राजकुमार पाण्डेय की कलम से

तारीफ मतलब अलर्ट हो जाओ

भरे कार्यक्रम में बड़े नेता की ओर से तारीफ कर देना, मतलब कद और आगे बढ़ाना ही माना जाता रहा है, लेकिन मध्य प्रदेश के प्रमुख राजनैतिक दल में इन दिनों तारीफ के अलग ही मायने निकाले जा रहे हैं. जिस नेता की तारीफ हुई मतलब अलर्ट हो जाओ. ऐसा ही एक वाक्या पिछले दिनों एक कार्यक्रम के बीच हुआ तो खुद की तारीफ होते ही नेताजी थोड़े से विचलित दिखे. सुनने के साथ देखने में आ रहा है कि नेताजी तब से ही कुछ परेशान से नजर आ रहे हैं.

आंदोलन के लिए जिलाध्यक्षों ने ही भरी हवा

मध्य प्रदेश के प्रमुख विपक्षी राजनैतिक दल में जिलाध्यक्षों की घोषणा हुई तो दिग्गज नेता हक्के-वक्के रह गए. इसका एक कारण था जिन्होंने कई जिलों में अध्यक्ष बनवाने का बीड़ा उठाया हो, पार्टी ने उल्टा उन्हें ही जिले के अध्यक्ष का पद थमा दिया. इस फैसले से नाराज दिग्गजों ने ऐसे में अपने उन लोगों को आगे कर विरोध दर्ज करा दिया, जिनके लिए अध्यक्ष पद की दावेदारी ठोकी गई थी. हालांकि जब पार्टी की ओर से गाइडलाइन जारी हुई तो समझदारी बरतते हुए बैठकें हुईं और कुछ दिन के लिए चुप रहने का कह दिया गया.

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नींद नहीं गहरी नींद में वन विभाग

मध्यप्रदेश का वन विभाग गहरी नींद में सोया हुआ है. नींद भी ऐसी कि मानों टूटने का नाम नहीं ले रही है. नया मामला बाघ के शिकार से जुड़ा हुआ है. हाल ही में नर्मदापुरम जिले में तवा नदी के किनारे बढ़ चापड़ा गांव के करीब बाघ का शव मिला. शिकारियों ने पंजों को निकाला. दरअसल, वन विभाग को इस बात का इनपुट मिला था कि क्षेत्र में शिकारी सक्रिय हैं. इसके बाद भी वन विभाग ने मामले में मुस्तैदी नहीं दिखाई. इससे पहले भी कान्हा टाइगर रिजर्व, पन्ना टाइगर रिजर्व और रातापानी में मिले इनपुट के बाद भी सतर्कता नहीं दिखाई दी. अफसरों को यह बात समझनी होगी कि प्रदेश में अंतर राष्ट्रीय स्तर का शिकारियों का गिरोह सक्रिय है. नींद से जागिए माननीय.

ट्रांसफर में दाम लेकर काम न करना पड़ेगा महंगा

प्रदेश का शिक्षा विभाग… बदहाल लेकिन सरकारी राजस्व को छोड़ बाकी सभी में मालामाल… मामला ऐसा है कि विभाग में ट्रांसफर को लेकर जमकर मनमानी के कई मामले मंत्रालय से लेकर माननीय के बंगले तक हैं. इनमें आधा दर्जन राजनीतिक रसूखदार ऐसे हैं कि जिन्होंने काम कराने के लिए दाम भी वसूला. इसमें दलालों ने काम भी ढंके की चोट पर कराए, लेकिन कुछ काम दाम के बाद भी नहीं हो सके. इनका सीधा कारण भी राजनीतिक रूप से ही जुड़ा हुआ था. जब काम नहीं तो दिए दाम की वापसी की मांग भी उठी. जब घूसखोरी की रकम वापस नहीं की गई तो विवाद शिकायतों में तब्दील हो गया. लेकिन शिकायत पर सुनवाई तो दूर बल्कि एक आवेदन तक लेने को कोई तैयार नहीं. पीड़ितों ने नीचे से ऊपर तक की जोर आजमाइश की है. अब कांग्रेस के एक दिग्गज मामले को सार्वजनिक तैयारी करने की पूरी तैयारी भी कर चुके हैं.

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पायलट प्रेम से परेशान पुलिस मुख्यालय

कई माननीय इन दिनों पायलट प्रेमी हो चुके हैं… इनके पायलट प्रेम से पुलिस मुख्यालय की नींद उड़ी हुई है. खास तौर पर सुरक्षा व्यवस्था से जुड़ी हुई एजेंसी के अधिकारी ने तो कह दिया है कि सभी विधायकों को पायलट दे दिया जाए. क्योंकि यह नियम का पालन तो माननीय खुद ही नहीं कर रहे हैं. एक-एक विधायक मंत्री पर लाखों रुपए खर्च किया जा रहा है. घर से बाहर निकलते ही पायलट नहीं मिला तो दौरा ही रद्द कर रहे हैं. ऐसे ही एक मंत्री ने स्थानीय जिले में दौरा करने से ही इनकार कर दिया. वैसे मंत्री का यह तर्क सुनकर संगठन भी चौंक गया है. पुलिस मुख्यालय ने खर्च बताया है कि हर महीने 80 जवान 45 वाहन का इस्तेमाल पायलट पर हो रहा है. इसका खर्च भोपाल कमिश्नर कार्यालय को उठाना पड़ रहा है. हालांकि डीजीपी इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री से चर्चा जल्द ही करने वाले हैं. क्योंकि बिना पात्रता वाले विधायक और मंत्री भी पुलिस पर जबरन दबाव बनाकर पायलट सेवा ले रहे हैं.

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