भक्ति की शक्ति से ओतप्रोत राधा-रानी की कृपा से प्रकाशित होने वाले संत प्रेममूर्ति प्रेमानन्द जी महाराज के जन्मोत्सव में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रसिकजन उनके बताए मार्ग में चलकर उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं दे रहे हैं. वृन्दावन धाम की महिमा ब्रजवासियों के प्रति उनका आदर इस बात का सूचक है कि ब्रज के कण कण में व्याप्त श्रीजी की कृपा उनकी करुणा की मूरत हैं पूज्य प्रेमानंद जी महाराज. उनसे मिलने लाखों की संख्या में राधा-रानी के भक्तों का वृंदावन आगमन होता है. प्रेमानंद जी महाराज का जन्मोत्सव श्रीराधा केलिकुंज वृंदावन में 6 दिनों तक चलने वाला एक धार्मिक कार्यक्रम होता है. मार्च महीने के आखिरी सप्ताह में 25 से 30 मार्च के बीच होता है. यह विराट आयोजन जिसमें नाम संकीर्तन, सत्संग, श्रीजी का झूला दर्शन और कई तरह के धार्मिक अनुष्ठान शामिल होते हैं. देश विदेश से हजारों की संख्या में भक्त इस जन्मोत्सव में भाग लेने के लिए वृंदावन आते हैं.

बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू

आशय यह है कि… मैं गुरू महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूं, जो सुरुचि (सुंदर स्वाद), सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है. वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है.
आज जनमानस के लिए राधा केलिकुंज वृंदावन में वह स्थान है, जो किसी बड़े तीर्थ से कम नहीं है. सौभाग्य से मुझे वहां जाने का अवसर मिला. चारों ओर श्री राधा श्री राधा गुंजायमान रहता है. वहां पर गुरुदेव के आने का जाने का समय सभी को पता रहता है. वहां पर मिलने वाले लोग आपको गुरुदेव की महिमा के बारे में बहुत सुंदर ढंग से बताते मिल जाएंगे, चाहे ऑटो वाले भैया से भी आप पूछेंगे तो आपको सब कुछ बता देंगे, यह महाराज जी का दिव्य प्रभाव जो आप वहां अनुभव करेंगे.

वृंदावन धाम की अपनी महिमा है. प्रेमानंद जी महाराज की एक झलक पाने के लिए भक्तों की कतार रहती है. सभी का अभिवादन स्वीकार करते हुए सभी को आशीर्वाद देते हुए सभी को अपना जीवन सही दिशा में ले जाने के लिए प्रेरित करते हैं महाराज जी. जब वह राधा केलिकुंज की ओर बढ़ते हैं और वहां सत्संग करते हैं, दर्शन देते हैं तो ऐसा लगता है कि महाराज जी के कांतिमय स्वरूप को देखते रहें. महाराज जी वृंदावन धाम को नहीं छोड़ते हैं, परंतु उनका ज्ञान उनका मार्गदर्शन न जाने कितने लोगों के जीवन को उत्कृष्टता की ओर अग्रसर कर रहा है. राधा केली कुंज नित नए रूप में सजाया जाता है, जिसकी शोभा देखते ही बनती है. महाराज जी के द्वारा जब संशय का समाधान किया जाता है तो व्यक्ति का मन शांत के साथ साथ आत्मिक आनंद की अनुभूति करता है.


प्रेमानंद जी महाराज का जीवन संघर्ष और भक्ति की शक्ति

कलयुग में भक्ति की शक्ति से जनसामान्य का परिचय कराने में प्रेमानंद जी महाराज अग्रणी हैं. सालों से दोनो किडनियों के ख़राब होने और हफ़्ते में तीन दिन डायलिसिस जैसी की समस्या से जूझने के बाद भी रोजाना अपने भक्तों और श्रद्धालुओं से सत्संग के लिए के लिए सुबह चलकर आश्रम आने वाले प्रेमानंद महाराज इस भक्ति की शक्ति का अनुपम और जीवंत उदाहरण हैं. श्यामा श्याम के प्रति उनकी भक्ति इतनी पुष्ट हो चुकी है कि उन्होंने अपनी दोनों किडनियों का नाम राधा और कृष्ण रख दिया है. राधावल्लभ संप्रदाय से सम्बंध रखने वाले सन्यासी राधावल्लभी संत प्रेमानंद जी महाराज का पूर्व का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है.

राधा-रानी की भक्ति में डूबने तक की यात्रा

घर त्यागने के बाद प्रेमानंद जी महाराज नैष्ठिक ब्रह्मचारी की दीक्षा ली थी, तब एक संत के रूप में उनका नाम श्री आनंद स्वरूप ब्रह्मचारी था. नैष्ठिक ब्रह्मचारी का मतलब होता है, ऐसा ब्रह्मचारी जो हर समय मन, वचन, और कर्म से ब्रह्मचर्य में निष्ठा रखता हो. जो उपनयन काल से लेकर मृत्यु तक गुरु के आश्रम में रहता हो. जो ब्रह्मचर्य आश्रम सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद गृहस्थ आश्रम में जाने का विकल्प नहीं चुनता हो. इसके अगले पड़ाव में प्रेमानंद जी महाराज ने जीवनभर के लिए संन्यास ले लिया था, जिसके बाद उन्हें एक और नाम मिला स्वामी आनंदाश्रम. बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि महाराज अपने प्रारंभिक जीवन में भगवान शिव के भक्त थे. वे भगवान शिव की शिक्षाओं का पालन किया करते थे, जिसके चलते उन्होंने कभी भी आश्रम या पदानुक्रमित जीवन को स्वीकार नहीं किया था.

शिव भक्ति से प्रेरित होकर ही उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग अकेले और अन्य दिव्य संतों के साथ बिताया. हरिद्वार और वाराणसी के घाटों के आसपास रहते हुए शिव भक्त संत के रूप में प्रेमानंद जी महाराज ने कभी भी मौसम, भोजन, कपड़ों जैसी वस्तुओं की परवाह नहीं की. शिवभक्ति में लीन वे कड़कड़ाती ठंड में भी गंगा स्नान करते रहे. इसमें कोई संदेह नहीं कि महाराज जी को भगवान शिव का भी भरपूर आशीष मिला रहा होगा. लेकिन कहा जा सकता है कि प्रारब्ध को कुछ और ही मंज़ूर था, क्योंकि एक संत की प्रेरणा से प्रभावित होकर प्रेमानंद जी महाराज स्वामी श्री श्रीराम शर्मा द्वारा आयोजित रासलीला पहुंचे और पूरे एक महीने तक वे रासलीला ही देखते रह गए.

राधा-रानी की भक्ति में अब महाराज के लिए वृंदावन से अन्यत्र कहीं और जाना सम्भव ही नहीं हो पा रहा था. राधा-रानी की कृपा से आध्यात्मिक नवजागरण वृंदावनधाम में वह लेकर आए. ज्ञान मार्ग के संन्यासी, भक्ति मार्ग के उपासक बन गए. वृंदावन में महाराज किसी को नहीं जानते पहचानते थे. श्री धाम वृंदावन की सुंदर संस्कृति उनके लिए बिल्कुल नया अनुभव था. श्री राधा-कृष्ण की भक्ति में अपना सर्वस्य अर्पित कर देने वाले प्रेमानंद जी अपने आध्यात्मिक प्रकाशपुंज के रूप में वृंदावन धाम में स्थापित हैं. महाराज जी पूर्व में प्रतिदिन वृंदावन की परिक्रमा करते. अन्य कृष्ण भक्त संतों से समागम करते. इसी बीच किसी संत ने उन्हें राधा वल्लभ मंदिर जाने की सलाह दी और महाराज का जीवन राधा भक्ति के सागर में पूरी तरह डूब गया. सहचरी भाव के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित संतों में से एक महाराज जी अपने वर्तमान सद्गुरु देव, पूज्य श्री हित गौरांगी शरण जी महाराज के सम्पर्क में आए. 10 वर्षों से भी अधिक समय तक प्रेमानंद जी महाराज ने अपने गुरु सद्गुरु देव की सेवा की. गुरू और श्री वृंदावन धाम के आशीष की ऐसी वर्षा हुई कि स्वयं महाराज पूर्णतः सहचरी भाव में खो गए. श्री राधा रानी के चरण कमलों में उनकी ऐसी अटूट भक्ति जागी कि वे श्री राधा-रानी की दिव्य शक्ति के अंश बन गए.

युवा पीढ़ी में प्रेमानंद जी महाराज का बढ़ता प्रभाव

आज प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन सुनकर लाखों लोगों का जीवन बदल रहा है. आज के युवा उनसे भक्ति मार्ग पर चलना सीख रहे हैं. आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद जी महाराज के आध्यात्म, चिंतन और भक्ति से समाज का हर वर्ग प्रभावित दिखाई देता है. आमतौर पर संत महात्माओं से दूरी बनाकर रहने वाली युवा पीढ़ी का रुझान आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद जी महाराज की ओर दिखाई पड़ता है. उनकी जीवन शैली और आध्यात्मिक ज्ञान से सभी अभिभूत है. उनकी सारी शिक्षा उनके सभी प्रवचन, भक्ति, आत्म-संयम, सत्य, सेवा और मानवता के मूल्यों पर केंद्रित होते हैं, जो युवाओं को एक संतुलित और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं.

प्रेमानंद जी महाराज युवाओं को आत्म-ज्ञान और आध्यात्मिक जागरुकता की ओर प्रेरित करते हैं. उनके अनुसार, आत्मा और परमात्मा का मिलन ही जीवन का परम लक्ष्य है. वे युवाओं से निरंतर आह्वान करते हैं कि वे अपने भीतर की शक्ति, भक्ति और ज्ञान को पहचानें, क्योंकि इसके बिना वे जीवन के उच्च उद्देश्यों को समझ नही सकेंगे. अपने संदेशों में उन्होंने हमेशा युवाओं को आत्म-विश्लेषण आत्म-विकास की दिशा काम करने के लिए प्रेरित किया है. महाराज जी भक्ति को जीवन में आनंद और शांति का मुख्य स्रोत मानते हैं. उनका मानना है कि ईश्वर की भक्ति से मन की अशांति दूर होती है और व्यक्ति आंतरिक शांति का अनुभव करता है.

युवाओं के लिए उनका यह संदेश उन्हें आध्यात्मिकता की ओर ले जाता है और उन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करता है. नवजवानों को अपना जन्मदिन मनाने की एक सात्विक पद्धति बताते हुए प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि वे अपने जन्मदिन पर वृद्धाश्रम में जाकर बुजुर्गों की सेवा करें, नशे से दूर रहें और केक न काटे. युवाओं के लिए प्रेमानंद जी महाराज का यह भी संदेश होता है कि भौतिक वस्तुओं की अतिरेकता से मनुष्य का मन विचलित होता है, जबकि सादगी से जीवन में संतोष और शांति आती है. युवाओं के लिए उनका यह संदेश उपभोक्तावाद के प्रभाव से बचने और जीवन में वास्तविक खुशी की खोज करने में मददगार साबित हो रही है. महाराज जी युवाओं को ब्रह्मचर्य और आत्म-संयम का पालन करने की सलाह देते हैं. उनका मानना है कि ब्रह्मचर्य के पालन से व्यक्ति की ऊर्जा का संरक्षण और संवर्धन होता है और उनका ध्यान निर्धारित लक्ष्यों की ओर केंद्रित रह सकेगा और यही जीवन में सफलता की कुंजी है.

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