पुरी. दीघा जगन्नाथ मंदिर विवाद पर अपना पक्ष रखने के बाद सेवायत नियोग के अध्यक्ष गणेश दास महापात्र और सचिव रामकृष्ण दास महापात्र लगभग 45 मिनट बाद मंदिर प्रशासन कार्यालय से रवाना हो गए, लेकिन दोनों ने मीडिया के सामने चुप्पी साधे रखी.

दरअसल, दीघा जगन्नाथ मंदिर में नवकलेवर की लकड़ी पहुँचाने को लेकर मंदिर के नीति प्रशासक ने सेवायत नियोग के अध्यक्ष और सचिव को नोटिस जारी किया था. इसी संदर्भ में रामकृष्ण दास महापात्र आज अपना पक्ष रखने के लिए उपस्थित हुए. कल मंदिर प्रशासनिक कार्यालय में इस मुद्दे को लेकर तीन अहम बैठकें हुईं.

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पहली बैठक में मंदिर अधिकारियों, शास्त्रियों और पटयोशी महापात्रों ने नवकलेवर काल की बची हुई लकड़ी को लेकर चर्चा की. दूसरी बैठक में चार लाभार्थियों में से तीन उपस्थित थे. तीसरी बैठक में तीन विश्वकर्मा महाराणाओं से विचार-विमर्श किया गया.

इस बीच, श्री जगन्नाथ सेना ने रामकृष्ण दास महापात्र के खिलाफ सिंघद्वार थाने में शिकायत दर्ज कराई है. शिकायत में पूछा गया है कि लकड़ी दीघा तक कैसे पहुँची और इसमें मंदिर प्रशासन की भूमिका क्या रही.

जगन्नाथ मंदिर के मुख्य बड़ग्रही, जगन्नाथ स्वैन महापात्र ने भी दीघा जगन्नाथ मंदिर विवाद पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पुरी के अलावा किसी अन्य स्थान को ‘जगन्नाथ धाम’ नहीं कहा जा सकता. उन्होंने बताया कि उन्हें दीघा मंदिर के उद्घाटन समारोह के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन उन्होंने वहाँ जाने की इच्छा नहीं जताई.

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उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि श्रीजिउ की लकड़ी अब केवल छोटे-छोटे टुकड़ों में उपलब्ध है, जिससे नई मूर्ति निर्माण संभव नहीं है. आज शाम 4:30 बजे मंदिर प्रशासक इस विवाद और ‘दारू’ मुद्दे पर एक अहम बैठक की अध्यक्षता करेंगे.

30 अप्रैल को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निमंत्रण पर दास महापात्र दीघा मंदिर के उद्घाटन समारोह में शामिल हुए थे. वरिष्ठ सेवायत द्वारा यह दावा किए जाने के बाद कि उन्होंने दीघा मंदिर के लिए मूर्तियाँ बनाने हेतु नवकलेवर की अतिरिक्त लकड़ी का उपयोग किया, सरकार ने श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (SJTA) को जांच के आदेश दिए.

उन्होंने कथित तौर पर एक निजी बंगाली टीवी चैनल को बताया था कि दीघा मंदिर की मूर्तियाँ 2015 में नवकलेवर के लिए एकत्रित की गई बची हुई नीम की लकड़ी से बनाई गई थीं. हालांकि, कार्यक्रम से लौटने के बाद उन्होंने पुरी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस रिपोर्ट का खंडन किया. उन्होंने दावा किया कि दीघा मंदिर की मूर्तियाँ साधारण नीम की लकड़ी से, पुरी में उनकी देखरेख में बनाई गई हैं.

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