नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परीक्षा पे चर्चा के पहले वर्चुअल संस्करण के दौरान स्टूडेंट्स को एग्जाम के तनाव से निपटने के मंत्र दिए हैं. पीएम मोदी ने छात्रों को बताया कि किस तरह वह परीक्षा के डर को मन से निकाल सकते हैं. देशभर के विद्यार्थियों ने परीक्षा को लेकर कई सवाल किए. प्रधानमंत्री ने कहा कि परीक्षा पे चर्चा का पहला वर्चुअल एडिशन है. पिछले एक साल से हम कोरोना के बीच जी रहे हैं. मुझे भी आप लोगों से इस बार मिलने का मोह छोड़ना पड़ रहा है.
छात्रों ने पीएम से पूछा सवाल
एम पल्लवी- कक्षा 9 की स्टूडेंट (प्रकाशम, आंध्र प्रदेश) का सवाल– सर, हम अक्सर ऐसा महसूस करते हैं कि पूरे साल पढ़ाई ठीक चल रही होती है, लेकिन परीक्षा नजदीक आते ही बहुत तनाव हो जाता है. कृपया कोई उपाय बताएं.
अपर्ण पाण्डेय, 12वीं के छात्र मलेशिया से– परीक्षा की तैयारी के दौरान हमारे मन में आने वाले भय और तनाव से हम कैसे उबरें?
प्रधानमंत्री मोदी का जवाब- पल्लवी, अर्पण… देखिए जब आप डर की बात करते हैं तो मुझे भी डर लग जाता है. क्या पहली बार एग्जाम देने जा रहे हैं क्या, कैसा डर? सब पता है आपको, डरने की जरूरत नहीं. आपको डर न आने का नहीं है. आपके आस-पास ऐसा माहौल बना दिया गया है कि यही सब कुछ है. पैरंट्स, रिश्तेदार, पड़ोसी जैसे लोग ऐसा माहौल बना देते हैं कि आपकों किसी बहुत बड़ी घटना से गुजरना है. यह ठीक नहीं है. जिंदगी में यह कोई आखिरी मुकाम नहीं है. यह एक छोटा सा पड़ाव है. हमें दबाव नहीं बनाना चाहिए. टीचर हों, परिवार हो, दोस्त हो… बाहर का प्रेशर नहीं बनेगा तो कॉन्फिडेंस बढ़ेगा.
पहले मां-बाप बच्चों के साथ कई विषयों पर जुड़े रहते थे और सहज भी रहते थे. आजकल मां-बाप करियर, पढ़ाई सैलेबस तक बच्चों के साथ इंवॉल्व रहते हैं. अगर मां-बाप ज्यादा इंवॉल्व रहते हैं, तो बच्चों की रुचि, प्रकृति, प्रवृत्ति को समझते हैं और बच्चों की कमियों को भरते हैं.
हमारे यहां एग्जाम के लिए एक शब्द है- कसौटी. मतलब खुद को कसना है, ऐसा नहीं है कि एग्जाम आखिरी मौका है. बल्कि एग्जाम तो एक प्रकार से एक लंबी जिंदगी जीने के लिए अपने आप को कसने का उत्तम अवसर है. समस्या तब होती है जब हम एग्जाम को ही जैसे जीवन के सपनों का अंत मान लेते हैं, जीवन-मरण का प्रश्न बना देते हैं. एग्जाम जीवन को गढ़ने का एक अवसर है, एक मौका है उसे उसी रूप में लेना चाहिए। परीक्षा जीवन को गढ़ने का एक अवसर है, उसे उसी रूप में लेना चाहिए. हमें अपने आप को कसौटी पर कसने के मौके खोजते ही रहना चाहिए, ताकि हम और अच्छा कर सकें. हमें भागना नहीं चाहिए.
पुण्य सुन्या, 11वीं का छात्रा, अरुणाचल प्रदेश से- मैं कुछ सब्जेक्ट से पीछा छुड़ाने की कोशिश करती हूं. शायद मुझे उससे डर लगता है. इस डर को कैसे दूर करूं?
विनीता गर्ग, शिक्षक, दिल्ली- कुछ सब्जेक्ट ऐसे हैं जिनमें कई स्टूडेंट्स को डर का सामना करना पड़ता है. इस वजह से वे इनसे बचते हैं. इसके बारे में इतिहास या गणित जैसे शिक्षक अच्छे से समझ सकते हैं. टीचर के तौर पर इस स्थिति को और बेहतर बनाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
प्रधानमंत्री मोदी का जवाब- पसंद-नापसंद मनुष्य का स्वभाव है. कई बार पसंद के साथ लगाव भी हो जाता है. इसमें डरने वाली क्या बात है? …पढ़ाई के लिए आपके पास दो घंटे हैं तो हर विषय को समान भाव से पढ़िए. पढ़ाई की बात है तो कठिन चीज को पहले लीजिए, आपका माइंड फ्रेश है तो कठिन चीज को पहले लेने का प्रयास कीजिए. कठिन को हल कर लेंगे तो सरल तो और भी आसान हो जाएगा.
जब मैं मुख्यमंत्री था, उसके बाद मैं प्रधानमंत्री बना तो मुझे भी बहुत कुछ पढ़ना पड़ता है. बहुत कुछ सीखना पड़ता है. चीजों को समझना पड़ता है. तो मैं क्या करता था कि जो मुश्किल बातें होती हैं, मैं सुबह जो शुरू करता हूं तो कठिन चीजों से शुरू करना पसंद करता हूं. आपको भले कुछ विषय मुश्किल लगते हों, ये आपके जीवन में कोई कमी नहीं है. आप बस ये बात ध्यान रखिए कि मुश्किल लगने वाले विषयों की पढ़ाई से दूर मत भागिए.
जो लोग जीवन में बहुत सफल हैं, वो हर विषय में पारंगत नहीं होते. लेकिन किसी एक विषय पर, किसी एक सब्जेक्ट पर उनकी पकड़ जबरदस्त होती है. जैसे लता मंगेशकर की महारत संगीत में है, हो सकता है अन्य विषय में उन्हें तनिक भी जानकारी न हो. टीचर के लिए मेरा सलाह है कि वे विद्यार्थियों से सिलेबस से बाहर जाकर चर्चा करें, उन्हें गाइड करें. टोकने के बजाय गाइड करें. प्रोत्साहित करें. कुछ बातें क्लास में सार्वजनिक तौर पर जरूर कहें ताकि हौसला बढ़े. कभी बच्चे के सिर पर प्यार से हाथ रखकर बताएं कि इस चीज में सुधार कीजिए.
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