दिल्ली. कच्चा तेल छह फीसदी से ज्यादा की गिरावट के साथ एक साल के निचले स्तर पर चला गया है। इससे 80 फीसदी तेल आयात करने वाले भारत को आर्थिक मोर्चे पर बड़ी राहत मिली है।
विश्लेषकों का कहना है कि दुनिया में आर्थिक सुस्ती और अमेरिका-चीन के बीच व्यापार युद्ध गहराने के कारण निवेशकों ने तेल से हाथ खींचने शुरू कर दिए हैं और इसके बाजार में घबराहट साफ दिख रही है। यही वजह है कि कच्चा तेल पिछले डेढ़ माह में 40 फीसदी नीचे आ चुका है। ओपेक देशों द्वारा 12 लाख डॉलर प्रति बैरल की कटौती के फैसले का भी बाजार पर नहीं दिख रहा है।
शिकागो स्थिति प्राइस फ्यूचर ग्रुप के विश्लेषक फिल फ्लिन ने कहा कि बाजार में डर है कि अर्थव्यवस्था में मंदी तो नहीं, लेकिन बड़ी सुस्ती आ रही है और आने वाले वक्त में तेल की मांग काफी कम रहेगी। अमेरिका में शटडाउन की स्थिति ने संकट को और गहरा दिया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और फेडरल रिजर्व के गवर्नर के बीच जारी गतिरोध से भी अमेरिकी अर्थव्यवस्था को झटका लगा है। फ्लिन ने कहा कि निवेशक क्रूड ऑयल और अस्थिर शेयर बाजार की जगह सोना और सरकारी बॉंड की ओर मुड़ रहे हैं। यही कारण है कि सोमवार को लगातार आठवें दिन कच्चे तेल में गिरावट जारी रही।
तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक ने कहा है कि अगर उत्पादन में जनवरी से लागू होने वाली कटौती का असर नहीं हुआ तो वे एक बार फिर कठोर फैसला लेने को तैयार हैं। ओपेक सदस्य यूएई के तेल मंत्री सुहैल अल मजरूई ने कहा कि संगठन आपात बैठक बुलाकर और ज्यादा कटौती पर मुहर लगा सकता है। ओपेक, रूस और नौ अन्य देशों ने 12 लाख बैरल प्रतिदिन की कटौता निर्णय किया है। इसमें ओपेक देश आठ लाख की कटौती करेंगे। फिलहाल यह कटौती चार माह की है, जिसे छह माह और बढ़ाया जा सकता है।