Mahakumbh 2025. सनातन सभ्यता के सबसे बड़े पर्व में से एक महाकुंभ के शुभारंभ में महज 15 दिन का ही समय रह गया है. ऐसे में मेले को लेकर तैयारियां अंतिम चरण में है. वहीं इस बार श्रद्धालु इस महाकुंभ में आने के लिए उत्साहित और लालायित भी हैं. क्योंकि इस बार का महाकुंभ विशेष है. पूरे 144 साल बाद विशेष संयोग के चलते इस बार के महाकुंभ कि विशिष्टता बढ़ गई है. इसका महत्व दोगुना हो गया है. इसे ‘पूर्ण महाकुंभ’ कहा जाता है.

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, कुंभ मेला सबसे बड़ा धार्मिक समागम होता है. वैसे तो कुंभ में प्रकार हैं. जैसे अर्ध कुंभ, कुंभ और महाकुंभ. सामान्य बोलचाल में इसे कुंभ मेला कहा जाता है. जो कि हर तीन साल में देश के चार स्थानों में आयोजित होता है. इसमें उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयागराज शामलि हैं. जगह के लिहाज से देखें तो हर 12 साल में इन चार स्थानों पर कुंभ मेला होता है.

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गणितीय भाषा के अनुसार, महाकुंभ का आयोजन हर 144 साल पर होता है. इस बार ये महान पर्व 13 जनवरी से लेकर 25 फरवरी तक चलेगा. इसलिए कहा जा रहा है कि अगर श्रद्धालु इस मौके पर कुंभ मेले में जाने से चूक गए तो फिर इस जन्म में यह पुण्य से भरा मौका फिर नहीं मिलेगा. 144 सालों बाद होने वाले इस महाकुंभ में ऐसा शुभ मुहूर्त आया है जब 6 शाही स्नान होने वाले हैं. ऐसे में देश-विदेश से श्रद्धालु और साधु-संत महाकुंभ में शामिले होने के लिए पहुंच रहें हैं. क्यों होता है शाही स्नान?

क्यों होता है शाही स्नान?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुंभ मेले के दौरान कुछ विशेष तिथियों पर ब्रह्म मुहूर्त में देवता स्वयं पृथ्वी पर आते हैं. वे गंगा नदी में स्नान करते हैं और सभी जीवों को पापों से मुक्ति दिलाते हैं. देवताओं के स्नान के बाद, कुंभ मेले में नागा साधुओं का शाही स्नान होता है. इस स्नान को ‘शाही’ स्नान कहा जाता है, क्योंकि इसमें संतों और नागा साधुओं की शाही मौजूदगी होती है. नागा साधु हिंदू धर्म के संन्यासी होते हैं जो वैरागियों का जीवन जीते हैं. वे नग्न रहकर कठोर तपस्या करते हैं. कुंभ मेले में नागा साधुओं का अपना विशेष महत्व होता है. यदि इन्हें कुंभ का मुख्य आकर्षण कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. नागा साधुओं के स्नान के बाद, आम श्रद्धालु गंगा नदी में स्नान कर सकते हैं.

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कब लगता है महाकुंभ?

परंपरा अनुसार जब-जब उज्जैन, नासिक, हरिद्वार और प्रयागराज में 12 पूर्णकुंभ मेलों का आयोजन हो जाता है, तब एक ‘महाकुंभ’ का आयोजन होता है. गणितीय भाषा में कहें तो महाकुंभ का आयोजन हर 144 साल पर होता है. साल 2025 में यह संगम नगरी प्रयागराज में आयोजित किया जाएगा. जो कि इस बार 13 जनवरी से लेकर 26 फरवरी तक चलेगा.

महाकुंभ 2025 में कब लगेगी आस्था की डुबकी?

13 जनवरी 2025- पौष पूर्णिमा
14 जनवरी 2025- मकर संक्रांति
29 जनवरी 2025 – मौनी अमावस्या
3 फरवरी 2025- वसंत पंचमी
4 फरवरी 2025- अचला नवमी
12 फरवरी 2025- माघी पूर्णिमा
26 फरवरी 2025- महाशिवरात्रि

महाकुंभ क्यों मनाया जाता है

पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश के लिए देवताओं और असुरों के बीच 12 दिन घमासान युद्ध हुआ. अमृत को पाने की लड़ाई के बीच कलश से अमृत की कुछ बूंदें धरती के चार स्थानों पर गिरी थीं. ये जगह हैं प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक. इन्हीं चारों जगहों पर कुंभ का मेला लगता है.

जब गुरु वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में होते हैं तब कुंभ मेला प्रयागराज में आयोजित किया जाता है. जब गुरु और सूर्य सिंह राशि में होते हैं तब कुंभ मेला नासिक में आयोजित होता है. गुरु के सिंह राशि और सूर्य के मेष राशि में होने पर कुंभ मेला उज्जैन में आयोजित होता है. सूर्य मेष राशि और गुरु कुंभ राशि में होते हैं तब हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है.