पंजाब के फिरोजपुर से एक दुखद घटना सामने आई है, जहां डिप्थीरिया के कारण एक तीन साल की बच्ची की मौत हो गई है. यह मामला फिरोजपुर की आवा बस्ती का बताया जा रहा है, और यह इस साल का पहला मामला है.
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, बच्ची को डिप्थीरिया का टीका नहीं लगाया गया था. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और पंजाब स्वास्थ्य विभाग ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है. शुरुआती संकेतों से यह बैक्टीरिया संक्रमण का मामला लग रहा है, लेकिन अभी भी पीजीआई की रिपोर्ट का इंतजार है.
इसी तरह के लक्षणों वाली एक अन्य बच्ची भी स्वास्थ्य विभाग की निगरानी में है, और उसकी रिपोर्ट भी आनी बाकी है. फिलहाल बच्ची की स्थिति स्थिर बताई जा रही है. इन मामलों के बाद WHO और स्वास्थ्य विभाग ने फिरोजपुर में व्यापक सर्वेक्षण शुरू कर दिया है. डॉक्टरों के अनुसार, बच्ची को 6 अक्टूबर को बुखार की शिकायत के बाद अस्पताल लाया गया था. 8 अक्टूबर को उसे सांस लेने में दिक्कत और गले में सूजन की शिकायत होने लगी, जिसके बाद उसे मेडिकल कॉलेज फरीदकोट रेफर कर दिया गया, जहां डिप्थीरिया की पुष्टि हुई और उसकी मौत हो गई.
बच्चों के लिए खतरनाक हो सकता है डिप्थीरिया इस मामले के बाद पूरे इलाके में टीकाकरण स्थिति की समीक्षा की जा रही है. जीटीबी अस्पताल, दिल्ली के डॉक्टर अशोक कुमार के अनुसार, डिप्थीरिया एक बैक्टीरियल संक्रमण है जो सांस की नली के जरिए शरीर में प्रवेश करता है और फिर पूरे शरीर में फैलता है. यह गले और आसपास के हिस्सों में तेज दर्द पैदा करता है. इसे आम भाषा में गला घोंटने वाली बीमारी कहा जाता है, जो दिल और नसों को भी नुकसान पहुंचाती है. यह खासकर बच्चों में खतरनाक होती है, और समय पर इलाज न मिलने पर जानलेवा भी हो सकती है. इसके लक्षणों में बुखार, सूजन, थकान और सांस लेने में तकलीफ शामिल हैं.

फिरोजपुर में टीकाकरण शुरू इस घटना के बाद स्वास्थ्य विभाग और WHO की टीमों ने आसपास के क्षेत्रों का सर्वेक्षण शुरू कर दिया है, विशेष रूप से आवा बस्ती और बस्ती बोरांवाली में, क्योंकि ये इलाके दिहाड़ी मजदूरों की बड़ी आबादी वाले क्षेत्र हैं. इन इलाकों की कुल आबादी लगभग 6,000 है. चूंकि यह एक संक्रामक बीमारी है, इसलिए संक्रमित बच्ची के परिवार और संपर्क में आए अन्य लोगों का टीकाकरण किया जा रहा है ताकि यह संक्रमण और न फैले.
बचपन में दिया जाता है डिप्थीरिया का टीका डिप्थीरिया बच्चों में एक संक्रामक बीमारी है, और इसकी रोकथाम के लिए जन्म से 16 साल तक बच्चों को टीके लगाए जाते हैं. हालांकि, देश में टीकाकरण की दर कम है, क्योंकि कई माता-पिता टीका लगवाने के बाद होने वाले बुखार के डर से अपने बच्चों का टीकाकरण नहीं करवाते.
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