराब बेचकर सरकार ने 9 हजार करोड़ रुपया कमाया. अगले साल शराब से कमाई का लक्ष्य 12 हजार करोड़ रुपया रखा है. सरकार शराब विरोधी कतई नहीं लगती है. मौजूदा सरकार ने यह कभी नहीं कहा है कि राज्य में शराबबंदी होगी. सरकार की नीति भी तय है और नियत भी. यह बात और है कि कैबिनेट की एक हालिया बैठक में एक मंत्री ने एक व्यक्ति के चार बाटल खरीदने के प्रस्ताव पर मुंह मोड़ लिया था. तब प्रस्ताव टाल दिया गया. न जाने क्या हुआ कि अगली कैबिनेट में प्रति व्यक्ति चार बाटल खरीदने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई. शायद सरकार के राजस्व का गणित मंत्री जी को समझाया गया हो ! कांग्रेस शराब का विरोध कर सत्ता में आई थी. शराबबंदी का वादा था. मगर खुद शराब के नशे में डूब गई. आज राज्य में शराब दुकानों की संख्या बढ़ रही है. प्रति व्यक्ति शराब रखने का कोटा बढ़ रहा है. मगर कभी शराबबंदी पर दहाड़ने वाली कांग्रेस आज भीगी बिल्ली बनी बैठी है. कांग्रेस की हालत कुछ यूं है कि – ”बात रुक-रुक कर बढ़ी, फिर हिचकियों में आ गई”.

Also Read: पॉवर सेंटर : नया ‘कोण’…खेलो छत्तीसगढ़…विकल्प…स्वाद अनुसार…आपका स्कोर शून्य रहा…- आशीष तिवारी

नियुक्तियां जल्द

निगम, मंडल और आयोग में नियुक्ति की बांट जोह रहे नेताओं को अब ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा. खबर है कि सरकार और संगठन नियुक्तियों को अमलीजामा पहनाने में जुट गए हैं. काम तेजी से चल रहा है. सब कुछ तय मुताबिक हुआ, तो 30 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिल्ली उड़ान के बाद सूची जारी कर दी जाएगी. ज्यादा से ज्यादा विलंब हुआ तो दो-चार दिन और रुकना पड़ सकता है. निगम, मंडल और आयोग की ओर टकटकी निगाह जमाए बैठे नेता माथा टेकने के उपक्रम में जुट गए हैं. मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, संगठन मंत्री, प्रदेश अध्यक्ष के ठिकानों पर भीड़ ज्यादा है. कुछ-कुछ भीड़ मंत्रियों के बंगलों पर भी है, जो उनके करीबी हैं और उम्मीद से हैं कि मंत्री उनका भला करेंगे. असल बात यह है कि विपक्ष में रहते हुए जमीन की लड़ाई लड़ने वाले कई चेहरे खामोश हैं. उन्हें खुद की तैयार की गई जमीन पर भरोसा है. उन्हें भरोसा है कि संगठन संघर्ष के दिनों में दी गई उनकी कुर्बानियों को याद रखेगा. वैसे राजनीति है, यहां कुर्बानियों से ज्यादा माथा टेकने वालों का बोलबाला होता है. ऐसे लोगों को सुझाव है कि कम से कम बंद कमरे में ही माथा टेक आइए. बगैर किसी को बताए. संघर्ष के दिनों का वास्ता भी दे दें. दावा मजबूत हो जाएगा. काम धाम के बूते कुर्सी पाने की लालसा में कहीं लेने के देने न पड़ जाए. अपने काम की दुहाई दे दीजिए. नहीं तो एक बार सूची जारी हो जाए, फिर किस्मत को कोसते बैठे रह जाइएगा. 

सीधी रेखा

निकाय चुनाव और विधानसभा सत्र खत्म होने के बाद प्रस्तावित मंत्रिमंडल विस्तार पर अब कोई संशय शेष नहीं है. विशेष बात यही है कि मुख्यमंत्री ने भी अपना परिवार बढ़ाने के सवाल पर सिर हिला दिया है. मंत्रिमंडल विस्तार के सवाल पर जब मुख्यमंत्री अपना सिर दाया-बायां करते थे, तब समझ आ जाता था कि वह संकेत दे रहे हैं कि ‘रुको जरा सब्र करो’. मगर अब इस सवाल पर वह सीधी रेखा में सिर हिला देते हैं. भीतरखाने की चर्चा यही है कि नवरात्रि के पावन पर्व पर संभावित चेहरों को माता रानी का आशीर्वाद मिल जाएगा. तीन नए मंत्री सरकार में लिए जाने की अटकलें हैं. 

सभी पॉवर सेंटर पढ़ने के लिए यहां Click करें

Also Read: पॉवर सेंटर : राजकीय प्रोजेक्ट…टिप…मीठा नहीं सुहाता…अल्पविराम !…जेल-बेल…-आशीष तिवारी