शत – शत नमन सर….

मेरी यादें…

प्रोफ़ेसर प्रभुदत्त खेड़ा । यही नाम है 91 वर्षीय इस गाँधीवादी संत का. जिनसे मिलना मतलब सही अर्थों में धरा में भगवान से मिलना है। मानवता या कहे मनुष्यता को समझना हो तो इसका एक सर्वश्रेठ जीवंत उदाहरण हैं प्रो. खेड़ा । वैसे खेड़ा सर की पहचान अचानकमार के जंगल में दिल्ली साहब के रूप में है। सन् 1984 दिल्ली विश्वविद्यायल से प्रोफ़ेसर की नौकरी को अलविदा कह अचानकमार के जंगल छपरवा पहुंचे खेड़ा सर. तब से यहीं के होकर रह गए। खेड़ा सर ने बैगा बच्चों के लिए दिल्ली ही क्या अपना-घर परिवार सब त्याग दिया। गुजरात के कच्छ के रहने वाले खेड़ा सर 84 के बाद से अब तक कभी अपने परिवार से नहीं मिले । छपरवा में रहकर उनहोंने बैगा बच्चों को शिक्षित करना शुरू किया । आज उनके प्रयास से छपरवा में हाईस्कूल तक पढ़ाई हो रही है । खेड़ा सर से 3 बार मुलाकात हो चुकी है।


उनके त्याग और जीवटता सही अर्थो में ज़िंदगी क्या है और इसे किस रूप में जीना चाहिए ये सीखाती है । हालांकि सर से जब भी मुलाकत हुई बिलासपुर में पं. श्यामलाल चतुर्वेदी बाबूजी के घर पर ही हुई। खेड़ा सर के घर छपरवा अब तक जाना नहीं हो सका है। हमेशा यही उम्मीद करते रहा कि जल्द ही छपरवा की जाकर सर मिलूँगा, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. सर से छपरवा मिलने की यह उम्मीद आज टूट भी गई. अब उनसे जीवंत कभी मुलाकात नहीं होगी. क्योंकि खेड़ा सर अब हमारे बीच नहीं रहे. सुबह-सुबह उनके निधन की ख़बर आई. यकीन नहीं हो रहा है, कि सर को हमने खो दिया है. मैंने व्यक्तिगत तौर पर बीते दो साल में भारत के दो महान रत्न को खोया है. एक श्यामलाल बाबू जी, जिनका निधन 2018 में हुआ अब उनके ही मित्र प्रो. खेड़ा सर, जिनका निधन 23 सितंबर को 2019 को आज हो गया. सच्चाई तो यह भी भारत में पद्म सम्मान, भारत किसी को भी मिले, लेकिन असल माटी पुत्र, माँ भारती के सपूत प्रो. खेड़ा सर जैसे ही लोग हैं. खेड़ा सर भारत के अनमोल रत्न थे.

उम्मीद है आप सर आप फिर छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा में, इसी अचानकमार जंगल में, इन्हीं बैगा आदिवासियों के बीच, इसी छपरवा-लमनी में जन्म लेंगे.

आपका
वैभव