फीचर स्टोरी। छत्तीसगढ़ सरकार की जनहितकारी योजनाएं प्रदेशवासियों के लिए कल्याणकारी योजनाएं साबित हो रही है. योजनाओं का लाभ लेकर हितग्राहियों में आत्मविश्वास भी जाग रहा है और सम्मान भी बढ़ रहा है. इसका सुखद परिणाम आमजनों के बीच देखा जा सकता है. दरअसल, बीते साढ़े तीन वर्षों में सरकार ने नवीन योजनाओं का न सिर्फ शुभारंभ किया, बल्कि योजनाओं के क्रियान्वयन पर खासा जोर दिया.
भूपेश सरकार ने जमीन पर जाकर काम किया और आम लोगों तक योजनाएं पहुंचाई और आम जन से योजनाओं पर फीडबैक भी लिया. बेहतर समनव्य के साथ जब काम हुआ, तो व्यवस्थाएं सुधरी और पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हुई. नतीजा आज आम लोगों को समय पर रोजगार, स्वरोजगार मिल रहा है और वे राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में अपनी महती भागीदारी भी निभा रहे.
हितग्राहियों की जुबानी, सफलता की कहानी
राज्य सरकार की गोबर खरीदी ‘गोधन न्याय योजना’ ने राज्य की तस्वीर ही बदल दी है. छत्तीसगढ़ के साथ-साथ आज गोधन देश का मॉडल हो गया है. हजारों महिला समूह आज इस योजना से जुड़कर आत्मनिर्भर हो गई हैं. लाखों महिलाओं को गोबर खरीदी से स्वरोजगार मिला है. गोबर से आज महिलाएं अनेक तरह के निर्माणकार्यों से जुड़ चुकी हैं. गोबर से तरह-तरह के उत्पादों का निर्माण किया जा रहा है. गोबर से अब पेंट बनाने का काम तेजी से जा रही है. इससे जो आर्थिक प्रगति आई उसने महिलाओं की जिंदगी ही बदल दी है.
गोवर्धन स्व-सहायता समूह की धनेश्वरी रात्रे बताती हैं कि उनके समूह के द्वारा गोबर से राखियां, चप्पल तथा अन्य उत्पाद बनाए जा रहे हैं. इसके साथ ही अब समूह के द्वारा गोबर से पेंट बनाया जा रहा है. यह पेंट पूरी तरह से प्राकृतिक है, इसका हमें अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है.
स्थायी साधन नहीं होने का हुआ समाधान
स्व-सहायता समूह की महिलाएं कैसे सशक्त हो रही हैं इसे जानने के लिए आप वाल्मिकी मयंक महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाओं से मिल सकते हैं. समूह का पता है कबीर नगर और अध्यक्ष का नाम रमा मिश्रा. रमा की कहानी भी आम महिलाओं की तरह ही है. शहर में परिवार का खर्च का कितना अधिक होता इसे बताने की जरूरत नहीं है. ऐसे में घरेलु काम-काजी महिलाएं भी चाहती हैं कि वह आत्मनिर्भर बने हैं. यही वजह है कि बड़ी संख्या में महिलाएं आपस में एकजुट होकर, समूह बनाकर खुद को सशक्त करने में जुटी हैं.
आत्मविश्वास और सम्मान के साथ महिलाएं आगे बढ़ रही है. रमा मिश्रा बताती हैं कि उनके पास पहले स्थायी रोजगार का कोई साधन नहीं था. लेकिन अब स्थायी साधन नहीं होने का समाधान हो गया है. समूह के पास अब काम और रोजगार दोनों है. समूह को केंटीन चलाने की जिम्मेदारी मिली है. सरकारी शिविर में समूह की ओर से केंटीन के लिए आवेदन दिया गया था. तत्काल आवेदन स्वीकार हुआ और जोन-8 में हमें केंटीन संचालन की अनुमति मिल गई है. कार्यालय में आने वाले नागरिकों और अधिकारी-कर्मचारियों को हम छत्तीसगढ़ी पकवान खिलाते हैं. इससे प्रतिदिन 1500 से 2000 रूपए की बिक्री हो जाती है. आज समूह की सारे सदस्य अपने पैरों पर खड़े है.
प्रीति के हाथों ई-रिक्शा, आत्मनिर्भरता की शिक्षा
ये कहानी है राजधानी रायपुर की में जोन क्रमांक-2 के वार्ड 27 में रहने वाली प्रीति यादव की. प्रीति यादव का परिवार आर्थिक रूप संपन्न नहीं. ऐसे में परिवार का गुजारा बढ़ी हुई महंगाई में अच्छे नहीं हो पा रहा था. लिहाजा प्रीति ने परिवार में अपना योगदान देना शुरू किया. आर्थिक रूप से खुद को आत्मनिर्भर बनाने प्रीति ने अपने हाथों में ई-रिक्शा को थाम लिया.
राज्य सरकार की योजना के तहत उन्होंने नगर निगम की ओर से आयोजित शिविर में ई-रिक्शा के लिए आवेदन किया. आवेदन पर तत्काल कार्यवाही हुआ और प्रीति को बिना देर ही ई-रिक्शा प्रदान किया गया. प्रीति बताती हैं कि अब ई-रिक्शा चलाकर वह काफी कुछ सहयोग आर्थिक रूप से अपने परिवार का कर पा रही है. परिवार पर अब आर्थिक बोझ नहीं है.
सिलाई से कमाई, कमाई से भलाई
सिलाई से कमाई और कमाई से भलाई की ये कहानी है वार्ड क्रमांक 6 में संचालित महिला स्व-सहायता समूह की महिलाओं की. समूह की महिलाओं के पास सिलाई का काम है. सरकार की योजना के समूह को काम शुरू करने एक लाख रुपये का ऋण दिया गया. इसके साथ ही महिलाओं ने आर्थिक रूप खुद को मजबूत करना शुरू किया. समूह की महिलाओं ने कपड़े से निर्मित थैले, महिलाओं के परिधान और मास्क निर्माण का काम प्रमुखता से किया और लाभ अर्जित किया. आज उनके पास पर्याप्त काम और बाजार में उनके बनाए उत्पादों की मांग है.
श्रमिक कार्ड, कहीं भी जॉब
राज्य सरकार की ढेरों योजनाओं तमाम विभागों में संचालित है. लेकिन योजनाओं से संबंधित कई बार पंजीयन नहीं होने से हितग्राहियों को लाभ समय पर नहीं मिल पाता. ऐसे में योजनाओं का लाभ लेने के लिए हितग्राहियों के पास पंजीयन होना जरूरी है. पंजीयन संबंधी सबसे बड़ा विभाग है श्रम विभाग. श्रम विभाग में श्रमिकों के लिए अनगिनत योजनाएं हैं. जिनका लाभ लेकर मजदूर अपनी जिंदगी बदल सकते हैं.
वार्ड 35 निवासी कुमारी सलित ब्रम्हे बताती हैं कि श्रमिक कार्ड नहीं होने की वजह से पहले सरकार की कई योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा था. लेकिन इस समस्या का अब समाधान हो गया है. उन्होंने निगम की ओर से आयोजित शिविर में श्रमिक कार्ड के लिए आवेदन किया था. आवेदन परीक्षण के बाद उसे श्रमिक कार्ड मिल गया है. श्रमिक कार्ड के साथ जहां राज्य सरकार की ओर से संचालित कामगारों के हित में चलाई जा रही योजनाओं का पर्याप्त लाभ मिलेगा.
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