रायपुर। रायपुर के मेयर प्रमोद दुबे पश्चिम सीट पर स्वाभाविक दावेदार हैं. लेकिन पिछली बार जिस तरीके से जीत से सबसे योग्य उम्मीदवार होने के बाद भी उन्हें टिकट नहीं मिली थी. उससे सबक लेते हुए प्रमोद दुबे रायपुर दक्षिण से भी तैयारी करेंगे. ख़बर है कि विकास उपाध्याय खेमा भी चाहता है कि प्रमोद दुबे पश्चिम की बजाय दक्षिण से आज़माईश करें ताकि उनके लिए कोई दिक्कत न हो. हांलाकि अभी चुनाव में कोई सवा साल का वक्त है लेकिन कांग्रेस में राजनीतिक गुणा-भाग का खेल शुरु हो चुका है. लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में प्रमोद दुबे ने कहा कि अगर पार्टी उन्हें दक्षिण से टिकट देगी तो वे वहां से भी चुनाव लड़ने को तैयार हैं.
पिछले विधानसभा चुनाव में प्रमोद दुबे से छानबीन समिति ने रायपुर दक्षिण से लड़ने का प्रस्ताव रखा था जिसे उन्होंने वक्त की कमी बताकर मना कर दिया था. लेकिन इस बार प्रमोद दुबे तैयार हैं. बस, उन्हें टिकट मिलने के बाद तैयारियों का वक्त चाहिए. चूंकि राहुल गांधी पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि टिकटों के बंटवारे 6 महीने पहले कर दिए जाएंगे इसलिए टिकट के बाद तैयारियों के लिए काफी वक्त मिलेगा.
हांलाकि प्रमोद दुबे मौजूदा मेयर हैं लिहाज़ा उनके टिकट को लेकर भी सवाल हैं. प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल पहले ही कह चुके हैं कि मेयर के खिलाफ मतदाताओं का स्वाभाविक रुप से गुस्सा होता है इसलिए इस बार उन्हें टिकट नहीं दिया जाएगा. उनका ये बयान पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी के कड़वे अनुभव के बाद सामने आया जिसमें सभी मेयर चुनाव हार गए थे. लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि पार्टी की टिकट उसे ही मिलेगी जिसके जीतने की संभावना हो.
भूपेश बघेल की दूसरी बात के मद्देनज़र विधानसभा टिकट के दावेदार मेयरों ने विधानसभा सीट पर फोकस करना शुरु कर दिया है. ताकि सर्वे में उनकी दावेदारी सामने आ सके और उनकी दावेदारी सिर्फ इसलिए खारिज न हो सके कि वो मेयर हैं. प्रमोद दुबे रायपुर में ऐसे कांग्रेस नेता हैं जिनकी पकड़ सभी विधानसभा क्षेत्रों में रही है. दक्षिण में बड़ी संख्या में ब्राह्मण मतदाता ब्राह्मण पारा, सुंदर नगर, पुरानी बस्ती और चंगोराभाटा जैसे बड़े इलाके हैं जहां से बृजमोहन को बढ़त मिलती है.
अब दक्षिण सीट का विश्लेषण करें तो प्रदेश में बीजेपी जिस सीट पर सबसे ज़्यादा मज़बूत है उसमें से एक रायपुर दक्षिण हैं. बृजमोहन अग्रवाल यहां के अपराजेय योद्धा हैं. उनके खिलाफ कांग्रेस को टक्कर देने वाला उम्मीदवार भी नहीं मिल रहा है. यहां से स्वाभाविक दावेदार पूर्व मेयर किरणमयी नायक और कन्हैया अग्रवाल भी हैं. लेकिन अगर यहां के स्थानीय कांग्रेस नेताओं का मानना है कि बृजमोहन अग्रवाल को टक्कर देने की क्षमता आज के हालात में प्रमोद दुबे के पास है. बृजमोहन अग्रवाल की तरह प्रमोद लोकप्रिय हैं उनके पास अपनी टीम है. इसके अलावा स्थानीय कांग्रेस नेताओं से उनका सामंजस्य बेहतर है. हांलाकि बतौर मेयर उन पर काम न करके केवल बातें करने के आरोप लगे हैं. कई पार्षद उनसे नाराज़ हैं.
प्रमोद भी जानते हैं कि पिछले पांच साल शहर कांग्रेस अध्यक्ष विकास उपाध्याय सबसे सक्रिय रहे हैं. विकास की पहुंच दिल्ली सीधे राहुल गांधी तक है. इसके अलावा पिछले विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने मंत्री राजेश मूणत को कड़ी टक्कर दी थी. इस लिहाज़ से पश्चिम से उनसे ज़्यादा तगड़ी दावेदारी विकास उपाध्याय की बनती है. अगर दुबे अपनी दावेदारी सिर्फ पश्चिम तक सीमित रखी तो वे तगड़े दावेदार होने के बाद भी एक बार फिर से टिकट से वंचित रह सकते हैं. लेकिन दक्षिण में संभावनाएं ज्यादा है.
विकास उपाध्याय के साथ पार्टी के दूसरे जो पश्चिम से टिकट चाहते हैं वे खुद चाहेंगे कि प्रमोद दुबे को दक्षिण भेजा जाए. ताकि उनकी टिकट की राह मुश्किल न हो पिछले चुनाव में विकास की टिकट फाइनल होकर भी अंतिम समय तक असमंजस बना हुआ था. दूसरा फायदा है कि पश्चिम में एक बड़ा वोट प्रमोद दुबे के समर्थकों का है. पिछले चुनाव में प्रमोद दुबे को टिकट न मिलने से नाराज़ उनके समर्थकों ने विकास उपाध्याय का साथ नहीं दिया था जिससे कुछ वोटों का नुकसान विकास उपाध्याय को हुआ था. अगर प्रमोद दुबे को दक्षिण से टिकट मिल जाती है तो विकास उपाध्याय को कम से कम नुकसान होगा.
अब दक्षिण सीट का विश्लेषण करें तो प्रदेश में बीजेपी जिस सीट पर सबसे ज़्यादा मज़बूत है उसमें से एक रायपुर दक्षिण हैं. बृजमोहन अग्रवाल यहां के अपराजेय योद्धा हैं. उनके खिलाफ कांग्रेस को टक्कर देने वाला उम्मीदवार भी नहीं मिल रहा है. यहां से स्वाभाविक दावेदार पूर्व मेयर किरणमयी नायक और कन्हैया अग्रवाल भी हैं. लेकिन अगर यहां के स्थानीय कांग्रेस नेताओं का मानना है कि बृजमोहन अग्रवाल को हराने की क्षमता केवल प्रमोद दुबे के पास है. बृजमोहन अग्रवाल की तरह प्रमोद लोकप्रिय हैं उनके पास अपनी बड़ी टीम है. प्रमोद को चुनावी प्रबंधन में कुशल हैं. इसके अलावा स्थानीय कांग्रेस नेताओं से उनका सामंजस्य बेहतर है.
किरणमयी नायक के साथ दो बातें अहम हैं. इसलिए अगर दोनों को टिकटें मिल गईं तो रायपुर की सीटों पर जातीय संतुलन कायम रहेगा. इसके अलावा वे बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ रही हैं. जो उन्हें मज़बूत उम्मीदवार बनाता है. लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में किरणमयी नायक बडे़ अंतर से हारी थीं. ये बात उनके पक्ष में नहीं है.
यह विश्लेषण वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किया गया है. हांलाकि अभी विधानसभा चुनाव लगभग डेढ़ साल का समय है. इस बीच राजनीतिक लिहाज से आगे क्या समीकरण बनते हैं, यह समय के गर्त में है.