रायपुर। पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान श्री हरि और फलों में सभी देवताओं का वास है.
रविवार को पीपल पर जल चढ़ाना निषेध है. शास्त्रों के अनुसार, रविवार को पीपल पर जल चढ़ाने से जीव दरिद्रता को प्राप्त करते हैं.

पीपल को कलियुग का कल्पवृक्ष माना जाता है. पीपल एकमात्र पवित्र देववृक्ष है, जिसमें सभी देवताओं के साथ ही पितरों का भी वास रहता है. पीपल के पेड़ में ब्रह्मा जी, मध्य में विष्णु जी तथा अग्र भाग में भगवान शिव जी साक्षात रूप से विराजित हैं. पीपल के वृक्ष को कभी काटना नहीं चाहिए. ऐसा करने से पितरों को कष्ट मिलते हैं तथा वंशवृद्धि की हानि होती है.

रविवार को पीपल पर दरिद्रा व उसके पति का आधिपत्य होता है. रव‍िवार के द‍िन सभी देवी-देवता पीपल के पेड़ से चले जाते हैं, और इसल‍िए रव‍िवार के द‍िन पीपल की पूजा वर्जित है. कहते हैं क‍ि अगर कोई भी व्‍यक्ति रव‍िवार के द‍िन पीपल की पूजा कर ले तो उसके जीवन में दरिद्रता आ जाती है. इसके चलते उसे कई तरह की तकलीफों का सामना करना पड़ता है.

किसी प्रयोजन से विधिवत नियमानुसार पूजन करने तथा यज्ञादि पवित्र कार्यों के लक्ष्य से पीपल की लकड़ी काटने पर दोष नहीं लगता. अक्सर लोग ब्रह्ममुहूर्त में मंदिर जाते हैं, जो शुभ कर्म है लेकिन मंदिर जाकर पीपल के पेड़ पर जल न चढ़ाएं क्योंकि उस समय पर अलक्ष्मी वहां वास कर रही होती हैं. सूर्योदय के बाद ही पीपल पूजन करें, जिससे महालक्ष्मी प्रसन्न होकर सदा आपके पास रहें.

रविवार को ही काटा जा सकता पीपल वृक्ष

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, पीपल विष्णु का स्थान है इसलिए पीपल के वृक्ष को काटने से लोग डरते हैं. लेक‍िन कभी पीपल वृक्ष को काटना बहुत जरूरी हो तो उसे रविवार को ही काटा जा सकता है. इसके अलाव क‍िसी और द‍िन इसे काटना न‍िषेध है.