Maharashtra Public Security Bill 2025: वामपंथी विचारधाराओं और सरकार विरोधी हिंसक गतिविधियों पर लगान लगाने के लिए महाराष्ट्र में ‘लोक सुरक्षा विधेयक’ पास हो गया है। तरह के विवादों और विपक्ष के विरोध के बीच महाराष्ट्र विधानसभा में गुरुवार को ‘महाराष्ट्र लोक सुरक्षा विधेयक’ फडणवीस सरकार ने पास करा लिया। विधानसभा में इस बिल को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पेश किया। विधेयक में वामपंथी उग्रवाद, माओवादी विचारधाराओं और सरकार विरोधी हिंसक गतिविधियों पर सख्ती से कार्रवाई का प्रावधान है। इसका मुख्य उद्देश्य ‘‘अर्बन नक्सल’’ पर ध्यान केंद्रित करते हुए वामपंथी उग्रवादी संगठनों की गैरकानूनी गतिविधियों पर अंकुश लगाना है। विधेयक को विधानपरिषद में पेश किया जाना अभी बाकी है।
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फडणवीस ने विधानसभा में कहा, ‘गडचिरोली और कोकण जैसे जिलों में वामपंथी उग्रवाद का शहरी और ग्रामीण इलाकों में फैलाव कानून-व्यवस्था के लिए खतरा है। यह विधेयक गुरिल्ला युद्ध और हिंसा फैलाने वाली संगठनों पर रोक लगाने के लिए लाया गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह कानून UAPA जैसे कानूनों की कमियों को पूरा करता है, जो मुख्यतः आतंकवादी गतिविधियों पर केंद्रित है, जबकि यह विधेयक चरमपंथी विचारधाराओं और उससे जुड़ी गैरकानूनी गतिविधियों को भी नियंत्रित करेगा।
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विपक्ष के सवाल और शंकाएं
विपक्ष के कई नेताओं ने विधेयक को लेकर चिंता जताई। भास्कर जाधव ने सवाल उठाया, ‘अगर यह कानून राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी है, तो इसे अन्य बीजेपी शासित राज्यों में क्यों नहीं लाया गया?’ जयंत पाटिल ने कुछ संशोधनों का स्वागत करते हुए कहा, ‘हमने तीन साल की सजा या ₹3 लाख जुर्माने का सुझाव दिया था, जिसमें अब ‘और’ शब्द जोड़ा गया है। लेकिन मैं ये भी याद दिलाता हूं कि पी. चिदंबरम ने जो PMLA कानून लाया था, बाद में उन्हीं पर उसी कानून के तहत कार्रवाई हुई।
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विवादित प्रावधान जो बने चिंता की वजह-
विधेयक के कुछ प्रावधानों को लेकर आलोचना हो रही है, जिनमें शामिल हैं:
- -सभी अपराध गंभीर (cognizable) और ग़ैर-जमानती (non-bailable) होंगे।
- -किसी संगठन की संपत्ति जब्त करने वाले अधिकारियों पर कोई दीवानी या आपराधिक मुकदमा नहीं चलेगा।
- -संगठन तब तक समाप्त नहीं माना जाएगा जब तक उसके सदस्य गैरकानूनी गतिविधियाँ न रोक दें, भले ही वह कानूनी रूप से भंग हो चुका हो।
- -बिना अनुमति किसी चिन्हित क्षेत्र में प्रवेश करने पर आपराधिक अतिक्रमण (criminal trespass) का केस चलेगा।

बिल की निगरानी के लिए समिति
मुख्यमंत्री ने कहा कि संयुक्त प्रवर समिति के किसी भी सदस्य ने विधेयक के खिलाफ कोई असहमति नहीं व्यक्त की। विधेयक पेश करते हुए, फडणवीस ने कहा कि इसका अंतिम मसौदा तैयार करते समय लोगों से प्राप्त 12,500 से अधिक सुझावों पर विचार किया गया। विधेयक में एक ‘सलाहकार बोर्ड’ का प्रावधान किया गया है, जिसके अध्यक्ष उच्च न्यायालय के सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे तथा एक सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश और उच्च न्यायालय का एक सरकारी वकील इसके सदस्य होंगे। इस कानून के तहत दर्ज अपराधों की जांच पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) से निम्न स्तर के अधिकारी द्वारा नहीं की जाएगी। यह विधेयक विधानसभा के पिछले शीतकालीन सत्र में पेश किया गया था और संयुक्त प्रवर समिति को भेजा गया था।
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संशोधित बिल में हुए अहम बदलाव
यह विधेयक जुलाई 2024 में मानसून सत्र के दौरान पहली बार पेश किया गया था, लेकिन तब इसमें ‘व्यक्ति और संगठन’ शब्दों के चलते भारी आलोचना हुई थी। इसे बाद में संयुक्त समिति को सौंपा गया, जिसने 9 जुलाई 2025 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसके बाद 10 जुलाई को संशोधित बिल पेश किया गया, जिसमें अब केवल ‘चरमपंथी विचारधाराओं वाले संगठन’ शब्द रखा गया है, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि असहमति जताने वाले व्यक्ति निशाने पर नहीं आएंगे। संयुक्त समिति, जिसमें जयंत पाटिल, नाना पटोले, भास्कर जाधव, जितेंद्र आव्हाड और अंबादास दानवे जैसे नेता शामिल थे, ने तीन प्रमुख संशोधन सुझाए। इस समिति को 12,500 सुझाव मिले, जिससे जनता की भारी भागीदारी साफ नजर आई।
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