रायपुर। 18 जुलाई दिन मंगलवार से अधिकमास या मलमास की शुरुआत हो रही है और 16 अगस्त दिन बुधवार को समाप्त हो रहा है। अधिकमास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है क्योंकि इसके स्वामी स्वयं भगवान श्रीहरि हैं। पुरुषोत्तम मास का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। अधिक मास को भगवान कृष्ण ने अपना नाम देकर इसे पुरूषोत्तम मास बना दिया। कहा जाता है कि पुरूषोत्तम मास में दान, धर्म, पूजा, पाठ एवं कीर्तन करने से पुण्य प्राप्त होता है। मलमास या अधिकमास प्रत्येक 3 साल के बाद आता है। इस महीने में भले ही शुभ काम वर्जित माने गए हों, लेकिन पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है।
श्रावण सोमवार व्रत : मलमास के दौरान श्रावण मास के सोमवार को शिव पूजा करने का विशेष महत्व होता है।
कटि विशेष : मलमास में कटि मास के दौरान श्रीकृष्ण के व्रत करने का विशेष महत्व है।
श्रावण शुक्रवारी व्रत : इस दिन माता सती की पूजा की जाती है और श्रावण मास की कथा सुनी जाती है।
अधिकमास व्रत : यह एक पूरे महीने का व्रत होता है, जिसमें धार्मिक आराधनाओं और पूजाओं का नियमित अनुसरण किया जाता है।
श्रीमद् भागवत कथा : अधिकमास में श्रीमद् भागवत कथा का पाठ करने का विशेष महत्व है। इसमें विष्णु भगवान की लीलाओं का वर्णन होता है और इसे सुनकर आप आनंद और धार्मिकता का अनुभव कर सकते हैं।
विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र : विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ अधिकमास में करने से विष्णु भगवान की कृपा मिलती है। इस स्तोत्र में विष्णु भगवान के 1000 नामों का उल्लेख होता है और इसे नियमित रूप से पाठ करने से आप आनंद, शांति और कल्याण की प्राप्ति कर सकते हैं।
विष्णु पूजा : विष्णु भगवान की पूजा करने के लिए आप उनकी मूर्ति या फोटो के सामने विधिवत पूजा कर सकते हैं। इसमें विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र के पाठ, दिव्य नाम संकीर्तन, आरती और मंत्र जाप शामिल हो सकते हैं।
मलमास में कोई विशेष मंत्र निर्दिष्ट नहीं होता है, लेकिन आप अपने इष्टदेव/देवी के मंत्रों का जप कर सकते हैं और उनकी आराधना कर सकते हैं। पूजा और मंत्र जाप के लिए आप अपने परिवार के पंडित या धार्मिक गुरु से सलाह लें, जो आपको अधिकमास के अनुरूप उपयुक्त मंत्र और पूजा विधि बता सकेंगे।