राजकुमार पाण्डेय की कलम से

कौन हैं गिरफ्तार SDOP के सर

मध्य प्रदेश के सिवनी में हवाला की राशि डकारने के मामले में महिला एसडीओपी समेत 11 पुलिसकर्मियों पर गाज गिरी है। एसडीओपी महोदया भी डकैती और अपहरण की धाराओं में गिरफ्तार हो चुकी हैं। अब सुगबुगाहट है कि जांच की दिशा एसडीओपी के सर की ओर बढ़ रही है। यानी राशि डकारने के प्रयास में शक की सुई सर की ओर है। अब ये सर उसी जिले के हैं या पाइंट लीक हुए जिले के, इसका खुलासा जल्द होने की चर्चा भी जोरों पर है।

तवज्जो नहीं मिलने से मंत्री दुखी

बीजेपी हो या कांग्रेस, कैमरों की चमक की कुछ नेताओं को आदत ही पड़ गई है। पिछले कुछ दिन से सरकार के एक मंत्री की कैमरों वाली चमक धुंधली सी हो गई है। कैमरों की हुई दूरी को लेकर मंत्रीजी इन दिनों खासे परेशान हैं और अपनी पुरानी चमक बरकरार रखने के लिए नए-नए फॉर्मूले ईजाद करने का प्रयास कर रहे हैं। मंत्रीजी की इच्छा पूरी नहीं कर पाने का खामियाजा स्टाफ के कुछ लोगों को भी भुगतना पड़ रहा है।

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प्लास्टिक के सरियों का खुलासा करने वाले नेताजी ही मौन

प्रदेश में निर्माण कार्यों में गुणवत्ता बरकरार रखने के लिए सत्तापक्ष से अधिक सक्रिय विपक्ष हो गया है। गुणवत्तापूर्ण कार्य हों, इसके लिए विपक्ष के कुछ नेता तो अफसरों से अधिक दौरे कर रहे हैं। हाल ही में एक वक्ता नेशनल हाईवे का सामने आया। निरीक्षण के दौरान नेताजी ने सीमेंट कांक्रीट में फंसा सरिया दवाकर पकड़ा तो वह लकड़ी की डंडी की तरह टूट गया। पता चला कि लोहे के सरिया के नाम पर कलरफुल प्लास्टिक के सरिया लगाए गए हैं। बड़ी बात ये है कि प्लास्टिक के सरियों के मामले को लेकर खुलासा करने वाले नेताजी ही मौन नजर आ रहे हैं।

जो हुआ अच्छा हुआ जो होगा अच्छा होगा

जो हुआ अच्छा हुआ जो होगा अच्छा होगा… यह बात भागवत गीता के उद्धरण से प्रेरित है, लेकिन मध्यप्रदेश कांग्रेस की मौजूदा स्थिति में यह बात बिल्कुल सटीक बैठ रही है। जीतू पटवारी के खिलाफ पार्टी के अंदर एक विरोधी गुट तैयार हुआ है, जो कांग्रेस में चल रहे घमासान को वैट एंड वॉच कर रहा है। इस गुट से आप कुछ भी कहो लेकिन वो एक ही बात कहते हैं, जो हुआ अच्छा हुआ जो होगा अच्छा होगा। अंदरखाने की खबर है कि लगातार दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व को एक-एक इनपुट दिया जा रहा है।

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अब मंत्री जी परेशान

इन दिनों एक मंत्रीजी खासे परेशान हैं। मामला ट्रांसफर से जुड़ा हुआ है। दरअसल, मंत्रीजी के विभाग में ट्रांसफर की भरमार रही थी। मंत्रीजी से अपेक्षाएं भी खूब रही। यह अपेक्षा संगठन पदाधिकारी से लेकर कार्यकर्ताओं की कुछ ज्यादा ही रही। मंत्रीजी ने कितना क्या किया ये तो अलग बात है लेकिन एक निवेदन को अनसुनी करना थोड़ा परेशान कर गया। निवेदन भी महज आवेदन में किया गया था। संघ के बड़े पदाधिकारी कॉल पर निवेदन करना कम ही पसंद करते हैं। आवेदन के सेज जानकारी भी एक बार भिजवाई गई थी। फिर उनके व्यक्तिगत तौर पर काम देख रहे त्रिमूर्तियों ने आश्वासन पर ही आवेदन को कोना पकड़ा दिया। ट्रांसफर भी घर का ही था। जब मंत्रीजी का दिल्ली दौरा हुआ तो आदरणीय की नाराजगी का पता चला। तीन बार व्यक्तिगत रूप से मंत्रीजी ने मुलाकात के लिए जोर लगाया पर समय ही नहीं दिया गया। अब मंत्री जी परेशान है।

PWD और गोल्ड वाला गिफ्ट

दीपावली पर अफसरों को उपहार की पुरानी परंपरा है। इसमें बुराई भी नहीं। इस बार एक बड़ी फर्म ने बड़े काम और आउट ऑफ वे जाकर मिले अफसरों के साथ पर सोने की अगूंठी का तोहफा दो दिन पहले ही दिया। लेकिन यह सबके लिए नहीं बल्कि चुनिंदा अधिकारियों के लिए ही था। जिन्होंने विपरीत परिस्थिति में नियमों को ताक पर रख माननीय के नजदीकी के कहने पर मदद की थी। इस गोल्ड वाले गिफ्ट की खबर भी तेजी से पहुंची। अब विभाग के अन्य अफसर मुंह फुलाए बैठे हैं। सुगबुगाहट इस बात की है कि सबक तो सिखाया जाएगा। उन नाराज़ अधिकारियों का मानना है कि गोल्ड वाला गिफ्ट न देकर अपमान किया गया।

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मध्यप्रदेश कांग्रेस अपनी ढपली अपना राग

मध्यप्रदेश कांग्रेस में इस वक्त अपनी ढपली, अपना राग की कहावत चरितार्थ हो रही है, कोई किसी का सुनने वाला नहीं है। संगठन के प्रमुख पदों पर बैठे नेता सीधे फैसला लेने से भी हिचकिचा रहे हैं। उनको लगता है इस निर्णय से सामने वाले नेता से उनकी बुराई हो जाएगी। इसके चलते वो दूसरे नेता के कंधे पर सवार होकर फैसला ले रहा है। अब नेता जी को कौन समझाए जिसके कंधे पर आप बंदूक रखकर चला रहे हैं उसे सब समझ आ रहा है बस बोल कुछ नहीं रहा है।

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